बुधवार, जून 03, 2009

काव्यात्मक चर्चा

आज कुछ काम सम्पन्न हुए तो मन कवितामय हो उठा... सोचा क्यों न आज की चर्चा भी काव्यात्मक रूप में की जाए..... पद्य के परदे पीछे...... गद्य भी छिपा है....... यूँ भी लगता है जैसे पद्य के शरीर में गद्य की आत्मा छिपी है.......

आओ अर्जित करें सम्मान का धन,
संचित करें अपनापन,
विस्मृत करें वैमनस्य,
स्थापित रहे सामंजस्य,
शमित हो अंहकार,
बस प्रेम का हो संचार,
बस प्रेम का हो संचार।


गहरी उदासियों में आई यूँ याद तेरी जैसे कोई सितारा टूटा हो झिलमिलाकर

नियति ले गई पिता को तुमसे
उनका नहीं था कोई दोष....
कांत करो न मन को क्लांत.....
माँ का मन भी होगा अशांत .....

मानव अपनी नियति को देख कह उठता है --
सपना हुआ न अपना फिर भी, सपना देख रहा हूँ।।

वक्त के पहिए चलते रहते.....
बँधे हुए सब कुचले जाते....
कुछ रूहें आज़ादी पा जातीं...
कुछ रूहें मुज़रिम हो जातीं....

शब्द एक पर अर्थ कई हैं
डोर एक पर छोर नहीं है
जीवन मरण विलय कर जाते
रंग हीन के रंग कई हैं
हो अनंत का अंत समेटे,
फिर भी अंत हीन हो श्वेता


मेरे अरमानों की कसक नीली है...
हर दर्द का रंग नीला होता है....
नसें भी नीली होती हैं।
कहता नीले रंग का अफ़साना हरा कोना......

मोहब्बत का करम है,
जो मुझे ये किस्मत बख्शी...
अब तो बातो- में न जाने ,
कितने फसाने हुए जाते है।।


जितने भी थे इल्जाम सारे मेरे नाम हो गए
चलो इसी बहाने तेरे सारे काम हो गये

कोई कहता ..... सिमटी सी इक बिखरी कहानी कहाँ नहीं होती....
फिर इक भावुक दिल कहता.... बिखरी कहानी के बाद फसाना कैसे सिमटे....

अंर्तलोक की लहरीली नदी का सवार.... आया इस पार बहुत दिनों के बाद ...कहता....
भायँ भायँ गरम हवाएँ गले जो पड़ती
देह खुजाती, खून बहातीं, कभी न भातीं।

सूरज आग उगलता...
मानव भी संग मिल आग बबूला होता....
अपने सुख(ट्रेन) को आग लगाता ...

संगीत के मधुर सुरों से, मन मन्दिर को शीतल करें....
पद्य में छिपे गद्य को पढ़ कर, अपने अपने काम करें....

चलता रहे ये कारवां,उम्र-ए-रवां का कारवां

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17 टिप्‍पणियां:

  1. "चलता रहे ये कारवां,उम्र-ए-रवां का कारवां"
    ...कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे...और इस गुबार में कविता वाचक्नवी जी की ‘रिश्ते’ वाली चर्चा दिखाई दी। अच्छी चर्चा-बधाई मीनाक्षीजी।

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  2. खूबसूरत कवितामय चर्चा।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  3. बहुत सुन्दर काव्यात्मक चर्चा।बधाई।

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  4. चर्चा कवितामय होकर अच्छी रही । धन्यवाद ।

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  5. आपके चर्चा करने के बाद से चर्चा में और नए रंग जुड़ गए है.. चर्चा में नवीनता की रीत पूरी तरह से निभाई है आपने...

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  6. मीनाक्षी जी, चिट्ठाचर्चा को नवीन दिशायें एवं विषयाधारित सामग्री देने में आप भी जुट गई हैं यह बहुत अच्छा है. इससे चर्चा में वैविध्य आयगा और कई ऐसे लोगों की कृतियां आगे आयेंगी जिनको सामान्य चर्चा के दौरान नजरअंदाज कर दिया जाता है.

    सस्नेह -- शास्त्री

    हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
    http://www.Sarathi.info

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  7. बहुत सुंदर और अनूठी चर्चा.

    रामराम.

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  8. खूबसूरत रही आपकी यह कवितामय चर्चा.

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  9. यह कवितामय चर्चा रोचक और सार्थक है।

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  10. सुन्दर। कविता ही कविता-पढ़ तो लें।

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