शनिवार, अक्तूबर 04, 2008

चिट्ठाचर्चा: आज तक का सफ़र

तरुण ने आज की चर्चा की- सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं। हंगामा तो नहीं लेकिन हलचल काफ़ी मचा दी निठल्ले ने। इसी बहाने हमको मौका मिला कि हम आपको चिट्ठाचर्चा के अब तक के इतिहास से परिचित करायें। चिट्ठाचर्चा कैसे शुरू हुआ और अब तक उसकी यात्रा के कैसे रोचक पड़ाव रहे।

भारतीय ब्लाग मेला: सन २००४ के अखिरी दिन थे। उन दिनों हम लोगों को पता चला कि अंग्रेजी भाषा के चिट्ठाकार भारतीय ब्लाग मेला का आयोजन करते हैं। इसमें लोग बारी-बारी से ब्लागर ब्लागर ब्लाग मेला का आयोजन करते थे। जिस ब्लागर को आयोजन करना होता उसके ब्लाग पर लोग अपनी पोस्ट के लिंक दे देते और फ़िर वह उसके बारे में लिखता था। उदाहरण के लिये आप देखिये यजद का आयोजन जिसमें अतुल अरोरा, जीतेंन्द्र चौधरी के साथ-साथ मैंने भी अपनी पोस्ट के लिंक दिये थे। इसके बाद उसकी चर्चा की थी यजद ने अपने ब्लाग पर।

हम बड़े खुश हुये कि अंग्रेजी ब्लागर के मेले में हम भी अपनी दुकान चला रहे हैं। उन दिनों हिंदी के ब्लागर कम थे सो हम लोग भिड़ने के लिये अंगेजी ब्लागरों पर निर्भर थे। कोई न कोई बात हो जाती कि बहस करते रहते।

अंग्रेजी के ब्लागरों के अलावा एक बार (३७ वें संस्करण) ब्लाग मेला का आयोजन देबाशीष ने भी किया था। देबाशीष कुछ व्यक्तिगत चिट्ठे ब्लाग मेला के नियम के अनुसार शामिल नहीं किये थे।

सुनामी मेला और बहसबाजी: जनवरी २००५ का पहला ब्लाग मेला मैडमैन के जिम्मे था। सुनामी तूफ़ान हाल ही में आ के गया था। इसलिये मैडमैन ने सुनामी स्मृति ब्लाग मेला आयोजित किया। पहले की तरह हिंदी ब्लागर्स ने अपनी पोस्ट नामीनेट की। मैडमैन ने निम्नकारण बताते हुये हिंदी ब्लाग की चर्चा करने से मना कर दिया:-
That's it for this week, folks. I know some Hindi blog entries were nominated, but I've left them out of this mela, not because I'm a snobbish bastard, but because:

1) I studied Hindi for 10 years at school, and speak the language fluently, but haven't read any big chunks of Hindi since 1990. So my reading speed has reduced to a crawl.

2) The thin strokes of the text coupled with the low resolution of a PC monitor made it even harder to read the entries.

3) Some of the spelling mistakes (mostly misplaced matras) didn't help either.

करेले पर नीम चढ़ा कमेंट किया किसी सत्यवीर ने। उसने लिखा-
I agree that hindi blogs should have a different blog mela. It is better to keep regional languages at a different forum.

बस फ़िर क्या था। बमचक मच गई। हिंदी-अंग्रेजी बबाल मचा। देबाशीष(Indiblogger) जीतेंन्द्र चौधरी और इंद्र अवस्थी )
ने इसका विरोध किया। अंतत: खिसिया के मैंड्मैन ने अपना कमेंट का बक्सा बन्द कर दिया।

चिट्ठाचर्चा की शुरुआत :इसके बाद अतुल ने गुस्से से फ़नफ़नाती हुई पोस्ट लिखी- तुझे मिर्ची लगी तो मैं क्या करूँ? । मैंने मौज ली अलबर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है । लेकिन हमें यह भी लगा कि हर समय हा हा, ही ही करना ठीक नहीं तो हम गम्भीर हो लिये। हमने चिट्ठाचर्चा ब्लाग शुरू किया। स्वागतम पोस्ट में हमने लिखा था-
भारतीय ब्लागमेला के सौजन्य से पता चला कि हिदी एक क्षेत्रीय भाषा है.यह भी सलाह मिली कि हिंदी वालों को अपनी चर्चा के लिये अलग मंच तलाशना चाहिये.इस जानकारी से हमारेमित्र कुछ खिन्न हुये.यह भी सोचा गया कि हम सभी भारतीय भाषाओं से जुड़ने का प्रयास करें.

इसी पोस्ट में हमने हिंदी के अलावा अन्य भाषाओं के ब्लाग की चर्चा भी करने का मन बनाया था। कुछ दिन अंग्रेजी, सिंधी, गुजराती और मराठी के चिट्ठों की चर्चा करते भी रहे।

शुरुआती प्रतिक्रियायें: शुरुआत चिट्ठाचर्चा की अच्छी ही रही। हिंदी के अलावा अंग्रेजी के ब्लागरों ने इसमें रुचि दिखाई। प्रसेनजित ने अगले भारतीय ब्लाग मेले में इसका जिक्र किया। शायद आलोक ने कहा था कि वे तमिल चिट्ठों की चर्चा का काम देखेंगे।

शुरुआत के दिन: शुरू के दिनों में हम चर्चा एक माह में एक बार करते थे। फ़िर शायद पन्द्रह दिन में करते थे। सब मिलकर चर्चा करते थे। देबाशीष, अतुल, जीतेंद्र और मैं। आप शुरुआत के चिट्ठे देखें तो आपको हिदी ब्लाग जगत के साथ भारतीय ब्लाग जगत की तमाम बेहतरीन पोस्टें देखने को मिल जायेंगी।

मन उचट गया: शुरुआत के दिन अच्छे लगे। फ़िर जब संकलक आ गये तब लगा कि हम चर्चा करके कौन सा तोप चला रहे हैं। लोगों को ब्लागस के बारे में पता तो चल ही जाता है संकलकों से। इसके बाद धीरे-धीरे हमारे आलस्य ने हमारे उत्साह पर विजय पायी और चिट्ठाचर्चा हो गयी धरासायी।

फ़िर उछलकूद लेकिन गुप्त वाली: फ़िर देबाशीष ने कहा कि चिट्ठाविश्व के लिये चर्चा करो। चिट्ठाविश्व हिंदीब्लाग जगत का पहला संकलक है शायद जिसके बाद नारद , ब्लागवाणी और चिट्ठाजगत आये। हम एक गुप्त ब्लाग में चर्चा करते और वह संक्षिप्त चर्चा चिट्ठाविश्व में पोस्ट हो जाती। अच्छा लगा कुछ दिन। फ़िर धीरे-धीरे वह भी बंद हो गया।

चिट्ठाचर्चा का अपहरण: इन्हीं दिनों शायद सितम्बर ,२००५ में किसी शहजादे ने चिट्ठाचर्चा का अपहरण कर लिया। बाद में मित्रों के प्रयासों से, शायद गूगल को भी लिखा गया था ,चिट्ठाचर्चा की वापसी हुई। लेकिन जब वापसी हुई तब तक उसकी पुरानी पोस्टों के सारे कमेंट उड़ चुके थे और तमाम पुरानी पोस्टें भी। बाद में देबाशीष ने मेहनत करके पुरानी पोस्टों में से अधिकतर पुन: संजोयीं। शुरू में हम लोगों ने सावधानी बरतने के लिहाज से चिट्ठाचर्चा के प्रशासकीय अधिकार केवल देबाशीष तक सीमित रखे। बाद में मेरे पास भी इसके अधिकार आये ताकि मैं नये सदस्य बना सकूं।

दनादन चर्चा, महारथी चर्चाकार: एक दौर ऐसा रहा जब सप्ताह के सातो दिन चिट्ठों की चर्चायें अलग-अलग होने लगीं। दिन में दो-दो बार भी चर्चायें हुयीं। एक-एक चर्चापोस्ट के लिये भी दो-दो चर्चाकार (समीरलाल-रचना बजाज, समीरलाल- राकेश खण्डेलवाल) जुटते रहे। राकेश खण्डेलवाल पूरी चर्चा काव्यात्मक करते। गिरिराज जोशी ज्यादातर कवियों की चर्चा करते। देबाशीष केवल काम के चिट्ठों की चर्चा करते। अतुल अरोरा अपनें अंदाज से चमत्कृत करते रहे। जीतेंन्द्र चौधरी, रविरतलामी समय-समय पर जुटते हटते रहे। मासिजीवी परिवार (मसिजीवी, नीलिमा, सुजाता) बारी-बारी से चर्चित चर्चायें करते रहे। मसिजीवी ने इंकब्लागिंग का प्रयोग चर्चा में किया। बेंगाणी बंधुओं और आशीष की बिंदास वर्तनी पर कुछ दिन लोग टिप्पणी करते रहे। सृजनशिल्पी एक बार की चर्चा के बाद ही खर्चा हो गये। लब्बोलुआब यह कि चिट्ठाचर्चा में महारथी ब्लागर लगे रहे। चर्चायें रुकतीं रहीं होती। दायीं ओर जितने भी साथियों के नाम दिये हैं उनमें से सभी ने कभी न कभी चर्चाकार का काम सक्रिय रूप से निभाया है। सिवाय एकाध लोगों को जिनको अभी शुरुआत करनी है।

नारद की अनुपस्थिति में चर्चा: एक समय ऐसा आया जब नारद के चलते चर्चा का काम अप्रासंगिक लगने लगा था। ऐसे समय में भी छुटपुट चर्चा होती रही। फ़िर नारद बैठ गया। उस समय लग लगभग सभी ब्लागर नयी पोस्ट देखने के लिये नारद पर निर्भर हो से गये थे। नारद की अनुपस्थिति में लोगों को पता ही न चले कि नयी पोस्ट किसने , कब कहां लिखी! ऐसे विकट समय में चिट्ठाचर्चा की उपयोगिता समझ में आई। हम उस समय मौजूद तीन-चार सौ चिट्ठों में से सक्रिय चिट्ठे छांटकर उनको रोज देखते। देखकर नयी पोस्टों का जिक्र करते। इस तरह चिट्ठाचर्चा एक तरह से वैकल्पिक संकलक का काम काफ़ी दिन करता रहा। मेहनत काफ़ी हुई लेकिन सुकून भी रहा कि हम ब्लागरों को नयी पोस्टों की जानकारी मुहैया करा रहे हैं। उस समय काफ़ी चिट्ठाकार दिन की शुरुआत चिट्ठाचर्चा देखकर ही करते थे।

एक लाइना, आलोक पुराणिक और चिट्ठाचर्चा : नारद के पुनर्गठन और इसके बाद ब्लागवाणी और फ़िर चिट्ठाजगत जैसे संकलक आने के बाद हम लोगों को चिट्ठाचर्चा अप्रासंगिक लगने लगा। लेकिन आलोक पुराणिक ने कई बार उकसाया कि हमको एक लाइना लिखते रहना चाहिये। एकलाइना लिखने लगे तो फ़िर एहसास हुआ कि चिट्ठाचर्चा ऐसा मंच है जिसका उपयोग हमेशा रहेगा। हम चाहें सब चिट्ठे न समेंट पायें लेकिन जितने भी समेट पायेंगे उतने से ही काम भर का काम हो सकता है। इसी उद्देश्य से हम फ़िर जुट गये। इस तरह देखा जाये तो आलोक पुराणिक ,जिनका मानना है कि आने वाले समय में कहने के अंदाज बदलेंगे और कम से कम शब्दों में अपनी बात कहने की शैली का महत्व बढ़ेगा, चिट्ठाचर्चा के इस दौर के उकसाऊ-पुरुष हैं। इसके अलावा इस बार चर्चा जब शुरू हुई तो लोगों की प्रतिक्रियायें पहले के मुकाबले काफ़ी थीं।

नये चर्चाकार, विविधता : कुछ दिन अकेले चर्चा करने के बाद तरुण, कुश , समीरलाल और मसिजीवी परिवार फ़िर से चिट्ठाचर्चा दल में शामिल हुये। इस तरह हफ़्ते के चार दिन के लिये वैराइटी रहती है। बाकी के तीन दिन मुझे चर्चा करनी होती है। इन चार दिनों में भी कुछ-कुछ समस्याओं के चलते साथी लोग चर्चा न कर पाये। लेकिन यह तय है कि चर्चाकारों में विविधता आने के बाद चिट्ठाचर्चा के पाठकों में की संख्या में इजाफ़ा हुआ है।

बदलता समय और चिट्ठाचर्चा का स्वरूप : बढ़ते चिट्ठों के साथ सभी चिट्ठों को चिट्ठाचर्चा में समेटना मुश्किल काम होता जा रहा है। यह स्वाभाविक बात है कि जो ब्लागर अच्छा लिखते हैं वे अपने चिट्ठे की चर्चा यहां देखना चाहें। लेकिन अक्सर चर्चाकार के लिये यह तमाम कारणों से कठिन हो जाता है। मान लीजिये कोई बेहतरीन पोस्ट किसी दिन चिट्ठाचर्चा के तुरन्त बाद पोस्ट हो। तो वह उस दिन के लिये छूट गयी। अगले दिन जब कोई दूसरा चिट्ठाकार चर्चा करे तब भी उसको लेने से रह जाये। यह सहज स्वाभाविक है। इसके पीछे कोई जानबूझकर की गयी अनदेखी नहीं होती।
आगे आने वाले समय में चिट्ठाचर्चा के स्वरूप में बदलाव के बारे में तमाम साथियों ने सुझाव दिये हैं। देबाशीष का यह भी विचार है कि हम चिट्ठाचर्चा ऐसे करें ताकि दिन के ही अलग-अलग समय में जो चिट्ठे पोस्ट हों उनका जिक्र कर सकें। यह भी कि एक ही विषय से संबंधित चिट्ठों की एक दिन चर्चा करें ताकि उसका आगे फ़िर बेहतर उपयोग हो सके। देशी पंडित की तर्ज पर भी चर्चा की बात चली जिसमें कि जब मन करे तब किसी अच्छी पोस्ट का जिक्र ब्लागर साथी कर सकें। लेकिन यह सब फ़िलहाल संभव नहीं हो सका इसलिये वर्तमान स्वरूप ही चल रहा है।

फ़िलहाल की चिट्ठाचर्चा मेरी नजर में मेरी समझ में बावजूद तमाम कठिनाइयों के आज जिस रूप में चिट्ठाचर्चा है उसी रूप में चलती रहनी चाहिये। अगर संभव हो तो और साथी चर्चाकार जुड़ सकें तो बेहतर। इस लिहाज से शिवकुमार मिश्र के जल्दी ही चर्चा करने की आशा है। यह भी हो सकता है कि हर चर्चाकार के साथ एक साथी चर्चाकार हो, जैसे मसिजीवी परिवार है। ये लोग शुक्रवार को बारी-बारी से चर्चा करते रहते हैं। सुबह की समय मुख्य चर्चा करने का काम नियमित चर्चाकार का रहे। इसके बाद शाम को जिस किसी के पास भी मौका और मूड हो वह चर्चा के मैदान में कूद पड़े। इसमें तरुण रोज अपने एक दूजे के लिये, कुश अपने सवाल-जबाब और हम अपने एक लाइना ठेल सकते हैं। डा.अनुराग आर्य को भी टिप्पणी वाली जगह से ऊपर उठकर चर्चा मंच से जुड़कर एकलाइना पेश करने का मन बनाना चाहिये।

यह सबकुछ ऐसे ही बेतरतीब सी जानकारी देकर बताने की कोशिश की कि चिट्ठाचर्चा का पिछला लगभग साढे तीन साल से भी अधिक का समय कैसा बीता, कैसे -कैसे दौर आये। पुराने समय में जो चर्चायें हुयीं वे इस अर्थ में बेहद महत्वपूर्ण हैं कि किसी नये साथी को यह अंदाजा लगाना आसान हो सकता है कि कैसे -कैसे दौर से हिंदी ब्लागिंग गुजरी है। किसी एक ब्लागर की पोस्ट पढकर या फ़िर कोई संकलक देखकर जो बात आसानी से नहीं समझी जा सकती वह चिट्ठाचर्चा की पोस्टों से देखकर समझी जा सकती है।

...और अंत में टिप्पणी चर्चा


कल की पोस्ट से
  • अनूप जी हंस भी रही हूं और लिख भी रही हूं। मेरी रचना की लाइन पर आपने जो वन लाइना लिखा है पढ़कर हंसी थम ही नही रही क्या करुं। मजा आ गया। प्रीति बड्थ्वाल

    प्रीतिजी आप महान हैं जो अपनी खिंचाई पर भी हंसे जा रहीं हैं। अच्छा हुआ प्रीतिजी कल हंस लीं। आज रचनाजी ने डांट लगा दी और कहा कि हर बात में हाहा,हीही करना अच्छी बात नहीं। वैसे हमें आपसे एक शिकायत है कि आप कवितायें बहुत अच्छी लिखती हैं लेकिन अक्सर क्या हमेशा ही बहुत संजीदा सी कवितायें लिखती हैं। कभी-कभी खिल-खिल कवितायें भी लिखिये न! आपको थोड़ी ही रचनाजी ने हंसने से रोका है। :)


  • डा.अनुराग, आप बड़ी धांसू गुफ़्तगू करते हैं। आपसे अनुरोध है कि लिंक सहित आप अपनी गुफ़्तगू रोज के रोज मुझे मेल कर दिया करें। anupkidak@gmail.com पर। हम उसे चिट्ठाचर्चा में शामिल कर लिया करेंगे। आप टिप्पणी वाली जगह से थोड़ा ऊपर भी उठिये न चर्चा में।

  • मैने झटपट चूहे को इधर दौड़ा दिया। यहाँ आकर मुझे जो आनन्द आया है, उसके लिए मैं आपको तहे दिल से शुक्रिया अदा करना चाहता हूँ। आप कहाँ और किस पते पर मिलेंगे गुरू जी...? आपसे तो बात करने का मन हो रहा है। सच्ची...। आज मुझे पहली बार पता चला कि, ...सीरियसली स्पीकिंग, मैं ग़जल की रचना करता हूँ। थैंक्स टू यू...फॉर टेलिंग मी दिस अमेज़िंग ट्रुथ, इफ दैट बी सो...(अंग्रेजी में कहने का मजा ही कुछ और है)। मुझे सच में पता नहीं था कि ऑफिस जाने से ऐन पहले मैने किसी नसीरुद्दीन साहब की पोस्ट पर टिप्पणी करते हुए सीधे उनके कमेण्ट बॉक्स में जाकर जो चार-छः लाइनें टाइप कर दी थी, उसे ग़जल समझ लिया जाएगा।सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी

    सिद्धार्थ भाई आप हमारे साथ बने रहो। न जाने क्या-क्या पता चलेगा आपको। बकिया ई-मेल का पता तो ऊपर दे ही दिया है। जहां तक हमारे पलायनवादी समझे जाने की बात है तो उसकी क्या फ़िकर ? जो होगा देखा जायेगा। आज की पोस्ट में आपके सुझाव अच्छे हैं। उनके लिये शुक्रिया।


  • @अनूप भाई,जब यह कविता लिखी तो मजाकिया मूड में ही लिखी गयी, किसी भी ब्लाग के बारे में सोच कर लिखने का सवाल ही नही आया था ! यह सच है कि मैं हर भावना का पूरा सम्मान करता हूँ उसमे चोखेरवाली और नारी ब्लाग शामिल हैं ! सतीश सक्सेना

    सतीश जी मुझे अच्छी तरह अन्दाजा है कि आपने कविता मजाकिया मूड में ही लिखी। लेकिन फ़िर उसके मतलब निकलते गये। संयोग यह कि आपकी लाइनें मुझे जम गयीं सो उनको चिट्ठाचर्चा के शीर्षक में लगा दिया। आगे की कथा क्या दोहरायें?

  • ताऊ जी को हमारा छोटा माउस बड़ी पोस्ट पसंद आये इसके लिये शुक्रिया। अन्य साथियों को भी चर्चा पसंद करने और हौसला आफ़जाई का शुक्रिया।

  • आज की पोस्ट से
  • सही बात यही होनी चाहिये . हर समय हर विषय पर हा हा ही ही ठा ठा था था नहीं सही हैं . एक दिन कभी हल्के मोद्द मे बात हो कोई एक करे तो ठीक हैं ये उसकी पसंद पर निर्भर हैं . पर हर समय हर विषय को एक लाइन मे हास्य का पुट देने से कोई बात सही तरीके से आगे नहीं आती रचना सिंह

    रचनाजी आपकी बात सही है कि हर विषय पर हा हा ही ही ठा ठा करना सही नहीं है। जैसे हर बात पर गुस्सा होकर हड़काने लगा। कभी-कभी सहज भी रहना चाहिये। आप देखें तो हाहा हीही के पहले रोज तमाम पोस्टों पर संजीदा चर्चा का प्रयास भी किया जाता है। दूसरी बात यह भी कि यह जो हा हा ही ही वाला फ़ार्मेट है उससे तमाम चिट्ठों का जिक्र एक जगह हो जाता है। अन्यथा यह बहुत मुश्किल काम है। लेकिन चर्चा करते समय प्रयास किया जाता है कि किसी का दिल न दुखे।

  • डा.अनुराग के लिये फ़िर वही बात कि अपनी पेशकश चर्चा के लिये भेजें तो और अच्छा रहेगा। बेहतर होगा चर्चा करें। खाली पेशकश पेश करें बस्स!


  • डा.अमर कुमार , इंद्र अवस्थी, ताऊ, समीरलाल ,तरुण, कुश , मानसी, सेखावत, ई-गुरु की टिप्पणियों के शुक्रिया। अवस्थी कहानी ऐसे ही सुनाते रहा करो समय-समय पर।


  • फ़िलहाल इत्ता ही। बकिया फ़िर कल!
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    20 टिप्‍पणियां:

    1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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    2. मेरा यह विश्वास है कि अच्छे लेखन को किसी सहारे की आवश्यकता नही है और किसी भी लेखन से चिटठा लेखक की मानसिकता साफ़ पता चल जाती है ! पाठकों पर छोड़ दें कि कौन कैसा लिख रहा है, आज जिस तरह नए उदीयमान लेखकों की प्रतिभा सामने आ रही है, यह एक शुभ संकेत है कि एक दूसरे पर कीचड़ फेक कर, अपने को श्रेष्ठ साबित करने में लगे, पुराने लिक्खाड़, जो बेहद घटिया लिख कर भी अपने आपको हिन्दी ब्लाग का करता धरता समझते हैं, के दिन आ गए हैं कि पाठक उन्हें दर किनार कर दे !

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    3. यह बहुत सार्थक पोस्ट है. कम से कम नये ब्लॉगर्स और साथ ही पुराने ब्लॉगर्स को चिट्ठाकारी और उसके इस सफर के बारे में तो पता चलेगा.

      इस पोस्ट के लिए आपका साधुवाद!!

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    4. भाई अनूप जी , आपकी ये चिठ्ठा चर्चा तो वाकई बहुत ही जानकारी परक है ! ये तो पूरा इतिहास समेटे है ! बहुत बधाई और शुभकामनाएं आपको !

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    5. आज का चर्चा सच में कामयाब रहा.. इस इतिहास में मैं जनवरी 2007 से ही साथ हूं.. पहले बस पढकर आगे निकल जाता था हर चिट्ठे से.. कहीं कुछ लिखने से पहले संकोच करता था कि लोग ना जाने क्या सोचेंगे.. फिर आत्मविश्वास आता गया और लगातार लिखता भी गया.. इस चिट्ठाचर्चा के पिछेले आधे इतिहास को बताने के लिये तहे दिल से आपका धन्यवाद..

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    6. यह स्वयम् में ऐतिहासिक महत्व का लेख है।कई महत्वपूर्ण चीजें जो नेट पर हिन्दी के चलन को लेकर संजोई जानी चाहिए थीं, वे इस बहाने रूपाकार ले पाईं। सच है कि हर चीज का सृजनात्मक उपयोग भी तो संभव है। वही इस बार प्रत्यक्ष हुआ।

      बहुत-सी शुभकामनाएँ।

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    7. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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    8. चलिए तरुण जी की वजह से चिट्ठाचर्चा का इतिहास सभी को जानने का मौका मिला। साथ ही पिछली पोस्ट यानी तरुण वाली पर जो मैंने कमेंट किया था अब लगता है कि सच एक स्टाइल बुक बनाना आप लोगों के लिए भी कितना कठिन काम होगा। अनूप जी ये ही कहना चाह रहे हैं शायद हम लोग कि जिस तरह से ये दोनों चिट्ठाचर्चा हुईं हैं इनका मिश्रण गर मिल जाए तो वो और भी बेहतर। चुनिंदा पोस्ट चर्चा+टिप्पणी+नए ब्लागर्स+वन लाइनर+अंत में पसंद(स्पेशल)।

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    9. अच्छा लग रहा है- हिंदी ब्लागजगत के सफ़र को जानना। बहुत बहुत आभार। ये जानकारियां तो भविष्य में बहुत मह्त्वपूर्ण साबित होंगी। अपने समय की गतिविधियों को दर्ज करना भविष्य का दस्तावेज तैयार करना है। मेरी शुभकामनाए। आप दर्ज करते रहें। यह एक जरूरी काम भी है, फ़िर जब आपने अपने जिम्मे लिया है तो जारी रहिये।

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    10. हिन्दी चिट्ठाकारी की प्रसवपीड़ा, पालनपोषण में आयी कठिनाईयाँ,
      सीमित संसाधनों से भी एवरेस्ट को लक्ष्य में रखते हुये अब पहुँचना इस मुकाम पर !
      यह सब सराहनीय है, व ठीक है अपनी जगह पर..

      पर, इस सबसे आगे के लिये कोई स्पष्ट दिशानिर्देश परिभाषित नहीं हो पा रहा है..

      बहस किसी क्राइसिस पर नहीं, बल्कि चर्चा की रूपरेखा पर चल रही है..
      वर्तमान समस्या समयसीमा, व्यक्ति सामर्थ्य और चिट्ठों के विस्तार को लेकर है,
      जो इसके प्रति समर्पण के दायित्व के बँटवार के चलते खड़ी हुयी है

      यहाँ पर आपकी अपनी निष्ठा सिद्ध करना अप्रासंगिक लग रहा है
      आपके सुपरमैनिआ लगन व श्रम से तो सभी अचंभित रहते हैं
      आपकी निष्ठा से किसी किसिम की बू तो नहीं आरही, फिर इतिहास की दुहाई क्यों ?
      आगे की सुधि लेय, गुरु
      आगे की सुधि लेय !

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    11. सतीश सक्सेना जी की बात से सहमत हो कर बस इतना कहना जरुर चाहूंगी , चर्चा का मंच हैं , अगर स्तर की चर्चा नहीं हैं तो कोई लाभ नहीं हैं . इतिहास को समय से बदलना भी होता हैं वरना किताबो के पन्नो मे कैद हो जाता हैं . मंच की गरिमा मंच पर हो रहे काम से होती हैं ना की उन नामो से जो मंच का संचालन करते हैं .
      जब तक कमेन्ट पूरा किया डॉ अमर का कमेन्ट आ चुका था सो अपना कमेन्ट दोहराव करता महसूस हुआ फिर भी

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    12. चिठ्ठा चर्चा बन पड़ी, बढ़िया दस्तावेज।
      हिन्दी में जो हो रहा, रहे अनूप सहेज॥

      रहे अनूप सहेज, यहाँ का गड़बड़झाला।
      लिख डाला इतिहास,जवाब उन्हें दे डाला॥

      सुन‘सिद्धार्थ’ गज़ब-लिखव‍इया निकला पठ्ठा।
      चर्चा की चर्चा में लिखता चौचक चिठ्ठा॥

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    13. आज की चर्चा से हिन्दी ब्लागरी के इतिहास की एक खिड़की दिखाई दी। कभी इस के इतिहास को भी समेटने का प्रयत्न होना चाहिए।
      चर्चा ही उस के लिए आरंभिक स्थल बनेगा। हाँ चर्चा में जीवन के सभी रंग सिमटते रहें, अच्छा है।

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    14. मोटी मोटी बात की जाए तो दो तीन बातें बिल्कुल साफ़ हैं
      १ ये एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं तथा इसके मालिकाना हक़ जिनके पास हैं ये उनका अधिकार हैं की वो किस को कहे की लिखो
      २ हर कम्युनिटी ब्लॉग का कोई मकसद होता हैं इनका मकसद हैं कुछ लोगो के लिखे की चर्चा करना और ये इनकी अधिकार सीमा के अंदर हैं
      ३ सबसे अहम बात यहाँ चर्चा से ज्यादा , ज्यादा पढ़ने आए उस पर जोर हैं यानी टी आर पी

      ४ ये ज्ञान पीठ पुरुष्कार नहीं हैं जिसके लिये इतनी बहस हो रही हैं , और ये सार्वजनिक मंच भी नहीं हैं की इतनी बहस हो
      ५ जो चर्चा कर रहे हैं यानी जितने लोग इस के सदस्य है वह एक जुट हैं की वह जो कर रहे हैं वह साधुवाद के दायरे मे आता हैं सो करना जारी रहेगा
      ५ सदस्यता का निमन्त्रण उनको भेजा जायेगा जो सदस्यों के ऊपर लिखे गे
      ६ शिवकुमार को सदस्य बनाया जा रहा हैं , अनुराग को बनाया जा सकता हैं बाकी जिन्होने कहा हैं पिछली पोस्ट मे वो सब टाइम खोटी कर रहे हैं अपना भी इनका भी
      ७ सहजता से चर्चा हो इसलिये इनकी चर्चा से दूर रहो

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    15. भा गयी चर्चा
      चर्चा जारी रहे।
      अच्छी पोस्ट के लिए आभार का ट्रक किधर भेंजें
      गिरीश बिल्लोरे मुकुल

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    16. अमर जी की टिप्पणी को हुबहु टिप लिया जाए यहाँ पर भी

      जवाब देंहटाएं
    17. चिट्ठा चर्चा का सफ़र वाकई बड़ा रोचक रहा.. हमे ये सब पता नही था.. आपका बहुत बहुत धन्यवाद अनूप जी इस पोस्ट के लिए... मुझे पूरा विश्वास है की चर्चा अपनी गरिमा बनाए रखेगी.. जिसका प्रकार सफलतापूर्वक चिट्ठा चर्चा यहा तक पहुँचा है... आगे भी यूही बढ़ता रहेगा..

      चर्चा पर लिखने वाले, पढ़ने वाले सभी को मेरा आभार..

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    18. चिठ्ठाचर्चा के इस मुकाम तक पहुंचने मे लगे हुए श्रम और इच्छाशक्ति का पता चला !
      चर्चाकारों को अपनी व्यक्तिगत पसंद नापसंद से ज्यादा पोस्ट की गुणवत्ता को ध्यान में रखकर चर्चा करनी चाहिए ।

      हर चर्चा में कम से कम एक नए ब्लॉगर की पोस्ट का जिक्र करना चाहिए ।

      कभी-कभी सामजिक-राष्ट्रीय-ब्लॉग मुद्दों पर टिप्पणी माध्यम से बहस आयोजत करनी चाहिए ।

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    19. बहुत श्रमसाध्य सफ़र रहा है अब तक.
      गहन चर्चा यूँ ही जारी रहेगी.

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    चिट्ठा चर्चा हिन्दी चिट्ठामंडल का अपना मंच है। कृपया अपनी प्रतिक्रिया देते समय इसका मान रखें। असभ्य भाषा व व्यक्तिगत आक्षेप करने वाली टिप्पणियाँ हटा दी जायेंगी।

    नोट- चर्चा में अक्सर स्पैम टिप्पणियों की अधिकता से मोडरेशन लगाया जा सकता है और टिपण्णी प्रकशित होने में विलम्ब भी हो सकता है।

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