बुधवार, नवंबर 18, 2009

पहला थरथराता चुंबन नहीं लेता कोई दूसरे प्यार में

 

आज की चर्चा करने के पहिले कल की ग्राहक सेवा कर ली जाये।डा.अनुराग आर्य ने फ़रमाइश की कि कुछ लेखों की चर्चा की जाये:एक ही विषय को अलग अलग नजरिये से देखने का प्रयास .....यहाँ देखे ....पहली पोस्ट कबाडखाना से
ओर दूसरी पोस्ट महेश जी की तीसरी पोस्ट जिसे पाठको के लिए सिफारिश करना चाहूँगा ...वो है विधु जी की ये पोस्ट
ओर चौथी पोस्ट
संजय जी की जो अभी लिखी गयी है आज ......इसके अलावा महेन की दूसरा प्यार की सिफारिश भी करना चाहूँगा ...

image कबाड़खाना और महेशजी वाली पोस्टों में ओमपुरी की जीवनी पर मीडिया में बयानबाजी के बाद स्त्री/पुरुष के संबंधों की पड़ताल और लेखकों के विचार हैं। अंतरंग संबंधों पर लेखन : अवधारणा और बाजार में प्रख्यात कथाकार अब्दुल बिस्मिलाह का मानना है---इसमें संदेह नहीं कि आत्मकथा या कहानी के जरिए अपनी या अपने पति की जिंदगी के अंतरंग प्रसंगों को लिखा जाना एक साहस का काम है। इसे नकारात्मक ढंग से न लेकर सकारात्मक ढंग से लिया जाना चाहिए । ए क स्त्री ने जो झेला है, भोगा है, वह लिख रही है। लेकिन सवाल यह है कि इसका साहित्यिक स्तर क्या है। आ॓मपुरी के मामले में बाजार एक बड़ा फैक्टर है। स्त्रियों द्वारा अंतरंग प्रसंगों को लिखा जाने का मामला इतना सरल नहीं है जितना समझा जा रहा है। यह आत्मकथा है तो साहित्यिक स्तर देखा जाना चाहिए ।

image वहीं कवियत्री अनामिका कहती हैं--सामान्यतौर से लोग नकारात्मक उदाहरणों से सीखते हैं। यह इसलिए लिखा जा रहा है कि आने वाली पीढ़ी अपनी मां, बहनों की तकलीफों को समझे। इसलिए संदर्भ सहित बातें रखी जाती हैं। क्योंकि जाने-अनजाने लोग ऐसा करने से एक बार सोचें। यह लेखन आत्मनिरीक्षण का एक अवसर देता है।

महेशजी पोस्ट में मैत्रेयी पुष्पा का लेख है। इस सारे मामले पर अपनी बात रखते हुये मैत्रेयीजी कहती हैं--अगर इस सच्चाई से संबंधित व्यक्ति आहत या क्रोधित होता है तो यह तय है कि वह अभी खुद को गिलाफों में छिपाकर रखना चाहता है।

मणिपुर की लोह स्त्री शर्मीला की कहानी - शर्मीला समय की उचाइयों पर...

में विधु जी शर्मीला के बारे में जानकारी देती हैं :image दरअसल ११सितम्बर १९५८ मैं बने ए ऍफ़ एस पी ए [आर्म्स फोर्स स्पेशल पॉवर एक्ट ]जिसे पूर्वोतर राज्यों अरुणाचल मेघालय असम मणिपुर नागालेंड और त्रिपुरा जैसे राज्यों मैं सेना को विशेष ताकत देने के लिए पारित किया गया था ]शर्मिला ने इस एक्ट के खिलाफ अकेले आवाज उठाई ,वर्तमान मैं शर्मिला के हक और पक्ष मैं सैकडों आवाजें मणिपुर की घाटियों मैं लगातार गूंज रही हें ...अपने राज्य मैं ए ऍफ़ एस पी ए की क्रूरता ,भ्रष्टचार और अमानवीयता के खिलाफ और इस एक्ट को समाप्त करने एवं अपने राज्य मैं शान्ति स्थापित करने के लिए उसने पिछले तकरीबन .9 सालों से मुँह से पानी की ना तो एक बूँद ग्रहण की है ना भोजन किया है ...उसे जबरदस्ती नाक से नली [ट्यूब ]द्वारा भोजन -पानी दिया जाता है ,साल मैं वो एक बार रिहा होती है और दुसरे दिन पुनः गिरफ्तार कर ली जाती है उसके रिहा और गिरफ्तार होने का सिलसिला पिछले 9 वर्षों से लगातार बदस्तूर जारी है,

इसके अलावा डाक्साब ने महेन के जिस दूसरे प्यार वाली कविता का जिक्र किया उसका लिंक नहीं दिया। है न गड़बड़झाला। दूसरे प्यार की बात जब आदमी करता है तो हवा नहीं देता। बहरहाल आप पहिले कविता बांच लीजिये पहिले तब बात की जाये:

दूसरे प्यार में नहीं लिखी जाती
पहली अर्थहीन प्रेम-कविता
पहला थरथराता चुंबन
नहीं लेता कोई दूसरे प्यार में
दूसरे प्यार के बारे में
नहीं लिखता कोई अभिज्ञान
और ना ही होता है शिला-लेखों में उसका वर्णन

मतलब साफ़ है। दूसरा प्यार हाथ बचाकर किया जाता है और पूरी कोशिश की जाती है कि सुबूत मिटा दिये जायें। हमने जब यही बात डा.अनुराग से कही कि मालिक दूसरा प्यार आयेगा पहले पहला प्यार तो निपट जाये। इस पर डा.साहब ने हमें हड़का दिया- ज्यादा मौज ठीक नहीं ठाकुर। हमें लगा सरदार गुस्से में है इसलिये पहिले उसकी पोस्टों लगा दो इसके बाद आगे का हिसाब किताब देखा जाये।

image एक ठो नये उस्ताद हैं सागर । जब मन आता है अपने सागर से कोई मोती निकालकर थमा देते हैं। अनगढ। जाओ बच्चा मौजकरो इस्टाइल में।कुछ दिन पहले उन्होंने लिखा:

सौ बातों की एक बात कहूँ.

'मुझे तुम्हारा शरीर चाहिए'

मतलब कोई झाम नहीं कोई झांसा नहीं। ये हाथ मुझे दे दे ठाकुर वाले अंदाज में लिखी इस अनगढ़ सी कविता को जब मैंने पढ़ा तो लगा कि  जैसे कोई कहे मुंबई मराठी की है वैसे ही सागर हड़का के कह रहे हैं मुझे तुम्हारा शरीर चाहिये।

फिलहाल,

इसे प्यार कह लो

या

मेरी बेशर्म-बयानी...

कहकर सागर ने अपनी बात कही। एक जवान बालक की हिम्मत कहें या बेवकूफ़ी कि वो ऐसे ठसके से ये बात कह रहा है। प्रेम के अन्य सभी उपादानों /अवयवों को फ़ुटा दिया। भाग जाओ तुम सब हमें केवल शरीर चाहिये। अर्जुन की तरह फ़ोकस साफ़। इस तरह की कविताओं पर शायद कोई आगे लिखे। शायद यह भी लिखे –इसमें कविता क्या है ये तो लफ़्फ़ाजी है। प्रेम को शरीर तक सीमित रखने का बचकाना प्रयास। लेकिन अब है तो है। आप देखे चाहे न देखें। सागर को जो कहना है कह दिया।

रवि कुमार रावतभाटा ने इस कविता पर टिपियाया :बेहतर...
प्रेम की अवधारणा को चुनौती दे रहें हैं आप?
भावुक लोग आपके लिए एक स्तम्भ बनवा देंगे...

अल्लेव साहब ने अगली कविता में स्तम्भ खुदै बनवा दिया। लटकाओ :

सोचता हूँ...

एक स्तम्भ बनवा दूँ शहर में!

यहां चर्चाकार यह कहना चाहता है कि सागर जैसे जहीन-जवान बालक टिप्स दे रहे हैं कि प्यार-उवार में चांद,चातक, चांदनी-वांदनी की रोमानी शब्दावाली की जगह ये बिंदास माल लगा के देखा जाये। माइलेज ज्यादा मिलेगा।

पल्ल्वी त्रिवेदी पुलिस में अधिकारी हैं। अब अगर वे लिखें --जी चुरा ले गया वो टूटे दांत वाला लड़का.... तो कोई अनजान आदमी तो यही कहेगा न कि जब पुलिस वाले अपना ही सामान चोरी जाने से नहीं बचा पा रहे हैं तो दूसरे की चोरी क्या बचायेंगे? लेकिन नहीं भैया मामला थोड़ा और टाइप का है। मासूम और प्यारा और दुलारा। कहानी आप उधरिच बांचिये।आनन्दित होने की गारण्टी है।

पल्लवी की इस पोस्ट पर  कुश ने टिपियाया है--वाह.. दिल ले गयी ये पोस्ट तो.. बड़े दिनों बाद की आमद और वो भी इतनी खुशनुमा.. आज ही मैंने भी एक पोस्ट ठोंकी है..

अब बताओ दिल की चोरी भी वायरसी इफ़ेक्ट है गोया। भोपाल में चोरी होगी तो जयपुर में भी वारदात होगी। लेकिन हमको तो पता है कि कुश का असल मकसद तो अपनी पोस्ट की जानकारी देना है। वे इस पोस्ट में शादी-विवाह का आंखो देखा हाल सुना रहे हैं जसदेव सिंह बने हुये। देख लीजिये थोड़ा मन रह जायेगा बालक का।दूल्हा वर्णन करते हुये बालक लिखता है:image दुल्हे के बिना बारात कैसी.. ? घोड़े पर बैठा दूल्हा बारात का हिस्सा कभी नहीं होता वो बात अलग है कि बारात उसी की होती है.. हिसाब से उसको सबसे आगे चलना चाहिए पर वो बेचारा सबसे पीछे घोड़ी पर अपने नाते रिश्तेदारों के बच्चो को अपने पीछे बैठाये चुपचाप बर्दाश्त करता रहता है.. और लोग बाग़ भी कम नहीं है.. घोड़ी के पीछे ऐसे ऐसे मुस्टंडे बच्चे बिठा देते है.. कि घोड़ी ही बैठ जाए.. पर हाँ दूल्हा इसी बात से खुश हो जाता है कि चलो जनरेटर वाला तो उसके पीछे है..

अब जब बिना दूल्हा बने कुश ई सब बता सकते हैं तो हम काहे नहीं जो आलरेडी दूल्हागिरी छांट चुके हैं। अपने लेख में दूल्हे के बारे में लिखते हुये मैंने लिखा था: बारात का केन्द्रीय तत्व तो दूल्हा होता है। जब मैं किसी दूल्हे को देखता हूं तो लगता है कि आठ-दस शताब्दियां सिमटकर समा गयीं हों दूल्हे में।दिग्विजय के लिये निकले बारहवीं सदी किसी योद्धा की तरह घोड़े पर सवार।कमर में तलवार। किसी मुगलिया राजकुमार की तरह मस्तक पर सुशोभित ताज (मौर)। आंखों के आगे बुरकेनुमा फूलों की लड़ी-जिससे यह पता लगाना मुश्किल कि घोड़े पर सवार शख्स रजिया सुल्तान हैं या वीर शिवाजी ।पैरों में बिच्छू के डंकनुमा नुकीलापन लिये राजपूती जूते। इक्कीसवीं सदी के डिजाइनर सूट के कपड़े की बनी वाजिदअलीशाह नुमा पोशाक। गोद में कंगारूनुमा बच्चा (सहबोला) दबाये दूल्हे की छवि देखकर लगता है कि कोई सजीव बांगड़ू कोलाज चला आ रहा है।

बच्चा कुश को शताब्दियों के कोलाज के रूप में कब देख पायेंगे?

सवाल अस्तित्व का.............में इस बात पर विचार किया है कि अपने समाज में विवाह के बाद लड़कियों के नाम बदल जाते हैं। सुनिये वन्दना अवस्थी से! लेकिन नहीं भाई वे वन्दना अवस्थी तो विवाह के पहले थीं। विवाह के बाद तो उनका सरनेम बदलना होगा। वे वंदना अवस्थी से वंदना अवस्थी दुबे हो गयें। अपने नाम अवस्थी बचाने के लिये उनको मेहनत भी करनी पड़ी। वे बताती हैं:image

खुद मुझे अपने नाम को बचाए रखने के लिए, अपने सरनेम को लगाये रखने के लिए ज़द्दोज़हद करनी पड़ी है, तब जबकि हमारा परिवार बहुत शिक्षित और उच्च पदाधिकारियों का परिवार है. लम्बे समय तक मेरे द्वारा "अवस्थी" का इस्तेमाल करने पर परोक्ष और कभी-कभी प्रत्यक्ष भी टीका-टिप्पणी हुई. जबकि दोनों परिवारों का मान रखने के लिए मैंने दोनों सरनेम अपनाए हुए थे. लेकिन अब परिवार ने इसे स्वीकार कर लिया है, अनमने ढंग से ही सही.

 

 

शादी आज भी एक जरुरी चीज़ हैं औरत को औरत समझे जाने के लिये । ये सवाल सुमन जिंदल ने उठाया है। वे लिखती हैं:कै का चुनाव बड़ा मुद्दा हैं उन महिला के लिये जो शादी करके पारिवारिक सुख की कामना भी करती हैं । बहुत से करियर ऐसे हैं जहाँ बहुत सी चीजों को छोड़ना होता हैं । भारतीय समाज की यही विडम्बना हैं की आज भी औरत की मजबूती या कमजोरी प्रजनन की क्षमता से की जाती हैं । शादी आज भी एक जरुरी चीज़ हैं औरत को औरत समझे जाने के लिये ।

 

image दुनिया ने तजुर्बातो हवादिश की शक्ल में जो कुछ मुझे दिया वो लौटा रहा हूं मैं" -शिल्पकार 100 वीं पोस्ट यह कहते हुये ललित शर्माजी ने अपनी सौवीं पोस्ट पूरी की। ललित शर्माजी को बधाई! ब्लागिंग की दुनिया के बारे में उनका कहना है--यदि किसी बीमार आदमी को, जो मरने वाला हो और इस ब्लॉग की दुनिया से जोड़ दिया जाये तो उसे ले जाने वाले यमदूत भी भाग जायेंगे. और वह ठीक हो जायेगा. ललितजी तो लगता है सबरे अस्पताल बंद करवा देंगे। मेडिकल कालेज में ब्लागिंग सेमिनार करवाने का विचार है भाईजी का!!
ये फोटू भी गजब है न! सौवीं पहेली के विजेता की सौंवी पोस्ट ! क्या शानदार जोड़ा है।

बधाई हो जी शानदार!

image शिरीष मौर्य को  को युवा कविता के लिए प्रगतिशील वसुधा द्वारा संयोजित तथा लीलाधर मंडलोई द्वारा अपने पिता की स्मृति में स्थापित लक्ष्मण प्रसाद मंडलोई सम्मान (वर्ष २००९) शिरीष को उनके तीसरे कविता संग्रह "पृथ्वी पर एक जगह" के लिए दिया गया है। शिरीष को सम्मान देने की अनुशंसा विष्णु नागर, चंद्रकांत देवताले तथा अरुण कमल के तीन सदस्यीय निर्णायक मंडल ने सर्वानुमति से की है।

उनके बारे में बताते हुये बोधिसत्व ने लिखा: शिरीष की कविता पर कुछ न कहना चाहते हुए भी यह कह रहा हूँ कि हिंदी में कम कवि हैं जिनके पास इतनी सुगठित भाषा और विराट भाव संसार है।
शिरीष को इस सम्मान के लिए बधाई ।

एक लाईना
image 1.बा'रा'त निकली है... तो दूर तलक जायेगी...: बारात निकल ली हमको बुलाया तक नहीं! हम बाजा बजा देंगे।

2.अपने नींड में लौटने को व्याकुल एक परिंदा========दीपक 'मशाल': बस का इंतजार कर रहा होगा

 

3.दीवाना हुआ बादल.....: कोई पकड़ के शादी करा देगा निकल जायेगी सब दीवानगी

 

4.सचिन पर बाउन्सर मत फेंको ..: वो सौरभ गांगुली नहीं है, छक्का पड़ जायेगा।

 

5. और जब मै भी कार्टून बनाने बैठा तो.....: अपने आप खुद की तस्वीर बना गया

 

6. आपातकालीन गर्भनिरोधक क्या कोई आपदा तो नहीं लाएगा?: लायेगा तो देखा जायेगा। इत्ती आपदायें झेलते हैं एक और सही।

7.लड़की भगाकर अर्थात् हरण करके उससे विवाह करने का चलन पौराणिक काल से चला आ रहा है: अब भी परम्परा निर्वाह धड़ल्ले से हो रहा है।

8.अब समय आ गया है हिन्दुविरोधी-देशद्रोही जिहाद व धर्मांतरण समर्थक सैकुलर गिरोह के भ्रामक दुष्प्रचार को खत्म करनें का: समय की सरकार अपने दम पर है या गठबंधन सरकार है?

9.अमर उजाला में 'शब्द-शिखर' ब्लॉग की चर्चा: लोगों को बिना चर्चा के चैन नहीं पड़ता आजकल।

10.दारोगा - ऐ - जिन्दान इनके 'पंख कलम' कर दो !: जो हुकुम मेरे आका। आप अगली पोस्ट लिखो। ये काम तो समझो हो गया।

 

11.दुनिया या प्रेम में खुलती खिड़की: सालों साल ताकी जाती हैं भाई जान!

 

12.शर्ट पर ठहरी हुई सिलवट: पर जरा प्रेस मार लिये होते तिवारी जी, इत्ते ब्लागर आते जाते देखते हैं।

13.एक रुपया कहां से आया...खुशदीप: इसे हिसाब की कापी में क्यॊं नही चढ़ाया?

14.कहे कवि सुनो तब नानी याद आ जाये:टूटे फूटे पंहुचे घर जब भंग सर चढ़ जाये

15.मल्टी-नेशनल बोतल में दो लीटर गंगा!: मन चंगा तो कठौती में गंगा।
16.हमी से मोहब्बत, हमीं से लड़ाई …: ई त अच्छा राग् है भाई!!!

17.हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन, हिन्दुओं के पैसे से .....: बोले तो मियां की जूती मियां की चांद

 

18. क्या बच्चे पैदा करना औरतों की कमज़ोरी है?: ये भी कोई पूछने की बात है ।

19.स्वप्न देखने के लिये टिकट लेना कतई ज़रूरी नहीं है ।: ये बढ़िया गुरु! बिना टिकट रेल पर बैठकर सो जाओ। टीटी टिकट मांगे तो कह दो हम तो सपना देख रहे हैं।

20.साला! मालूम कैसे चलेगा कि मुसलमान है?: देख लो मेकेनिक है तो मुसलमान वर्ना कुछ और।

21.लड़की ने सलमान को थप्पड़ मारा: लड़की ने जो शराब पी थी उसका नाम भी बताओ भाई।


मेरी पसंद

image उस,
भीड़ भरी गली जिसमें
मैं यूँ ही ठेला जा रहा था
जैसे हम अक्सर गुजार देते हैं जिन्दगी
ना कुछ अपनी /
ना अपना कोई कन्ट्रोल
बस बहाव के साथ चलते
रहने की मजबूरी
तुम,
उस दिन मुझे फिर दिखायी दिये थे
उसी भीड़ भरे रैले में
फिसलते हुये उंगलियों से छूटती गई
तुम्हारी कलाई
तुम ठहर गये मेरे शर्ट पर
किसी सलवट की तरह
और तुम्हारे पलटे हुये कॉलर ने
पूछा था मेरा हाल
कानों में फुसफुसाते हुये
मैंने,
महसूस किया था उस दिन भी
तुम्हारी साँसों में
बची रह गई गर्मी को /
तुम्हारे पसीने की गंध में
महकती अधपकी रोटियों को /
उस भीड़ के सीने पर
तुम्हारे जमे हुये कदमों को
और,
अपने उखड़ते हुये कदमों पर
तरस भी आया था
शायद,
तुम अब भी
उसी चूल्हे से चिपके हुये हो
बिल्कुल नही बदले
हालांकि,
मैंने अपनी पाठशाला में पढ़ा था
कि सदाचार के चूल्हे पर
नैतिकता की आँच से रोटियाँ नही सिंकती
और तुम तो जानते ही हो कि
कि अधपकी रोटियाँ कच्च-कच्च करती हैं दाँतों में
मुझे,
अधपकी रोटियों से आती है
आटे की गंध
मैं,
कच्ची रोटियाँ नही खा सकता

मुकेश कुमार तिवारी

image मिलते रहिये मिलाते रहिये
लोगों से बतियाते रहिये
शायद बात कोई बन जाये !
देखते रहिये दिखाते रहिये
सपनों को चमकाते रहिये
शायद कोई सच हो जाये !
राह को एक पकड के रहिये
चलते रहिये चलते रहिये
शायद मंजिल ही मिल जाये !
बूंदो पर भरोसा रखिये
बूंद बूंद जमाते रहिये
शायद गागर भी भर जाये !
मेरे करने से क्या होगा
ना सोचें, बस करते रहिये
काम कोई पूरा हो जाये !
हंसते रहिये हंसाते रहिये
काम किसी के आते रहिये
शायद जीवन फल पा जायें ।

आशा जोगलकर

अंधियारे के जितने भी थे संबन्धी

दहलीजों ने भेजा जिनको कभी नहीं कोई आमंत्रण
अंधियारे के जितने भी थे संबन्धी बन अतिथि आ गये
नभ ने गलियारों के परदे हटा किरण को पास बुलाया
लेकिन क्षितिजों पर से उमड़े बादल गहरे घने छा गये

अभिलाषा की हर कोंपल को बीन बहारें साथ ले गईं
जीवन की फुलवारी केवल बंजर की पहचान हो गई
यौवन की पहली सीढ़ी पर पूजा की अभिशापित लौ ने
झुलसायी आँखों में सँवरे सपनों की हर इक अँगड़ाई

सन्ध्या ने करील के झुरमुट में जितने भी दीपक टाँगे
उनसे दिशा प्राप्त करने में असफ़ल हो रह गई जुन्हाई

रजनी के आँचल में सिमटे अभिलाषा के निशा-पुष्प सब
और एक यह घटना जैसे पतझर को वरदान हो गई
जितनी भी रेखायें खींची, बनी सभी बाधायें पथ की
खड़ी हो गईं आ मोड़ों पर अवरोधों के फन फ़ैलाये

जीवन की गति को विराम दे गई शपथ वह एक अधूरी
जो गंगा के तट हमने ली थी हाथों में नीर उठाये
होठों पर की हँसी दिशायें बदल बदल आँखों तक पहुंची
और बही बन धारायें जो गज़लों का उन्वान हो गईं

राकेश खण्डेलवाल

और अंत में 

चर्चा का काम हम सुबहै कर लिये थे। लेकिन इसके बाद कम्प्यूटर लटक गवा बोले तो हैंग कर गवा। उसको लटका ही छोड़कर हम दफ़्तर चले गये। शाम को घर आये तो लटका हुआ कम्प्यूटर औकात में आ गया था और पोस्ट नेट पर जाने के लिये बेचैन। इस बीच देखे कि आदि चिट्ठाकार आलोक कुमार एक ठो पोस्ट ठेल चुके थे। उसका भी उठा लीजिये लुत्फ़ देखिये--मिस्र ने पहले ग़ैर - रोमन डोमेन नाम के लिए आवेदन किया – .

अब फ़िलहाल इतना ही। कल की चर्चा अब क्या करें सुबह? देखा जायेगा। अभी तो मौज करें। वैसे आज बता दें कि चर्चा का दिन कुश का था। लेकिन बालक लगता है अपना बाजा बजवाने के लिए बारात रिहर्सल में जुटा है।

कल की चर्चा का दिन शिवकुमार मिसिर का होता है लेकिन वे आजकल आरामफ़र्मा हैं। बीमार फ़र्मा होकर आरामफ़र्मा रहे हैं। इंशाअल्लाह जल्दी ही ठीक-ठाक होकर आपसे रूबरू होंगे।

तौ अब हमें चली। आप मौज करो। जो होगा देखा जायेगा। :)

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44 टिप्‍पणियां:

  1. पठनीय सामग्री से भरी हुई उत्फुल्ल चर्चा

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  2. सुगठित चर्चा । जमावट भी बेहतर है, सजावट भी । ये एक लाइना के अक्षर बड़े छोटे हैं, खयाल करिये न !

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  3. " यह इसलिए लिखा जा रहा है कि आने वाली पीढ़ी अपनी मां, बहनों की तकलीफों को समझे।"

    और यह भी समझें कि उनका बाप, भाई कितना.....वो........था:)

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  4. देर आयद की तनदुरुस्त चर्चा !

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  5. जे है फुरसतिया चर्चा। स्केल से नाप कर लिख लिए हैं, गहराई इससे कम नहीं होनी चाहिए आगे की चर्चाओं में। ..हाँ, इंच और 1/8 इंच सब निशान बरोबर मिले। धन्यवाद।

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  6. बहुत कुछ समेटे लाजवाब रही आपकी ये रचना ।

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  7. बहुत बढिया चर्चा .. इतने सारे अच्‍छे अच्‍छे लिंक्स मिले!!

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  8. "सचिन पर बाउन्सर मत फेंको ..: वो सौरभ गांगुली नहीं है, छक्का पड़ जायेगा।"
    "दीवाना हुआ बादल.....: कोई पकड़ के शादी करा देगा निकल जायेगी सब दीवानगी"

    काफी समय बाद चर्चा फार्म में हुई है । अलग अलग न‍जरिये वाली शुरुआत अच्‍
    छी है ।

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  9. शुकल जी ...जे बात हुई न ..
    पहली बार से एतना थरथराए हुए हैं कि दूसरका बार के लिये का सोचें ..नहीं लेंगे जी एक दमे नहीं ..
    चर्चा एकदम फ़ुरसतिया मार्का रही

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  10. फुरसतिया देव की एकदम फुरसत से की गयी एक जबरदस्त चर्चा...दिनों बाद आपको यूं एकदम फुरसत में देखकर मजा आ गया!

    और शिरीष मौर्य जी को हारिद्क बधाई !

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  11. बहुत सभ्य भाषा मे हम यह निवेदन करना चाहते है कि इस चर्चा को पढकर हमारा मन प्रसन्न हुआ और हमारी आपसे यही अपेक्षा है कि आप इसकी निरंतरता बनाये रखें ।

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  12. भाषा की सर्जनात्मकता के साथ विभिन्न लिंकों का उत्तम प्रयोग, लेखन में व्यंग्य के तत्वों की मौजूदगी से चर्चा के तेवर और मुखर हो गए हैं।

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  13. बहुत बढिया लगी ये चर्चा...
    एकलाईना तो कमाल है!

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  14. बहुत दिन बाद रौ में नजर आए हैं। ऐसी चर्चा अच्‍छी खुराक देती है। दिल से आभार इस वृहद् चर्चा के लिए...

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  15. ब्लॉगजगत की लगभग समस्त विधाओं को समेटते हुए बहुत विस्तारपूर्वक इत्मिनान से अपने व्यस्त समय में फुरसत निकाल कर असल फुरसतिया अंदाज में और सुरुचिपूर्ण तरीके से बिना लाग लपेट के की गई एक उम्दा एवं बेहतरीन चर्चा ने मन मोह लिया.

    आप बधाई के पात्र एवं साधुवाद के हकदार हैं. कृप्या स्वीकार करें.

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  16. आज की चर्चा को विभिन्न टिप्पणियों में प्राप्त विश्लेषण:

    उत्फुल्ल चर्चा, achchee charcha., सुगठित चर्चा, तनदुरुस्त चर्चा !, फुरसतिया चर्चा, लाजवाब, बहुत बढिया चर्चा, चर्चा फार्म में हुई, एकदम फ़ुरसतिया मार्का, जबरदस्त चर्चा, सुन्दर चर्चा!, मन खिलाती चर्चा,सर्जनात्मक चर्चा, गज़ब ही ढाती चर्चा, बहुत बढिया चर्चा, वृहद् चर्चा, उम्दा एवं बेहतरीन चर्चा.

    बधाई!!

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  17. उपर विश्लेषण को विशेषण पढ़ें.

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  18. उत्फुल्ल चर्चा, achchee charcha., सुगठित चर्चा, तनदुरुस्त चर्चा !, फुरसतिया चर्चा, लाजवाब, बहुत बढिया चर्चा, चर्चा फार्म में हुई, एकदम फ़ुरसतिया मार्का, जबरदस्त चर्चा, सुन्दर चर्चा!, मन खिलाती चर्चा,सर्जनात्मक चर्चा, गज़ब ही ढाती चर्चा, बहुत बढिया चर्चा, वृहद् चर्चा, उम्दा एवं बेहतरीन चर्चा :-))

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  19. यह पढ़ कर अहसास होता है कि हिन्दी ब्लॉगरी में 80% कूड़ा नहीं, 80% ताजा माल है - ताजा और अच्छा!

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  20. लाजवाब फुरसतिया चर्चा :)

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  21. शानदार कोलाल.
    नज़र कहीं सीधी कहीं वक्र.
    शामिल होने वालों को बधाई.
    मेरा आभार.

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  22. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  23. कोलाल को कोलाज़ पढ़ें,कृपया.

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  24. शानदार और सिर्फ़ शानदार चर्चा.

    रामराम.

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  25. अनूप जी
    बहुत ख़ूबसूरत ढंग से लपेटा, आभार !

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  26. सारे विशेषण सहेज कर रखूंगा। आगे एक एक इस्तेमाल करूंगा:)

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  27. अनूप जी,

    चर्चा का लुत्फ ले लेकर बाँची, बहुत शाहना जायका रहा, जुबान अभी भी फेरे जा रहे हैं।

    सादर,


    मुकेश कुमार तिवारी

    आज एक लाईना में जगह जो मिली मन की साध पूरी हुई।

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  28. अगर चर्चा में लाये गए ब्लोगर की बात करू तो ....
    सागर .जैसे लोग ब्लोगिंग के रिचार्ज कूपन के माफिक है ..बिंदास लिखते है ...अभिव्यक्ति को सही अर्थ देते है ......मुझे पुराने ब्लोगर मनीष जोशी जी याद आते है जिनका अपना एक खास अंदाज है.....पर किन्ही अपरिहार्य निजी दुखद कारणों से वे फ़िलहाल दूर है ...... ..... ,एक ओर साहब है देवी दत शुक्ल मूड में आकर यदा कदा ठेलते है ....मस्त ठेलते है .. ..महेन...गौरव सोलंकी .. ,...नंदिनी ..मूलत कविता का एक पक्ष रखते है.. ओर उसके बहाने कोई सार्थक बात भी कहते है .... .मुकेश जी दूसरा ......
    .विधु जी.....संजय व्यास .....गध का कवितामय पक्ष रखते है ..... ब्लोगिंग में कितनी विविधता है ........किस्स्गोई में अगर किसी को सौ मार्क्स लेने का हक है तो वो लपूझन्ना जी है .....उनके एक एक शब्द एक लाइन अपने आप में लाज़वाब है...जहाँ कही भी किसी लेख में लेखक की विद्धता लेख पर हावी होकर लेख का मूल तत्व नष्ट नहीं करती ....
    .. कल का महफूज अली का लेख बेहद शानदार था ...एक ईमानदार लेखन ...

    कल जब सिल्वा इंडियन टीम की वाट लगा रहे थे तब पाखी उठाई .... पाखी में सुशीला सिद्दार्थ जी श्रीलाल शुक्ल के बारे में लिखती . है ....."हिंदी में कई स्वंयभू मानव बम घूमते रहते है ,कोइ अगर आपसे लिपट कर फट गया तो आपका खुदा भी मालिक नहीं है वे ये भी पूछ सकते है श्रीलाल शुक्ल ने राग दरवारी के अलावा ओर क्या लिखा है ....उन्ही के बारे में वे एक किस्सा सुनाती है ....... एक मति मंद -स्वछंद लेखिका सप्ताहों से श्रीलाल जी को घेर रही थी की मेरे कहानी संग्रह की भूमिका लिख दीजिये .श्रीलाल जी हार गये ...तो एक शर्त रखी "भूमिका मै लिख दूंगा ,मगर जीवन भर आप मेरे घर का रुख नहीं करेगी ....

    आखिर में आपकी बेस्ट लाइना........

    "सचिन पर बाउन्सर मत फेंको ..: वो सौरभ गांगुली नहीं है, छक्का पड़ जायेगा।"
    "दीवाना हुआ बादल.....: कोई पकड़ के शादी करा देगा निकल जायेगी सब दीवानगी"
    शर्त पर ठहरी हुई सिलवट ....पर जरा प्रेस मार लिये होते तिवारी जी, इत्ते ब्लागर आते जाते देखते हैं।

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  29. और शिरीष मौर्य जी को बधाई !

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  30. बालक कहता है..
    ये आई ना कातिल चर्चा.. बड़े काम के लिनक्स मिले है.. सेव कर लिए है आज शाम को पढ़ा जाएगा.. और हाँ बालक का मन रखवाने के लिए धन्यवाद्..

    वैसे हम पर तो पोस्ट का प्रचार का इल्जाम लगवा दिया और खुद हमारी पोस्ट के बहाने से खुद का लिंक चिपका गए.. वो कौन देखेगा.. :)

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  31. महागुरुदेव अनूप जी,
    आप अंतर्मन में झांकने का मौका कम ही देते हैं...आज विस्तार से की चर्चा में कुछ झलक मिली...अब तो आपके एक-एक शब्द को समझना पड़ता है...न जाने आपने कौन से संदर्भ में प्रयोग किया है...रहा मेरे एक रुपये का सवाल..उसे ठिकाने लगाने का रास्ता गुरुदेव समीर लाल जी समीर बता ही चुके हैं...सस्पेंस एकाउंट में डालकर...

    जय हिंद...

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  32. गागर में सागर भरने की बात चरितार्थ करती है ये विवेचना।

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  33. bahut hi sarthak chittha charcha rahi..........main pahli baar yahan aayi hun aur kai lekh padhe .......sab ek se badhkar ek the...........badhayi

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  34. बहुत उम्मंदा चुनाव.. सारे एक से बढ़ एक..

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  35. इस बार तो चर्चा के तेवर ही बदले-बदले से नज़र आते हैं...कलेवर भी.

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  36. चिठ्ठा चर्चा तो होली का त्यौहार लगता है जहाँ हर रंग हैं... और जब भी इसमें मेरा जिक्र होता है... लगता है एक गड्ढा खोद कर मुझे उसमें नहलाया जा रहा है और सभी मौज ले रहे हैं... बहरहाल सारे लिंक काम के हैं... डॉ. अनुराग की सिफारिश की सारी पोस्ट को पढ़ा था सभी देसेर्विंग हैं... सबसे बड़ी बात तो अनूप सर के लिखने का तरीका को चीनी मिले ढूध की तरह सरपट ग्राह्य है..... डॉ. अनुराग का विशेष रूप से शुक्रगुज़ार हूँ, उन्होंने मुझे शुरू से उत्साहित किया है... विधु जी का लेख बहुत विचारणीय है...

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  37. Sach kaha Sharad bhaia ne man prasann ho gaya ye charcha padh ke.. isliye nahin ki meri bhi post aapne shaamil ki.. balki isliye ki bahut hi zordaar tareeke se aapne prastut kiya chiththon ko...
    ab samajh me aaya aap ko sab ustaad kyon kahte hain.. khair chittha shamil karne ke liye to abhari hoon hi..
    Jai Hind

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  38. mera bada man hotaa hai tippni karne kaa lekin roman men likhna achha nahin lagta - kya yeh hindi main dikhegi

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