लेकिन शायद चिट्ठों को मेरी चर्चा मंजूर नहीं थी
कल संध्या को टूट गया पुल,जो ले जाता मुझे जाल पर
ढूँढ़ थका लेकिन नौकायें और दूसरी कहीं नहीं थीं
तापमान था फ़हरनहाईट केवल यहां अठारह डिग्री
और जम गया था पानी का पाईप मेरी नेबरहुड में
उसे ठीक करने के चक्कर में केबल कट गईं चार छह
इसीलिये हो गया असंभव, पाऊं जरा जाल से जुड़ मैं
फिर समीर को फोने लगाया, लेकिन वे भी व्यस्त बहुत थे
गिनते रहे शुक्ल जी के संग, सर पर बचे हुए बालों को
संभव है वे आज करेंगें, बाकी सब चिट्ठों की चर्चा
और समझ पायेंगे हम भी ठंडे मौसम की चालों को
यह भी खूब रही!
जवाब देंहटाएंइसे कहते हैं संयोग या फिर दुर्योग!!
हम तो शाम के लिये अभी से मालिश करवा रहे हैं, इतने चिट्ठों को कवर करने के लिये कौन सी आरती गाऊँ. :)
जवाब देंहटाएंधृतराष्ट्र वाला संजय आप लोगो को देख कर ही बिगड़ गया है, काम पर नहीं आता :)
जवाब देंहटाएंउडन तश्तरी न घबड़ाना ,कोई रस्ता जरूर निकल आएगा ।
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