हिन्दी चिट्ठा जगत में टैग किए जाने का खेल चरमोत्कर्ष पर पहुँच चुका है है. इस बीच बचे खुचे चिट्ठाकार भी टैगियाए जा चुके हैं और जो इक्का दुक्का बचे हैं, वे टैगियाए जाने की कतार में हैं. कई अभागे तो दुबारा, तिबारा टैगियाए जा चुके हैं. श्रीश को तीन चिट्ठाकारों ने एक साथ टैग कर दिया तो बदले में उन्होंने पंद्रह चिट्ठाकारों को अपना कोप-भाजन बनाया. आज देखते हैं कि किसने किसे फांसा और फंसा हुआ कौन क्या उत्तर दे रहा है और आगे किसे फांस रहा है.
लक्ष्मी गुप्त फंसे तो उनका कवित्व कुछ यूँ बाहर आ निकला-
"...उड़नतश्तरी वाले हैं जो समीरलाल
पूछे हैं उन्होंने कुछ अजीब सवाल
पहले तो समीर जी पुरस्कार की बधाई हो
ठेठ भारतीय परम्परा के अनुसार दावत कब देने वाले हो..."
दावत तो भाई, समीर हमें भी चाहिए. अब कोई तिथि तय कर ही लें.
टैगियाए गए ईस्वामी अपना पर्चा कुछ यूँ हल कर रहे हैं-
प्रश्न १. आपकी दो प्रिय पुस्तकें और दो प्रिय चलचित्र कौन सी हैं?
उत्तर १. रजनीश की "दी बुक ऑफ़ सीक्रेट्स" और खलील जिब्रान की "द प्राफ़ेट" दो सबसे अधिक प्रिय पुस्तकें हैं. "गीता" को मैं धर्मग्रंथ मानता हूं सो उसका स्थान ज़रा अलग है.
जाहिर है, अब आपको पता चल गया होगा कि उनके चिट्ठे रजनीशी व ख़लीली विचारों से क्यों अटे पटे होते हैं.
जगदीश को भी टैग दिखा दिया गया. वहां से उत्तरों का प्रतिबिम्ब कुछ यूँ बनता दिखाई दे रहा है-
बहुत ही अनोखी दुनिया है हिंदी चिट्ठाकारिता की। दुनिया के अलग अलग कोने पर बैठे लोग एक दूसरे से इतना प्यार और सहयोग रखे हैं| बिना किसी स्वार्थ के. बिना किसी लालसा के संबध बन रहे हैं| एक दूसरे का विरोध करते हैं, सहमत होते हैं, फिर विरोध करते रहने के लिये सहमत हो जाते हैं| एक दिन जिस पर गुस्सा दिखाते हैं, दूसरे दिन उसी के ब्लाग पर जाकर प्यार भरी टिप्पणी कर आते हैं...
अभिनव ने टैगियाए प्रश्नों को वस्तुनिष्ठ रूप में लिया, जो कुछ को जँचा और कुछ को नहीं. शाहरूख को तो उनका यह उत्तर कतई नहीं जंचेगा-
प्र.५.यदि भगवान आपको भारतवर्ष की एक बात बदल देने का वरदान दें, तो आप क्या बदलना चाहेंगे/चाहेंगी?
उ.-- मैं के बी सी में शाहरुख़ की जगह दुबारा अमिताभ को देखना चाहूँगा।
तो उन्मुक्त उनसे पूछते हैं -
क्या शाहरुख़ इतना खराब प्रोग्राम करते हैं?
वैसे तो इनके वस्तुनिष्ठ उत्तरों से प्रसन्न होकर संजय ने इन्हें पास कर दिया, मगर राकेश ने इन्हें पूरक दे दिया, और प्रश्न फिर से हल करने की मांग करने लगे-
नंबर आधे अभी मिलेंगे, क्योंकि मिले हैं उत्तर आधे
एक बार फिर पढ़ कर देखो, मैने क्या क्या प्रश्न उठाये
दोहराता हूँ फिर से नीचे, मौका मिला और दोबारा
छूट नकल करने की भी है, उतार सूझ अगर न पाये :-)
प्रश्न पाँच यह- क्यों लिखते हो, क्या लिखने को प्रेरित करता
कला पक्ष से भाव पक्ष का कितनी दूर रहा है रिश्ता
कितना तुम्हें जरूरी लगता,लिखने से ज्यादा पढ़ पाना
मनपसंद क्यों विधा तुम्हारी, और किताबों का गुलदस्ता.
मुजरिम नीलिमा अपने आरोपों के जवाब खुलकर देती हैं-
हां चिट्ठाकारी छपास पीडा को शांत करती है दैविक दैहिक भौतिक तापों में एक इस ताप को भी शामिल मान लेना चाहिए। अपन तो जबरिया लिखि है ......वाला दर्शन सही है अब अपन के लिखने से कोई दुखी हो तो हो...
नीलिमा ने अपने एक उत्तर में अंतरंग सवाल के रूप में जानना चाहा है कि -
- वैसे कभी अवसर मिला तो जानना चाहूंगी कि जीतू, अनूप, रवि रतलामी आदि को कैसा लगता है जब उन्हें एक दिन अपने ही खड़े किए चिट्ठाजगत में आप्रासंगिक हो जाने का खतरा दिखाई देता होगा।
यह सवाल भले ही नीलिमा अंतरंग मानती हों, परंतु है यह उनका शोध विषयक सवाल ही. अनूप, जीतू, देबाशीष ने टिप्पणियों में जवाब दे दिए हैं. श्रीश ने भी मामला स्पष्ट किया है. इस बारे में मेरा जवाब है - शुद्ध लालू स्टाइल - प्रश्न पॉलिटिकली अनकरेक्ट, हाइपोथेटिकल है! हमहूँ कभी प्रासंगिक तो था ही नहीं फिर ये अप्रासंगिक बनाने का क्या चक्कर है? इ प्रश्नवा तो मुझे नॉनसेकुलर दिख्खे है! :)
पुछल्लित प्रश्नोत्तरी का दौर जारी है, और अगले कुछ हफ़्तों तक चलने की संभावना है. उत्तरों के वेल्यूएशन-रीवेल्यूएशन के काम भी, जाहिर है लगातार जारी हैं. प्रश्नोत्तरी से इतर सरसरी निगाहें अन्य चिट्ठों की अलग तरह की प्रश्नोत्तरी पर डालते हैं-
घुघूती किस चिड़िया का नाम है - यह अगर आपको नहीं पता तो उत्तर के लिए यहाँ देखें. अगर आप कामरेड नहीं हैं तो आप अपना दुःख इनके साथ बांट सकते हैं. सूफ़ी कहाँ से आया आप बता सकते हैं? यदि नहीं तो उत्तर यहाँ देखें. मीडिया ठसक क्यों बढ़ी और हनक क्यों चली गई? इसका विस्तृत उत्तर यहाँ है.
चित्र - रूमी हिन्दी से
सही है जी खेल जम रहा है प्रश्नोतरी का इसी बहाने बहुत कुछ जानने को मिल रहा है। परंतु अभी भी कई बचे हुए हैं। इसमें आपका भी हाथ है। आपने चेन रोक दी। लक्ष्मी जी ने भी आपके स्टाइल में उदारता दिखाई थी लेकिन समीर जी के कहने पर फिर से शिकार फांस लिए। :)
जवाब देंहटाएंऐसा खेल कभी कभार होता रहना चाहिए।
रवि जी आपका कहना सही है । खेल-खेल में काम की बात हो जाए तो कहना ही क्या ...
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा यहाँ पर आ के सबके बारे में पढ़ना .... :)
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