पड़ता डाका देख कर, दिया वो बालक रोय
डाकुन की इस चोट से, बाकी बचा न कोय
बाकी बचा न कोय, कुछ तो सच में लुट गये
बच पाये जो चोट से, वो भी भीड़ में जुट गये
कहत समीर कि हमको तो उसने कचरा माना
एक पोस्ट तो ले जाओ, भले न फिर से आना.
इस मुंडलिया से कवि का दर्द टपका सा पड़ रहा है। कल का दिन 'चोर मचाये शोर' का रहा। अभी भोर कायदे हुई भी न थी कि जीतेन्द्र भड़भड़ाते हल्ला मचाते हुये उदित हुये और बोले-बीच बजरिया लुट गयी गगरिया। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है उनके साथ लेकिन लगा कि पहली बार लुटी है। हड़बड़ी में जीतेंद्र भूल गये कि गगरियां लुटती नहीं फोड़ी जाती हैं और वो भी बाजार में नहीं पनघट पर। और ये काम भी अकेले नहीं पैकेज में होता है। जो गगरी फोड़ता है वहीं बहियां भी मरोड़ देता है। शायद जीतेन्द्र का यही दरद् रहा हो कि हाय वो हमें काहे छोड़ गया!क्या हम लुटने लायक भी न रहे:)
इसके बाद पंडित जी चिल्लाये खबरदार, गांव वालों डाकू आ गये।यह खबर बताते हुये वे अपने यार-दोस्तों से बतियाते रहे। इसके बात संजय बेंगाणी बोलेदिन दहाड़े लुटेरों का मजाक। गोया वे कहना चाह रहे हों-ये भी कोई मजाक का समय है। दिन दहाड़े चले आये। रात विरात आते तो आराम से मजाक-वजाक करते तो कुछ होता-सोता। दिन में धन्धे से ही फुरसत नहीं मिलती मजाक कौन करेगा!
और जहां इस तरह का कोई लफड़ा होता है समाजवादी फौरन मेज बिछा के वार्ता करने लगते हैं। अफलातून बतियाने लगे मैथिलीगुप्त से जो कि बैंक से रिटायर होने के बाद हिंदी की साइट चला रहे हैं और ब्लागर की रचनायें पोस्ट करने के पहले अनुमति नहीं ले पाये। ये कैफ़े हिंदी वाले और दूसरी साइट वाले इस मामले में कामयाब रहे कि इसी हल्ले में देबाशीष करमचंद जासूस बना दिया वे और मैथिली जी का नाम, पता खोज लाये और दो-दो टिप्पणी भी कर गये। इसी सिलेसिले में यह भी जानकारे मिली कि अगर ऐसा गजब होता रहा तो चिट्ठाकारों के चिट्ठे वीरान हो जायेंगे।
सबेरे से समीरलाल की तबियत नासाज थी और तमाम चिट्ठे बीमारी और बर्फवारी का बहाना बनाते हुये छोड़ दिये थे। लेकिन जैसे ही इस बवाल की हवा उनके कानों तक पहुंची तो वे भी आ गये पंचायत करने और कांखते हुये से बोले:-
आज फिर वही, हल्ला सुनकर हम भी भागे रिपोर्ट लिखवाने. सिपाही ने बहुत डांटा कि कहाँ हुई डकैती आपके यहाँ? हम तो अपना सा मुँह लिये खडे रह गये. हमने उनसे कहा कि भईया, कहीं अब न डाका पड़ जाये, इसी से पहले ही एतिहातन रिपोर्ट नहीं लिखवा सकते क्या? बहुत समझाया कि भईया, कुछ ले दे कर रिपोर्ट लिख लो वरना बहुत बदनामी हो जायेगी. मगर बड़ा कर्तव्य निष्ट प्राणी था, नहीं माना तो नहिये माना. अब सब बता रहे हैं कि उनके यहाँ चोरी हुई और हम मुँह छुपाये घूम रहे हैं. अब क्या करें वो द्स्युराज की लूट टीम में एक भी ऐसा पारखी नहीं जो हीरे की परख कर सके तो हम क्या करें. अब हम जीतु तो हो नहीं जायेंगे कि डाका भी नही पड़ा और सबसे जोर नाचे:हमसे हालांकि किसी ने पूछा नहीं और पूछता कौन सब अपने दुख में दुखी थे। जो लुटे वे लुटने के दुख में और जो बच गये वे इस दुख में कि हाय, हम क्यों न लुटे! लेकिन हम अपनी तरफ़ से बता दें कि हम तो भैया उन्मुक्तजी और सुनील दीपक के घराने के चिट्ठाकार हैं। हमारा तो जो कुछ् है सब जनता का है। ले जाऒ, छापो और दुनिया भर को पढ़ाऒ। आभार-साभार भी टाइप करने में टाइम मत बरबाद करो। लेकिन हो सके तो लिंक दे दो काहे से जिस दिन किसी कारणवश चोरी न कर पाये उस दिन चोरी का माल पढ़ने वाले हमारे यहां आकर ही कुछ पढ़ लेंगे।
हाय! हाय! जे कैसा कलजुग! भरी दोपहरिया, बीच बजरिया, लुट गयी गगरिया। दिन दहाड़े डकैती।
इतना चोरी-चर्चा करने के बाद आपको एक फोटो दिखाते हैं। ये फोटो है बेनजीर भुट्टो की और् इसी पता नहीं कहां से खींच के लाये हैं आगरा के प्रतीक पाण्डेय। बचुआ के इम्तहान अभी ताजे-ताजे खतम हुये हैं न इसीलिये कुछ मस्तियाये हैं। इसके बाद वो ऐश्वर्या राय और अभिषेक बच्चन को भी देखने का तरीका बता रहे हैं।
पता है आपको पिछली बार जब हमारा नम्बर था चर्चा करने का तो हम एकदम तैयारी कर लिये थे। सारे पोस्ट पढ़ चुके थे और सजा लिये थे ताना-बाना। लेकिन जैसे ही समीरलालजी दिखे नेट पर हम अपना काम भाईजी को टिका दिये। ये आदत हम जीतेंद्र से सीखे हैं। अपना काम दूसरे को थमा दो फिर दुनिया जहान में डांय-डांय घूमो किसी से गगरी लुटवाऒ ,किसी से वाह-वाही करवाऒ। भगवान खुराफ़ात की सजा भी देता है जिसे ज्ञानी लोग 'पोयटिक जस्टिस' कहते हैं। तो भैया हमको भी मिला काव्यात्मक न्याय। कल हम रात सब लिख लिये था चर्चा लेकिन जैसे ही पोस्ट करने वाले थे कि सारी चर्चा उड़ गयी। ये होता है काव्यात्मक न्याय।
बहरहाल पुराने मसाले से एक कविता सुन लीजिये न! ये है हमारे मन की बात:-
गगन में बादल घिरे,
पवन सौरभ भरे,
धरती पर हरियाली फबे,
चलो जय-गान करें
जन्मभूमि के भाव भरें।
वहीं मनीष भैया का दर्द था :-
मैं तुमसे प्यार करता हूँ,
हाँ, बहुत प्यार करता हूँ।
ये बात अलग है कि कह नहीं पाता हूँ।
ये भाई जीतू तनिक बताया जाये कि है कौनो जुगाड़ी लिंक या खाना-खजाना जो इनके प्यार को सही जगह कह सके।
लेकिन भाई मसिजीवी इस सब चक्कर में नहीं पड़ते। जहां इनको मौका मिला ये निकल लिये चकराता। और ये बोले, खैर बोरिया बिस्तर बॉंधा, बाल गोपाल समेटे और हो लिए रवाना। और यहॉं हुई गलतियॉं दर गलतियॉं- चलो सूची बनाऍ
लेकिन आप सूची के चक्कर में न पड़ें और देखें कि रंजूजी के यहां पहली मुलाकात में क्या होता है:-
याद रहेगा मुझे ज़िंदगी भर......
वो पहली मुलाक़ात का मंज़र सुहाना....
वो दुनिया से छिप के मिलना मिलाना.......
एक दूसरे को देखते ही अचानक
वो आँखो में चमक का भर जाना
वो पहली बार हाथो का छूना.....
वो तुम्हारा शरारती आँखो से मुस्कराना....
जहां पहली मुलाकात की बात हुयी वहीं महाभारत में विराट नगर में आक्रमण हो गया। ये मुझे ऐसा ही लगा जैसे कल ही फिर एक बार जाट इलाके में प्रेम करने पर प्रेमी युगल को पंचायत ने सरे आम टुकड़े-टुकड़े कर दिया।
अनुराग मिश्र ने अभी पिछले हफ्ते ही वर्जीनिया रेडियो से हिंदी ब्लागर्स की वार्ता प्रसारित की।उससे जुड़े अपने अनुभव बताते हुये उन्होंने आगे की आवश्यकतायें रेखांकित कीं:-
१. वाणिज्य- अभी इस पर बहुत ही कम चिट्ठे हैं। इस विषय में अपार संभावनाएँ और लोगों की रुचि भी है (पैसा किसे नहीं प्यारा होता)
२. कम्प्यूटर - इस पर चिट्ठे तो हैं लेकिन इसकी सामग्री अभी बरसों पीछे है।
३. तनाव - तनाव से निटने के बारे में हिन्दी में कोई सामग्री नहीं है।
४. विवाह - वैवाहिक जीवन की समस्याओं से निपटने के लिए भी कम सामग्री है। विवाह से पहले अपनाए जा सकने वाले सुझावों की भी ज़रुरत है।
५. शारीरिक विज्ञान - शारीरिक समस्याओं के बारे में भी कम जानकारी है।
६. सेक्स - रोज़मर्रा की भाषा में सेक्स के बारे में कुछ भी नहीं है।
७. किशोर - किशोरों के लिए कोई आकर्षण नहीं है।
८. पाक विधियाँ - पाक विधियाँ बहुत कम हैं।
९. राजनीती - राजनैतिक विश्लेषण मात्र कुछ ही विषयों पर हैं।
१०. तकनीकी विषय - तकनीकी विषयों के बारे में कम जानकारी है। जैसे, भूगोल, भौतिक शास्त्र, रसायन विज्ञान, आदि। मसलन पंखा कैसे चलता है? रिमोट कैसे काम करता है।
११. धार्मिक विषयों मे अधिकतर सामग्री अंग्रेजी में है, जो हिन्दी में है वह रोज़मर्रा की भाषा में कम है।
१२. सकारात्मक विषय नदारद हैं, मसलन मैं यहाँ एक संस्था AID "Association for India's Development" में कभी कभी सहयोग करता हूँ, लेकिन कभी लिखा नहीं। एसे लेख पाठकों का बहुत उत्साह वर्धन करतें हैं। हर कोई कभी ना कभी किसी की मदद ज़रूर करता है, इस बारे में लिखें।
अनुराग भाई इस सब पर कुछ न कुछ शुरुआत हुई है लेकिन आगे और होना है। रही तनाव की बात तो हमारे चिट्ठे पढ़िये न। अगर फिर भी तनाव दूर न हो उसे टिप्पणी में पैक करके छोड़ जाइये, मस्त रहिये।
और अब बारी है वाह-वाह,क्या खूब है कहने की। कल गिरिराज जोशी ने पांच हायकू पेश किये। पांचो हायकू एकदम पांच पांडवों की तरह शानदार। अब द्रौपदी के बारे में हम न बतायेंगे। इन हायकूऒं में से दो आप देखिये और गिरिराज की तारीफ़ कीजिये कोई पैसा नहीं लगता तारीफ़ करने में:-
भंवरा उदास
कहाँ गई बगिया
मॉल खड़ा है
सजा सिन्दूर
बन रही दुल्हन
ओस की बूँद
लोकमंच से आप आज की राजनीति के हाल जान लीजिये:-
दरअसल, राजनीति में अपराधीकरण का यह रोग पुराना है। उत्तर भारत के राज्यों में जातिवाद और क्षेत्रवाद को अपना हथियार बनाकर जब कुछ महत्वाकांक्षी लोग राजनीतिक ताकत बनने की कोशिश करने लगे तभी से यह समस्या लगातार बढ़ रही है। जैसे-जैसे इन क्षेत्रीय ताकतों का दायरा बढ़ता गया, वैसे-वैसे राष्ट्रीय राजनीति में भी यह रोग फैल गया। दबाव से संचालित मीडिया जब भी राजनीति में अपराधीकरण की चर्चा करता है तब यहां बड़ी चतुराई से आंदोलनकारियों को हत्यारों, अपहरणकर्त्ताओं और माफियाओं के साथ तौल दिया जाता है। फिलहाल तो संसद के आंकड़े बताते हैं कि कोई भी राजनैतिक दल इससे अछूता नहीं है। आंकड़ों के मुताबिक हर चौथा सांसद किसी न किसी मामले में फंसा है। इसमें हर छोटी-बड़ी पार्टी का हिस्सा है।
हम कुछ और लिखें तब तक आप देख लीजियेरोबोटिक पार्क, ई-पंडित का ब्लागिंग का जुगाड़ जिसे संजय कह रहे हैं ये तो पुराना लफड़ा है और रवि रतलामी के साथ कर लीजियेचाय-पानी और फिर आराम से देखिये देखिये आशीष के यहां शनि वलय और जानिये उसकी सुन्दरता का राज । डिवाइन इंडिया पर विसंगतियों के चित्र देखना मत भूलिये और अगर इस सबके बाद आपको थकान लगे तो आपकी बात कहने के लिये आदित्य तिवारी हैं न!:-
आज मुझे सो लेने दो,
दिन भर का थका हुआ हूँ;
नींद में ही सही रो लेने दो।।
भाई आदित्य हालांकि ये आपका निजी मामला है लेकिन हम पाठक की हैसियत से यही कहना चाहते हैं कि पहले आप तय कर लो सोना है कि रोना है। कोई एक चीज करो एक बार में। सो लो या रो लो।
अब देखिये एक और मजाक। कहां लोग टिप्पणी पाने के लिये परेशान रहते हैं और कहां हमारे संजय टिप्पणी करने के लिये हलकान हैं। देश के नेताऒं की तरह ये सेवा का मौका चाहते हैं लेकिन कुछ लोग इनको देखकर शटर गिरा लेते हैं:-
मगर टिप्पणीकार के अपने दुःख भी है. जो बन्धू टिप्पणी पाना चाहते है, मेरे दुःखो का निवारण करे. वरना टिप्पणी न पाने के जिम्मेदार वे स्वयं होंगे. फिर न कहना टिप्पणी क्यों नहीं देते?
वे बन्धू जो ब्लोगर पर अपना डेरा डाले है, टिप्पणी पर से कई प्रकार के अंकुश लगा रखे है, कृपया उन्हे हटा ले. जैसे छवि में देख कर ए.बी.सी.डी. भरो फिर टिप्पणी दो. काहे इतनी कसरत करे? फिर कभी-कभी इसे दो-दो, तीन-तीन बार भी भरना पड़ता है. क्या टिप्पणी करने वाले के पास खाली समय बहुत है? कई बार तो ईमेज दिखती ही नहीं. फिर?
अब दुसरा अंकुश लगा रखा है की पहले ब्लोगर में खाता खोलो फिर ही टिप्पणी करने देंगे. यह जहमत कोई क्यों उठाएगा?
और चलते-चलते अब एक काम की बात। आज अभिव्यक्ति का नया अंक निकला है। यह अंक स्व. कमलेश्वर पर केंद्रित है। जिन साथियों ने मुझसे कमलेश्वर पर लेख लिखने का आग्रह किया था उनसे गुजारिश है कि अभिव्यक्ति का यह अंक देखें और कुछ अच्छा लगा हो तो अभिव्यक्ति की टीम की तारीफ़ करें। अरे भाई इहां नहीं उहां।
अब हमारा दुकाना समेटने का समय आ गया। हमने रात १०३० बजे तक के चिट्ठे यहां चर्चा में शामिल किये। इसके बाद के चिट्ठों पर नजरें इनायत करेंगे हमारे कविराज गिरिराज जोशी जो पिछले हफ़ते तबितत नासाज होने के कारण अपने माउस का जौहर न दिखा पाये। साथ ही देबाशीष से अनुरोध है कि चर्चाकारों में से पंकज बेंगाणी का नाम नदारद है उनको फिर से बुलौवा बोले तो निमंत्रण भेज दें।अगर किसी को हमारी चर्चा के बारे में कुछ कहना हो,कोई तकलीफ़ हो तो यहां टिपिया दे या फिर हमें मेलिया दे। हमारा पता है anupkidak@gmail.com आपने हमें इतने प्रेम से या मजबूरी में पढ़ा इसका आभार!
फाइनली चलते-चलते एक मुंडलिया समीरलालजी के सौजन्य से जिसे उन्होंने कल की कमी पूरे करने के लिये लिखा है:-
दस्युराज के नाम पर, नत मस्तक हो जायें,
हमको भी तो लूटिये, यूँ न बदनाम करायें.
यूँ न बदनाम करायें कि हम भी लिखते हैं,
गीत, कविता, व्यंग्य, सबही पर मिलते हैं
कहे समीर कविराय कि इनको याद कराओ,
दस्यु का ही काम करो, संपादक न हो जाओ.
आज की टिप्पणी
१.सर्वप्रथम पुर्वानुमति के आपका लेख पोस्ट (चोरी) किया, इसके लिये माफ़ी मांगता हूं. यह प्रायोगिक स्वरूप था पूरी साईट तो मैं मार्च के दूसरे सप्ताह तक पूरा करने वाला था.
सृजन शिल्पी जी, क्या आपके लेख केवल समानधर्मा साथियों के लिये हैं, हम जैसे आम आदमियों के लिये नहीं? कैफ़ेहिन्दी लेखकों के लिये न होकर मेरे जैसे आम आदमियों के लिये है.
अरे बाप रे, इतना बडा आंक लिया मुझे कि चिट्ठाकारों के चिट्ठे वीरान हो जाएंगे ?
हम कहां के दाना थे, किस हुनर मैं यकता थे
बेसबब हुआ गालिब, दुश्मन आसमां अपना.
मेरा कसूर यही है कि इस 26 जनवरी को घर में कैद रहने के कारण पिछले दो वर्षों की आंच कैफ़ेहिन्दी का स्वरूप तय करने की कोशिश की.
मुझे जो भी भाई अनुमति देगें सिर्फ़ उन्ही की रचना साभार सहित लिंक सहित उप्योग में ली जायेगी.
पुन: माफ़ी चाहता हूं
मैथिली
मैथिली गुप्त अपना पक्ष रखते हुये
२.मैथिली जी,
हो सकता है आपके विचार अव्यवसायिक हो, लेकिन आपको इस बात को तो मानना ही पड़ेगा, कि आपके किए गए कार्य को गलत ही मानना जाएगा। आप उम्र मे हमसे बड़े है, हमसे ज्यादा दुनिया देखी होगी आपने, इसलिए आपको कुछ भी समझाना, मेरे विचार से गलत होगा। मेरी कुछ प्वाइन्ट है, आप इस बारे मे सिलसिलेवार जवाब देंगे तो मुझे खुशी होगी।
१) क्या आप हमे इस बात की गारंटी दे सकते है कि भविष्य मे भी आपकी इस साइट की गतिविधिया अव्यवसायिक ही रहेंगी।
२) आप अपनी साइट पर एक सूचना चस्पा करेंगे कि, ये सभी चिट्ठाकारों के स्थलों से लिया गया है।
३) प्रत्येक लेख के लिए, हर चिट्ठाकार से अलग से अनुमति ली जाएगी।
४) लेख के मूल स्वरुप से कोई छेड़छाड़ नही की जाएगी, ना कन्टेन्ट मे और ना ही किसी लिंक में।
५) लेख के शुरु और अन्त मे लेखक के ब्लॉग का लिंक दिया जाएगा।
६) आप ब्लॉग लेखकों के ही कन्टेन्ट काहे लेना चाहते है?
७) यदि आपके उद्देश्य व्यवसायिक है तो अभी स्पष्ट करिए, मै व्यवसायिक उद्देश्य को भी गलत नही मानता बशर्ते मुझे पता हो कि आपकी मंजिल क्या है। यदि व्यवसायिक उद्देश्य है तो आप अपना व्यवसायिक योजना सभी चिट्ठाकारों अथवा उनके प्रतिनिधियों से डिसकस करना चाहेंगे?
बाकी यदि किसी और साथी को कोई आपत्ति हो तो बेहतर होगा, आमने सामने बात कर ली जाए।
नोट: इन सवालों के उत्तर पाने के बावजूद भी यह चिट्ठाकार की मर्जी पर निर्भर करेगा कि वह आपको प्रकाशन की अनुमति देता है अथवा नही।
जीतेन्द्र अक्षरग्राम पर (चोरी की) आचार संहिता बताते हुये
आज की फोटो
आज की पहली फोटो डिवाइन इंडिया से
आज की दूसरी फोटो सुनील दीपक के फोटो ब्लाग से
आज की तीसरी फोटो आशीष के ब्लाग अंतरिक्ष से
बहुत ही मजेदार चर्चा रही अनूप जी, सुबह सुबह खूब हंसा दिया। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंतुम्हारा लेख किसी भी विषय पर होता हो, टारगेट तुमको एक ही मिलता है "बेचारा जीतू"
जवाब देंहटाएंहर लेख मे तुम हमारी खिंचाई करते हो, अब हम खिचांई शुल्क लगाना शुरु करने वाले है, ताकि हमारी खिंचाई भी व्यवसायिक रुप ले सके।
बकिया चर्चा चकाचक किए हो, लगे रहो गुलफ़ाम।
मजा आया पढ़ कर !
जवाब देंहटाएंआज चिट्ठाचर्चा पर आने के लिये लिंक पर क्लिक करने पर एक error code "bX-vjhbsj" बार बार आ रहा है।
जवाब देंहटाएंमजा आ गया चर्चा पढ़कर, खैर वो तो आना ही था, फुरसतिया भाईसाहब जो किए थे।
जवाब देंहटाएंआज पहले तो चिट्ठाचर्चा खुल ही नहीं रहा था, एरर दे रहा था। खुला तो पोस्ट स्क्रीन पर समा ही नहीं रही है। हॉरिजॉन्टल स्क्रॉल का प्रयोग करके बड़ी मुश्किल से पढ़ी। माजरा क्या है, क्या थीम में कुछ बदलाव किया है। 'हॉरिजॉन्टल स्क्रॉल' वाला मामला सुलझाओ जी, वरना हमें बहुत दिक्कत होगी।
बड़ी मुश्किल से आ पाये इतनी बेहतरीन चर्चा पर टिपियाने. सुबह से ही कुछ गड़बड़ चल रही थी यहां. खैर देर आये मगर मजा खुब आया. :)
जवाब देंहटाएंभाई वाह!
जवाब देंहटाएंइतनी धांसू चिट्ठाचर्चा बडे दिनों के बाद पढे हैं. ससुरी खतम ही नहीं हो रही थी और बीच में छोडने का मन नहीं कर रहा था. ये हिन्दी ब्लाग मुझे ले न डूबें, इतने प्यार से कोई शोधपत्र कब पढा था याद नहीं.
कुछ भी कहो तबियत हरी हो गयी.
धन्यवाद,
नीरज
eaजगदीशजी,अपनी हंसते हुये फोटो एक दिखाइये न!
जवाब देंहटाएंये error code "bX-vjhbsj मेरे यहां भी आ
रहा था।
जीतेंन्द्र, तुम लगाऒ इन्टरटेनमेन्ट टैक्स. हम फिर पब्लिसिटी फ़ीस लगायेंगे। शुरुआत करेंगे तब से
जब से हमने तुम्हारे बारे में लिखना शुरु किया। देते नहीं बनेगा। गुलफ़ाम तो लगे ही हैं।
मनीष, शुक्रिया।
श्रीश, हां कुछ परेशानी थी चिट्टाचर्चा खुलने में।मामला हमारे तकनीकी दिग्गज सुलझायेंगे।
समीरजी,मजा तो आना ही था। आपकी दो-दो मुंडलियां जो टंकी थीं सलमा-सितारों की तरह।
नीरज भाई, शुक्रिया। हमें पूरी आशा है कि ब्लागिंग का शौक आपकी क्षमताऒं में बढो़त्तरी करेगा।
अनूप जी यह तो मेरे मन की बात है कि, 'लेकिन हो सके तो लिंक दे दो काहे से जिस दिन किसी कारणवश चोरी न कर पाये उस दिन चोरी का माल पढ़ने वाले हमारे यहां आकर ही कुछ पढ़ लेंगे।'
जवाब देंहटाएंउन्मुक्तजी, हमने पहले ही कहा था कि हम इस मामले में हम उन्मुक्तजी और दीपकजी के घराने के चिट्ठाकार हैं। इसी बात में आपके मन का लिंक था।
जवाब देंहटाएंअनूप जी, चिट्ठा चर्चा तो अच्छी रही, आनन्द भी मिला।
जवाब देंहटाएं(अ) चर्चा में प्रकाशित पढ़ाई की विडम्बना का चित्र बहुत प्रेरणादायक लगा।
(ब) आपने अनुराग मिश्र जी की वार्ता की चर्चा की और उसमें वर्णित "तनाव" के सम्बन्ध में लिखा - "रही तनाव की बात तो हमारे चिट्ठे पढ़िये न।" , अब यह और भी स्पष्ट कर दें कि यह आपने तनाव पैदा करने अथवा तनाव दूर करने का नुस्खा दिया है ताकि कोई भ्रांति न रहे, या फिर यह निर्भर करेगा पाठक के स्व् दृष्टिकोण पर !
अनूप भाई,
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा चर्चा लगा…!!