आप लोग टकटकी लगाकर चिट्ठाचर्चा को बार-बार दुबारा ताजा(रिफ्रेश)कर रहे होंगे यह सोचकर हम दुबारा आपकी खिदमत में हाजिर हैं। तो बात की शुरुआत मोहल्ले से। यहां प्रख्यात शायर मुनव्वर राना के संस्मरण प्रकाशित किये जा रहे हैं। मुनव्वर राना का एक बहुत प्रसिद्ध शेर है-मियाँ मैं शेर हूँ शेरों की गुर्राहट नहीं जाती/मैं लहज़ा नर्म भीकर लूँ तो झुंझलाहट नहीं जाती।
कुछ दिन पहले जो अब काफ़ी दिन पहले लगने लगे हैं रत्नाजी ने इलाहाबाद के मुशायरे में मुनव्वर राना के आने का जिक्र करते हुये उनकी शायरी के कुछ नमूने अपने ब्लाग में पोस्ट किये थे। आज अविनाश ने राना साहब के संस्मरण आगे पढा़ते हुये उनकी मानसिक बनावट से रूबरू कराया। ख़ुद से चल कर नहीं ये तर्जे़ सुख़न आया है... पांव दाबे हैं बुज़ुर्गों के तो फ़न आया है... जैसा शेर लिखने वाले राना साहब अपने जीवन में हुये तजुर्बे का बयान करते हुये एक किस्सा सुनाते हैं:-
इलाहाबाद के किसी मंदिर में एक राजा पहुंचा और उसने मंदिर के पुजारी से पूछा कि पुजारी जी क्या कभी किसी ने इस मंदिर पर चढ़ावे में दो सेर सोना चढ़ाया है? पुजारी जी बोले नहीं महाराज अभी तक तो ऐसा कोई भी दानी इधर से नहीं गुज़रा। राजा ने मुस्कुराकर कहा तो समझ लीजिए वह दानी शहर में आ चुका है। कल मैं मंदिर में दो सेर सोना चढ़ाऊंगा। पंडित जी ने मुस्कुराते हुए हाथ जोड़ लिये और बोले महाराज मैं ये चढ़ावा लेने से इनकार करता हूं। राजा ने पूछा पंडित जी आप यह चढ़ावा लेने से इनकार क्यों कर रहे हैं? पंडित जी ने फिर हाथ जोड़ लिये और बोले महाराज, मंदिर में दो सेर सोना चढ़ाने वाले तो हमेशा पैदा होते रहेंगे लेकिन मुमकिन है मेरे बाद कोई इनकार करने वाला न पैदा हो।यह पढ़कर उनका एक और शेर याद आया-मैं इक फकीर के होंठों की मुस्कुराहट हूँ/किसी से भी मेरी कीमत अदा नहीं होती
यह पोस्ट प्रत्यक्षा के दिल को छू गयी इसलिये अब बात उनकी ही पोस्ट की। वे पहले भी इस बात पर अफसोस प्रकट करती रहीं कि उनकी पोस्ट की चर्चा छूटती गयी। पिछली पोस्ट में उन्होंने ओले बटोरे, सबको फोटो दिखायी इस पर भी उनकीपोस्ट अचर्चित रह गयी। बहरहाल,कल वैलेंटाइन दिवस के अवसर पर उन्होंने अपने पति सन्तोष का जन्मदिन भी मनाया और भेंट में दी ये कविता। अब भला बताओ कि जिनको कविता-कहानी से लगाव केवल मजबूरन ही हो वह कैसे इससे आनन्दित होगा। लेकिन नहीं ये कविता खासतौर से उन्होंने सन्तोष के लिखी था इसलिये बात ही कुछ और है। वे लिखती हैं:-
जाने भी दो
आज का ये फूल
सिर्फ मेरा है
आज की ये गेहूँ की बाली
सिर्फ मेरी है
इनकी खुशबू मेरी है
इनका हरैंधा स्वाद भी
मेरा ही है
आज का ये दिन मेरा है
तुम अब भी
झुककर
पूरी तल्लीनता से
सिगरेट सुलगा रहे हो
मैं फिर थोडी सी
सुलग जाती हूँ.
जन्मदिन की बधाई देने के चक्कर में कविता की तारीफ़ आधी हो गयी। हमारी तरह से भी सन्तोषजी को जन्मदिन और सुन्दर कविता उपहार के लिये बधाई!
जहां प्रत्यक्षाजी को यह अफसोस है कि उनकी पोस्ट की चर्चा नहीं हुई वहीं मानसी को नारद से नाराजगी है कि उनकी उच्च विचारों वाली पोस्ट नारद दिखाने में देर करता है। इसके लिये वे सिफारिश करवा कर और लड़-लड़कर प्रयास करती हैं और
सारे भेद खोलने के बाद कहती हैं-
कुछ न किसी से बोलेंगेहालांकि मानसी ने खुद बताया है कि उनका गणित कुछ कमजोर है लेकिन मुझे लगता है कि उनका भौतिक विज्ञान भी बहुत अच्छा नहीं है नहीं तो वे न्यूटन के जड़त्व के नियम से जरूर परिचित होतीं! काहे से कि जो नारदजी मानसी की ब्लाग सेटिंग दो से एक तक ला सकता है वह जड़त्व के नियम का पालन करते हुये कनाडा के तापमान तक भी ले जा सकता है! इसलिये 'पड़सान' न हो मानसी। जानदार लिखने से ज्यादा जरूरी है जबरिया लिखते रहना! इससे नारद का मन लगा रहता है!
तन्हाई में रो लेंगे
हम तो हुये रुसवा लेकिन
तेरे भेद न खोलेंगे
जब तुम छोटे थे, खराब से खराब मौके पर भी हमेशा मुस्कराया करते थे. खुश और उम्मीदबर रहते थे. ओह, कितने प्यारे बच्चे थे तुम. तुम्हें देखनेवाला बिना मुस्कराये नहीं रह पाता था. इसलिए नहीं कि तुम खूबसूरत थे, बल्कि इसलिए कि तुम्हें खबर ही न थी कि उदासी किस चिडिया का नाम है, क्योंकि बोर तो तुम होते ही न थे.ये बयान है ओरहान पामुक का जो उन्होंने अपनी किताब इस्तांबुल यादें और शहर में शायद अपने बारे में लिखा ह और जिसे हमारे आपके पास बखूबी पहुंचा रहे हैं प्रमोद सिंह-बजरिये अज़दक!
इसके बाद रचनाकार पर पढ़िये आशुतोष की कहानी-मृगमरीचिका। साथ में जानकारी लीजिये ई-पंडित से कि नये ब्लागर पर आप कैसे शिफ्ट हों तथा अब आप याहू पर चैट भी कर सकते हैं।राशनकार्ड भी डिजिटाइट होंगे यह बताते हैं रवि रतलामी। जीतेन्द्र जिनका कभी कोई लेख चुराया नहीं गया बता रहे हैं (सूत न कपास, जुलाहे से लट्ठमलट्ठा)कि ब्लाग से अगर कोई सामान चुराये तो क्या करें । रवि रतलामी ने बॉस आपरेटिंग सिस्टम की समीक्षा करते हुये - पूर्णतः भारतीय लिनक्स बताया! निठल्ले तरुण बता रहे हैं कि वर्डप्रेस का हेडर कैसे बदलते हैं साथ में देखिये जीतेंद्र के जुगाड़ तथा सैंतीस रूपये का चूना कालगवा चुके आशीष गुप्ता की ब्लॉगर प्रथम से ब्लॉगर द्वितीय जाने में हुयी समस्या! इस पर श्रीश कहते हैं-
और मारो क्लास से बंक, हमारी पाठशाला लगाई होती तो ये नौबत नहीं आती। मैं कई बार इस बारे में चेतावनी दे चुका हूँ। अपने चिट्ठे पर भी और चिट्ठाकार समूह में भी।
इसका कारण Language का Hindi होना था| इसका एक समाधान है, जल्द ही एक क्लास लगा कर बताते हैं। अबकी बंक मत मारना। :)
गिरिराज जोशी आम तौर पर अपनी कविताऒं के लिये जाने जाते हैं लेकिन आज उन्होंने बताया कि देवनागरी में आसानी से कैसे लिखें!
अनुपमा चौहान की पहली ही रचना की बहुत तारीफ़ हुयी थी । आज वे लिखती हैं:-
फुरसत-ए-जिन्दगी चुभी, खार हो गया,
आह भरना भी अब दुशवार हो गया..
ना मिलेगा आसमाँ न जमीं, तुझको कभी,
पुराना मुकम्मिल जहाँ का ये कारोबार हो गया
दिल्ली से रंजू अपनी ख्वाहिश जाहिर करती हैं:-
मेरे दिल की ज़मीन को सपनो का आकाश चाहिए,
उड़ सकूँ या नही किंतु पँखो के होने का अहसास चाहिए......
वेलेंटाइन डे पर जहां दुनिया भर में प्रेम-प्यार की हवा बह रही थी उस समय अतुल श्रीवास्तव देवनगरी में हाहाकार मजा रहे थे। वहां कामदेव का सिंहासन हिलने-डुलने लगा:-
नारद ने अपना माथा पीटते हुये कहा, “हे भगवान क्या दिन आ गये हैं. अब ये भी मुझे ही बताना पड़ेगा. प्रभु एक वेलंटाईन नामक विदेशी देवता ने कामदेव को अपदस्थ कर दिया है यानि कि वेलंटाईन जी ने कामदेव की गद्दी छीन कर स्वयं को उस गद्दी पर विराजमान कर दिया है. आज वेलंटाईन देवता का महान पर्व है. आप जरा नीचे झाँक कर तो देखिये कि ये पर्व कितने हर्षौल्लास के साथ मनाया जा रहा है. इतना धूम धड़ाका तो शिवरात्रि, राम नवमी और जन्माष्टमी में भी नहीं होता है. छि छि यही दिन देखने को बचे थे. हरि ओम हरि ओम.”
नारद मुनि आगे और कुछ कहते कि कामदेव भी अपना लंगोट संभालते हुये सभा में आ धमके. अष्रुपात करते हुये विष्णु के चरणों में लोट गये. हिचकियों के साथ सुबक सुबक कर बोले, “प्रभुश्री मैं तो लुट गया, बरबाद हो गया. न जाने कहाँ से और कब ये कमबख्त वेलंटाईन आ धमका, और भारत की युवा वर्ग को अपने वश में कर के मेरे ऊपर धावा बोल बैठा. गद्दी तो गयी सो गयी, अब तो भारत के मूढ़ युवा मेरा नाम तक नहीं पहचानते हैं.”
शुऐब को भी खुदा से गुफ्तगू करते हुये उनको वेलेंटाइन गिफ्ट दे रहे हैं। खुदा कहते हैं:-
बचपन और जवानी सिर्फ एक बार नसीब आता है, जियो और जीने दो, खुलकर ख़ुशियां मनाओ, एक-दूसरे को अपना कल्चर बांटो, सिर्फ ईद-त्योहार ही नहीं बल्कि हर दिन मौज मस्ती करो मगर इतनी ज़्यादा नहीं कि किसी का नुक़्सान हो। ये दुनिया तुम्हारी है, तुम सब एक ही किसम के इंसान हो, कोई तुमसे बुरा और ज़्यादा अच्छा नहीं सभी बराबर हो।
हालांकि वेलेंटाइन दिवस चला गया लेकिन जाते-जाते राजसमंद की अर्धशतकीय पोस्ट पर कुछ टिप्स छोड़ गया!अपने अंतरिक्ष अभियान की यात्रा जारी रखते हुये आशीष ने आज अपोलो १२:अभियान की विस्तार से जानकारी दी!
सीमाकुमार ने पिछली पोस्ट में रायबरेली में निफ्ट खुलने के बारे में जानकारी दी थी। इस बार वे शायद वेलेंटाइन दिवस के अवसर पर सुना रही हैं कविता:-
प्यार
अंधेरे में
टिमटिमाती हुई
एक रोशनी है
जो इंसान को
अंधेरे से
कभी हारने नहीं देती ।
इसी मौके पर डा.बेजी की कविता भी मौजूं है:-
आज तारीक़ क्या है…पता ही नहीं
वार का भी ध्यान मुझको नही
तू साथ हो …हँसे पगडण्डियाँ …
खिले कलियॉ …अपनी लगे गलियॉ
…………………………………
मिलन की बजे शहनाईयॉ
लोकमंच पर आप पढ़िये हिन्दू दार्शनिक चिन्तन के सोपान तथा
चर्च का अन्तरराष्ट्रीय चेहरा| साथ हीमारीच और सुबाहु वध और अर्जुन विषाद भंग
की कथा भी सुन लीजिये!साथ ही लक्ष्मीगुप्त जी ढोल,गंवार इत्यादि पर अपने विचार व्यक्त किये हैं!
सुनील दीपक 'विवाह' और 'धूम-२' को आधार बनाकर आज के भारतीय सिनेमा में पारिवारिक मूल्यों के चित्रण के बारे में अपनी समीक्षात्मक राय जाहिर की। अनुराग मिश्र का मानना है कि जीवन में जितना खाना खाना आना जरूरी है उतना ही जरूरी है खाना बनाना सीखना! वे विदेश खासकर अमेरिका में अपना काम अपने हाथ से करने की जरूरत पर बल देते हुये माताऒ-पिताऒं को यह सलाह देते हैं:-
मैं समझता हूँ कि माँ बाप को बच्चों को ये सारे काम समय रहते सिखाने चाहिए और अच्छे से सिखाने चाहिए, ताकि बच्चे ना सिर्फ ये सब काम कर सकें, बल्कि तरीके से और जल्दी भी कर सकें। जिन लोगों को लिए ये सब काम कोई बड़ी बात नहीं होते और वे ये काम आसानी से कर लेते हैं, वे अपना बाकि ध्यान और समय पढ़ाई या और कामों में लगा सकते हैं।यह सब बताते हुये भी अनुराग ने यह नहीं बताया कि वे खुद कितने काम अपने आप कर लेते हैं!
जगदीश भाटिया ने निरंतर पर भू-सम्पत्तियों से सम्बन्धित सारगर्भित लेख लिखा है। इसके जानकारी देते हुये देबाशीष ने विस्तार से लिखा है। जगदीश भाटिया इंडीब्लागीस में हिंदी के सर्वेश्रेष्ठ चिट्ठाकार के रूप में भी नामांकित हुये हैं। इस पुरुस्कार के लिये अपनी इच्छा,आकांक्षा और उहापोह को बयान करते हुये उन्होंने लिखा है:-
प्रतियोगिता क्षेत्र मे डटे हुए इस स्वजनसमुदाय को देखकर मेरे अङ्ग शिथिल हुए जा रहे हैं और मुख सूखा जा रहा है, तथा मेरे शरीर में कम्प एवं रोमाञ्च हो रहा है ये जीतू भाई हैं, जिन्होंने मुझे अंगुली पकड़ कर ब्लाग बनाना सिखाया। ये फुरसतिया जी हैं, जिन्होंने नये नये पोस्ट लिखने को हमेशा उत्साहित और प्रेरित किया। ये रवि रतलामी जी हैं, जिनसे कभी तकनीकी ज्ञान लिया और कभी चिट्ठा लिखने का व्यावाहरिक ज्ञान लिया। ये सुनील जी हैं, जिनके चिट्ठे को पढ़ कर स्वंय पर ही गर्व होने लगता है। यह समीर भाई हैं, जिनकी टिप्पणी का इंतजार हर पोस्ट करने के बाद होने लगता है | ये मेरे दिल्ली के मित्र सृजनशिल्पी हैं जिन्होंने कई बार फोन पर छोटी छोटी बातों पर गाईड किया। ये प्रिय रंजन हैं जिनका लिखा एक बार ब्लाग पर पढ़ते हैं तो अगले दिन समाचार पत्र में भी दोबारा जरूर पढ़ते हैं।उनकी इस दुविधा पर उनका पूरा मित्र समुदाय कॄष्ण हो गया है और धर्मयुद्ध को पूरी ताकत से लड़ने की सलाह दे रहा है!
अनुराग अरे नहीं अनुरागजी ने सर्वश्रेष्ठ चिट्ठाकार के चुनाव के लिये उसी को वोट देना तय किया है जो तमाम दूसरी आवश्यक शर्तों के साथ निम्नलिखित शर्तें भी पूरी करता हो:-
१.अपने चिठ्ठे पर 'पानी के बताशे' का लिंक बोल्ड अक्षरों में लगाइये.
२.लोगों के सीने पर बंदूक रख कर उनसे जबरन 'पानी के बताशे' के लेख पढ़वाइये - भले ही पढ़ते हुये अगला अपना मानसिक संतुलन खो बैठे या मारे बोरियत के ऊपर का टिकट कटवा बैठे.
३.यदि अगला मजबूत किस्म का इंसान है और यह सारी यातनायें झेल लेता है तो उससे टिप्पणी भी करवाइये और वह भी तारीफ वाली.
४.तारीफ वाली टिप्पणियाँ सुनने में सच्ची लगनी चाहिये. इसके लिये आप कविता, हायकू, गीत, लेख या निबंध किसी भी विधा का सहारा ले सकते हैं.
५.आप अगर कुछ कैश भी देना चाहें तो विदेशी मुद्रा में दे सकते हैं. (केवल अमरीकी डॉलर और यूरो, केवल नोट दीजियेगा, सिक्के स्वीकार नहीं हैं.)
और अब अगली पोस्ट हमारे धुरविरोधी की। कल भारत क्रिकेट मैच जीत गया। आपने मैच देखा होगा,कमेंट्री सुनी होगी लेकिन मुंडलिया कमेंट्री नहीं सुनी होगी। सुनिये और अंदाजा लगाइये धुरविरोधी की मौज और लेखन क्षमता का। वे
कहते हैं:-
तेन्दुलकर जी ने रखी, वही पुरानी टेक
कांख कांख कर थक गये, टपकौ रन बस एक.
टपकौ रन बस एक, लला अब ओल्ड है गये
कुलसेकर ने गेन्द घुमायी, बोल्ड है गये.
कहं काका कविराय, द्रविड अब कांपे थर थर
भेज दिये युवराज, दो विकिट के डाउन पर
मैच का अंत देखिये कैसा वेलेंटाइनियाया है:-
लप्प लप्प बल्ला चले, बैठे सब दिल थाम
पांच विकिट पर मिल गयो, मन वांछित परिणाम
मन वछित परिणाम, जीतली हारी बाजी
आगे अपनौ व्यंग्य कहेंगे फ़ुरसतियाजी.
कहं काका, सौरव का देखे रूप सलौना.
हैप्पी वेलन्टाइन डे, मुसकायी डोना
मृणाल का अब लगता है हिंदी लिखने में मन लगने लगा है। उन्होंने न्यूटन के गति के नियम परदूसरी किस्त लिखी फिर हानिकारक साफ्ट्वेयर का चित्रात्मक वर्णन किया।
इस चिट्ठाचर्चा को पोस्ट करने में हमें देर हो गयी। लेकिन खुशी है आपकी प्रतीक्षा का अन्त हुआ। और सच कहा जाये तो अन्त तो सबका होता है। हर एक का चक्र निर्धारित है तो फिर आपकी प्रतीक्षा कैसे अमर रह सकती है! जैसा कि अनहदनाद पर अचर्चित रह गयी नीलेश रघुवंशी की यह कविता कहती है:-
इमारत के ऊपर इमारत
खाई के नीचे खाई
दूर-दूर तक फैला कंक्रीट का जंगल
आएगा एक दिन ऐसा आएगा
जब हमें हमारी जमीन मिलेगी वापस
सीमेंट की टंकी में पानी पीती चिड़िया से
कहा पीपल की फूटती जड़ ने!
ऊपर के गुलाब के फूल अफ़लातूनजी ने खींचे हैं और अपने ब्लाग पोस्ट किये हैं। ये फोटो उन्होंने महिला महाविद्यालय के आगे-पीछे कहीं से खींचें हैं।( समय बदल गया आदतें नहीं बदलीं!)हां यह नहीं बताया उन्होंने कि ये फूल उन्हें मिले या उन्होंने किसी को दिये या फूल इंतजार कर रहे हैं कोई आये और उनको उनके गन्तव्य तक पहुंचाये! सोने के आभूषण रामचन्द्र जी के हैं! चलते-चलते आप सिनेमा से संबंधित ये पोस्ट भी देख लें!
हमारे पास कहने को जो कहने को था हमने कह दिया! बाकी आज के चिट्ठों के बारे में गिरिराज जोशी कल कहेंगे। अब बताइये आपको क्या कहना है!
आज की टिप्पणी
1.ये जरूरी नही कि ज्यादे हिट वाले अच्छे और कम हिट वाले बुरे लिखे हों, अगर कम हिट आयें समझ लीजिये उच्च दर्जे का लिखा था ;) शायद किसी की समझ नही आया वैसे ही जैसे लीक से हटकर आर्ट फिल्मों का हाल होता है बॉक्स आफिस पर। :) बस लिखते रहिये, आप हमारे लेख पढते रहिये हम आपके हिट काउंट कम से कम १ तो हमेशा आयेगा... ए क्या बोलती तू :)
तरुण मानसी की पोस्ट नारद तन्हा रोने भी नहीं देता पर|
आज की फोटो
आज की फोटो सुनील दीपक के ब्लाग छायाचित्रकार से:
ये फोटो आशीष के अंतरिक्ष अभियान से
देर आय दुरुस्त आय।
जवाब देंहटाएंइंतजार कराया पर चर्चा चकाचक।
चर्चा की सजावट भी अच्छी है।
ये गुलाब जो महिला महाविद्यालय की वाटिका के हैं मुझसे हर रोज दो बार मुखातिब होते हैं।मालवीयजी महाराज की जयन्ती पर आयोजित स्पर्धा में इस वर्ष उस वाटिका को पुरस्कृत भी किया गया।कल के विशिष्ट अवसर पर चिट्ठेकारों को सप्रेम प्रस्तुत किये गए ।उन्हें अनूप का इन्तेज़ार था ताकि कल से आज तक पधारे महज ४९ लोगों की तादाद में निश्चित इजाफ़ा हो।
जवाब देंहटाएंअनूप ने उस दौर का स्मरण कराया है जब वहाँ,'सुन साहिबा सुन,--' वाला गीत थोड़े से हेर-फेर के साथ बतौर नारा लगता था।
दो बार इन फूलों से भेंट होती है- एक बार जब अपनी पत्नी को छोड़ने जाता हूँ,फिर शाम को उन्हें लाने।
बहुत सही. अब सब कवर हो गये. शाबास. :) जगदीश भाई का लिंक भी लगा दें, उनकी पोस्ट तक पहुँचने के लिये नये लोगों को. हमारे पास तो खैर खास बुक मार्क में है. :) बधाई, बेहतरीन चर्चा के लिये.
जवाब देंहटाएंबड़ी ही विस्तृत और बढ़िया चर्चा।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा प्रवाह है आपकी भाषा में.. आपकी चर्चा बांधे रखती है.. साथ ही जानकारी तो देती ही है.. ये भी किसी रचना से, कविता से कम नहीं..
जवाब देंहटाएंअनूप भाई,
जवाब देंहटाएंपुन: सधा प्रवाह्…इतने को आम भाषा की चासनी में लपेट लिया…बधाई!!
बस मज़ा आ गया।
जवाब देंहटाएंवाह वाह चिट्ठाचर्चा नहीं फुरसतचर्चा। पब्लिक को जब मालूम होता है आज अनूप भैया चर्चा करेंगे, उस दिन आवाजाही बढ़ जाती है।
जवाब देंहटाएंआम तौर पर बड़ी पोस्टें देखकर घबरा जाता हूँ, पर आपका लिखा पढ़ने में कोई डर नहीं लगता। प्रवाहमय लिखते हैं एकदम पता ही नहीं चलत कब खत्म हुई चर्चा।
बहुत सुंदर चिट्ठाचर्चा है अनूप जी...बधाई ॥
जवाब देंहटाएं"मेरे दिल की ज़मीन को सपनो का आकाश चाहिए ...." आज जब सुबह जगदीश जी का कॉमेंट पढ़ के यहाँ आई और यह पंक्ति यहाँ पढ़ी तो बहुत अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा यहाँ आ के इस चर्चा को पढ़ना ..नये लोगो के बारे में जानना और विचारो को समझना ...शुक्रिया !!
आपके लिखने की शैली बिल्कुल special है। पढ़कर आनन्द आया। इतनी सरलता तथा मज़ेदार ढंग से इतने ब्लॊगों से परिचित होना बहुत अच्छा लगा। धन्यवाद।
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