टिप्पणि विरह अनल संजातम
टिप्पणि शीतल मन्द समीरा
अथ अब चर्चाकार उवाचम
सबसे पहले बात खुशी की जो कि खुशी ने खुश होकर की
अपने मित्र समीरानंदा, कुंडलियों की खान रसभरी
पाड्कास्ट पर हुए अवतरित, आप देखिये तरकश जाकर
फिर न शिकायत करना, इसकी चर्चा हमने नहीं जरा की
उड़नतश्तरी सन्दर्भों को टिप्पणियों से जोड़ रही है
चीनू चिन्नी फ़सल काटते, किसी और के बीजों वाली
विन्डो की स्क्रीन बदलना सिखलाते हैं तरुण आज कल
श्रीलंका की तमिल समस्या लोकमंच ने आज उठा ली
जो न कह सके वही बताते छायाचित्रकार मेले में
क्या है अशुभ और शुभ क्या है उलझे हैं दिव्याभ उसी में
अपनी कविता लेकर आया एक यहां पर भारतवासी
नये विचार राम पर लिखते तिरपाठीजी नव कविता में
पढ़ी नीलिमाजी ने बचपन में जो याद उन्हें वह कविता
नस्लवाद से जुड़ी हुई जो, आप पढ़ें, मैं क्या कह सकता
और बात जब चली यहाँ पर पढ़ने और पढ़ाने वाली
ई-पंडितजी को पढ़कर फिर हिन्दी कौन नहीं लिख सकता ?
--इस टूल की मदद से आप Internet Explorer, Firefox, Opera, Notepad, WordPad, MS-Word, Google Talk आदि सभी विंडोज ऐप्लीकेशन्स में हिन्दी टाइप कर सकते हैं। हिन्दी तथा English में Switch करने के लिए F11 या F12 कुँजी का प्रयोग करें। अर्थात आप एक साथ दोनों भाषाओं में लिख सकते हो। हिन्दी टाइपिंग संबंधी किसी भी मदद के लिए आप मुझे ईमेल कर सकते हैं या परिचर्चा Hindi Forum में हिन्दी लिखने मे सहायता नामक Subforum में पूछ सकते हैं। - -
सुखसागर में कुरुक्षेत्र के दूजे दिन का हाल लिखा है
रंजू जी की बुझी राख को कोई आकर हवा दे रहा
जेल कंपनी के चिट्ठों को खोला जाता जनपरिषद में
और मॄणाल पूछते कोई भौंक यहां पर किसलिये रहा
डेस्कटाप पर हैं कीटाणु, नितिन बताते हिन्दुस्तानी
नव आगंतुक एक साथ ही नौ नौ पोस्ट साथ में लाये
तुम होते तो, ख्वाहिश होती, एक कहानी कर्मवीर की
बाकी आप पढ़ें चिट्ठे पर , समय आपको जब मिल पाये
लोकमंच से अंतरिक्ष तक, सब कुछ कॄष्णम समर्पायामी
एक मोहल्ले में घर की हैं बातें सभी बड़ी अरमानी
एक चित्र है, एक बाग है, एक राग हिन्दी वाला है
एक सत्य है, एक ख्याल है, इक कुछ अमरीका वाला है
मसिजीवी ने दिखलाया है, बात कहाँ पर है मर्दानी
दिल के दर्पण में जीवन के पूछ्ह रहे मोहिन्दर माने
इन्द्रधनुष गुजराती गाथा, साहिर की मदमाती रचना
हिन्द युग्म पर शिवशंकर को बुला रहे राजीव सयाने
दिल है हिन्दुस्तानी जिसमें यादों की तितलियां उड़ रहीं
शाम वही है,वो ही गम है और बढ़ रही तन्हाई है
है निनाद गाथा बतलाती खून बह रहा मासूमों का
इसीलिये तो अब नस नस में फिर से बिजली भर आई है.
जितने चिट्ठे पढ़े सभी में टिप्पणियां भी थीं गिनती की
लेकिन एक टिप्पणी जिसका ज़िक्र यहां नीचे करता हूँ
आप सभी अनुसरण करें स्वामी समीर का टिप्पणियों में
बन्द यहाँ पर ये आशा लेकर, मैं ये चर्चा करता हूँ
आज की टिप्पणी: ( मॄणाल कान्त के ब्लाग पर )
अनूप शुक्ला said...
कविता मजेदार है। सिर्फ दो माह लेट। सतर्कता दिवस के समय आनी चाहिये थी। बहरहाल,देर आयद दुरस्त आयद। यह पंक्तियां खासकर जमीं
कण्ठ को मत अनावश्यक कष्ट दो, क्या फ़ायदा है
-जिसको जब मौका मिले तब लूट लो, यह कायदा है।
वैसे कवि को इन कायदों के बारे में जानकारी कैसे मिली?
और जैसा समीर भाई ने कहा कि कनाडा और अमेरिका में इन दिनों ठंड की ही बात होती है
कहना तो बहुत कुछ चाहते थे
जवाब देंहटाएंपर कह न सके क्या करे भाई
हम उलझे जो हैं…अब जटिलतर
को करने चले जटिल तो क्या
होगा…
आपके मंत्रों में ही तंत्र है यही
सुंदरता है…इस लय की…।
बहुत बढ़ियां कवरेज.
जवाब देंहटाएंगीत और कविता के माध्यम से चर्चा करना बस आपके बस में ही है. साधुवाद.