आपका दोस्त जितेन्द्र चौधरी हाजिर है शनिवार के चिट्ठों की चर्चा के साथ। आज की चर्चा शुरु करने से पहले मै कुछ निवेदन करना चाहूंगा। हम चिट्ठा चर्चा कर रहे है, जितनी छोटी,संक्षिप्त और बिन्दुवार होगी उतने ज्यादा लोग पढेंगे। यदि हम चर्चा भी चिट्ठों की साइज के अनुसार करेंगे तो शायद लोगों का रुझान कम होता जाएगा। एक और बात, मै चाहूंगा कि चिट्ठा जगत मे गुणवत्ता आधारित चिट्ठे लिखे जाएं; कुछ ऐसे मुद्दे जो हमे सोचने के लिए मजबूर करें, लेकिन गुणवता मे इतने खरे भी उतरें कि चिट्ठा चर्चा मे स्थान पाने के लिए भी प्रतिस्पर्धा हों। सभी चिट्ठों की चर्चा करने से वो प्रतिस्पर्धा का भाव खत्म होता दिख रहा है। इसलिए मै यही कहना चाहूंगा कि सभी चिट्ठों के लिंक दिए तो दिए ही जाए, लेकिन चर्चा सिर्फ़ उन्ही चिट्ठों की चर्चा की जाए, जो चर्चाकार को सचमुच पसन्द आएं हो। इस विषय मे (उस दिन के) चर्चाकार का निर्णय अंतिम हो, और सभी चिट्ठाकारों को मान्य हो। ये मेरे सुझाव है, इन्हे अन्यथा ना लिया जाए।
कुछ और सुझाव आए थे, कि चिट्ठों की शुरुवात मे सभी चिट्ठों का उल्लेख कर दिया जाना चाहिए, तो लीजिए जनाब हाजिर है शनिवार को लिखे गए, कुल जमा चिट्ठों का हिसाब किताब:
- विराम चिंह की आत्मकथा
- जुगाड़ी लिंक
- वास्तुशास्त्र कहाँ कहाँ
- पेशेगत ब्लॉगवाद से अभी कितना दूर है हम?
- सप्ताह के स्वादिष्ट पुस्तचिन्ह
- दिल यूँ ही मचल गया
- मीनार पर
- भारत मे नौकरी चाहिए
- चीते की तलहटि मे कोसी का घटवार
- गुरु
- असली बॉस कौन है
- मुहाज़िरों यही तारीख है मकानों की
- संस्कृत विरोधी भाषण पर
- आर्थिक संप्रभुता क्या है?
- राजा बाबू की रामलीला
- फिल्म रिस्क का रिव्यू
- चलिए चलते है सलीमा
- पाँच बाते
- तंगहाल समाज मे कलाकार होने का मतलब
- प्रयाग दर्शन :सिविल लाइन्स
- समय के साथ चलो, नही तो
- चाँद के पार चलो
- भोजपुरी कहावतें
- आजु जो हरिंहि न शस्त्र गहाऊँ
- दम तोड़ती कहानियां
- खुल्ला खत, राहुल द्रविद के नाम
- कहानी: फ्राइडे
- मुझसे जुदा होकर भी जुदा कहाँ थे तुम
वैसे यह लिस्ट नारद पर भी मौजूद है कुछ अलग तरीके से। नोश फ़रमाएं।
तो जनाब! चर्चा शुरु करते है। आज की सबसे चर्चित पोस्ट रही मसीजीवी की जिसमे उन्होने एक बहुत ही वाजिब सवाल उठाया है कि हम पेशेवर चिट्ठाकारी से कितनी दूर है?
पेशेगत हिंदी ब्लागवाद से अभी कितना दूर हैं हम ? यह सब मैं हिंदी ब्लागजगत की निराशाजनक तस्वीर खींचने के लिए नहीं कह रहा हूँ बल्कि इसके ठीक विपरीत कारण से कह रहा हूँ।
मेरी मान्यता है कि अब वह समय आ गया मान लिया जाना चाहिए जबकि हिंदी ब्लाग पत्रकारिता अपना अगला कदम उठाए और यह कदम केवल एक ही दिशा में हो सकता है.....आगे की ओर। मुझे इंटरनेट विज्ञापन जगत की अधिक जानकारी नहीं पर हम में से कुछ चिट्ठाकार जरूर होंगे जो अन्य लोगों को राह दिखाएं, मसलन यदि किसी ब्लागर ने एडसेंस या किसी अन्य मार्ग से अपने लेखन के गुजारे लायक आमदनी का जुगाड़ कर लिया हो तो वह अपनी सफलता की कहानी को बांटे ताकि अन्य लोग प्रोत्साहित हों।
कितने अरसे के बाद ब्लागरों को हिंदी ब्लाग में विज्ञापन चस्पां करने शुरू करने चाहिए ?
क्या हिंदी ब्लाग पाठक विज्ञापनों को क्लिक करने से विशेष रूप से परहेज करते हैं ?
अंग्रेजी ब्लागों के पेशेगत हो जाने के अनुभव और सिद्धांत हिंदी ब्लागिंग पर कितना लागू होते हैं ?
तो क्यों ना सभी चिट्ठाकार इन सवालों के जवाब अपने अपने तरीके से अपने अपने चिट्ठे पर दें, इसी बहाने थोड़ी माथपच्ची भी हो जाएगी और हम एक दूसरे के विचार भी जान सकेंगे। प्रभाकर भाई ने हिन्दी व्याकरण के विभिन्न विराम चिन्हो पर बहुत अच्छी और जानकारी पूर्ण पोस्ट लिखी है, जरुर देखिएगा। संजय भाई परेशान है क्यों? आप स्वयं देखिए
पिछले कुछ वर्षो से जिस शास्त्र का सबसे अधिक बोलबाला रहा है, तो वह वास्तुशास्त्र है. शायद धार्मिक ग्रंथो से अधिक इस शास्त्र पर किताबें लिखी व पढ़ी गई होगी.हमारे लिए मुसीबत ऐसे बन रहा है कि एक तो हम ऐसे विचीत्र शास्त्रो के साथ अपने आपको असहज महसूस करते है वहीं इसने अपनी पैंठ डिजाइन क्षेत्र में भी बनानी शुरू कर ली है.
अपने शोएब भाई का दिल यूँ ही मचल गया, मीनार पर चढकर चाँद के पार जाने के लिए मचल उठे,बोले गुरु! तंगहाल समाज मे कलाकार होने का मतलब क्या होता है आप नही जानते, बस बहुत हो गया, आज मैने जान लिया कि असली बॉस कौन है। समय के साथ चलना पड़ेगा, इसलिए मुझे भारत मे नौकरी चाहिए। सबने समझाया कि जिद छोड़िए, हिन्दुस्तान से जुदा रहकर भी जुदा कहाँ है आप? चलिए चलते है सलीमा, राजा बाबू की रामलीला देखते है, वैसे भी सुना है फिल्म रिस्क का रिव्यू अच्छा है।
मिसिरा जी, वाराणसी मे हुए राज्यपाल के भाषण और उस पर उठे बवाल के बारे मे बता रहे है, वहीं प्रमेन्द्र आपको बनारस की गली मोहल्लों मे घुमा रहे है। अरे हाँ, मोहल्ले से याद आया कि आज तो अविनाश मोहल्ले मे मुन्नवर राणा के संस्मरण बता रहे है, पढिएगा जरुर। रवि भाई के रचनाकार पर एक कहानी फ्राइडे देखिए। तरुण चर्चा कर रहे है, दम तोड़ती कहानियों की। पंकज याहू को देर से समाचार देने के लिए कोस रहे है। अमित की पाँच बाते जरुर याद रखना ।सप्ताह के सप्ताह के स्वादिष्ट पुस्तचिन्ह और जुगाड़ी लिंक तो है ही।
भूले बिसरे चिट्ठे (पिछले साल इसी हफ़्ते सीरीज मे)
जर्मनी से ब्लॉगर रजनीश मंगला का आशा for Education|
निशांत की पोस्ट कुछ घिसी पिटी कुछ नयी।
आज का चित्र : महाशक्ति के फोटो ब्लॉग से
(चित्र मे पागल के चेहरे को देखिए, कंही कोई परेशानी, टेंशन दिखती है आपको? अल्हड, अलमस्त, दुनिया से बेगाना। अपनी अलग दुनिया बसाए हुए। देखा जाए तो हम सभी भी पागल है, कोई पैसे के पीछे पागल, कोई सत्ता के पीछे, कोई किसी और चीज के। हम सभी इस पागल के जितने खुश क्यों नही है?)
सभी लोग हो गए, कि कुछ लोग बचे है, जो बचे है, उन्हे संजय अपनी मध्यांह चर्चा मे लपेटेंगे। अच्छा भाई, अब हम चलते है।
सबसे चर्चित पोस्टृ...... वाह। जीते रहो।
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आज मैं ऊपर आसमॉं नीचे.....
aapne jo kaha usase sahmat hun link sabhi ke diye jaayen par charcha charchakaar ki pasand par ho.. par pratispardha ki baat se sahmat nahi agar ye bhaaw aa gaya to kya originality rah paayegi rachna me.. sahajta smaapat nahi ho jayegi aage badhne ki hod me..
जवाब देंहटाएंदेखिए जहाँ तक बात है सभी चिट्ठों की सूची देने की तो उसके लिए नारद है ही, बस आप नारद का अर्चीव वाला लिंक दे दीजिए। और हाँ आपका प्रतिस्पर्धा वाला विचार जँचा।
जवाब देंहटाएंभैये हम इस बात से सहमत नहीं हैं कि चर्चा जितनी,छोटी संक्षिप्त होगी उतने लोग पढ़ेंगे! काफ़ी कुछ आपकी प्रस्तुति पर निर्भर करता है कि आपकी पसंद क्या है! आप किस चिट्ठे को तरजीह देते हैं आदि-इत्यादि! चर्चा भी चिट्ठों की साइज अनुसार करेंगे तो शायद लोगों का रुझान कम होता जायेगा यह बात कैसे कही जा सकती है जब कि चिट्ठे का मानक साइज ही नहीं तय है! अब देखो कि अतुल श्रीवास्तव की पोस्ट मैंने तीन दिन बाद पढ़ी -इसलिये नहीं कि मैं वह लंबी है या कम अच्छी। बल्कि इसलिये कि मैं उसका पूरा मजा लेना चाहता था और जब पढ़ा तो आया भी। यही बात अनुराग श्रीवास्तव के लेखों के बारे में और अभी हाल में शुरु हुये मोहल्ले के लेखों के बारे में। इनके और तमाम दूसरे लेखकों के लेख मैं आराम से पढ़ना पसंद करता हूं। जहां तक बात है गुणवत्ता की तो कोई भी जानबूझ कर खराब नहीं लिखना चाहता!चिट्ठाचर्चा चर्चा का स्थान है कोई विश्वविद्यालय नहीं जहां दखिले के लिये कुस्ती हो। और इसमें चर्चा के लिये लिखने वाले का व्यक्तिगत सोच /रुझान भी महत्व रखता है। जो चिट्ठा एक चर्चाकार को अच्छा लग सकता है वही दूसरे को नितान्त सामान्य भी लग सकता है। समय के साथ सभी चिट्ठों की चर्चा करन वैसे भी दिन पर दिन मुश्किल होता जायेगा
जवाब देंहटाएंलेकिन अगर कोई सभी चिट्ठों की चर्चा करता भी है तब भी अच्छी, कम अच्छी, ज्यादा अच्छी पोस्ट का संकेत दिया जा सकता है। लिंक देने का कोई मतलब नहीं बनता जब आपके नारद में आर्काइब में यह आ सकता है! मुझे लगता कि अभी यह समय लोगों को प्रोत्साहित करने का है। जो लोग अभी लिखना शुरू कर रहे हैं उनकी चर्चा होती है तो उनका उत्साह बढ़ता है। यह कुछ इसी तरह है कि मात्र एक-दो मिनट के एन.डी. कवरेज की खबर कई ब्लाग-पोस्ट के लिये मसाला बनती है। इसी तरह चिट्ठाकार खास तौर पर नया , अपने चर्चा से उत्साहित होता है। अभी नये-नये लोगों को प्रतिस्पर्धा के बवाल में मत फंसाऒ। अगर किसी बहुत अच्छे ब्लागर की चर्चा करनी है तो वो अलग से करो , कोई राशनिंग थोड़ी है चर्चा में! जब मन आये तब करो ,जहां मौका मिले कर डालो कोई रोकता थोड़े है। और हां , यह सब हम बिना अन्यथा लिये लिख रहे हैं! फिर न कहना कि बताया नहीं!
मुझे लगता है, चर्चा कैसे की जाये यह उस दिन के चर्चाकार पर छोड़ दिया जाय. :)
जवाब देंहटाएंमेरी सोच भी संजय भाई से सहमत है कि यह विषय जब तक हम कोई स्थाई खाका न बना लें, तब तक चर्चाकार के विवेक पर छोड़ दिया जाना चाहिये. मात्र लिंक देना तो यूँ भी चिट्ठा चर्चा का उद्देश्य नहीं है, और न ही हम प्रतिस्पर्धा के दौर में आ पाये हैं. एक स्वतंत्र लेखन की परिपाटी रही है और चर्चा मात्र उसको बढ़ावा देने और किसी प्रविष्टी के सारांश को चर्चाकार के नजरिये से पेश करना चिट्ठाचर्चा का उद्देश्य.
जवाब देंहटाएंइस सारांश के आधार पर पाठक को बस एक ही जगह यह जानकारी प्राप्त हो जाती है, उसकी पसंदानुकुल कौन सी प्रविष्टियां है,और वह उन चिट्ठों पर जाकर फिर संपूर्ण प्रविष्टी पढ़ सकता है. बस मेरी सोच है, आशा है आप भी अन्यथा न लेंगे. :)
Mujhe to laga tha mahashakti...prayaag bole to allahaba ki pics dikha rahe hain....ye banaras kaha se aa gaya... :)
जवाब देंहटाएंवैसे अगर देखें तो आप जो भी कर रहे हैं या करने की कह रहे हैं वो इस ब्लोग (यानि कि चिट्ठा) के नाम के अनुरूप नही है। चिट्ठा चर्चा यानि कि ब्लोगस की चर्चा, लेकिन यहाँ होती है लिखे जाने वाले पोस्ट या लेखों की चर्चा।
जवाब देंहटाएंअच्दा लिखा है, मै आपका सर्मथन करना हूँ, जैसा कि मै सोच रहा था वैसी ही चर्चा है। मैने पहले ही टिप्पणी की थी कि कुछ एसे चिठ्ठे की चर्चा करना सम्भव न हो तो उसे एक नम्बर से दे लिया जाना चाहिये। और जिसकी चर्चा की जा सकें उसकी खुल कर चर्चा करों ।
जवाब देंहटाएंपुन: आपके प्रयास को सर्मथन
जनाब हम किसी परीक्षा में नहीं आये हैं की प्रतिस्पर्द्धा होनी चाहिए…ब्लाग का मतलब ही है कि
जवाब देंहटाएंस्वतंत्र विचार सामने रखें…कई ऐसे चिट्ठे हैं जो बहुत उम्दा हैं जैसे मंथरा उवाच को ही लें लेकिन मैने देखा की वहाँ काफी कम टिप्पणियाँ आईं तो पैमाना क्या होगा…यह तो बड़ा Judgemental हो जाएगा…हर कोई चाहता है कि वह अच्छा ही लिखे तभी तो ब्लाग पर लिखना शुरु किया है…लेखनी की पसंद व्यक्ति पर भी निर्भर करता है…!धन्यवाद!