घुघूती बासूती जी का प्लास्टर उतर गया,
पर वो कह रहीं हैं कि बइयाँ ना मरोड़ो बलमा
नमस्कार मित्रों!
मैं मनोज कुमार आज की चिट्ठा चर्चा लेकर उपस्थित हूँ। आशा है आपका सहयोग एवं मार्गदर्शन मुझे बेहतर चर्चा लेकर उपस्थित होने का साहस प्रदान करेगा।
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आज सुबह उठते ही जिस पोस्ट पर नज़र पड़ी उसे पढकर मन कसैला हो गया। और जब यह चर्चा समप्त कर रहा था तो जिस पोस्ट पर नज़र पड़ी उसने रही-सही कसर ही पूरी कर दी!
तो पहली पोस्ट पर चर्चा पहले और अंतिम पर अंत में!
अदा जी नाराज़ हैं या नहीं कह नहीं सकता पर वे बताती हैं कि “मेरे प्रिय पाठकों...आज से मैंने टिपण्णी का आप्शन हटा दिया है....आपलोग मेरी रचनाओं को पढ़ते हैं.... पसंद करते हैं वही मेरे लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है.....आपलोगों की हृदय से आभारी हूँ....अगर आप मुझसे कोई विशेष बात या कोई अपना विचार साझा करना चाहते हैं...तो मुझे ईमेल करें....मेरे प्रोफाइल में मेरा ईमेल उपलब्ध है:” पर जब उनसे पूछा गया ऐसा क्यों ? तो बोलीं तुमको क्यों बताएँ, ??
हर दिन तुमने न जाने हमें कितने मारे पत्थर
सम्हाल के रक्खा है देखो अब कितने सारे पत्थर
यह रचना व्यंग्य नहीं, व्यंग्य की पीड़ा है। पीड़ा मन में ज़ल्दी धंसती है।
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कहूँ याद करती !!
“आज एक ऐसे व्यक्ति का जन्म दिन है जिसके साथ का एहसास मेरे जीवन में बहुत महत्व रखता है। जो मुझे १५ वर्ष की उम्र में मिला और २३ वर्षों में जन्मों का स्नेह दिया। एक अद्भुत कलाकार , एक हंसमुख इंसान , मातृ -भक्त , एक सफल पिता और पति। ऐसा व्यक्ति जो हर रिश्ते की अहमियत जानता हो और उसे बखूबी निभाए, बहुत कम देखने को मिलते हैं। एक प्रश्न का जवाब मुझे आज तक नहीं मिल पाया है। किसी का जन्मदिन या शादी की वर्षगाँठ उसके नही रहने पर से ख़ुशी क्यों नहीं मनाते? क्या उस दिन दुखी होना लाजमी है? वह व्यक्ति यदि आपका प्रिय है तो वह व्यक्ति रहे न वह दिन आपके लिए शुभ ही होगा। क्यों न उस शुभ दिन को ख़ुशी से मनाया जाय? उसकी यादों को यादगार बनाया जाय।”
याद तेरी जो दिल में इनायत से कम क्या ?
याद करती कुसुम जिसे भूली ही कब थी ?
कुसुम ठाकुर जी की बेहद मार्मिक रचना ज़रूर पढें।
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Apoorv Shukla को सपने देख्नना अच्छा लगता है. त्रिवेणीनुमा-२ में कुछ हक़ीक़त से रू-ब-रू करा रहे हैं।
मुझसे छुपा के, उंगलियाँ खोजती हैं तमाम शब
खुलती हैं हजार खि़ड़्कियाँ, पर उनमें तू नही
’गूगल’ को तेरे नाम का, चेहरा नही पता
हर त्रिवेणी पर बस वाह..वाह!! करते रहेंगे आप ... शर्त है।
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दीपक जी ने कमाल की नज़्म लिखी है ।
दिल को बहला तमाम बातों से
क़त्ल कर के भी सफाई दे दी
मैं मर मिटा इस अदा पे 'मशाल'
मात पे भी मेरी बधाई दे दी... ज़रूर पढें।
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अजब ग़जब है ये रिश्तों की माया नगरी ... बता रहीं हैं वाणी गीत ग्रीटिंग कार्ड के टुकड़ों पर।
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सायबरस्क्वैटिंग बुरी नीयत से किसी दूसरे की गुडविल या ट्रेडमार्क के नाम से डोमेन नेम बुक कराने, उससे ट्रेफिक लेने या प्रयोग करने को कहते हैं। डोमेन नेम सिर्फ इन्टरनेट का पता भर नहीं है बल्कि के ट्रेडमार्क या गुडविल का प्रतिनिधित्व भी करता है। ढेर सारे उदाहरणों के साथ एक बहुत अच्छी जानकारी मिलेगी नीलोफ़र जी के आलेख सायबरस्क्वैटिंग और टायपो स्क्वैटिंग में ।
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इलाहाबाद विश्वविद्यालय के डायमंड जुबिली हॉस्टल में अध्ययन के दौरान , समकालीन कई पत्रिकाओं में प्रकाशित , अपनी एक रचना लेकर आए हैं डॉ. मनोज मिश्र।
नही शिकवा है इस बात का
तेरा साथ मुझको न मिल सका
मेरा ख्याल तेरे जेहन में है
बस इतना मुझको पयाम दे|
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दोस्तों हर जगह की अपनी कुछ मान्यताएं, कुछ रीति-रिवाज, कुछ संस्कार और कुछ धरोहर होते हैं। ऐसी ही हैं, हमारी लोकोक्तियाँ और लोक-कथाएं। इन में माटी की सोंधी महक तो है ही, अप्रतीम साहित्यिक व्यंजना भी है। जिस भाव की अभिव्यक्ति आप सघन प्रयास से भी नही कर पाते हैं उन्हें स्थान-विशेष की लोकभाषा की कहावतें सहज ही प्रकट कर देती है। इसी तरह का अनुपम प्रयास पढिए देसिल बयना में मनोज पर।
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प्रेम हिरदय में भर जाये,तुम सबका जीवन हरसाओ
बाधाएं दूर हो सबकी, तुम ऐसी करुणा बरसाओ
जीवन हो सरल सबका, काँटों को सुमन कर दो
प्रभु जी मन में अमन कर दो
मेरे जीवन में लगन भर दो
इस प्रर्थना के साथ ललित शर्मा मानते हैं कि ईश्वर नाम की कोई अदृश्य शक्ति है जो इस संसार,चराचर जगत को चला रही है नियंत्रित कर रही है. पूरा ब्रह्माण्ड उसी के अधीन है.
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निर्मला दीदी एक बेहद मार्मिक लघु कथा भूख प्रस्तुत कर रहीं हैं जो सीधे दिल तक उतर आती है। इसकी वेदना सिर्फ महसूस की जा सकती है, आप भी कीजिए।
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डा. मेराज अहमद प्रस्तुत कर रहे हैं महताब हैदर नक़वी की ग़ज़ल ख़ुदा को जितना वो ...
आसमानों से जिसका हो रिश्ता
वो ज़मीनों पे कब उतरता है
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रुचिगर सूचनाक मंच
यह एक ऐसा सूचना मंच है जो मैथिली में सूचनाएं प्रदान करता है। आज कुमार राधारमण बता रहे हैं कि बिहार में पोलियो 1 का एक भी केस नहीं। यह सचमुच एक बड़ी उपलब्धि है।
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गिरीन्द्र नाथ झा का मानना है कि सूफी दोहे में डूबने के बाद आपके पास शब्द कम पड़ जाते हैं क्योंकि आप शब्दों से काफी दूर निकल जाते हैं। ऐसे वक्त में आपकी अनुभूति का ग्राफ बढ़ जाता है। उन्हें लगता है कि हमें शब्दों से परे कुछ सोचने की कला सूफी दोहे सिखाती है। अमीर खुसरो के दोहे तो यही कहते हैं। पढ़िए और खुसरोमय हो जाइए..।
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संजय भास्कर की आदत यूं तो मुस्कुराने की है पर आज वो गंभीर हैं और पूछ रहे हैं कहीं ऐसा तो नहीं कि
हम इस दुर्लभ जीवन के
अनमोल क्षणों को
गवा रहे है ?
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एक जानकारी प्रस्तुत कर रहे हैं अन्तर सोहिल मुझे शिकायत है पर
श्री राज भाटिया जी भारत में आये हुए हैं और आज यानि शुक्रवार को दिल्ली में हैं।
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मोहन लाल गुप्त जी का मानना है कि कविता के बिना रोबोट बन जायेगा मनुष्य !
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समाज के दर्द को उबारा है सुलभ सतरंगी जी ने ग़ज़ल के शे’रों में। पर्यावरण जैसी समस्या के विभिन्न पक्षों पर गंभीरता से विचार करते हुए यह ग़ज़ल कहीं न कहीं यह आभास भी कराती है कि यह दर्द अपने सामने ही जीने पड़ेंगे हमें ।
जंगल पहाड़ उजाड़ कर ये कैसी तरक्की पाई है
चार दिन कि जिंदगी में कुदरत के सौ अज़ाब देखो
जमीन मकान आसमान सब यहाँ बेमानी है
हवा पानी को तरस रहे शहर बेहिसाब देखो
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यादों को संजोना तो महत्वपूर्ण है ही लेकिन दिल के अन्दर से निकालकर प्रस्तुत करना वह भी खूबसूरती के साथ और भी महत्वपूर्ण है। काफी दिलचस्प अंदाज में लिखे है डा. अनुराग पिछली तारीख के आइनों का डीप फ्रीजर।
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संगीता स्वरूप जी के पोस्ट में एक खास बात मुझे नज़र आती है वह यह कि हर पोस्ट में इतनी ख़ूबसूरत तस्वीर होती है कि आप उसे देखते ही रह जाते हैं फिर सडेनली ख़्याल आता है कि कविता भी पढनी है। बिखरे मोती में आज भी कुछ ऐसा ही है।
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पी. सिंह का मानना है कि
बातों बातों में बात बिगड़ जाती है |
शर्मिंदगी आखों से झलक जाती है ||
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नए चिट्ठे
इन्द्रजाल में नवपदार्पण करने वाले चिट्ठों में वृजेश सिंह बता रहे हैं मोहब्बत के शहर लखनऊ की बातें। मैंने तो इनका स्वागत किया .. आप भी इनका स्वागत करें!
बहुत ज्वलंत सवाल उठाया है धर्मेंद्र सिंह रघुवंशी ने आप भी पढें अन्नदाता के सवाल।
डा. वी.एन. त्रिपाठी बीमा व्यवसाय पर सलाह देते हुए सचेत करते हैं कि बीमा कराते समय आप जल्दबाजी न करें ।एजेंट से कहें कि पहले वह आपको पालिसी यास्कीम के शर्तो कीएक नमूना प्रति दे। यदि ऐसा नहीं हो सका तो पालिसी मिलने केबाद आप तत्काल पालिसी कोपूरी तरह पढ़ें , बार बार पढ़ें औरसमझें ; इसमें बिल्कुल आलस्य न करें।
आज चिट्ठा जगत से जुड़्ने वाले अन्य चिट्ठे हैं
SweetChillies(http://rahul-priyadarshi.blogspot.com/)
चिट्ठाकार:RahulPriyadarshi'MISHRA'
ALOKLOVESU(http://alokmohan12.blogspot.com/)
चिट्ठाकार:ALOKLOVESU
चिन्मयभारत(http://chinmaybharat.blogspot.com/)
चिट्ठाकार:आशुतोष
agnishila(http://agnishila.blogspot.com/)
चिट्ठाकार: AGNISHILA
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बूझो तो जानें पर आज का सवाल है मैराथन दौड़ की दूरी क्या है ? सही उत्तर मालूम है तो देर मत कीजिए।
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कुछ कड़ुवा सच बता रहे हैं भाई श्याम कोरी 'उदय'
जिंदगी की राहों में
जीत कर भी हारते हैं कभी
कभी हार कर भी जीत जाते हैं
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और अंत में एक नई शुरुआत के लिये यह कहना चाहूंगा कि
घुघूती बासूती जी का प्लास्टर उतर गया,
पर वो कह रहीं हैं कि बइयाँ ना मरोड़ो बलमा
क्यूंकि
जमकर रगड़ा लग गया
और हम खड़े खड़े,
हॉस्पिटल में पड़े पड़े
हाथ खूब मुड़वाते औ तुड़वाते रहे।
इस पर शिव कुमार मिश्र कहते हैं
“दर्द के बारे में मजेदार पोस्ट हर कोई नहीं लिख सकता न. लेबल वाला आईडिया भी बहुत मजेदार और 'अ-गंभीर' लगा. आप कभी-कभी अ-गंभीरता के सहारे गंभीर बातें कह जाती हैं. यह अ-गंभीरता बनी रहे, यही कामना है. बांह वगैरह मोड़ते समय गंभीर होना ज़रूरी है नहीं तो लोग समझेंगे कि अ-गंभीर दर्द हो रहा है.”
पर यह दर्द ऐसा कि डाक्टर भी दुविधा में दीखती हैं –
“फिजियोथेरिपिस्ट अधिक गम्भीर है या आपके घूघूत? आपकी वेदना अधिक गम्भीर थी या प्लास्टर का बोझ? प्लास्टर को फेंकना गम्भीर विषय था या हाथ की स्वतंत्रता?”
इन प्रश्नों पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है।
आप विचार करें। मैं चला। नमस्ते! अगले हफ़्ते फिर मिलूंगा।
चलते-चलते
आंधी की आशंका, पत्थर का डर है
बालू की नींव और शीशे का घर है
उपवन को थोड़ी बारीकी से देखो तो
हरियाली के भीतर बैठा पतझर है ।
(भूल-चूक माफ़ करेंगे। पहला प्रयास था।)
प्रयास अच्छा रहेगा
जवाब देंहटाएंहमको तो ये पूरा
आभास था
जो भास हुआ
सच हुआ।
बढ़िया चर्चा.
जवाब देंहटाएंपहला प्रयास
जवाब देंहटाएंहुई है कुछ आस
बी एस पाबला
nice
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रयास किया है !!
जवाब देंहटाएंमनोज ने अच्छी की है शुरुआत
जवाब देंहटाएंआगे भी दमदारी से रखे अपनी बात
Nishchay hi ek safal prayas.. aabhar aapka
जवाब देंहटाएंJai Hind... Jai Bundelkhand...
... बेहतरीन संकलन...प्रभावशाली प्रस्तुति !!!
जवाब देंहटाएंचलते-चलते थक मत जाना!
जवाब देंहटाएंसाथी साथ निभाना!
बहुत सुन्दर चर्चा!
बहुत अच्छा लगा। चह जानकर भी खुशी हुई कि यह आपका पहला प्रयास था । आपका विश्लेषण का स्टाइल बेहद पसंद आया । बधाई एवं शुभकामनाएं......
जवाब देंहटाएंस्वागत है मनोज।।
जवाब देंहटाएंजारी रहें
यह चर्चा का तरीका बहुत आकर्षक लग रहा है। आशा है आगे भी ऐसी ह चर्चाएँ लाते रहेंगे।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
charcha mandal mae swaagat haen achcha lagaa aap ko padh kar
जवाब देंहटाएंअच्छी एवं सारगर्भित चर्चा ।
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा रही । बधाई ।
जवाब देंहटाएंआपकी चर्चा का अंदाज़ निराला है...
जवाब देंहटाएंकितने चिट्ठों का लिंक निकाला है...
पहला प्रयास जब बेमिसाला है
आगे भविष्य काफी उजाला है ...
बहुत बढ़िया...
विस्तृत और रोचक अंदाज
जवाब देंहटाएंआपकी चर्चा का अंदाज़ निराला है
जवाब देंहटाएंएक से बढकर एक लिक निकाला है
जवाब देंहटाएंपहला प्रयास इतना धाँसू और फाँसू ( फ़ुरसतिया ™ ) है, कि आग्रह है ऎसे प्रयास नित होते रहें ।
मन में एक प्रश्नचिन्ह टँकित हो, उससे पहले ही निकल लेते हैं, राजमार्ग से ( पतली गली पर पहरा लगा है © )
धन्यवाद मनोज जी । वैसे मैने किसी चर्चा मंच पर ना जाने का मन बनाया था मगर अपने छोटे भाई के मंच पर आने से रह न सकी शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंआदरणीय मनोज सर, आपको बधाई । मुझे उपरोक्त चर्चा बहुत ही अच्छी लगी । आपके प्रस्तुतीकरण का अंदाज अच्छा लगा । धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआगाज़ है इतना मतबाला..... उरूज का आलम क्या होगा..... ?
जवाब देंहटाएंथोडा अंग्रेजी में लिख दूँ...... 'mind blowing........ !!!!
पहली बार में ही छा गए सर जी. अच्छा संकलन किया है.
जवाब देंहटाएंबहुत से चिट्ठों को लिंक देने के लिए धन्यवाद !!! आपकी पहली चर्चा चर्चित रहने वाली है ... शानदार प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंअच्छी रंग-बिरंगी चर्चा। बहुत अच्छा लगा इस चर्चा की शुरुआत होते देखकर। स्वागत है भाई! अब नियमित चर्चा करते रहिये। बधाई!
जवाब देंहटाएंप्रोत्साहन और हौसला आफ़ज़ाई के लिये आप सभी लोगों का आभार!
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