ज्ञानजी ने घेटो-रूपक को आगे बढ़ाकर इसे पूरे शहर में तब्दील किया है। साईबर्बिया में नए बाशिंदे के आने बसने की पूरी प्रक्रिया-
नया ब्लॉगर आता है। अपना स्पेस तलाशता है। पुराने जमे लोग अपने में ही मगन रहते हैं। नया सोचता है कि वह कहीं ज्यादा टैलेण्टेड है। कहीं ज्यादा ऊर्जावान। स्थापित ब्लॉगर गोबर भी लिखते हैं तो बहुत तवज्जो मिलती है। उसे नायब लिखने पर भी कोई नोटिस नहीं करता। सो नया बन्दा अपने घेट्टो तलाशता है। हिंसा (गरियाने) का भी सहारा लेता है। डोमेन हथियाता (जमीन खरीदता) है। रीजनल आइडेण्टिटी की गुहार लगाता है। चिठ्ठाचर्चा के पर्याय बनाता है। सोशल नेटवर्किंग तेज करता है। कोई कोई बेनामी गन्द भी उछालता है। घर्षण बढ़ता है। स्थापित उनकी लैम्पूनिंग करते हैं और नये ब्लॉगर स्थापितों की। बस इसी गड्डमड्ड तरीके से साइबर्बिया आबाद होता है। बढ़ता है
वैसे किसी रूपक को ज्यादा खींचने और इसके हर अंग का साम्य खोजने की अपनी दिक्कतें हैं तथा मानविकी में रूपकों को केवल स्टाईल के महत्व का माना जाता है पर हम कौन सा इसपर थीसिस लिख रहे हैं एक चर्चा भर ही तो कर रहे हैं इसलिए हमने सोचा इसी कंटेप्रेरी भाषा में बात जारी रखी जाए और आज के ब्लॉगशहर की चिरकुट गलियों में घूमा जाए- तो पहले पहल तो साइबर्बिया की नई इमारत बज़्ज की बात करते हैं...उसके आते ही कईयों ने बज़्ज किया कि भई इससे गोपनीयता का बैंड बज सकता है फिर निजता प्रहरियों ने एक एक कर इससे बचने या इसे निष्क्रिय करने के तरीके खोजने शुरू किए। तो आप अपनी निजता के मानक तय करें। हम अभी फेंस सिटर हैं हमें लगता कि अभी तेल की धार देखने दो तब इलाज खोजेंगे।
इसी शहर की एक छोटी गली में चन्दन कुमार ढाका में फर्राटा जीत ले जाने वाली पाक धाविका की विजय पर जश्न कर रहे हैं-
जब नसीम पाकिस्तान वापस लौंटी तो उनका जोरदार तरीके से स्वागत हुआ। इन खेलो के 26 साल के इतिहास में नसीम पहली पाकिस्तानी महिला हैं, जिन्होंने 100 मीटर के दौड़ में गोल्ड मेडल जीतकर पाकिस्तान का नाम रोशन किया है. इस महिला खिलाड़ी ने आतंकवाद की चोट से घायल मुल्क के लोगों के लिए खुशी का जो अवसर दिया है, उसकी तुलना नहीं हो सकती है
अब शहर बसेगा तो मौसम बनेगा-बिगड़ेगा ही, फिलाडेल्फिया से मौसम की मार का नजारा पेश कर रहे हैं हरि प्रसाद
चलिए अब इस रीयल के घालमेल को छोड़कर साइबर्बिया की साइबरी दुनिया में ही सीमित रहें और पूछें कि सही गलत में सही रंग कौन सा है काला कि सफेद ? सवाल 'मोहतरमा' घुघुती बासूती ने पूछा है (विद नॉटी अपोलॉजी टू डीयर मिथिलेश) :)
जीवन में हम अधिकतर बातों को सही या गलत, काले या सफेद, अच्छे या बुरे के साँचे में डालने के यत्न में लगे रहते हैं। यह हमारे लिए सुविधाजनक होता है। इससे मस्तिष्क को कम से कम कष्ट होता है। सबसे बड़ा लाभ तो यह होता है कि हमें अधिक चिन्तन भी नहीं करना पड़ता । किसी अन्य के बनाए मूल्यों को हम जीवन भर अपना कहकर जीते चले जाते हैं, उनपर न विचार करते हैं, न प्रश्न करते हैं,
हमें खुद हमेशा से लगता है कि ब्लैक-व्हाइट में सोचने वाले जिंदगी में बहुत खुश रहते हैं उन्हें सब साफ दिखता है...मैं सही तू गलत...एक्स सही वाई गलत..पीरियड। सारा कष्ट ग्रे मटेरियल वालों के ही लिए है।
शहर होगा तो घेटो बसेंगे जो बाहर से जाने वाले बसाएंगे अब ऐसे में बेचारे शिवसेनिकों को कितना काम करना पड़ेगा शहर को साफ रखने की कोशिश में। ये मेहनती शिवसैनिक तब तक 'काम पर' लगे रहने वाले हैं जब तक कि बोरियत गति को प्राप्त न हो जाएं, ऐसा किसी ऐरे गैरे ने नहीं खुद नाम में ही शिव ढो रहे शिवकुमार जी ने बाकायदा ठाकरे भाउसा से पूछकर बताया है-
ठाकरे जी : यही तो असली राजनीति है. अब तुम्ही बताओ. क्या तुम इस बात को स्योर होकर कह सकते हो कि शिव-सेना पत्रकारों का इस्तेमाल नहीं कर रही? नहीं न....यही असली राजनीति है. मीडिया शिव-सेना का इस्तेमाल कर रही है. शिव-सेना मीडिया का इस्तेमाल कर रही है. फिल्म प्रोड्यूसर शिव-सेना का इस्तेमाल कर रहा है. शिव-सेना प्रोड्यूसर का इस्तेमाल कर रही है. असल में यह इस्तेमाल करने का युग है.....
नाउ गैटिंग बैक टू ग्रेट घालमेल आफ रीयल एंड वर्चुअल, आपके पास दो विकल्प हैं या तो अजय से पिछले घालमेल का ब्यौरा (चौथी किस्त) हासिल करें या फिर बोरिया बिस्तर बांधें और सियाचिन में ऊँचे लोग ऊँची पसंद वाले घालमेल के लिए तैयार हो जाएं।
दिल्ली : सभी ब्लोग्गर्स का एक साथ मानना था कि यदि ऐसा संभव है तो सामूहिक रूप से इस दिशा में काम किया जाना चाहिए और एक आध को पकड कर बेकनकाब किया जाना चाहिए
सियाचिन : शाम को ४ बजे आपको नींबू की शिकंजी वितरीत की जायेगी. तदुपरांत आपकी मन मर्जी से दो घंटे आप बिता सकेंगे. इन दो घंटे मे आप चाहें तो किसी की बुराई करें...या संचार रूम में जाकर अनाम टिप्पणीयां करें...गरियाये प्रसंशियाये...आपकी मर्जी अनुसार कार्य करें...
चिरकुटर्बिया में ओर भी बहुत कुछ चल रहा है पर क्या करें रीयल दुनिया की चिल्ल पों ऐसी है कि बखत कम पड़ रहा है इसलिए फिलहाल हमें इजाजत दें।
nice
जवाब देंहटाएंअच्छा है .
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा। पर लिखी किसने है,, यह पता नहीं चल रहा है।
जवाब देंहटाएंमहाशिवरात्रि के पावन पर्व की शुभकामनाएँ!
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा के लिए बधाई!
शंकर जी की आई याद,
बम भोले के गूँजे नाद,
बोलो हर-हर, बम-बम..!
बोलो हर-हर, बम-बम..!!
मेरा मानना थोडा जुदा है श्रीश ,सागर ,अपूर्व,डिम्पल ,दर्शन ..मिहिर ,संदीप पाण्डेय ,नीरा ,निशांत ,कार्तिकेय ,संजय व्यास ,किशोर ,दीप्ति ,नंदनी .,अमरेन्द्र ....अभी इतने ही नाम याद आ रहे है ..जैसे नये युवा लोग न केवल बेहतर लिख रहे है ....बल्कि वास्तव में" स्पेस "का मुकम्मल इस्तेमाल कर रहे है ...गूगल भेदभाव नहीं करता न उम्र देखता है .ना तजुर्बे टटोलता है ...आप जैसा सोचते लिखते है उसे ज्यू का त्यु उतार देता है .......यानी इस माध्यम का इस्तेमाल आप कैसे करते है आप परनिर्भर है .....
जवाब देंहटाएंek dam jhakkas link mile
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