बेटी से बहू तक की सारी सीढियाँ मैं तो तय कर गयी पर वो लड़की ?
नमस्कार मित्रों! मैं मनोज कुमार एक बार फिर शनिवार की चिट्ठा चर्चा के साथ हाज़िर हूँ। इसमें शुक्रवार की सुबह छह बजे से रात १२ बजे तक के प्रकाशित हुए कुछ चिट्ठों की चर्चा की गई है। कल महा शिवरात्री का पर्व था अत: शुरुआत करते हैं शिव जी को समर्पित कुछ पोस्टों की चर्चा से।
महाशिवरात्रि पर
बिहार के मिथिलांचल में शिव और शक्ति की पूजा होती है। कोई भी पर्व हो ब्याह हो या उपनयन वह, बिना भोला बाबा और भगवती के गीत के वह संपन्न नहीं हो सकता है। महाशिवरात्रि के अवसर पर कुछ भगवती गीत, महेशवाणी और नचारी प्रस्तुत कर रहीं हैं कुसुम ठाकुर।
(१)
कखन हरब दुःख मोर
हे भोलानाथ।
दुखहि जनम भेल दुखहि गमाओल
सुख सपनहु नहि भेल हे भोला ।
(२)
हम नहि आजु रहब अहि आँगन
जं बुढ होइत जमाय, गे माई।
एक त बैरी भेल बिध बिधाता
दोसर धिया केर बाप।
तेसरे बैरी भेल नारद बाभन ।
जे बुढ अनल जमाय। गे माइ ।।
(३)
ओहि बुढ़वा के बारी नय झारी
पर्वत के ऊपर घरारी..........2
हिमाचल किछुओ ने केलैन्ह बिचारी।.......2
(४)
भल हरि भल हरि भल तुअ, कला।
खन पित बसन खनहि बघछला ।।
(५)
आजु नाथ एक व्रत महा सुख लागल हे।
तोहे सिव धरु नट भेस कि डमरू बजाबह हे। ।
*** *** ***
झरोखा पर पूनम श्रीवास्तव कह रही हैं भोले बाबा के नाम
भंग का रंग जो चढ़ा भोले को तो इधर उधर फ़िर डोले
फ़िर सोचे जरा रंग जमा लें डम डम बजा के डमरू बोलें।
*** *** ***
त्यागपत्र पर भी महाशिवरात्री का पर्व मनाया जा रहा है। प्रवचन शुरू है। व्यासजी कहते हैं, 'पर्वतराज को कन्यादान की चिंता है। पारवती को उसके रूप और गुणों के अनुरूप वर मिलेगा या नहीं... ? भाई, मां-बाप का सबसे बड़ा सपना साकार तब होता है जब वह कन्यादान कर देता है। अब पार्वती के भी हाथ पीले हो जाएं तो हमारा बैतरणी पार हो।”
*** *** ***
शिव की लीला अपरम्पार,
व्रत-पूजन करता संसार,
बोलो हर-हर, बम-बम..!
बोलो हर-हर, बम-बम....
सुंदर शिव-स्तुति ...... लेकर आये हैं डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक।
*** *** ***
महा शिवरात्री पर अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए रानी विशाल काव्य मंजुषा पर एक बहुत ही आकर्षक चित्र लगा कर कहती हैं बम बम लहरी बम भोले नाथ
रूप अनोखा अद्भूत ऐसा
नागो को लिये है साध
अंग भभूती, भाल चन्द्रमा
डमरू त्रिशूल, धरे दोउ हाथ
बम बम लहरी बम भोलेनाथ
बम बम लहरी बम भोले नाथ
*** *** ***
जी हां आज शिवरात्रि है! डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक” बता रहे हैं “गली-गाँव में धूम मची है…..”
गली-गाँव में धूम मची है, फागों और फुहारों की।।
मन में रंग-तरंग सजी है, होली के हुलियारों की।।
गेहूँ पर छा गयीं बालियाँ, नूतन रंग में रंगीं डालियाँ,
गूँज सुनाई देती हमको, बम-भोले के नारों की।।
इस गीत में चित्रात्मकता बहुत है। आपने बिम्बों से ही नहीं सुंदर-सजीव चित्रों से भी इसे सजाया है।
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स्वागतम ... नए चिट्ठे
आज १५ नये चिट्ठे जुड़े हैं चिट्ठाजगत के साथ। इनका स्वागत कीजिए।
आखर कलश (http://aakharkalash.blogspot.com/)
चिट्ठाकार: नरेन्द्र व्यास
इस पर नीरज गोस्वामी की ग़ज़लें पोस्ट कॆ गई हैं।
ऐसा देश है मेरा (http://kranti2010.blogspot.com/)
चिट्ठाकार: विनोद बिश्नोई
हालांकि सिस्टम के खिलाफ लडऩा इतना आसान नहीं है, जितना आज के युवा फिल्में देखकर उद्वेलित होकर कुछ कर गुजरने की ठान लेते हैं। अपने आदर्शो पर चलते हुए सिस्टम से ही जस्टिस की चाह उसे प्रताडऩा, पिटाई, फर्जी मुकदमों तक पहुंचा देती है। अंतत: कोई रास्ता न देख वह कानून को हाथ में लेने के लिए मजबूर होता है। रुचिका गिल्होत्रा केस में भी शायद यही हुआ है। विनोद बिश्नोई एक बहुत ही गंभीर आनेख प्रस्तुत कर रहे हैं।
हैहयवंशीय क्षत्रिय ताम्रकार समाज आपका हार्दिक अभिनंदन करता हैं । (http://tamrakarsamaj.blogspot.com/)
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चिट्ठाकार: Abhijit Bhatt
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अपनत्व पर्यावरण पर अपनी चिंता बता रहीं हैं
लेकर प्रगति की आड़ ।
पहाड़ नदी नालों
सभी से किया हमने
जी भर खिलवाड़ ।
इस रचना में यथार्थबोध के साथ उनकी कलात्मक जागरूकता भी स्पष्ट है।
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विधाता की वह अमूल्य कृति कौड़ियों के मूल्य बड़ी बेरहमी से लुटी गयी , रूद्राणी की वीणा का सबसे सुरीला तार आलाप भरते ही टूट गया| सुभद्रा की कोख और उत्तरा की मांग ने युद्ध के जाज्वल्यमान इतिहास में अनमोल कड़ी जोड़ कर सदा के लिए विदा ले ली| कुरुक्षेत्र की रणभूमि के चप्पे -चप्पे को याद है कि वह अभिमन्यु भी एक क्षत्रिय था| ज्ञान दर्पण पर चित्रपट चल रहा है और दृश्य बदलते जा रहे हैं | आप ज़रूर देखें।
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दिल्ली के बारे में कई नयी जानकारिया दे रहीं हैं अदा जी। ऐतिहासिक स्थलों पर भ्रमण का महत्व तब और भी बढ़ जाता है जब आपको इतिहास की जानकारी भी हो। एक गाइड की तरह अदा जी कई गूढ रहस्य पर से चित्रों से सजी इस रचना में पर्दा उठा रहीं है।
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होली का माहौल बन रहा है. रंग-अबीर-गुलाल और गारी-ठिठोली भी चलेगी जम कर भंग भी घुटेगी और ठंडाई के साथ छनेगी-चढ़ेगी. ऐसे हालत में कभी कभी लोग अपने घर का ही रास्ता भूल जाते हैं या बुरा ना मानो होली है कह के थोड़ी "मौज लेने" के चक्कर में रहते हैं. ललित शर्मा जी के साथ आप भी देखिए
जब भंग सर चढ़ जाये, होते उल्टे काम
श्याम लाल के घर में, घुसे होलिया राम
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प्रेम के स्वरुप को पारिभाषित करती दीपक जी की एक कविता का आनंद लीजिए यहां ... जिसमे वे बताने की कोशिश कर रहे हैं कि प्यार में मैं कैसा रिश्ता होना चाहिए। मुलायजा फरमाएं---
देह नहीं बस नेह का रिश्ता
बिना किसी संदेह का रिश्ता
आती-जाती साँसों जैसा
एक सरल संवेग का रिश्ता
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पूजा उपाध्याय की आधा दिन और तीन जिंदगियाँ एक असाधारण शक्ति का पद्य है। इस कविता के बुनावट की सरलता और रेखाचित्रनुमा वक्तव्य सयास बांध लेते हैं, कुतूहल पैदा करते हैं। कवयित्री का सत्य से साक्षात्कार दिलचस्प है।
शायद ऐसी मिट्टी बिहार की ही हो सकती है
गंगाजल से सनी,
जिंदगी की भट्ठी में झोंकी गयी
मूरत की भी जबान सलामत और तेज
जिसके लिए सत्य का सुन्दर होना अनिवार्य नहीं
यह रचना दृष्टि की व्यापकता के चलते हर वर्ग में लोकप्रिय होगी।
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एक बार फिर हाजीर हूँ मैं अब मैं ना हिम्मत हारूँगा कह रहे हैं मिथिलेश दुबे। आपका आना और टिप्पणियों के माध्यम से घुघूती बासूती जी से संवाद बहुत अच्छा लगा। यही तो है जो रिश्तों की डोर को मज़बूत करता है। आपकी ईमानदारी व प्रयासों की जितनी भी तारीफ की जाए कम है।
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मच्छरों के साथ-साथ कई बार सपने की भी हत्या हो जाती है। मगर आप ऐसा मत होने दीजिए, उस सपने को लिख डालिये। देखिए शरद जी ने कितना अच्छा वर्णन किया है। इस वर्णन से आप यह भी समझ जायेंगे कि सपने और अवचेतन का क्या सम्बन्ध होता है और वे आप सब लोगों को कितना याद करते हैं। इस सपने को देख कर (हां इतना रोचक विवरण है कि .. इसे देखकर ही कहना पड़ेगा) वाणी जी कहती हैं “क्या कहें ... धन्य भये ...किसी के सपनो में तो आये ....पिछले दरवाजे से सही ...( हा हा हा )...वो भी गाना गाते (बेटियां तो ऐसी अघाई हैं हमारे गाने से कि लोरी भी सुनना पसंद नहीं करती )... मगर पहले कन्फर्म कर लू कि वाणी ब्लॉगजगत में एक ही है ना ...यदि वाणी मैं ही हूँ तो गाना सही सलेक्ट किया ....आपको नहीं लगता इस व्यवहारिक झूठ छल प्रपंच की दुनिया में अपने आपको बच्चा बनाये रखना दुष्कर कार्य है ....इसके लिए हमारा किसी के सपनो में आना वाजिब है ....अब बताये इतनी गंभीर बात को ऐसे मजाक में लेने का काम तो कोई बच्चा ही कर सकता है ना ...”
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अपने देश में जहां पर हिन्दी से ज्यादा महत्व अंग्रेजी का हो गया है, ऐसे में यह सोचने वाली बात है कि क्या हम भारतीय अंग्रेजी का बहिष्कार कर पाएंगे। कम से कम को तो नहीं लगता है कि भारत में अंग्रेजी का बहिष्कार संभव है। आज पढ़े-लिखे होने के मायने यही है कि जिसको अंग्रेजी आती है, वही पढ़ा-लिखा है, जिसे अंग्रेजी नहीं आती है, उसे पढ़ा-लिखा समझा नहीं जाता है। अंत तक पठनीयता से भरपूर होना ही इस आलेख की सार्थकता है जिसके जरिये विषय (क्या अंग्रेजी का बहिष्कार कर पाएंगे हम) को समझने का ईमानदारी से प्रयास किया गया है और यही इसका निहितार्थ भी है। राजकुमार जी ने खुलकर बातें सामने रखी है, दरअसल यह विमर्श का निमंत्रण है।
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राजभाषा की बात चली तो यह बताते चलें कि कुछ सरकारी कर्मचारियों ने राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिये एक कम्युनिटी ब्लाग शुरु किया है राजभाषा हिन्दी। आप भी यहां योगदान दीजिए और इन्हें प्रोत्सहित कीजिए।
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यह शिविर इतनी ऊंचाई पर इस लिये रखा है कि आजकल मोटापे की समस्या बहुत ज्यादा है. और चूंकी ब्लागर्स में इस समस्या की अधिकता देखी जारही है तो ब्लागर भाई बहनों के स्वास्थ्य की रक्षा हेतु यह शिविर आयोजित किया गया है.
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सुनीता शर्मा जी बताती हैं Emotion's यानि भावनायें क्या होती है? शायद एक अनदेखा एहसास जिसे कुछ महसूस करते है और कुछ नही कर पाते। जिनकी भावनायें होती है वो इन्सान होते है जिनकी नही वो क्या होते है पता नही..... !! और आज वो पूछ रहीं हैं
जिन्दगी ने जिन्दगी को क्या दिया
नफरत और गम
इसके सिवा कुछ न दिया ?
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आपने ख़्वाबों के पेड़ उगाए हैं? दिगम्बर नासवा जी बताते हैं
मेरे जिस्म की
रेतीली बंजर ज़मीन पर
ख्वाब के कुछ पेड़ उग आए हैं
बसंत भी दे रहा दस्तक
चाहत के फूल मुस्कुराए हैं
एक खूबसूरत भाव के साथ कविता बहुत अच्छी है।
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रविरतलामी जी कह रहे हैं
कोई जोकर, कोई शूर्पणखा तो कोई रावण
राजनीति में यारों कम पड़ते हैं पत्ते बावन
मेरा भी मकां होता सत्ता के गलियारो में
सुना है तो वहां होता है बारहों मास सावन
मैं भी ख्वाब ले के आया था दुत्कारा गया
कहते हैं कि मिसफिट हैं यहाँ जो हैं पावन
आज की राजनीति पर व्यंग्य करती इस कविता में उपहास, ठिठोली और क्रीड़ापरकता के साथ आक्रमकता भी है जो इसे विशेष दर्जा प्रदान करती है।
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मौसम की मेहरबानी पर भरोसा करेंगे, तो शीत से निपटते-निपटते लू तंग करने लगेगी। मौसम के इन्तजार से कुछ नहीं होगा। वसन्त अपने आप नहीं आता ; उसे लाया जाता है। सहज आनेवाला तो पतझड़ होता है, वसन्त नहीं। इसी विचार को दर्शाता वसन्त, विद्यापति, नायिका और परसाई शीर्षक लेख शिवकुमार मिश्र और ज्ञानदत्त पाण्डेय जी के ब्लाग पर पढें।
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चलिये आप को भारत ले चलाता हू , कुछ दिनो के लिये.... जहां बहुत सी बांहे मेरा इंतजार कर रही है ... ये कह रहे हैं राज भाटिया जी जो कई दिनों से आराम फरमा रहे थे आसमान से .. आसमान में .. आसमान का फोटो लगा कर बड़े प्यार से दिल की बातें बता रहे हैं।
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संगीता स्वरूप जी की कविता फिर कैसे मल्लहार सुनाऊं इतनी मार्मिक है कि सीधे दिल तक उतर आती है । देखिए
अंसुअन की स्याही सूख गयी मैं कलम कहाँ डुबाऊं
अपनी मन की व्यथा कथा मैं किन शब्दों में कह जाऊं
आंधी से एक दीप हैं लडता , कैसे मैं इसे बचाऊं
रिश्तो के झूठे बंधन हैं , कैसे जीवन चक्र चलाऊं
कंठ गरल से रुंधा हुआ है, कैसे अब मैं गाऊं
सूखा छाया है मन पर , फिर कैसे मल्लहार सुनाऊं
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भारत के नौनिहालों को समर्पित बच्चे हैं नादान शीर्षक गीत लेकर आये हैं अशोक शर्मा जी ..
बच्चे हैं नादान, मगर हम भारत की पहचान बनेंगे|
पढ़-लिखकर विद्वान बनें हम, रोशन इसका नाम करेंगे||
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१४ फरवरी को जन्मे अंशुमान आशु का मानना है कि वैलेंटाइन डे को मनाने वाले लोगो के लिए तो ये दिन महत्त्वपूर्ण है ही, इसका विरोध करने वालो के लिए भी ये दिन उतना ही महत्त्वपूर्ण है। इन्होंने विषय की मूलभूत अंतर्वस्तु को उसकी समूची विलक्षणता के साथ बोधगम्य बना दिया है। कहते हैं हम तो 365 दिन प्यार करने वालों में हैं, हमें किसी एक दिन की जरूरत नहीं अपने प्यार के इज़हार करने के लिए। भारतीयता पर पूरा विश्वास है हमें। हमने कभी 'हीर जयंती' या 'राँझा दिवस' नहीं मनाया। कभी सोनी या महिवाल की पुण्य तिथि भी नहीं मनाई। हमने तो इन्हें अपने मनों में ही बसाया है, प्यार को इनके नाम से ही हमेशा पवित्र माना है। पढिए .. बहुत अच्छा आलेख है।
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हमारा “राष्ट्रगान” पहली बार कब और कहां गाया गया था? क्या आप जानते हैं? तो जाइए बूझो तो जाने पर और जवाब दीजिए।
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कटघरे में न्यायपालिका को लाते हुए अजय कुमार झा कहते हैं जब पूरा देश समाज न्यायपलिका की तरफ़ आस सेदेख रहा है , न्यायपालिका पर निरंतर बढतेदबाव को कम करने कीतमाम कोशिशें की जा रही हैं तो ऐसे में न्यायपालिका का इस तरह से डगमगाना बहुत ही चिंता की बात है ।
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अनिल कांत जी मिर्ज़ा ग़ालिब के विभिन्न पक्षों पर आलेख का ख़ज़ाना लुटा रहे हैं आज वे चर्चा कर रहे हैं उनके निवास के बारे में और बताते हैं कि ग़ालिब का यूँ तो असल वतन आगरा था लेकिन किशोरावस्था में ही वे दिल्ली आ गये थे । कुछ दिन वे ससुराल में रहे फिर अलग रहने लगे । चाहे ससुराल में या अलग, उनकी जिंदगी का ज्यादातर हिस्सा दिल्ली की 'गली क़ासिमजान' में बीता ।
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संजीव तिवारी जी पूछ रहे हैं कब तक होता रहेगा यह प्रयोग? कहते हैं
कब तक सोता रहेगा मेरा मन
इन झूठे मायावी ऐयासी के आवरणों को ओढ
अशक्त, असहाय लोगों पर लिखी यह कविता काफी मर्मस्पर्शी बन पड़ी है। आपकी कविता का अलग महत्व है, यह हमारे सोंदर्यबोध को धक्का देती है, उसे तोड़ती है। इसीलिए ऐसी कविताओं का अपना एक अलग महत्व है।
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समस्याओं के प्रति नजरिया बदलना ही काफी हद तक समस्याओं से निजात दिला देता है. पढिए निर्मला दीदी की कहानी नई सुबह का समापन किस्त। समाज को नई राह दिखाती यह एक बेहतरीन कहानी है जिसमें एक ओर तो आधुनिक परिवेश में नारी के मनोभावों को समझते हुए अपरिहार्य हो चुकी समस्या को उठाया गया है वहीं दूसरी ओर सुंदर समाधान भी दिया गया है कि संवाद ही समस्याओं के समाधान का रास्ता है.
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श्रेष्ठ सृजन
इस सप्ताह का श्रेष्ठ सॄजन जिस ब्लाग से आया वह मेरे हिसाब से है क्रिएटिव मंच । इसके आयोजन के तहत एक चित्र दिखाया जाता है और चित्र को देख कर एक उपयुक्त शीर्षक सुझाना होता है। शीर्षक बताने के अतिरिक्त चित्र से सम्बंधित कोई सुन्दर सी तुकबंदी ... कोई कविता - अकविता... कोई शेर...कोई नज्म..कोई दिल को छूती हुयी बात कही जा सकती हैं ! इस सप्ताह का परिणाम आ गया है और विजेता हैं राम कॄष्ण गौतम जी। चौथी सॄजन प्रतियोगिता शुरु हो चुकी है आप इसमें १३ तारीख की शाम पांच बजे तक भाग ले सकते हैं। तो देर किस बात की आप भी इसमें भाग लीजिए और अपने सृजन को एक नई दिशा दीजिए!!
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आज का सबसे ज़्यादा पसंदीदा
चिट्ठा जगत पर दिख रहे सबसे अधिक टिप्पणियों के आधार पर ...
खुशदीप बता रहे हैं सम्मान नहीं, मेरे लिए आपका प्यार ही सब कुछ है। इस पर अजित वडनेरकर जी का कहना है डटे रहो खुशदीप भाई, सफर लम्बा है। जिन्हें नहीं जानते थे वे लोग आते हैं, फोन करते हैं और बतियाते हैं। और क्या सम्मान होता है? और फ़ायनल कमेण्ट् देते हुए अनिल पुसादकर कहते हैं “एक बात और खुशदीप भाई जो खरा होता है वो कभी नही बदलता जैसे झण्डू का च्यवनप्राश,आप च्यवनप्राश और मैं झण्डू।”
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हमारी पसंद
आज की हमारी पसंद है गिरिजेश राव जी की कविता हे देश शंकर! इसमें चित्रात्मकता बहुत है। आपने बिम्बों से इसे सजाया है। ध्वनि बिम्ब या चाक्षुष बिम्ब का सुंदर तथा सधा हुआ प्रयोग। बिम्ब पारम्परिक नहीं है – सर्वथा नवीन। इस कविता की अलग मुद्रा है, अलग तरह का संगीत, जिसमें कविता की लय तानपुरा की तरह लगातार बजती रहती है । अद्भुत मुग्ध करने वाली, विस्मयकारी।
हे देश शंकर!
फागुन माह होलिका, भूत भयंकर -
प्रज्वलित, हों भस्म कुराग दूषण अरि सर -
मल खल दल बल। पोत भभूत बम बम हर हर ।
हे देश शंकर।
स्वर्ण कपूत सज कर
कर रहे अनर्थ, कार्यस्थल, पथ घर बिस्तर पर ।
लो लूट भ्रष्ट पुर, सजे दहन हर, हर चौराहे वीथि पर
जगे जोगीरा सरर सरर, हर गले कह कह गाली से रुचिकर।
हे देश शंकर।
हर हर बह रहा रुधिर
है प्रगति क्षुधित बेकल हर गाँव शहर
खोल हिमालय जटा जूट, जूँ पीते शोणित त्रस्त प्रकर
तांडव हुहकार, रँग उमंग धार, बह चले सुमति गंगा निर्झर
हे देश शंकर।
पाक चीन उद्धत बर्बर
चीर देह शोणित भर खप्पर नृत्य प्रखर
डमरू डम घोष गहन, हिल उठें दुर्ग अरि, छल कट्टर ।
शक्ति मिलन त्रिनेत्र दृष्टि, आतंक धाम हों भस्म भूत, ढाह कहर
हे देश शंकर।
*** *** ***
अदा जी बता रहीं हैं
बेटी से बहू तक की
सारी सीढियाँ
मैं तो तय कर गयी
वो तो बस
आँख, अंगूठा, जीभ
और पाँव में ही सिमट
कर रह गयी
दूसरे के घर कन्या जन्म लेते ही लक्ष्मी घर आई है, सुख सौभाग्य समृद्धि का प्रतीक है। अगर अपने घर में आई तो अपशकुन। अघोषित आपदा। इसी विषय पर महेन्द्र शंकर जी ने कहा है
बादलों से उलझी हुई चांदनी
आके सिरहाने गुमसुम खड़ी हो गई।
बाप के शीश पे उम्र के बोझ सी
एक नन्हीं सी बेटी बड़ी हो गई।
चलते-चलते
दिनेश मिश्र जी की दो पंक्तियाँ चलते-चलते
सारी शोखी, हंसी, शरारत, छोड़ कहां पर आई है,
मुझे छोड़ सब समझ गए, बिटिया ससुराल से आई है।
*** *** ***
इतना विस्तार देते हुए पूरे मन से की गयी चिट्ठा चर्चा .. आज शाम के बाद के लगभग सभी पोस्टों पर मेरी निगाह जा चुकी है .. बाकी को भी देखती हूं ..आपने अच्छी चिट्ठा चर्चा की है !!
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन व लाजवाब रही आपकी ये चर्चा ।
जवाब देंहटाएंJai ho
जवाब देंहटाएंkuchh naya naya saa laga
दिल से की गई चर्चा...
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
मनोज कुमार जी!
जवाब देंहटाएंआपको शिव-त्रयोदशी की बधाई!
बहुत सुन्दर चिट्ठा चर्चा की है आपने!
nice
जवाब देंहटाएंविस्तार से प्रस्तुत की गयी यह चिट्टाचर्चा बहुत शान्दार रहा.
जवाब देंहटाएंआपका आलेख अछ्छा लगा. आपने नए आगन्तुको के बारे मे भी बताया , यह भी अछ्छा लगा .
जवाब देंहटाएंbahut khoob ! itna kuchh samet liya ki kisi sankalak par jane ki jarurat hi mahsoos nahi hui
जवाब देंहटाएंSUMAN ji ke vichaaron se sahmat.
जवाब देंहटाएंबहुत ही गजब की करते हैं आप चर्चा
जवाब देंहटाएंछोड़ते नहीं हैं किसी का भी पर्चा
िआपकाचर्चा का ढंग बहुत अच्छा लगा विस्तार मे की गयी चर्चा के लिये बधाई
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा....अच्छे चिट्ठों तक पहुँचाने में मदद मिली....आभार
जवाब देंहटाएंलाल, पीले, नीले,काले रंग ही रंग.....अच्छी चर्चा है.
जवाब देंहटाएंओह बेहतरीन चर्चा ! बिना कुछ लिखे नहीं जा सकता... विस्तृत रूप में सुन्दर बातें निकल कर लायें हैं आप...
जवाब देंहटाएं"कखन हरब दुःख मोर
हे भोलानाथ।
दुखहि जनम भेल दुखहि गमाओल
सुख सपनहु नहि भेल हे भोला"
इस भजन को हमारे यहाँ सुबह सुबह उठ कर गया जाता है.. इससे एक आत्मिक लगाव है... जिसका असर दिन भर रहता है... मैं ऐसा कह सकता हूँ की यह हमारा धर्मगान है... इसके अतिरिक्त "जय जय भैरवी" भी है जिसका जिक्र गौतम राजरिशी जी ने अपने ब्लॉग पर कुछ पोस्ट पहले किया था...
ज्यादा तो नहीं पढ़ पता किन्तु...
गिरिजेश राव जी की कविता "हे देव शंकर" का भूत कल से उतर नहीं रहा.... अपने शिल्प में यह मुझे अनोखा लगा... यह सलाम करने लायक है... आज एक कविता दर्पण ने भी डाली है जो बेहतरीन है...
http://darpansah.blogspot.com/2010/02/blog-post_13.html
मैं यह लिखने का लोभ छोड़ नहीं पा रहा हूँ की पूजा की कविता मेरे साथ बातचीत पर आधारित थी... और कुछ दृष्टि से उनकी कविता की बुनावट मुझे भी शानदार लगी किन्तु यह तो गुणी जन ही तय कर सकेंगे... पूजा बहुत प्रतिभावान हैं और धुन की पक्की और मूडी ब्लॉगर भी...
अदा जी का लिखने का प्रवाह मुझे जंचता है... उनके पास हर तरीका का भाषा है... विविध ब्लॉग पर उनके कमेंट्स भी खासे रोचक होते हैं...
shukriya Manoj Ji. itni mehnat ke baad itna hi de sakta hoon.
बहुत विस्त्रत ... लाजवाब चर्चा ..... बहुत से नये लिंक मिले .....
जवाब देंहटाएंआपका धन्यवाद मनोज जी मेरी रचना को भी शामिल करने का ....
मनोज जी,
जवाब देंहटाएंसच पूछिए तो आप जब से चर्चा कर रहे हैं ..मैंने सही मायना में चिटठा चर्चा को पढ़ना शुरू किया है...
कुछ आत्मीयता का बोध अब होने लगा है...वर्ना पहले लगता था....कि यह हमारे लिए नहीं है....हम इसके लायक नहीं हैं...
चिटठा-चर्चा ने आपको लाकर अपनी छवि में बहुत बड़ा सुधार किया है....इसके लिए चट्ठा-चर्चा बधाई का पात्र है...
आपकी चर्चा बहुत ही अच्छी लगी.....हम जैसे आम लोगों को इसमें शामिल किया गया है...
अगर कुछ ख़ास लोगों को भी शामिल करते आप तो एक नया कलेवर आता...
जैसे समीर जी, अनूप जी, गौतम राजरिशी, डॉ.अनुराग इत्यादि....
कुछ नाम तो अनूप जी और डॉ.अनुराग की चर्चाओं में ही मिल जायेंगे....एक मंच पर इन लोगों को देखने की तमन्ना है....अगली बार ले आईये इन सबको....बेशक पुरानी पोस्ट ही सही...
vistrit jankari mili yaha aakar.dhanyewad.
जवाब देंहटाएंpahalee var hee yaha aana hua badee jaankaree milee aapkee sabhee
जवाब देंहटाएंrachanaon se parichay shailee bahut acchee lagee........
dhanyvaad.........
चिट्ठा चर्चा में जगह देने के लिए कोटी-कोटी धन्यवाद मनोज भाई साहब,
जवाब देंहटाएंइस कारण आज चिट्ठा चर्चा को करीब से जानने और जुडऩे का मौका भी मिला, जो बेहद अच्छा लगा। आपका आशीर्वाद रहा तो हमेशा बेहतर आलेख प्रस्तुत करते रहेंगे। आप जो प्रयास कर रहे हैं, उनके लिए कोई अल्फाज़ नहीं है.........
फिर से धन्यवाद
विस्तार से की गयी चर्चा पसन्द आयी.
जवाब देंहटाएंचमत्कारिक चर्चा...
जवाब देंहटाएंवाकई गज़ब है...
मनोज सर.. जिस तरह आपने कई वर्ग बनाये हैं वाह प्रशंसनीय है.. अदा दी की बात पर भी ध्यान दीजियेगा.. और भी बेहतर होगा..
जवाब देंहटाएंजय हिंद... जय बुंदेलखंड...
आपकी हौसला आफ़ज़ाई ने निश्चित रूप से मुझे काफ़ी प्रेरित किया है। आपके सुझावों पर भी अमल करूँगा।
जवाब देंहटाएंbahut vistaar tha charcha main ..kafi achche link mile ...bahut badhai.
जवाब देंहटाएंएक विस्तृत चर्चा। राजभाषा हिन्दी को चर्चा में शामिल देख एक सुखद आश्चर्य हुआ। आभार।
जवाब देंहटाएंराजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
जवाब देंहटाएंआपका धन्यवाद मनोज जी मेरी रचना को भी शामिल करने का ....
जवाब देंहटाएंमनोज जी को हमारा सलाम !
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