मंगलवार, फ़रवरी 09, 2010

.....फ़ागुन में कजरी की याद और बहुत कुछ


लंदन में भयंकर बर्फ़ गिरी है। दिल्ली में गर्मजोशी दिखी है। नागपुर में भारतीय बल्लेबाजी के रंग फ़ीके हो गये हैं। मुंबई के किस्से देश भर में टहल रहे हैं। देश में सर्दी पलटवार करने की फ़िराक में है। तरही मुशायरे में जूते चल पड़े हैं! छत्तीसगढ वाले ललित शर्मा दस दिन के ब्लॉगिंग से दूर चले गये हैं। ज्ञानजी गंगा कछार में खेती करवा रहे हैं। समीरलाल बिजली रानी, बड़ी सयानी गा रहे हैं। जाकिर अली’रजनीश’ विज्ञान प्रगति से ब्लॉगिंग को सलामी दिलवा रहे हैं। अभिनेत्री चित्रांगदा सिंह ब्लॉग की दुनिया में अपना पहला कदम रख चुकी हैं! ऐसे में सोचते हैं कुछ चिट्ठे यहां देख-दाख लिये जायें। आप भी देखिये।

चलिये शुरुआत करते हैं नंदिनी की टिप्पणी से। गौतम राजरिशी की पोस्ट आय लव यू फ़्लाय ब्वाय..! की पहली टिप्पणी है यह:
मैंने अपनी ज़िन्दगी में इतनी खूबसूरत कविता नहीं पढ़ी जो किसी डायरी कि शक्ल में लिखी गयी हो. ये पोस्ट 360 डिग्री विजन कैमरे से बनी
ऐसी फिल्म है.


बाकी टिप्पणियां भी इसी अंदाज की हैं। मानसी का कहना है-गद्य और पद्य दोनों में बेजोड़ पकड़ हो रही है आपकी, सर :) तो डा.श्रीमती अजित गुप्ता लिखती हैं:
सांस रोके पढ़ गई इन डायरियों के पन्‍नों को। आपकी पोस्‍ट का हमेशा इन्‍तजार रहता है। आज कितने ही ऐसे जांबाज हैं जो पर्दे में रहकर हमारी सुरक्षा में लगे हैं उन सभी को नमन।


डा. श्रीमती अजित गुप्ता ने अपनी पोस्ट साहित्‍यकार माता-पिता का स्‍मरण कौन करता है? में प्रख्यात गायक शान के द्वारा अपने पिता को स्मरण किये जाने की घटना का जिक्र करते हुये लिखा:

गुमनामी के अंधेरे में खो चुके अपने अप्रतिम पिता को जब शान ने याद किया तब लगा जैसे मन्दिर में घंटियां बज उठी हों। कोई बड़ी ही पवित्रता से भगवान को पुकार रहा हो।
अपनी पोस्ट में यात्रा फ़िल्म की याद करते हुये वे सवाल करती हैं:
कितने बेटे/बेटियां हैं जो एक सामान्‍य साहित्‍यकार माता-पिता का बड़े शान से परिचय कराते हैं?



इसी सिलसिले में मुझे याद आया कि आनन्द वर्धन ओझा जी आजकल अपने पिताजी पंडित प्रफुल्लचंद्र ओझा 'मुक्त' को स्मरण करते हुये नियमित उनके लिखे को पोस्ट कर रहे हैं। इस क्रम की पहली पोस्ट में आनन्दजी ने लिखा:
मित्रो ! सन २०१०--मेरे पूज्य पिताजी पुण्यश्लोक पंडित प्रफुल्लचन्द्र ओझा 'मुक्त' का जन्मशती वर्ष है। आज उन्हें जगत से विदा हुए १५ वर्ष व्यतीत हो चुके हैं, लेकिन मेरे मन में उनकी स्मृतियों का आलोड़न सदैव बना रहता है। चाहता हूँ, उन स्मृतियों को शब्दों में बांधूं ! ऐसा करना मेरा दायित्व भी है, किन्तु मेरी सीमाएं हैं, थोड़ी असमर्थता भी ! पिताजी पर लिखना मेरे लिए कभी आसान नहीं रहा; फिर भी शीघ्र ही लिखने की कोशिश करूँगा।
अपने इक्यासिवें जन्मदिन पर पंडित प्रफ़ुल्ल चंद ओझा ने लिखा था:
अस्सी वर्षों के बाद व्यक्ति के पास कितना समय रह जाता है ? अब तो मेरे चरण मरण की ओर उन्मुख है। मैंने सामान्य व्यक्ति के रूप में जन्म पाया था, सामान्य व्यक्ति के रूप में अस्सी वर्षों का समय बिताया, मेरी आतंरिक कामना है कि मरने के बाद भी मैं सामान्य यां अज्ञात ही बना रहूँ। मैंने अपने दोनों पुत्रों को कह रखा है कि जब मैं न रहूँ तो वे मुझे तमाशा न बनायें। मेरा अभिप्राय है कि देश भर में फैले मेरे स्नेही और कृपालु मित्रों को मेरे बारे में कुछ लिखने को प्रेरित न करें, अखबारों और रेडियो-टीवी को मेरी मृत्यु की सूचना न दें। एक दिन चुपचाप मैं इस दुनिया में आया था, वैसे ही चुपचाप मैं एक दिन चला जाना चाहता हूँ।
आनन्द वर्धन ओझा ने अपने पिताजी से संबंधित अन्य लेख भी बाद की कड़ियों में दिये हैं। बेहद आत्मपरक हैं ये संस्मरण! देखिये यहां पर!

डा.आराधना चतुर्वेदी फ़ागुन के मौसम में कजरी की याद कर रही हैं-अपनी अम्मा की याद के साथ:

मेरी अम्मा कजरी गाती थीं. मैंने उन्हीं से सीखा था. उनके पास एक डायरी थी, जिसमें बोल और तर्ज़ के साथ बहुत से लोकगीत संकलित थे. मैं सिर्फ़ तेरह साल की थी, जब उनका स्वर्गवास हुआ. इसलिये ज़्यादा कुछ सीख नहीं पायी. मित्र के दिये इन गीतों को सुनकर मैं खो सी गयी
इस पोस्ट पर सुन्दर टिप्पणियां हैं। देखिये! अमरेन्द्र लिखते हैं:

मुक्ती जी !
फागुन में सावन ..
हमें भी सावन ज्यादा खींचता है .. अगस्त वाला महीना तो खासकर ..
इसी महीने में आया इस सार-सार ( क्यों कहूँ असार ! ) संसार में ..
……….. अरे , ये कजरी काहे बिसार दिया आपने —
” कैसे खेलन जइबू सावन मा कजरिया ,
………………………………… बदरिया घेरि आई ननदी | ”.
उस्ताद की शहनाई , कजरी और उसपर भी शोमा घोष की खनकती आवाज !
इस अद्भुत संयोग को जब – तब सुनता रहता हूँ – गुनता रहता हूँ ….
” ….. तो स्वयं को नहीं पायी अपने अनुभव बाँटने से… ”
‘रोक’ शब्द आना चाहिए ,,, शायद इडित करने में छूट गया है … सुगतिया दीजिये ...
लोक की तर्ज और गीतों की डायरी सम्हाले रहिये .. मुझ – से प्यासों की तृप्ति इन्हीं सी
होती है ..
……………… सुन्दर पोस्ट … आभार !


सुन्दर पोस्ट पर आभार टिकाने के पहले ही अमरेन्द्र एक सुन्दर सी पोस्ट लिख चुके थे। शीर्षक देखिये तो तनिक-ब्लाग - जगत पै फगुवा - गदर ...अदा-ओ-बाऊ तोहरौ नेउता ... सर्वं प्रिये ! चारुतरं वसन्ते.. अउर यक अवधी फगुनी - गीत ........ अपनी बात कहते हुये अमरेन्द्र लिखते हैं:

''बरजोरी करौ न मोसे फागुन में '',बार - बार गूंजत है मन मा यहि मौसम मा .. ''न'' मा फागुन कै
बिराट काव्य भरा अहै .. सहमति अउर असहमति के बीच कै काव्य ! .. संजोग अउर बियोग के बीच कै काव्य ! ..भाव व अभाव के बीच कै काव्य ! .. दिल अउर दिमाग के बीच कै काव्य ! .. पार्थिव अउर अपार्थिव के बीच कै
काव्य ! .. जागब अउर सोउब के बीच कै काव्य ! .. 'फॉर्म' अउर 'मैटर' के बीच कै काव्य ! .. चिंतन अउर बिउहार
के बीच कै काव्य ! ..औरउ-अउर .. 'गहि न जाय अस अद्भुत बानी' .. कुछ अस परभाव है बसंत कै ..
इस पोस्ट पर टिप्पणी और प्रतिटिप्पणी की छटा अद्भुत है। साथियों ने अमरेन्द्र की इस पोस्ट को पोस्ट ऑफ़ द ईयर घोषित किया!

दिल्ली में हुये इतवारी ब्लॉगर समागम की रपटें आ रही हैं। इसी कड़ी में खुशदीप ने काफ़ी विस्तार से रपट लिखी। उस रपट का एक हिस्सा ये देखिये जिसमें विनीत कहते हैं:

हमारा परिवेश तेज़ी से बदलता जा रहा है...जिस दौर में हमारा बचपन बीता...वो भी बड़ी जल्दी बीते दौर की बात हो जाएगा और शहरों के तेज़ी से विकसित होने की वजह से कई चीजों को हम नॉस्टेलजिया की तरह ही याद करेंगे...मसलन सिंगल स्क्रीन थिएटर की जगह अब महानगरों में मल्टीप्लेक्स ही दिखाई देने लगे हैं...स्कूलों की जगह फाइव स्टार स्कूल दिखाई देने लगेंगे...कस्बे, खेत-खलिहानों की सौंधी खुशबू सिर्फ किस्सों तक ही सीमित रह जाएगी, ऐसे में नॉस्टेलजिया को आधार मान कर लिखी जाने वाली पोस्ट को पाठकों का बड़ा दायरा मिलेगा...विनीत के अनुसार ब्लॉगिंग में विरोध के स्वरों की भी अपनी अहमियत है...इसे सकारात्मक ढंग से लिया जाना चाहिए...ये अपने विकास के लिए भी आवश्यक है...


रश्मि रविजा अपने लेख हिंदी लेखन में अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग...कितना उचित?? में बताती हैं:

कुछ अंग्रेजी शब्द हामारी भाषा में इतने रच बस गए हैं कि प्रतीत ही नहीं होता ये हिंदी भाषा के अभिन्न अंग नहीं हैं.'खुशदीप सहगल जी' ने मेरी 'कामवालियों' पर लिखी पोस्ट पढ़ कर कहा उन्हें, इनके लिए 'मददगार' शब्द उचित लगता है.हमें भी बाई,कामवाली ,महरिन, बुलाना अच्छा नहीं लगता.पर मददगार शब्द उतनी सुगमता से हमारी जुबान पर नहीं चढ़ पायेगा जितना 'हेल्पर' शब्द....गाँव का बच्चा बच्चा भी 'हेल्प' शब्द का अर्थ जानता है और सेना में तो ऑफिसर को जो व्यक्तिगत अर्दली दिए जाते हैं .उन्हें हेल्पर ही कहा जाता है.पर चूँकि 'हेल्पर'शब्द अंग्रेजी का है इसलिए कई लोगों को ग्राह्य नहीं होगा.अब 'ब्लॉग 'शब्द का उदाहरण ही ले लेँ.'चिटठा' या 'चिट्ठाकार' शब्द से सभी परिचित हैं पर उपयोग तो 'ब्लॉग' या 'ब्लॉगर' शब्द का ही करते हैं.


इसी क्रम में रश्मि रविजा के बारे में और जानकरी तथा उनका इंटरव्यू पढ़िये हैप्पी अभिनंदन में रश्मि रविजा

और रश्मि रवीजा की यह पोस्ट याद दिला गयी शिखा वार्ष्णेय की बेहतरीन पोस्ट मेरा हीरो की! अपनी इस पोस्ट में शिखा ने अपने हीरो को बेहद संजीदगी, अपनेपन और गर्मजोशी से याद किया है। पिता जो एक साथ कड़क है मुलायम है, अनुशासित है बिन्दास है! ये सारे रंग मिलेंगे आपको इस पोस्ट में। और साथ में एक बेहद प्यारी कविता जिसका एक अंश है:

याद है मुझे वो दिन,वो लम्हे ,
जब मेरी पहली पूरी फूली थी,
और तुमने गद-गद हो
100 का नोट थमाया था.
और वो-जब पाठशाला से मैं
पहला इनाम लाई थी,
तुमने सब को
घूम -घूम दिखलाया था.
अपने सपनो के सुनहरे पंख ,
फिर से मुझे लगाओ ना.
पापा तुम लौट आओ ना.



संजय बेंगाणी सवाल पूछते हैं कौन कहता है ठाकरे में दम नहीं

सीमा गुप्ता जी के यहां देखिये शब्द रोने लगे

अदा के यहां देखिये कौन पर बैठा रहा सिरहाने पर

ओम आर्य की जिंदगी की बार-बार चेन-पुलिंग होती रही।

प्रशान्त के मन में अजीब सा कश-म-कश चल रहा है मन में.. जीवन कि विडंबनायें भी अजीब होती हैं..

फ़िलहाल इतना ही। आपका दिन शुभ हो!मंगलमय हो!

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18 टिप्‍पणियां:

  1. सभी लिंक पढ़ डाले । अब आ गया हूँ आभार कहने ।

    मुक्त जी के संस्मरण-निबन्धों की चर्चा का आभार ।

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  2. याद है मुझे वो दिन,वो लम्हे ,
    जब मेरी पहली पूरी फूली थी,
    और तुमने गद-गद हो
    100 का नोट थमाया था.

    वाह-वाह अनूप जी क्या कविता पढवाई.मन के लिए आज की डाइट कम्प्लीट हो गई. धन्यवाद और आभार.

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  3. बड़े ही अनोखे अंदाज में लिखी गयी है पोस्‍ट। आपने गौतम राजरिशी की पोस्‍ट के साथ डॉ- स्मित गुप्‍ता की टिप्‍पणी भी डाली है लेकिन वो टिप्‍पणी मेरी है स्मित की जगह अजित कर दें। बहुत ही पसन्‍द आयी आपकी यह पोस्‍ट।

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  4. @ Dr. Smt. ajit gupta टाइपिंग की गलती सुधरवाने के लिये शुक्रिया।

    आपको बतायें कि पहले मैंने आपकी पोस्ट का जिक्र करते हुये भी डा.स्मित गुप्ता लिखा था। अंग्रेजी में Dr. Smt. लिखा होने के कारण ऐसा हुआ शायद। फ़िर पोस्ट करने के बाद मैंने गलती देखी तो एक तो सुधार ली लेकिन दूसरी रह गयी। आपका आभार कि आपने इसे भी सही करवा दिया।

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  5. ओझा जी को पढने में टीपने का ख़याल ही नहीं रहा ..
    आभार,,,

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  6. मुझे तो आज की चर्चा का शीर्षक बहुत-बहुत अच्छा लगा. चर्चा तो लगी ही. ओझा जी के ब्लॉग की नियमित पाठिका हूं. हमेशा सोचती थी कि आपकी पैनी नज़र " मुक्ताकाश" पर क्यों नहीं पडी. आज ये भ्रम भी दूर हो गया. शानदार लिंक मिले इस बार भी.

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  7. सुन्दर चर्चा... लन्दन में बर्फ गिरी है, हमारे उत्तर भारत में में भी... कश्मीर की खबर मिल ही गयी होगी आपको... खुशदीप जी एक दिन सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले ब्लॉगर बनेंगे... ओम आर्य की कविता लाजवाब होती है... पर उनकी पिछली कविता कुछ ज्यादा ही धारदार थी... अमरेंदर जी हिंदी के स्टुडेंट हैं... और बहुत बातूनी भी... उनका कहना है "गप्प नहीं तो कुछ नहीं" PD बहुत दिल से इमानदार पोस्ट लिखता है... साहित्य प्रेमियों के लिए मुक्ताकाश का मंच एक अच्छा सानिध्य है... सभी को शुभकामनाएं...

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  8. अच्छी लगी यह पोस्ट. इसमें से कुछ रचनाएँ तो पढ़ी हुई थीं पहले से, कुछ नये लिंक मिले. पर मेरा नाम आराधना चतुर्वेदी है, अनुराधा नहीं. जनसत्ता वाले भी अनुराधा ही छाप चुके हैं दो-दो बार. मैं क्या करूँ?
    और हाँ, अच्छा लगा यह जानकर कि चित्रांगदा सिंह अब ब्लॉग-जगत में आ गयी हैं. वो मेरी मनपसंद अभिनेत्री हैं. मुझे फ़िल्मी दुनिया की सबसे सुन्दर और प्रतिभाशाली अभिनेत्री लगती हैं.
    पर थोड़ी चिन्ता भी हो गयी है. अब हमें कौन पढ़ेगा???????

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  9. @ आराधनाजी, आपका नाम सही कर दिया। आपको पढ़ने वाले हमेशा रहेंगे, बढेंगे। चिन्ता न करें।

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  10. शुक्लजी,
    मैंने बाल्यकाल से ही पिताजी से एक श्लोक सूना है :
    'पिता धर्मः पिता कर्मः पिता हि परमः तपः !
    पितरिप्रीती मापन्ने प्रीयन्ते सर्वदेवता !!'
    इस श्लोक का सार मन में कहीं जड़ जमा के बैठ गया है.... मेरी ये हस्ती तो उन्हीं माता-पिता की बदौलत है... उन्हें अवसर-विशेष पर भी कैसे भुला दूँ... वे तो साँसों की लय पर बसते हैं !
    पुरानी चर्चा को चर्चा में लाने के लिए आभार !
    आनंद व्. ओझा.

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  11. उत्तमोतमता के टेस्ट में वैरी नाइस चर्चा।

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  12. अच्छा है. खुशबू महसूस हुई , करवाने के लिए शुक्रिया.

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  13. समीर जी,

    हिन्दी ब्लागर्स को जानने और पहचानने में आपकी इस चिठ्ठा-चर्चा का बहुत योगदान है, इसमें संदेह नहीं...

    बहुत-बहुत धन्यवाद

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