आज तो बस, सिर्फ और सिर्फ एक चिट्ठे की चर्चा.
वीरेन्द्र शर्मा का एक चिट्ठा है – राम राम भाई. इसमें वे तमाम उपयोगी व मजेदार और आमतौर पर वैज्ञानिक खबरों का संकलन कर रहे हैं. आपने अपना चिट्ठा 2008 से लिखना शुरू किया और लगातार चिट्ठे पोस्ट कर रहे हैं. 2009 में आपने कुल 448 पोस्टें लिखीं. अभी 2010 के डेढ़ माह के दौरान आप 77 पोस्टें लिख चुके हैं. इनकी लिखी एक प्रविष्टि हम भारतीयों को खासतौर पर पढ़नी चाहिए :
सार्वजनिक स्थान पर हम भारतीय यूँ ही नहीं थूकतें हैं ...
भारतीय द्वारा थूकना गंदगी को बढ़ाना नहीं हैं ,थूकना सफाई का दर्शन हैं ,वह अन्दर की सुवास को बनाये रखने के लिए बाहर की और थूकता है .थूक एक प्रतिकिर्या है बाहर फैली गंदगी के प्रति .भारत में चारों तरफ़ धूल मिटटी और गंदगी का डेरा है .बाहर के मुल्कों में (विकसितदेशों में) पर्यावरण और आपके आस पास का माहौल एक दम से साफ़ सुथरा रहता है इसलियें भारतीय वहाँ थूक नहीं पाते .यह कहना है मनोविज्यानी प्रोफ़ेसर डॉ .इद्रजीत सिंह मुहार का ।
हमारे साहित्य कार मित्र डॉ .नन्द लाल मेहता वागीश का कहना है -थूकना एक मामूली किर्या मात्र नहीं है ,दर्शन है .अलबत्ता थूकना मानवाधिकार है या नहीं इसकी पड़ताल होनी चाहिए .थूकने पर किसी व्यक्ति विशेष का कापी राईट नहीं हैं .आप जहाँ चाहें थूकें ।
अलबत्ता कई जगह पर डिब्बे रखे होतें हैं ,लिखा होता है ,यहाँ थूकें .अबआप को थूक आ रहा है तभी आप थूकेंगे ,जहाँ थूक आता है ,वहाँ डिब्बा नहीं होता ।
मुग़ल कालीन दरबारी संस्क्रती थूकने पर कसीदे पद्वाती रही है .चाटुकार कहते रहें हैं ,वाह साहिब क्या निशाना है .थूक्कड़ प्रशंशा के पात्र रहें हैं .दो दीवारों के बीच के कौने में जहाँ कुत्ते मूतते थे थूकड़ कलात्मक ढंग से थूक कर गंदगी और बदबू को कम करते थे .दरबारी उनका यशोगान लिखते थे .वाह साहिब क्या थूकतें हैं .पान थूकदों ने आधुनिक कला को जन्म दिया है ।
हमारी संसद में सिवाय थुक्का फजीहत के अब क्या होता है .लिब्रहान कमीशन सत्रह सालों तक थूक बिलोता रहा है .थूक बिलोना सेवा निवृत्त समाज द्वारा समादृत लोगों के रोज़गार का ज़रिया रहा -बारास्ता जांच कमीशन ।
अगर में ग़लत कह रहा हूँ ,आप मेरे मुह पर थूकना ।
थूक कर चाटना ,अपनी बात से मुकर जाना आम औ ख़ास ने बड़ी ही मेहनत से सीखा है .चाटुकारिता थूक की ही देन है . चिरकुटों की भीड़ यही करती आ रही है ।
अलबत्ता कुछ कायर किस्म के लोग पीठ पीछे थूकतें हैं .तो कुछ नासमझ आसमान की और मुह उठाकर ही थूक देतें हैं ,समाज में समादृत ऊंची पहुँच वालों के ख़िलाफ़ प्रलाप करने लगतें हैं ।
कुछ लोग बात बे बात कह देतें हैं ,मैं तो तेरे घर थूकने भी ना आवूं .एहम पीड़ित हैं यह तमाम लोग .भाई साहिब थूकने के लिए आप इतनी दूर जायेंगे भी क्यों ?
मुह पे थूकना -किसी के भी और किसी के लिए भी अच्छी बात नहीं है .फ़िर भी लोग अपनी बात का वजन बढ़ाने के लिए अक्सर कह देतें हैं ,मेरी बात ग़लत निकले तो तू मेरे मुह पे थूक देना ।
कुछ लोग सरे आम व्यवश्थापर थूकतें हैं ,अपने गुर्गों से थूक वातें हैं
हैं ,इन्हें "ठाकरे "कहा जाता है ।
कुछ ज़हीन किस्म के लोग किसी के खाने को देखकर ही थूक देतें हैं .सामिष भोजी इनसे बर्दाश्त नहीं होतें .टेबिल मैनर्स का इन्हें इल्म नहीं होता ।
थुक्का फजीहत और थूकना भी क्या मौलिक अधिकारों की श्रेणी में नहीं आता ?
अंत में हम शोध छात्रों को एक विषय अनुसंधान के लिए देतें हुए अपना वक्तव्य समाप्त करतें हैं -इतना थूकने पर भी भारतीयों का हाजमा सेलाइवा (लार की कमी होने )से कम क्यों नहीं होता ?
राम राम भाई की सभी पोस्टें ज्ञान और जानकारी का भंडार हैं. हाल ही की कुछ प्रविष्टियों पर आप नजर मार कर जायजा ले सकते हैं. यहाँ सिर्फ शीर्षक और लिंक दिए गए हैं. शीर्षक से ही पता चल जाएगा कि पोस्टों में क्या जानकारियाँ दी गई हैं.
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वाह रतलामी जी बडे ही सुंदर और जानकारीपूर्ण से चिट्ठे से मुलाकात करवाई आपने तो , आज ही सबस्क्राईब कर लेते हैं ।
जवाब देंहटाएंअजय कुमार झा
बहुत सुन्दर और चर्चा लिखी है आपने!
जवाब देंहटाएंप्रेम दिवस की हार्दिक बधाई!
बेहतर...
जवाब देंहटाएंएक और उम्दा ब्लाग से पहचान के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंशानदार ब्लागर से मिलवा दिया आपने।
जवाब देंहटाएंupyogi links
जवाब देंहटाएंतुरंत ही सब्सक्राइब कर रहे हैं । बेहतरीन ब्लॉग ।
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंआपने इस ब्लॉग की जानकारी बड़ी देर से दी, रवि भाई !
ब्लॉगिंग में आकर हम पहले ही थुक्का-थुक्की में पारँगत हो चुके हैं ।
एक दूसरे की फ़ज़ीहत करते करते हमारे मुँह का थूक ही सूख गया है,
अब तो चुप्पै थूक सटकते हुये आते हैं, पोस्ट पढ़ते हैं और थूक चुभलाते हुये लौट जाते हैं ।
कुछेक जगह थूक जाँच परख कर ली जाती है, तो अधिकाँश जगहों पर मन मार लेना पड़ता है ।
क्या पता थूक कर चाटने की नौबत ही न आ जाये । इस चर्चा के आरँभिक चरण ने एक नई जान डाल दी ।
लिंक तक जाकर मुआयना कर आया, रिफ़्रेशर कोर्स के लिये दुबारा जा रहा हूँ । अच्छा चलते हैं, राम राम भाई !
जवाब देंहटाएं:)
क्षमा करें,
थूक शिष्टाचार का एक अहम
तत्व स्माईली देना भूल गया था !
बडे ही सुंदर और जानकारीपूर्ण से चिट्ठे से मुलाकात करवाई आपने तो , आज ही सबस्क्राईब कर लेते हैं ।
जवाब देंहटाएंलाजवाब इस ब्लाग को तो पीछे से पढना पडेगा । आपका बहुत बहुत धन्यवाद आशा है ऐसी खोज आगे भी जारी रहेगी।
जवाब देंहटाएंगजब है यह थूक पुराण और गजब है यह चर्चा ।
जवाब देंहटाएंhttp://veerubhai1947.blogspot.com/
जवाब देंहटाएंयही है ना ?
:)