दोनों घटनायें समाज में स्त्री की स्थिति और बेबसी की कहानी हैं। पन्द्रह साल की लड़की के साथ अत्याचार/अनाचार हुआ। यौनजीवन के मानक-बानक समाज ने ऐसे गढे हैं कि कौमार्य लुटने के बाद जिन्दगी उसको निरर्थक लगने लगे। पीड़ित जिसके साथ अत्याचार/अनाचार हुआ उसके मन में अपना जीवन समाप्त कर लेने के अलावा और कोई चारा नहीं दिखा। कौमार्य नीलामी की बात को लोग अपने-अपने नजरिये से देखेंगे लेकिन है तो यह भी शर्मनाक कि एक लड़की को इस तरह की पहल करनी पड़ी।
मनोज कुमार ने अपनी पोस्ट में बताया कि:
मैं दहेज़ लेकर शादी करने वालों की बारात नहीं जाता। चाहे वह घर परिवार की शादी हो चाहे समाज की।लेकिन मनोज भाई आप यह जानते कैसे हैं कि शादी में दहेज का लेन-देन हो रहा है कि नहीं?
मनोज जिस पोस्ट के चलते दहेज कथा तक पहुंचे वह यह है। इसमें रंजीत लिखते हैं:
जिसे शादी में दहेज की मोटी राशि नहीं मिलती, वो खुद को अभागा मानता है। अपराधबोध से ग्रस्त हो जाता है। बला यह कि दहेज लेना और देना स्टेटस सिंबल बन गया है। इसलिए लोग पचास हजार लेते हैं, तो दो लाख बताते हैं और दो लाख देते हैं , तो पांच लाख गिनने का प्रचार करते हैं।इनके इस ब्लॉग की फोटो तो देखिये। बस नदी पार कैसे करती है।
सतीश पंचम की आज की पोस्ट का शीर्षक है- अमां मुर्गों की लडाई देख रिया था, लो खां तुम भी देखो, वो मुटल्ले को देखो कैसे फडक रिया है ... अपने में मुकम्मल! लेकिन फ़िर भी देख लीजिये आगे क्या कहते हैं वे:
मैं सोच रहा हूं कि भाषा और प्रांत के नाम पर लोगों को लडा रहे नेताओं और इन मुर्गा लडाने वालों में कितनी साम्यता है। मुर्गे लडाना भी गैरकानूनी है औऱ लोगों को आपस में लडाना भी गैरकानूनी। फिर जब मुर्गे थक जाते हैं लडते लडते तो उन्हें बाकायदा टिटकारी देते हुए मालिश भी की जाती है। आम जनता के साथ भी यही सब हो रहा है। टिटकारी दे दे कर आपस में तैयार किया जा रहा है। फडक करवाया जा रहा है। कलगी को सहलाया जा रहा है। औऱ जनता है कि इन मुर्गों की तरह कूकडाने भी लगती है। क्या किया जाय।
मुझे यह भी लगता है कि लड़ने का काम मुर्गे ही क्यों करते हैं। मुर्गियों की लड़ाई की बात क्यों नहीं होती कभी। शायद यह भी एक अंदाज है मुर्गों का। वे लड़ते-झगड़ते रहते हैं , कटा-जुज्झ मचाते रहते हैं ताकि मर्गियों को समझा/हड़का/दिखा सकें कि देखो लड़ना-झगड़ना/खून-खराबा कित्ते जोखिम का काम है। तुमसे नहीं होगा। तुम चुपचाप दड़बे में बैठकर अंडे देव/सेव। लड़ने के लिये हम बहादुरों की फ़ौज है।
पैर में स्लीपर पहने और शॉल ओढ़े ज्ञानदत्त पाण्डेय को बहुत आत्मीय लगा यह पालक ले कर लौटना! पर वकील साहब का सवाल है:आप आत्मीयता से सराबोर होते समय इतने गंभीर क्यों लगते हैं?
सवाल का जबाब तो न जाने कब आयेगा लेकिन उनकी पोस्ट पगली से प्रेरित होकर लिखी समीरलाल की रचना आ गयी है। अपनी पोस्ट में ज्ञानजी लिखा था:
पहली बार मुझे अपने शब्दों की गरीबी महसूस हो रही है। अपने भाव मैं व्यक्त नहीं कर पा रहा। रीता भी असहज हैं – उनके अनुसार यह पगली स्वप्न में भी हॉण्ट कर रही है। बहुत गहरे में ब्लॉगिंग की इनएडेक्वेसी महसूस हो रही है।यह भली बात कही ज्ञानजी ने कि अपनी गरीबी को ब्लॉगिंग की गरीबी बता दिया।
समीरलाल ने ज्ञानजी के शब्दों की गरीबी को दूर करने के लिये भाव विभोर कर देने के लिये लिखे इस लेख में लिखा:
इस वहशी दुनिया की, नजरों से बचने को
कितनी मजबूर है वो, ऐसे स्वांग रचने को
-लोग उस अबला को, पगलिया कहते हैं?
पागलों की दुनिया की पागल नजरों से बिध कर पागल हो जाने से बेहतर पागल बने रहना ही पगलिया को बेहतर विकल्प नजर आया होगा, इसे पागलपन की बजाय समझदारी कहना भी कहाँ तक गलत होगा! से यह आभास होता है लोग पागल हो जाने का विकल्प सोच-समझकर चुनते हैं। बेहतर विकल्प!
मासूम,गुड़िया और गुलाब
खुशदीप की संवेदनशील पोस्ट है। देखिये:
वो मासूम अब भी मेरे दिलो-दिमाग छाया हुआ था...बुझे मन से चाय पीनी शुरू की...एक दो सिप ही लिए थे कि अचानक नज़र पुराने अखबार में छपी एक बहुत ही प्यारी छोटी सी बच्ची की फोटो पर पड़ी...साथ में दिल दहला देने वाली खबर थी...शराब के नशे में एक रईसजादे ने तेज रफ्तार कार से सड़क किनारे खड़े एक ऑटो को उड़ा दिया था...ऑटो पर एक युवती और वो छोटी सी बच्ची बैठे थे...गनीमत थी कि ऑटो वाला अपने नंबर की पर्ची बनवाने के लिए ऑटो से उतर कर गया हुआ था...मासूम ने मौके पर ही दम तोड़ दिया...युवती को बड़ी नाज़ुक स्थिति में अस्पताल पहुंचाया गया...
खुशदीप की गुजारिश है आपसे और सबसे:
प्लीज़, प्लीज़, आप में से कोई भी ड्रिंक्स लेने के बाद कभी भूलकर भी खुद ड्राइव मत कीजिएगा..
इनामों में होती राजनीति पर अपनी टीस व्यक्त करते हुये गौतम राजरिशीलिखते हैं:
एक जांबाज की बहादुरी की डिग्री को निर्धारित करने के लिये। दिल्ली के संसद-भवन के समक्ष या फिर मुम्बई के ताज होटल या नरीमन प्वाइन्ट पर दी गयी शहादत अचानक से बड़ी हो जाती है बनिस्पत कश्मीर के इन सघन चीड़ के वनों में दिखाई गयी शहादत से। मेजर सुरेश सूरी को कीर्तिचक्र, मेजर आकाशदीप को शौर्यचक्र और मेजर ऋषिकेश रमानी को सेनामेडल से नवाजा गया है- तीनों के तीनों मरणोपरांत। ईश्वर जाने कौन-से इंच-टेप द्वारा इन तीन जांबाजों की बहादुरी को नापा गया...!!! वहीं दूसरी तरफ एक नौटंक, जो किसी करीना नामक बाला से इश्क लड़ाने के बाद बचे हुये समय में एक विदेशी कंपनी के बने आलू-चिप्स के नये फ्लेवर को तलाशने में गुजारता है, पद्मश्री ले जाता है।
एक लाईना
- नदी में उगा एक शहर- वेनिस!! : उडनतश्तरी : की कविता में डूबा!
- कविता का स्वंयवर!! : सजाये बैठे हैं शिल्पकार
- गिरिजेश रिपोर्टिंग - मछली बाजार से ... : कैमरामैन किधर निकल लिया जी!
- अनहोनी को होनी में बदलना चाहता है :
- अमां मुर्गों की लडाई देख रिया था, लो खां तुम भी देखो, वो मुटल्ले को देखो कैसे फडक रिया है ... :.... कमेंट्रीकार हैं सतीश पंचम
- पालक :का रग हरा होता है
- मिथ्या ही मान लो कि भगवान सब देखता है पर .. ! :कोई टिप्पणी नहीं करता
- धन्यवाद आदरणीय अरविन्द मिश्र जी . . प्रवीण शाह। :तुलसी इस संसार में..भांति भांति के लोग... समीरलाल
- साधक उम्मेद सिंह जी और प्रशांत उर्फ़ पीडी से एक छोटी सी मुलाकात चैन्नई में :फ़ोटू सहित
- पहले दुखों का मुक्त होना जरूरी है:सुख से बाद में निपटा जायेगा
- कर्ण की घोषणा :अवसर वाद की पराकाष्ठा
- हाँ हम भी इन्सान हैं, अपनी कमजोरियों को सुनना हमें भी अच्छा नहीं लगता बुरा लगता है : हमें तो केवल तारीफ़ सुनाइयो बस्स! हां नहीं तो!
- मरहम एक टूटे दिल का :बोलती कलम से मिलेगा वैलेंटाइन मौसम में
- "एलोवेरा " ब्लॉग ट्रैफिक के लिए भी है खुराक :ब्लॉग को खिलाइये, टैफ़िक बढ़ाइये।
अनूप चर्चा।
जवाब देंहटाएंशीर्षक पाठक खींचू है बाकी तो संसार ही नश्वर है क्या करियेगा !
जवाब देंहटाएंवाह बहुत बढ़िया चर्चा
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों गायब रहने के बाद आया तो लगा ही नही कंही गया था।मस्त चर्चा सेम टेस्ट,नो काम्प्रोमाईज़।मज़ा आ गया।
जवाब देंहटाएंबढ़िया.
जवाब देंहटाएंलड़की, कौमार्य,आत्महत्या, मुर्गा और पगलिया सारे ही घसीट डाले , बहुत खूब अनूप जी !
जवाब देंहटाएंलगे रहो मुन्ना भाई।
जवाब देंहटाएं--------
उल्टी चाल चले यह बंदा आखिर क्यों?
खाने-पीने के शौकीन हैं क्या...?
बहुत ही बढिया चर्चा!!
जवाब देंहटाएंniece charcha
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंकिन है तो यह भी शर्मनाक कि एक लड़की को इस तरह की पहल करनी पड़ी।
जवाब देंहटाएंab yae sab aap likhaegae to naari blog kaa kyaa karungi lagtaa haen band karvaana chahtey haen
रचना जी की टिप्पणी पर गौर किया जाय, देव!
जवाब देंहटाएंरचना जी की टिप्पणी पर गौर किया जाय
जवाब देंहटाएंसुगठित सुन्दर चर्चा....आभार.
जवाब देंहटाएंवाह ! एक रपट में इतना कुछ!
जवाब देंहटाएंसमाज का आइना ही मन लीजिए ऐसी घटनाओं को ! और क्या कहें ?
जवाब देंहटाएं@मनोज जी की पोस्ट का लिंक सही कर दीजिए !