कार्तिकेय मिश्र ने हुर्र…ल्क..ल्क..ल्क..किड़्बिक..किड़्बिक…..किड़्बिक……किया तो गौतम राजरिशी ने अपनी एक नहीं दो नहीं तमाम प्रेमिकाओं को याद किया। शायद कई को एक साथ याद करने पर मेमोरी डिस्काउंट मिलता हो! सतीश पंचम के सदरू भगत भी बाल्टियान बाबा के भजन गाते पकड़े गये:
बलटिहान बाबा, तेरो अजब है हाल
रे बाबा, तेरो अजब है हाल
मांगे न मोती, नाहीं हीरा
नाही मांगे गहना-गुरिया ,
मांगे चड्ढी-पुआल रे बाबा
तेरो अजब है हाल
रे बाबा......
अर्कजेश मानो खुफ़िया सूत्रों के हवाले से खबर की-कृष्ण की धरती पर वेलेंटाइन आए
शरद कोकास एक बच्चे द्वारा अपनी टीचर के लिये वेलेंटाइटन दिवस पर कोई कविता मांगने पर राजकपूर को याद करते हुये अपनी खुद की वेलेंटाइटन कविता सुना जाते हैं:
जेबखर्च से पैसे बचाकर
खरीदा गया चीनी मिट्टी का गुलदस्ता
प्लास्टर ऑफ पेरिस की कोई मूरत
लाख की एक कलम
पालिश किया हुआ कोई कर्णफूल
पत्थर जड़ी नाक की लौंग
या काँच की चूड़ियाँ
किसी को सौंपते हुए
मन कांपता था
कहीं कुछ टूट न जाये
चटख न जाये कहीं कुछ
कोई खरोंच न आ जाये
वैसे आपको प्यार का ब्रांड वगैरह के बारे में कौनौ दुविधा होय तो इधर आ जाइये- आशु के कने।
श्रीश पाठक ’प्रखर’ वेलेंटाइन के मौके पर आवारगी करना चाहते हैं- आपको कौन एतराज तो नहीं? उनका सवाल है-
भारत में दो तरह के लोग इस दिन का विरोध् करते हैं। एक तो, शिव सेना जैसे कुछ राजनीतिक दल, खाप व जाति पंचायतें तथा सामंती मूल्यों को प्रश्रय देने वाले कई और तरह के संगठन व संस्थाएं। दूसरे, बाजारवाद का विरोध् करने वाले। प्यार जैसी स्वाभाविक मानवीय भावनाओं को बाजारू बना दिए जाने का विरोध् तो होना ही चाहिए। प्यार की सच्ची भावना को किसी सुंदर ग्रीटिंग कार्ड, गिफ्रट या एसएमएस की जरूरत नहीं होती। हर दिन प्यार का दिन है लेकिन प्यार का कोई एक दिन मनाने में दित भी क्या है? यदि शिक्षक दिवस और शहीदी दिवस मनाए जा सकते हैं तो वेलेन्टाइन डे क्यों नहीं?
सुधा सिंह ने इस मौके पर लिखा है-चाहिए एक और संत वेलेन्टाइन
लेकिन पहले आप गिरिजेश राव की पोस्ट देखिये जिसमें उन्होंने अपनी वेलेंटाइन कथा लिखी है और जिसके चलते उनको मैन ऑफ़ द डे बना दिया। गिरिजेश लिखते हैं:
तुम्हारे सहारे ढेरों भंगिमाएँ बना सकता हूँ, निभा सकता हूँ। हाँ, पीछे झुकता जा सकता हूँ - पता जो है कि गतिशील खम्भा सम्हाल लेगा। आवश्यकता पड़ने पर आगे भी खड़ा हो जाएगा - मैं चुपचाप ओट ले सकूँगा। ..तुम हो तो सब हैं - घर, दीवार, बच्चे, रसोई, सेमिनार, ट्रेनिंग, प्रोजेक्ट, फाइनेंस, निगोसिएसन, ब्लॉगरी ... तुम हो सब है.
घुघुतीजी तो आज भी वेलेंटाइन दिवस मना रही हैं विस्तार से देखिये।
तोषी से सुनिये क्यों "क्यों खास है मेरे लिए वेलेनटाइन डे........."
शकुंतला का प्रेम पत्र बांचिये और आगे की योजनायें भी। शकुन्तला आवाहन करती हैं:
जल्दी ही आ जाओ। आने के पहले मोबाइल कर देना ताकि मैं अपने मुँह पर रूमाल बाँधकर तुम्हारे साथ हमेशा हमेशा के लिये चले जाने के लिये तैयार रहूँ।
मीनू खरे जी की तो बातै गजब है। उन पर प्यार के वायरस का अटैक हो गया भाई , सुनहला जुखाम हो गया! देखिये:
तुम्हारे प्यार के वायरस
के अटैक से
सुनहला ज़ुकाम हो गया है
मेरे मन को
और
बार-बार आने वाली
मेरी छींकों की आवाज़ से
गूँजने लगी है दुनिया
सच कहते है न
प्यार छुपाए नहीं छुपता!!!
विवेक रस्तोगी के हाल भी कुछ इसी तरह के हैं! देखिये जरा:
तुम हो तो सब कुछ है जीवन में,
तुम हो तो सब सुख है प्रिये,
तुम हो तो मैं हूँ प्रिये,
तुम हो तो हर क्षण हर्ष का है प्रिये,
कविता रावत याद करती हैं सच्चे प्यार को:
अक्सर याद आती है तेरी प्यारभरी बातें
वे छुपते-छुपाते प्यारभरी मुलाकातें
जब प्यार में एक-दूजे में खो जाते
खोकर प्यार भरी दुनिया कि सैर करते
अच्छा लगता है प्यार में डूब जाना
डूबकर तेरे करीब आना
शाम ढले तेरी याद का आना
आकर फिर दूर न जाना
निर्मला कपिला लिखती हैं:
जख्मी सी चाहते हैं,खार सी जिन्दगी!
क्यों लगे मुझे दुश्वार सी जिन्दगी!
आकांक्षा यादव ने अपना पहला प्यार पतिदेव को समर्पित कर दिया। देखिये:
एक अनछुये अहसास के
आगोश में समाते हुए
महसूस किया प्यार को
कितना अनमोल था
वह अहसास
मेरा पहला प्यार !!
शेफ़ाली पाण्डेय का अंदाजे बयां ही कुछ और है। वे अपने स्कूल में बच्चों के विदा होने के किस्से सुनाती हैं। एक झलक देखिये:
विदा की बेला में नाराज़ विद्यार्थियों ने कुर्सियों को इस तरह से लगाया था कि धूप सीधे मास्टरों के मुँह पर पड़े. साल भर धूप में मुर्गा बनाने का बदला ये इस तरह चुकाते हैं.
सर कुछ मरे हैं और थोड़े से घायल हुये हैं!कोई खास बात नही है सर!वैसे हमने खान का एक पोस्टर तक़ नही फ़ाड़ने दिया है!मैं अपनी कुर्सी पक्की समझू न सर!थैं पूरी पोस्ट विनजिप कर दी न अनिल पुसदकर ने शीर्षक में!
संजय बेंगाणी सलाह देते हैं कुछ भी गलत-सलत मत लिखो प्लीज और सरदेसाई की लिखी बताते हैं:
“धमाके तब भी होते थे, जब बीजेपी सत्ता में थी, धमाके तब भी होते है जब कॉंग्रेस सत्ता में है. धमाके पार्टी देख कर नहीं होते.” (कड़ी) आयी बात समझ में?
वेलेंटाइन के एक दिन पहले रचना त्रिपाठी ने शीर्षक में सुर्रा छोड़ा न नारी स्वातंत्र्यमर्हति (नारी स्वतंत्र रहने योग्य नहीं है… )!!! तो एक बारगी लगा कि येल्लो ये भी उसी तरफ़ चल दीं। लेकिन नहीं वे तो बड़ी ऊंची बात कर रही हैं:
अशिक्षित महिलाओं के साथ साथ कुछ पढ़ी-लिखी महिलाओं को भी जहाँ पूर्ण स्वतंत्रता मिली उनमें उसका दुरुपयोग करने की प्रवृत्ति उजागर हो गयी। शायद स्त्री अभी भी बहुत कमजोर है। आत्मनियन्त्रण की शक्ति का अभाव दिखता है मुझे। उसे अपने आप को मजबूत बनाने में कोई कसर नही छोड़नी चाहिये। यह मजबूती उचित शिक्षा ही दिला सकती है, नारी को शिक्षा के प्रति जागरुक होना बहुत जरूरी है।
वेलेंटाइन के पहले समीरलाल साधु दर्शन करके अखाड़ेबाज बनना चाहते थे। वेलेंटाइन दिवस के बाद शायद हालत में सुधार हुआ हो:
अखाड़ों मे
तलाशूँ
अनन्त शांति को!
वंदनाजी की यह कहानी बांचते हुये शायद परसाईजी के लेख निन्दा रस की याद आये।
उत्तराखंड कुमाऊं के विख्यात पर्यटन स्थल भीमताल की जून एस्टेट में फ्रेडरिक स्मेटाचेक के घर पर (माफ करें फ्रेडरिक स्मेटाचेक जूनियर के घर) पर आपको एशिया का सबसे बड़ा व्यक्तिगत तितली संग्रह देखने को मिलेगा। और अब फ़्रेडरिक नहीं रहे। पढ़िये फ़्रेडरिक के बारे में इस लेख में विस्तार से।
अवधी के गीतकार लवकुश दीक्षित ने अपने गीत बसन्त राजा फ़ूलइ तोरी फ़ुलवारी! में बसन्त के विभिन्न उपमानों का वर्णन किया है। एक बिम्ब देखिये:
मदमाते भौंरा कली का मुंह चूमैं
रंग रंगी तितली पराग पी झूमैं
लपटी बेलि गरे बेरवा के
बप्पा की बिटिया दुलारी!
बेल पेड़ से इस तरह लिपटी है जैसे बेटी अपने पिता के गले से लिपटी हो। अद्बुत मानवीकरण! यह गीत लवकुश दीक्षित की आवाज में सुनिये यहां!
एक लाईना
- प्रेम-चतुर्दशी पर अपनी कुछ प्रेमिकाओं की याद में...गौतम राजरिशी : ने देखो क्या हाल बना रखा है!
- कृष्ण की धरती पर वेलेंटाइन आए: और छा गये!
- इतनी बड़ी उम्र की मैडम से प्रेम ..वह भी मिस वेलेंटाईन:अरे करने दीजिये न! आप काहे को सांस्कृतिक सेना बने हैं!
- बातों वाली गली में : में सब है बतरस, निंदा, चुगली!
- न नारी स्वातंत्र्यमर्हति (नारी स्वतंत्र रहने योग्य नहीं है… )!!!: ये क्या के री हैं आप रचना त्रिपाठी जी?
- प्यार का ब्रांड : दातुन चबाते हुये दिखा
- ज़िंदगी चाहिए या बेडरूम...खुशदीप:जल्दी बताओ
- कुछ भी गलत-सलत मत लिखो प्लीज : जो करना हो कर डालो बस्स!
- भांग में बहुत मजा हौ. .. : देख रहे हैं सब कविता में आ गया है
मेरी पसन्द
बहुत दिनों से मैं
किसी ऐसे आदमी से मिलना चाहता हूँ
जिसे देखते ही लगे
इसी से तो मिलना था
पिछले कई जन्मों से
एक ऐसा आदमी जिसे पाकर
यह देह रोज़ ही जन्मे, रोज़ ही मरे
झरे हरसिंगार की तरह
जिसे पाकर मन
फूलकर कुप्पा हो जाए
बहुत दिनों से मैं
किसी ऐसे आदमी से मिलना चाहता हूँ
जिसे देखते ही लगे
अगर पूरी दुनिया अपनी आँखों नहीं देखी
तो भी यह जन्म व्यर्थ नहीं गया
कि पा गया मैं उसे
जिसे मेरे पुरखे गंगा नहा कर पाते थे
किसी को मैं अपना कलेजा
निकालकर दे देना चाहता हूँ
मुद्दतों से मेरे सीने में
भर गया है अपार मर्म
मैं चाहता हूँ कोई
मेरे पास भूखे शिशु की तरह आए
कोई मथ डाले मेरे भीतर का समुद्र
और निकाल ले सारे रतन
मैं जानना चाहता हूँ
कैसा होता है मन की सुंदरता का मानसरोवर
छूना चाहता हूँ तन की सुंदरता का शिखर
मैं चाहता हूँ मिले कोई ऐसा
जिससे मन हज़ार बहानों से मिलना चाहे
जिसे देखते ही भक्क से बर जाए आंखों में लौ
और लगे कि दीया लेकर खोजने पर भी
नहीं मिलेगा धरती पर ऐसा मनुष्य
बहुत दिनों से मैं
किसी ऐसे आदमी से मिलना चाहता हूँ
जिसे देखते ही लगे
करोड़ों जन्मों के पाप मिट गए
कट गए सारे बंधन
कि मोक्ष मिल गया इसी काया में-
दिनेश कुशवाहा की कविता संवादघर ब्लॉग से
...और अंत में
अब और कुछ बचा नहीं है। प्रख्यात व्यंग्यकार रवीन्द्र नाथ त्यागी लिखा करते थे- उससे जितना सौंदर्य निहारा गया उसने निहार लिया। बाकी दूसरों के लिये छोड़ दिया।
उसी तर्ज पर जित्ते चिट्ठे हम देख पाये आपको दिखा दिये। बाकी छोड़ दिये आपके लिये आप खुद देखें।
दिन आपका झकास बीते। खुशनुमा। प्यार भरा।
बहुत विस्तृत चर्चा, कुछ लिंक छूटे थे, जो यहाँ मिल गये।
जवाब देंहटाएंjitta samajh paaye samajh lie baaki doosaron ke lie chhod diye. jitta samjhe hain uska saar yah hai ki ek laina me maja nahi aayi aur meri pasand shaandaar rahi . pyaar ka virus sarvshreshth!
जवाब देंहटाएंलगभग सारे लिंक पढ़े हुए हैं । बेहतरीन चर्चा । लवकुश दीक्षित जी की चर्चा कर उपकार किया आपने । आभार ।
जवाब देंहटाएंआपने वेलेन्टाइन में मुझे भुला दिया। रोऊँ या हसूँ? कोई बात नही... :(
जवाब देंहटाएंहमको भी बहुत तेज़ ज़ुकाम हो गया है। यह बीमारी है ही संक्रामक .. एक को हो तो जो भी संपर्क में आया उसको भी धर लेता है। और कल तो बहुते लोग छींक रहे थे। चर्चा ज़ोरदार रही। कुछ ज़ुकाम पीड़ितों से कल नहीं मिल पाया था आज मिलन हो गया .. मतलब रही-सही कसर भी पूरी हो गई।
जवाब देंहटाएंअनूप जी, घुघूती को अपना वेलेंटाइन मिले ३७ वर्ष हो गए। यह १० वर्ष पुरानी कहानी किसी और की है।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
मदमाते भौंरा कली का मुंह चूमैं
जवाब देंहटाएंरंग रंगी तितली पराग पी झूमैं
लपटी बेलि गरे बेरवा के
बप्पा की बिटिया दुलारी!
---------------- iahai pai tau ham bhee lattu hain ...
,,,,,,,,,,,, sundar charcha
वेलेन्टाईनमय चर्चा!!!
जवाब देंहटाएंशीर्षक से तो लगा कि डॉ० अनुराग की समीक्षा है....!! :)
जवाब देंहटाएंसुरमई रही आज की वैलेंटाइनी चर्चा :)
जवाब देंहटाएंसचमुच ही वैलेन्टाइनी चर्चा.
जवाब देंहटाएंविस्तृत चर्चा ...
जवाब देंहटाएंvistrit valentine charcha.
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों से मैं
जवाब देंहटाएंकिसी ऐसे आदमी से मिलना चाहता हूँ
जिसे देखते ही लगे
करोड़ों जन्मों के पाप मिट गए
कट गए सारे बंधन
कि मोक्ष मिल गया इसी काया में-
यह अच्छा लगा ,धन्यवाद.
सच कहा देव, मेमोरी डिस्काउंट सचमुच में मिला है।
जवाब देंहटाएंशेष चर्चा एकदम झकास...अये त्यागी जी के व्यंग्य-बाण को अपने तरकश में छुपा के जा रहे हैं कि यदा-कदा मौका ताक कर हम भी चला सकेंगे यत्र-तत्र।
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जवाब देंहटाएंइस जुकाम के वाइरस लोग बिगड़ कर अपुन को निमोनिया में पटकैली है, बाप ।
एक भी डाक्टर वैद बतायाइच नहीं कि हैप्पी वैलेन्टाइन बोलने से आराम मिलेंगा ।
अम चर्चा को इसी वास्ते पढ़ता के इधर को झक्कास आइडिया का नालेज़ मिलता ।
छा गये । वेलेंटाइन के वाइरस । ये भी चीन्ह चीन्ह के हमला करता है क्या ।
जवाब देंहटाएंदिनेश कुशवाहा की कविता हमें भी बहुत पसंद आयी। वेलेंटाइन दिवस पर हमें भी जुकाम लगने ही वाला था लेकिन इतने में अर्चना श्रिवास्तव जी की पोस्ट सामने आ गयी और बता गयी कि 1931 में 13 फ़रवरी को भगतसिंह और उनके साथियों को फ़ांसी पर चढ़ाया गया था,ऐसे में 14 फ़रवरी को वेलेंटाइन मनाना और 13 फ़रवरी को उन वीर पुत्रों को याद भी न करना मन को अच्छा नहीं लगा।
जवाब देंहटाएंअब दूसरी पोस्ट पढ़ी तो लग रहा है कि अर्चना जी की जानकारी सही नहीं थी, दिल को तसल्ली मिली, थोड़ी ग्लानी कम हुई, अब कह सकते है हैप्पी वेलेंटाइन्स डे टू ऑल ऑफ़ यू…ऑल इस वैल्….…:)
जवाब देंहटाएंवैसे तो पूरी चर्चा ही रोचक है, पर एक बार फिर मुझे आपकी पसंद सबसे अच्छी लगी.
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएं@ anitakumar
धन्यवाद अनीता दी,
मेरे मन की भड़ास आपने बिना लाग-लपेट के इस मँच पर रखी, जो मैं निमोनिया का रूपक बना कर स्पष्ट न कर सका ।
इस सँदर्भ में मेरी टिप्पणी यहाँ देखी जा सकती है ! वर्तमान बुद्धिजीवी यदि इतनी गैरजिम्मेदार और दयनीय कृतघ्नता अपना लें, तो वह स्वयँ ही आने वाले समय का अँदाज़ा लगा लें !
अर्चना श्रीवास्तव शत-प्रतिशत सही नहीं हैं, पर बाबर द्वारा इस दिन मुगल साम्राज्य की स्थापना से गुलाम भारत का प्रादुर्भाव इसे सर्वाधिक कालिमापूर्ण बनाता है !
धन्यवाद अनूप जी. चर्चा आज देखी. बहुत अच्छा लगा.सारे लिंक्स पढ कर मज़ा आया.आशा है सानन्द होंगे.
जवाब देंहटाएंक्या ही शानदार ढंग से की गई लिंकात्मक चर्चा है यह आदरणीय अनूपजी।
जवाब देंहटाएंक्या ही शानदार ढंग से की गई लिंकात्मक चर्चा है यह अनूपजी। आभार।
जवाब देंहटाएंप्यार में पगी हुई चर्चा के लिये धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएं:)
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