१२ जनवरी से शुरु हुई जद्दो जेहद को आज अंजाम पाते देख खुशी से आँख छलक आई. इसे कहते हैं कि अगर जज्बा हो तो मंजिल पाने से( या मंजिल पर वापस लौटने से) कोई नहीं रोक सकता. भाई श्रीश शर्मा उर्फ पंडित जी १२ तारीख से विचारे, फिर वर्ड प्रेस को विदा कहे, फिर नये घर आकर( मात्र चार पोस्टों में) ही माने. बधाई, नये घर की. हम तो बीच में हिम्मत हार ही बैठे थे कि बंदा अब यही सब लिखता रहेगा, कि जा रहा हूँ, जाऊँ कि न जाऊँ, अब चल पड़ा हूँ, अब रास्ते में हूँ, अब रास्ता भूल गया हूँ. मगर नहीं, हिम्मती पंडित जी पहुँच ही गये ब्लागर धाम. बधाई. लड्डू बंट रहे है और बताया जा रहा है कि नये और पुराने घर में क्या अच्छा है और क्या बुरा. बधाई, भाई, बधाई.
हम तो बधाई दे रहे हैं मगर जीतु भाई को देखो, क्या नेक सलाह दे डाली:
अब तुम्हरा का कहें, इधर उधर भटक रहे हो बार बार, लगातार। अब कल को कोई तीसरा कुछ नयी चीज लगाएगा तो वहाँ टहल जाओगे? तुम्हारा हाल अगर नटशैल मे कहा जाए तो फिल्म खून भरी मांग वाले कबीर बेदी की तरह हो गया है।
रेखा------>सोनू वालिया------->रेखा
अपने घर मे जाओ, सबसे ज्यादा सुखी। पूरी आजादी, लेकिन जिम्मेदारी बढ जाती है। खैर, भैया, कभी ना कभी तो घर बसाना ही पड़ता है, आज नही कल, कभी ना कभी तो मोह भंग होगा ही इस ब्लॉगर से भी।
उधर हमारे फुरसतिया जी भी जनता की भारी मांग पर हाथ मुँह धोकर बेहतरीन नयी पोस्ट लेकर आये हैं: गाँधी जी, निराला जी और हिंदी पोस्ट लंबी होने के बावजूद एक सांस में पढ़वाने की काबिलियत रखती है.
निराला जी विलक्षण, स्वाभिमानी व्यक्ति थे। वे जिन लोगों का बेहद सम्मान करते थे उनसे भी अपनी वह बात कहने में दबते न थे जिसे वे सही मानते थे। किसी का भी प्रभामंडल उनको इतना आक्रांत न कर पाता था कि वे अपने मन की बात कहने में हिचकें या डरें।
आगे निराला जी कि गांधीजी से बातचीत बता रहे हैं:
महात्माजी ने पूछा-”आप किस प्रांत के रहनेवाले है?”
इस प्रश्न का गूढ़ संबंध बहुत दूर तक आदमी को ले जाता है। यहां नेता,राजनीति और प्रांतीयता की मनोवैज्ञानिक बातें रहने देता हूं, केवल इतना ही बहुत है, हिंदी का कवि हिंदी-विरोधी बंगली की वेश-भूषा में क्यों?
मैने जवाब दिया-” जी मैं यहीं उन्नाव जिले का रहनेवाला हूं।”
महात्माजी पर ताज्जुब की रेखाएं देखकर मैने कहा-”मै बंगाल मे पैदा हुआ हूं और बहुत दिन रह चुका हू।”
महात्माजी की शंका को पूरा समाधान मिला। वह स्थितप्रज्ञ हुए, लेकिन चुप रहे; क्योकि बातचीत मुझे करनी थी, प्रश्न मेरी तरफ़ से उठना था।
आगे आप उनकी पोस्ट पढ़ें .
सृजन शिल्पी जी जहाँ अपने चिट्ठे की वर्षगांठ मना रहे हैं, वहीं एक शानदार पोस्ट भी लेकर आये हैं गाँधी जी ट्रस्टीशिप के सिंद्धांत पर और आप सब से आव्हान कर रहे हैं :
गाँधीजी के न्यासिता संबंधी सिद्धांत का एक नया व्यावहारिक मॉडल भी मैंने तैयार किया है, जो किशोरलाल मश्रुवाला और नरहरि पारीख द्वारा तैयार किए गए और कुछ संशोधनों के साथ स्वयं महात्मा गाँधी द्वारा अनुमोदित सूत्रों पर आधारित है। इससे पहले कि मैं आपके समक्ष न्यासिता का वह मॉडल पेश करूँ, बेहतर होगा कि हम न्यासिता के सिद्धांत और उसके अर्थशास्त्र को गाँधीजी के शब्दों में ही ठीक से समझ लें। गाँधीजी अपनी बात को सरलतम शब्दों में व्यक्त करते थे, इसलिए उसकी अलग से व्याख्या करना मेरे ख्याल से आवश्यक नहीं है।
मेरा आपसे अनुरोध है कि न्यासिता के इस सिद्धांत के बारे में आप अपनी राय से जरूर अवगत कराएँ और यह भी बताएँ कि क्या आप इस सिद्धांत को अपने जीवन में किसी हद तक व्यवहारिक रूप से अपनाने लायक मानते हैं।
अभी इनकी वर्षगांठ की दावत उड़ाकर निकल ही रहे थे कि जीतु भाई का सालाना सिरियल का अंक देखने को मिला. जिसका गतांक आज से ठीक एक वर्ष पहले आया था, इस अंक में वो अपने वीजा के झमेले के बारे में बता रहे हैं. आशा की जा रही है, कि इसका अगला अंक जल्द ही लाया जाये, वरना पहले वाला तो भूल ही जाते हैं और फिर से पढ़ना पड़ता है. अच्छा लगता है क्या ऐसे जुल्म करते हुये.
कल और परसों के चिट्ठा चर्चा पर प्रेमलता जी टिप्पणी देखकर मुझे लग रहा है कि कोई उनके नाम से टिप्पणी कर गया है. अन्यथा जिन प्रेमलता जी को मै जानता हूँ, उन्होंने तो मुझे निरुत्साहित करने वाली कविताओं को छोड़ उत्साहपूर्ण कविता लिखने की ओर मोड़ा था. अरे भाई, ऐसा मजाक मत करो आप लोग. इतना बेहतरीन चल रहा है ज्योतिष पर जानकारी का सिलसिला. वैसे एक बात जरुर कहना चाहूँगा कि किसी भी चिट्ठाचर्चाकार का यही प्रयत्न होता है कि अधिक से अधिक चिट्ठों के बारे में लिखे और मै नहीं समझता कि कोई भी किसी को जानबूझ कर नजर अंदाज करता है. नारद पर भी सब कुछ स्वचालित है, मगर किन्हीं कारणोंवश कभी कोई पोस्ट आते ही पिछले पन्नों पर चली जाती है और अगर आप मेरा चिट्ठा पढ़े तो मेरी पिछली पोस्ट की शुरुवात मैने इसी मुद्दे को लेकर की थी. राकेश खंडेलवाल जी भी इन परिस्थितियों से गुजर रहे हैं और परेशान भी रहे. मगर हम सब समझ रहे हैं कि किन्हीं तकनिकी कारणों से ऐसा हो रहा है. आशा है प्रेमलता जी, अगर वाकई उन्होंने यह टिप्पणियां की हैं तो, अपने फैसले पर पुनर्विचार करेंगी और अपने बेहतरीन लेखन को जारी रखेंगी. कभी हमने आपकी बात मान कर निराशावादी कविता लिखना कम कर दिया था तो आज आप हमारी बात मान कर लेखन जारी रखें, यही गुजारिश है. :)
हमेशा की तरह हमारे नितिन हिन्दुस्तानी जी दो दो ज्ञान की बात बता रहे हैं, एक तो ब्लागर में लेबल कैसे लगायें साइड बार मेनु बनाने के लिये और दूसरा अपने चिट्ठे की गूगल रेकिंग कैसे चेक करें. हम कर आये, बताने लायक नहीं है. बस ४ है इसलिये नहीं बता रहा हूँ. :(
इसी तरह की ज्ञानधारा आशीष जी अंतरीक्ष की जानकारी दे देकर बहाये हुये हैं और हम भी हर बार उन्हें उत्साहित करके इसी में फंसायें है और इसमें हमारा साथ देने टिप्पणी सम्राट संजय भाई और माननीय फुरसतिया जी भी जुटे हैं ताकि कहीं वो अपनी हंसी मजाक वाली पोस्ट पर वापस न आ जायें वरना हमें कौन पढ़ेगा. जब तक वो वहाँ उलझे हैं, सोचता हूँ अपनी आठ दस पोस्ट सटका देता हूँ. आशीष भाई, बहुत अच्छी और ज्ञानवर्धक जानकारी दे रहे हो, लगे रहो, साधुवाद.
रचना जी ने भारतीय राजनीतिक परिदृष्य दिखाया तो आँखें खुली रह गई और तब तक महाशक्ति एक और गजब की खबर लेकर भागते चले आये कि सास को लेकर दामाद भाग गया. लेकिन इस बात का राजनीति से कुछ लेना देना नहीं है, यह पहले बता दिया जा रहा है.
वाह वाह, रवि रतलामी भाई भी क्या खबर लायें हैं, इंडीब्लॉगीज़ 2006 पुरस्कारों के लिए नामांकन प्रक्रिया प्रारंभ हो गई है. अब चहल कदमी शुरु करना पड़ेगी. अभी तो पिछली थकान नहीं उतरी.
इंडीब्लॉग़ीज - भारत के पहले, और असली (माइक्रोसॉफ़्ट इंडिक अवार्ड की तरह नक़ली नहीं, जिसे ईनामों की घोषणा तो की, परंतु ईनाम अब तक नहीं दिए!) इंडिक ब्लॉग पुरस्कार वर्ष 2006 के लिए नामांकन प्रक्रिया प्रारंभ हो चुकी है. भारतीय भाषाओं के चिट्ठाकारों को इंडीब्लॉगीज़ पुरस्कार प्रदान करने का यह लगातार चौथा गौरवशाली वर्ष है, जिसे पुणे स्थित सॉफ़्टवेयर सलाहकार देबाशीष चक्रवर्ती अंजाम दे रहे हैं.
बाकी प्रक्रिया और अधिक जानकारी के लिये यहाँ देखें.
अफलातून जी ने बताया गांधी-सुभाष: भिन्न मार्गों के सहयात्री के विषय में और अनुराग जी बोले कभी भी प्लास्टिक के बर्तन में रख कर माइक्रोवेव में खाना ना गर्म करें। स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। सिर्फ चीनीमिट्टी के बर्तनों का ही प्रयोग करें।
मना तो कर गये तब रा.च. मिश्र जी पूछे- क्यों और कैसे? तब से अनुराग मिल नहीं रहे हैं.
मनीष जी अब गीतमाला की ११ वीं पायदान तक पहुँच गये हैं, सुनें मधुर संगीत.
प्रतीक भाई तो हमेशा से एक से एक तस्वीर लाते रहे हैं, देख तो सभी लेते हैं मगर कुछ टिप्पणी करने में जरा शरमा से जाते है, कभी डर से तो कभी, हाय, लोग क्या कहेंगे. उसी तर्ज पर आज बेनजीर भुट्टो की नये अंदाज की तस्वीर लायें है. हमने देख ली है और टिप्पणी नहीं की, यही सोचकर- हाय, लोग क्या कहेंगे.
राजसमुन्द वाले जीतु भाई ने एप्पल के आई फोन की कथा सुनाई.
आज ज्यादा कविता नहीं हुई मगर जो हुई हैं वो बड़ी उच्च कोटि की हैं, एक तो गीतकार की कलम से : मौन की अपराधिनी और दूसरी, मै प्रतीक्षित-कोई तो हो:
जानता हूँ स्वप्न सारे शिल्प में ढलते नहीं हैं
यज्ञ-मंडप में सजें जो पुष्प नित खिलते नहीं हैं
कल्प के उपरांत ही योगेश्वरों को सॄष्टि देती
औ' उपासक को सदा आराध्य भी मिलते नहीं हैं
किन्तु फिर भी मैं खड़ा हूँ, दीप दोनों में सजा कर
कोई तो आगे बढ़ेगा, आज मैं आवाज़ दूँ जब
२७ जनवरी २००७, संयुक्त राज्य अमेरिका की सिएटल नगरी में डा बृजेन्द्र अवस्थी को श्रद्धान्जलि देते हुए कार्यक्रम "कुछ संस्मरण कुछ स्मृतियाँ - महान राष्ट्रकवि डा बृजेन्द्र अवस्थी" का आयोजन किया गया। इसकी रिपोर्ट पेश की निनाद गाथा पर भाई अभिनव शुक्ल जी ने.
आज की चर्चा में बस इतना ही. जो चिट्ठे चर्चा से रह गये हों, उनसे क्षमा प्रार्थना. आप यहाँ टिप्पणी के माध्यम से भी अपनी प्रविष्टी की सूचना दे सकते हैं, यकिन मानिये लोग टिप्पणियां भी बड़ी दिलचस्पी से पढ़ते हैं, जब भी आ जाती हैं तब!!!
सब सही है, पर मुण्डली कहाँ है?
जवाब देंहटाएंसही है जी, मुण्डली के बिना हम तो जान ही नहीं पाए आज समीर जी चर्चा किए हैं, वो तो नीचे नाम देख कर मालूम पड़ा।
जवाब देंहटाएंसब पर समान दृष्टि ही तो समीर भाई की निशानी है,बहुत खुब सभी चर्चाओं को लयबद्ध किया…धन्यवाद!
जवाब देंहटाएं