बुधवार, फ़रवरी 21, 2007

आठ पोस्ट डिलीट, दो ब्लॉगों के पासवर्ड चोरी

भाई मैथली जी, थोड़ी सी जमीं, थोड़ा आसमां, पर बड़ा जोशीला प्रश्न उठाते हुये डिलिटल फिल्म और भारत पूछ रहे हैं कि क्या आप इस आने वाली डिजिटल क्रांति के लिये तैयार हैं?

जब तक आप पढ़कर मैथली भाई को बताईये, हम आपको आज प्रकाशित कविताओं के संसार में ले चलते है. कवियों और उससे भी ज्यादा कविताओं की बढ़ती तादाद को देखते हुये वो दिन दूर नहीं, जब शायद कविताओं की चर्चा हर रोज अलग से करने की टीम तैयार की जाये. इतनी अच्छी अच्छी कवितायें आ रहीं हैं कि क्या बतायें. एक पढ़ो, तो आँख भर आती है, दूसरी पढ़ो तो हँसी छूट जाती है और फिर अगली में जोश से चेहरा तमतमा जाता है और फिर एकाएक प्रेम के भाव. पत्नी सामने बैठी टीवी देख रही है. बीच बीच हमारे चेहरे को देख लेती है और यह सब भाव देखकर पागल समझने लगी है.

अब आगे जो भी हो, वो आगे, अभी तो यहीं चर्चा करना है:

स्वागत करते हैं वरिष्ट कवियत्री लावण्या शाह जी का उनके काफी दिनों से लिखे जा रहे चिट्ठे अंतर्मन पर जो कि आज ही नारद पर पंजीकृत हुआ है मौन गगन गीत

ओ मेरे, सँध्या के मीत!
मेरे गीत हैँ अतीत.
बीत गई प्रीत !
मेरे सँध्या के मीत
-कामना अतीत
रे कामना अतीत !
मौन रुदन बीन,
मौन गगन दीप!

और मृणाल भाई से एक नये तेवरी अंदाज में, क्या अमरीका के वासी हो? यह लो, हम ही कहे थे कि कविता सुनाओ और फुल टाईम कविता लिखने लगो. तो वो तो हमें ही दम दे रहे हैं. मगर नहीं भाई, हम तो कनाडा के वासी हैं:


२३० वर्ष की आज़ादी -
वाह! क्या आदर्श दिया है।
बिना बात के कारागार मे
कितनों ने संघर्ष किया है,
ऐसे युद्ध-विजय ने तुमको
जाने कैसा हर्ष दिया है।

भोले या अभिनय मे माहिर,
नही जानते जो जग-जाहिर?


अब अमरीका वालों से आप निपटना, हम तो आपको अमरीका वालों की कविता सुनवाते हैं, गीत सम्राट भाई राकेश खंडेलवाल जी के गीत कलश की:

चाँदनी रात के:


ढूँढ़ते ढूँढ़ते थक गई भोर पर
मिल न पाये निमिष चाँदनी रात के

डायरी के प्रथम पॄष्ठ पर था लिखा
नाम जो, याद में झिलमिलाया नहीं
तट पे जमुना के जो थी कटी दोपहर
चित्र उसका नजर कोई आया नहीं
बूटे रूमाल के इत्र की शीशियाँ
फूल सूखे किताबों की अँगनाई में
चिन्ह उनका नहीं दीख पाता कोई
ढल रहे एक धुंधली सी परछाईं में



और कलकत्ता से मान्या को सुनिये:


जब भी मिलता हूं तुझसे..
तू अलग, अलबेली..
मुझको बिल्कुल पगली सी लगती है..
कभी उलझती.. कभी सुलझती..
कभी अनगढ, अबूझ पहेली सी..
अजनबी..पर बिल्कुल अपनी सी लगती है..


और आलोक शंकर जी, जो कि नवागंतुक हैं, कह रहे हैं, कवि तू कर अब निर्मम गान ।


निज कविता के कर्कश स्वर से,
आज कँपा दे सबके प्राण
भर , कविता में अब कटु -स्वर भर
कवि तू कर अब निर्मम गान ।


गजब हाल तो हमारे संजीत त्रिपाठी जी का है जो कभी कभी होने वाली स्थिती का विवरण दे रहे हैं:


क्यों होता है ऐसा कभी-कभी
कि कुछ सोचना भी भारी लगे
और सोचे बिना रहा न जाए!
क्यों होता है ऐसा कभी-कभी
लगे ऐसा मानों हाथ-पैरों में जान न हो!.....और भी जाने इस तरह की कितनी स्थितियां.


इस पर समीर लाल से रहा नहीं गया. वैसे तो वो कुछ बोलते नहीं हैं, मगर यहाँ उनके संवेदनशील मन से रहा नहीं गया और बहा दिये ज्ञानधारा संजीत बाबू के लिये:


इस स्थिती को चिकित्सा शास्त्र में डिप्रेशन और धर्म शास्त्र में आत्म मंथन की स्थिती बताया गया है. मगर साहित्य में इसे भावुक लेख और भावुक कवितायें लिखने की सर्वोत्तम स्थिती माना गया है. एक से एक कविता लिख जाती हैं, ऐसे महौल में. मैने तो खुद लिखकर देखा है लेख और कविता दोनों. बिल्कुल भाई, ऐसा ही माहौल था, बड़ी हिट गई वो रचनायें. ऐसी हिट कि मुँह से निकल पड़ा, अह्हा, आनन्दम! :)आननदम!! और हम महौल के बाहर. फिर नार्मल सा लिखने लगे. अब तो इंतजार लगा रहता है कि कब यह माहौल फिर मिले. :)
लिख मारो दो चार कविता और, बेहतरीन जायेंगी, जैसे यह उपर वाली.इसकी तो बधाई अभी ले लो!!


और इन कविताओं के क्रम में रीतेश भाई भी हाथ साफ कर गये कि सबकी सुनी जा रही है तो हमारी भी सुनो. चलो, अच्छा सुनाओ, जल्दी जल्दी सुनाना. तुरंत शुरु , ये होता है असली कवि. न सुनना हो तो भी टंगडी मार कर सुना दे. लगे रहो बाबू, एक दिन लोग यहीं जमावड़ा लगायेंगे, शुभकामना:


आसान होता है कहना
पाप से नफ़रत करो पापी से नहीं
कठिन होता है पापी से नफ़रत न करना
आसान नहीं होता सुख-दुख में समान रहना
कठिन होता है दुखों में विचलित न होना....


अब आप पढ़ो, हम तो सुन आये. आज की कविता चर्चा यहीं समाप्त. हम अभी भी लिखते रहने में सक्षम हैं, बहादुर जो हैं. दावा करता हूँ कोई और इतनी कवितायें सुनने के बाद जगा भी रह जाये तो, लिखना तो दूर. पता नहीं बड़े दिनों से मन था कि एकाध चर्चा ऐसी हो कि सबसे बदला निकाल लूँ. मगर एक तो मेरी चुप रहने की आदत, उस पर शर्मीला व्यक्तित्व और उन सबके उपर, हमेशा लटकती चुनावी तलवार कि कहीं कोई बुरा न मान जाये तो जो दो चार वोट मिलने हैं, उसमें से एक गया ही समझो. मगर आज ही चुनाव खतम हुये हैं और अगला डिक्लेयर होते एकाध महिना तो लग ही जायेगा, तो आज कविता सुनवा सुनवा कर निकाल ही लिया. अब मन हल्का लग रहा है.

अच्छा याद आया, सूचना: इंडिक ब्लागर की वोटिंग का चरण पूरा हो चुका है. अब आपने जिसको भी वोट दिया हो, आप जानें. हमें दिया तो वाह वाह, नहीं दिया तो करनी का फल भगवान देगा. आप इस चुनाव में तो हमारा अब क्या कर लोगे. अरे भाई, मजाक कर रहा हूँ, अभी तो और चुनाव लड़ने हैं. यह कोई आखिरी थोड़े ही था. आगे भूल सुधार कर लेना.

इस दौर में आई आज की सबसे तूफानी और चर्चित धमाकेदार पोस्ट, कीबोर्ड के सिपाही की, भाई नीरज दीवान ने तो आज सबको अपना दीवाना बना दिया.हम तो अपने अगले चुनाव का उन्हें प्रचारक भी घोषित कर आये. अगर आपने यह आठ पोस्ट डिलीट, दो ब्लॉगों के पासवर्ड चोरी नहीं पढ़ी तो इसका मतलब आज आपने कुछ नहीं पढ़ा. अभी भी कल आने में समय है और अगर आज की सारी पोस्टों में से केवल एक पढ़ने की कसम खायी हो, तो यही पढ़ो, बस तर गये समझो:


इस रचना का किसी से कोई लेना-देना नहीं है अलबत्ता रचना पढ़कर कुछ लोगों को लेने के देने पड़ सकते हैं. यदि आपको इसमें कुछ आपत्तिजनक लग रहा है तो भी आप आपत्ति नहीं जता सकते क्योंकि होली के रंग में भंग डालकर यह रचना लिखी गई है. उखड़ने-उखाड़ने की बातों में उलझकर अपना और लेखक का मूड ना उखाड़े.. आप इसे अन्यथा ना लें क्योंकि लेखक ने अन्यथा ले लिया तो अगला लेख विशेष रूप से आप पर लिखा जाएगा. रचना पढ़ें और कमेंट ज़रूर दें. औरों की कमेंट पढ़कर ना कमेंटियाएं .. धन्यवाद
:

इसी पोस्ट पर चिपकी तस्वीर देखें और फुरसतिया जी को जरा ध्यान से देखें क्योंकि अभी उन्हें पढ़ना बाकी है. क्या पर्सनाल्टी है बॉस, दुकान वाला तक हिल गया:




इन्हीं सिपाही महाराज की वजह से हम भी कुछ पोस्ट किये थे मगर पोस्ट पिट गई, बॉक्स ऑफिस पर, इसके पिटने पिटाने के माप दंड अलग जो हैं. खैर आप देख भर लो, मन रह जायेगा गरीब का वाह रे यह चैनल . अभी से हौसला अफजाई को शुक्रिया कहे देते हैं, वहाँ तो मौका ही नहीं लग रहा.

तो यह तो रहा चुनावी चटखट का अंत. मतदान पेटिका में हमारे जैसे आठ लोग, जो कि आपसे संबन्धित हैं, अपनी किस्मत बंद करवाये बैठे हैं. बाकि सब अनिश्चित है सिवाय इसके कि सात का तो पक्का बंटाधार है और हम तो वो सातों नाम जानते हैं मगर बतायेंगे नहीं, चुप रहेंगे. :) देखिये, समय कैसे बदलता है, अब से चंद घंटों पहले तक आप सब चाँद थे और यह आठ चकोर, सब आपकी तरफ टकटकी लगाये बैठे थे. अब वोटिंग खत्म, अब यह आठ चकोर तो चकोर ही हैं, मगर अब चाँद आप नहीं देबाशीष हो गये हैं. अब आठों मुँह बाये उनको ताक रहे हैं. खैर, कल फिर समय बदलेगा. यही प्रकृति का नियम है.

अब चलते हैं मछली पकड़ खेल देखने. इस खेल में, आप पहले स्वयं मछली बनते हैं फिर अपने को पोस्ट लिखकर फ्राई करते हैं और फिर पाँच अच्छे स्वाद वाली नई मछलियां पकडते हैं, फिर वो पाँचो भी यही करते हैं जब तक कि पूरा तालाब न फ्राई न हो जाये. फ्राई होने से मना करने पर और नई मछलियां न पकड़वाने पर आपको समाज निकाला दिया जाता है और इसका बुरा माना जाता है.

इस मछली पकड़ खेल के करेंट सेशन में रचना जी फ्राई होते हुये जिन पाँच को पकड़ा, उनमें से एक तो उन्मुक्त बाबू पहले ही हाजिर होकर जवाब दे गये और अन्य दो हाजिर होकर फ्राई हुये और अपनी पसंद की नई मछलियाँ पकडवा कर किनारे हो लिये. इसमें पहले, रोहू के स्वाद वाले, फुरसतिया जी चिट्ठाकारी-पाँच सवाल पाँच जवाब यह तो भला हो उपर वाले का कि इनसे पाँच ही सवाल पूछे गये, दस होते तो आप उपन्यास पढ़ रहे होते. पूरा हिन्दी चिट्ठाकारी का इतिहास बता गये :


तो रचनाजी, चिट्ठाकारी यात्रा ने हमें ‘ अब कबतक ई होगा ई कौन जानता है के मौज-मजे और कौतूहल से शुरू करके इधर-उधर की गप्पाष्टक करते हुये हिंदी को समृद्ध करने के संकल्प के उस मोड़ पर ला खड़ा किया है जहां हम सोचने और कहने लगे हैं ‘अब हम देखते हैं ई कैसे नहीं होगा’। चिट्ठाकारी हमारे लिये ‘कइसे होगा’ से ‘कइसे नहीं होगा’ तक की यात्रा है जिसकी मंजिल है ‘देखो हम कहते थे अब हो गया न!‘ अपनी तमाम तकनीकी सीमाऒं के बावजूद मुझे इस बारे में कोई दुविधा नहीं है कि अगर हम चाहे तो हिंदी भाषा की समृद्धि के लिये इतना योगदान दे सकते हैं कि खुद हमको ताज्जुब होगा एक दिन -अरे यह हमने किया, हमने कर डाला, वाह क्या बात है।


इसी इतिहास को आगे-पीछे करते, अगली मछली, रोहू की समकक्ष कतला, भाई जीतू हाजिर हुये मेरी पाँच बातें लेकर और अपनी पाँच मछलियों को चिनिहाते ज्ञानी टाईप नजर आये:


रचना ने हमे सम्पर्क तब किया था जब नारद डाउन हुआ था, रचना की बहुत ही मर्मस्पर्शी चिट्ठी मेरे पास आयी थी, जिसमे रचना ने नारद के लिए सहयोग करने के लिए इच्छा जाहिर की थी। रचना की चिट्ठी इतनी भावभीनी और मर्मस्पर्शी थी कि मै भी रचना को जवाबी चिट्ठी लिखने के लिए मजबूर हुआ। इस चिट्ठी के बाद रचना को ब्लॉग जगत मे एक भाई मिला और मुझे एक प्यारी, नटखट और संवेदनशील बहन। वो रिश्ता आज तक कायम है और शायद ताउम्र रहे। कहने का मतलब है कि सम्मान, प्यार और स्नेह कमाया जाता है, मांगा नही जाता।


इसी क्रम में रचना के साथ मछली बनीं प्रत्यक्षा जी अब आईं और कहने लगीं कि चिट्ठाजगत में यह कैसी महामारी प्रभु , मगर फ्राई बहुत स्पीड से हुई जैसे रैपिड फायर राऊंड चल रहा हो और फिर पांच नई मछलियां अटकवा कर आगे चल दीं. यह अच्छी बात नहीं, आपको फिर टैग किया जायेगा और आपको अपनी शैली में ही जवाब देना होगा. बस समय का इंतजार करें. :)

और यहाँ खत्म मछली पकड़ खेल. तरकश आया, तीर छूटा, नया सर्वर स्पेस ले लिया जो संजय भाई ने बताया, मगर तारीफे काबिल यह कदम रहा. आप खुद देखें, खुशी का आत्म विश्वास , अमिताभ बच्चन के स्टेचर के आदमी से बात करते हुये. मान गये भई, खुशी ने जो उत्साह दिखाय है इतने बडे चिट्ठाकार से बिना घबराये बात की, वो तारिफे काबिल है. हर एक के बस की बात नहीं है यह. नहीं मानते तो सुनो इसे, और सुन कर हमें धन्यवाद देते न थकोगे कि वाह गुरु, क्या बात बताये हो. मगर वहाँ खुशी को बधाई संदेश लिख आओ, उसके बिना यह संभव नहीं था कि आप इतने बडे चिट्ठाकार के वाणी दर्शन कर पाते. खुशी को बहुत बधाई, और आगे और बेहतर करने को और शुभकामनायें.


अब आप सब पढते पढते थक गये होगे मगर इन्हें नज़र अंदाज मत करना:

भाई सुनील दीपक जी की छाया चित्रकारी और उनका आलेख भारत में बनी दवाईयां .

फिर देखें: तरुण भाई की फिल्म समीक्षा एकलव्य और दो बोनस और आईना वाले जगदीश भाई की प्रस्तुति: मुन्नाभाई इन अमरीका

और भी बातें हैं जैसे रवि भाई को सुनें- पुस्तक समीक्षा-तुर्रम तथा दिवा स्वपन.

और निलिमा द्वारा पेश का करूँ सजनी आये न बालाम यह पोस्ट विवादित होने की पूरी काबिलियत रखती है और अच्छा हुआ हमारे पहुँचने के पहले हमारे प्रिय प्रियंकर जी हाजिर थे वरना हम तो आदतन कह आये होते, वाह क्या भाव हैं :)
प्रियंकर जी कहे:



आतंकवादी घटना जिस पर क्रोध आना चाहिये और जिसकी कड़े-से-कड़े शब्दों में तीव्र भर्त्सना होनी चाहिये उसके संदर्भ में आपको विप्रलम्भ श्रंगार की भावुकता से भरी ठुमरी का मुखड़ा याद आ रहा है यह देख कर कुछ अज़ीब सा लगा . आपका शीर्षक 'पोस्ट' और 'पोस्ट के साथ लगी फोटो' के साथ कतई न्याय नहीं करता. पता नहीं आपने इस घटना को किस तरह लिया और लिखा है .


चलो, यह सब तो होता रहता है, निपट ही जायेगा. पहले भी इससे बड़े बड़े विवाद निपट गये मगर मैं अभी शोध कर रहा हूँ कि मसिजिवी ने किस तरह जवाब दिया. इसी में डूबा हूँ.

सबको सुना है तो हमारे आज के चाँद देबाशिष को भी सुनो, फेरी लगाते घुमते कह रहे हैं कि डोमेन ले लो, डोमेन!!

यदि आप को रुचि हो तो मुझे debashish at gmail dot com पर ईमेल कर बोली लगायें (टिप्पणी न करें केवल ईमेल करें)। अपने ईमेल में मुझे यह भी बतायें कि आप की इन डोमेन का क्या प्रयोग करने की योजना है। हो सकता है मैं मदद करने के लिहाज़ से आपका साथ भी दे सकूं।


सारे प्रलोभन हैं कि बस खरीद ही लो.

बस कोशिश की कि सब कवर हो जायें फिर भी कुछ छुट ही गये होंगे हमेशा की तरह. तो आप यहीं टिप्पणी में लिंक दे दें लोग पढ़ लेंगे और हमारे चिट्ठाचर्चक कल चर्चा कर लेंगे.

इजाजत हो तो थोडी देर सो लूँ, १२ बज रहा है और ऑफिस वाले समझते ही नहीं कि चिट्ठाचर्चा उनके प्रोजेक्टस से ज्यादा महत्वपूर्ण है, बेवकूफ हैं वो!!! :)

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7 टिप्‍पणियां:

  1. बधाई आपने सबसे महत्त्वपूर्ण काम चिट्ठाचर्चा को निपटा दिया. :) अब थोड़ा सो लें ताकि कम महत्त्वपूर्ण काम निपटा सके.

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  2. बहुत ही शानदार और जानदार चर्चा :D
    मजा आ गया।
    कविताओं के चिट्ठों की अलग चर्चा का सुझाव अच्छा तो है मगर हम जैसे जो लोग कविता नहीं पढ़्ते उन्हे अच्छी लिखी गई कविताओं के बारे में यहीं तो पता चलता है, चर्चा अलग अलग हो गई तो शायद कुछ कविताओं में रुची रखने वाले लोग ही वहां जायें ।

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  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  4. दो घंटे तक चर्चा की, पर इसे मिला कुल तीन टिप्पणी
    और दिखाते नारद बन्धु, टैप किया हैअर्ध शतक ने
    लगता जैसे निर्विकार हैं सारे के सारे पाठक गण
    द्वार न टिप्पणियों क खोले ,चर्चा की अब तक दस्तक ने

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  5. गुरू. हम तो आपके प्रचार के लिए तैयार हो जाएंगे लेकिन अपना मुंगेरी मुफ़्त में कोई काम नहीं करता है.. ये कहो कि वो डेस्क तोड़ने के लिए कुछ नही करता. उसके खर्चे-पानी का ख्याल रखना.. मैं आपका रख रहा हूं.

    सही बात है भई. कविताओं की चर्चा विस्तार से करना अत्यंत परिश्रम का काम है. वैसे इन दिनों कुछ कवि तो बेहतरीन लिखते हैं. हमे कविता लिखनी आती नहीं लेकिन पढ़ने में आनंद मिलता है. कुछ कविताएं रुलाती है तो कुछ हंसाती है.

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  6. वाह वाह, ऐसी टिप्पणियां... मन गदगद हो गया, मानोशी, नीरज, राकेश भाई, मित्र जगदीश, अनुज संजय....बहुत अच्छा लगा सब को देख कर. लगता है सच में ठीक ठाक लिखा है. :)
    ऐसा ही स्नेह बनाये रहें.

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