बुधवार, अक्तूबर 14, 2009

चर्चा टाईम्स



चिठ्ठा चर्चा बुधवार, अक्टूबर 14 2009 

जो साचा है हमने वही बांचा है..

...


नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका आज की चिठ्ठा चर्चा में बुधवार की चर्चा.. गुरूवार शुरू होने से ठीक पांच मिनट पहले कर रहा हूँ.. टाईम हुआ है.. ग्यारह बजकर पचपन मिनट.. तो अब आपका ज्यादा समय नही लेते हुए ले चलता हूँ आपको आज की चर्चा की ओर..


 ब्लॉग श्रीश उवाच पर पढिये




कैसा लगता है, जब फुटपाथ पर कोई लड़की सिगरेट बेचती है...?
श्रीश पाठक 'प्रखर'






हर   खाने   की  अपनी  मुश्किलें   है …नाते  रिश्तेदार   ..कभी कभी तो ऐसा लगा  जैसे  कन्फेशन बोक्स में खड़ी  हूं.....वो जिसे हम समाज कहते है ना... इसका  बड़ा  तंग जुगराफिया  है  यार .....एक तलाक़ के बाद औरत "सेकंड हेंड "हो जाती है....




अनुकरणीय पोस्ट

उर्मिला के पिता चल बसे उनकी सगी बेटी उनसे घुल-मिल नहीं रही थी। बूढ़े लोगों से दूरी का कारण उनका बुढ़ापा होता है। लगता था जैसे पराये घर सगी बेटी बिल्कुल पराई हो गयी थी। वे भरे मन से घर लौटे जरुर थे, लेकिन खुशी इसकी थी कि बेटी खुश है।

वृद्धों का पहला ब्लॉग

हिंदी की पहली कहानी पढ़े वेबलॉग पर                   वही झूले वाली लाल जोडा पहने हुए, जिसको सब रानी केतकी कहते थीं, उसके भी जी में उसकी चाह ने घर किया । पर कहने-सुनने की बहुत सी नांह-नूह की और कहा -इस लग चलने को भला क्या कहते हैं !  हक न धक, जो तुम झट से टहक पडे ।


आज की पोस्ट
बारूद की ढेर में खोया बचपन - रश्मि रविजा
8 साल की उम्र से ये बच्चे फैक्ट्रियों में काम करना शुरू कर देते हैं.दीवाली के समय काम बढ़ जाने पर पास के गाँवों से बच्चों को लाया जाता है.फैक्ट्री के एजेंट सुबह सुबह ही हर घर के दरवाजे को लाठी से ठकठकाते हैं और करीब सुबह ३ बजे ही इन बच्चों को बस में बिठा देते हैं.करीब २,३, घंटे की रोज यात्रा कर ये बच्चे रात के १० बजे घर लौटते हैं.और बस भरी होने की वजह से अक्सर इन्हें खड़े खड़े ही यात्रा करनी पड़ती है.

पठनीय पोस्ट: ब्लॉग "हैलो हिमालय" पर श्री लक्ष्मी प्रसाद पन्त के सौजन्य से


उस रात जब उड़ गया छप्पर - रस्किन बॉन्ड

बिस्तर के किनारे रखे रेडियो और बिस्तर की चादरों पर भी पानी की टप-टप चालू थी। अपने कमरे के भीतर गिरते-पड़ते मैंने देखा कि लकड़ी की बीम के बीच-बीच से पानी रिस रहा था और मेरी किताबों की अलमारी पर मजे से बरस रहा था। इस बीच बच्चे भी मेरे पास आ गए थे। वे मेरा बचाव करने के लिए आए थे। उनके हिस्से की छत अभी तक सही-सलामत थी। बड़े लोग खिड़कियां बंद करने के लिए संघर्ष कर रहे थे, जो खुली रहने के लिए बेताब थीं और ज्यादा से ज्यादा हवा और पानी को अंदर आने का रास्ता दे रही थीं।


पूंछ हिलाने की आदत
लोग हमेशा ढोंग करते हैं कि हमें चमचागीरी पसंद नहीं है। खासकर उच्च पदों पर बैठे लोग। लेकिन आंकड़े और तथ्य स्पष्ट कर देते हैं कि भइये
चमचागीरी तो सभी को पसंद है। अब अगर आपका
कोई बॉस कोई
खबर लिखता है और पूछता है कि कैसी है---
अगर आप उसकी आलोचना करने की कोशिश
करते हैं और अपनी बुद्धिमत्ता दिखाते हैं तो गए काम से। तत्काल कह दीजिए कि बहुत बेहतरीन सर...

ब्लॉग जिंदगी के रंग - सत्येन्द्र






व्यंग्य बाण - नीरज भदवार
दुर्घटना से देर भली!
कॉमनवेल्थ खेलों की तैयारियां देखकर लगता है कि
ये खेल दो हज़ार दस में न होकर, मानो दस हज़ार दो में होने हों। ऐसा कहने वालों के संस्कृति-बोध पर मुझे तरस आता है।
ये लोग शायद भारत की कार्य-संस्कृति से वाक़िफ नहीं हैं।
मेरा मानना है कि इस कार्य-संस्कृति के पीछे हो न हो, अस्सी-नब्बे के दशक की हिंदी फिल्मों का गहरा असर है।




चिटठा चर्चा : प्रस्तुतकर्ता कुश






ब्लॉग लविज़ा एक नए रूप में


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25 टिप्‍पणियां:

  1. कुश भाई, चर्चा अच्छी है लेकिन कुछ अधिक ही संक्षिप्त हो गई है।

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  2. जब अँधेरा होता हैएएऽऽ, आधी रात के बाद
    इक चर्चाकार निकलता है, लेकर चर चा, चर चा, चर चा
    अमॉ तुम्हें कौन दौड़ा रहा था कि, झट चर्चा फेंक कर भाग लिये
    चूँकि मेरी एक पोस्ट भी यहाँ दर्ज़ है, इसलिये कह सकता हूँ कि आपकी पसँद बड़ी ऊँची है :)
    जरा खुल्ले में सीनाठोंक चर्चा होय, तब तो बात है । अभी तो ताल ठोंकन वाले तो सोय गये होंगे, या पत्ते फेंट रहे होंगे ।

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  3. अच्छी चर्चा-थोड़ी छोटी है.

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  4. आपके माध्यम से कुछ और बेहतरीन पोस्ट पढ़ने को मिली....आभार....

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  5. वाह भाई कुश अच्छा रहा चर्चा । दिवाली की शुभकामनायें -शरद कोकास

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  6. मालूम ही नहीं पडा कि कब खत्म भी हो गई......

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  7. चिट्ठा चर्चा संक्षिप्त अवश्य है मगर सारगर्भित है।
    धनतेरस, दीपावली और भइया-दूज पर आपको ढेरों शुभकामनाएँ!

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  8. चर्चा का फ़ॉर्मेट अच्छा है... छोटी होने की शिकायत तो मुझे भी है :)

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  9. सु्बह-सुबह चर्चा देखकर मन खुश हो गया जी। कई पोस्टें तो मैंने इसी के द्वारा बांची। जय हो।

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  10. 11.55 pe comment nahi kar paaiya //socha pehla comment mera hi ho...
    but anyways...

    Aajkal charcha gehrati ja rahi hai....

    :)

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  11. संक्षिप्त मगर अच्छी चर्चा
    दीपावली पर्व की हार्दिक ढेरो शुभकामना

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  12. चर्चा का सलीका बेहतर रहता है आपका । संक्षिप्ततः पर सुन्दर । आभार ।

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  13. इससे बेहतर सारगर्भित चर्चा हो ही नही सकती.

    रामराम.

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  14. ब्लॉग रुपी सागर को लोटे में समाने का प्रयास !
    करते रहिये कोशिश
    आभार

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  15. वाह भाई वाह!!!
    (संक्षिप्त ही सही)



    प्राइमरी के मास्टर की दीपमालिका पर्व पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें!!!!

    तुम स्नेह अपना दो न दो ,
    मै दीप बन जलता रहूँगा !!


    अंतिम किस्त-
    कुतर्क का कोई स्थान नहीं है जी.....सिद्ध जो करना पड़ेगा?

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  16. कुश की चर्चा ने किया बहुतो को खुश

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  17. मैं इस ब्लॉग का नया सदस्य हूँ, मुझे पता नहीं था की ऐसा भी कोई ब्लॉग है... जहाँ एक जगह अच्छी चीजें समेटी जाती हैं... यह भी एक संयोग है की जिस दिन इससे जुड़ा मेरा भी जीकर हो गया...

    पूंछ हिलाने की आदत पढ़कर उछल पड़ा... नाको से होकर आया हूँ... ज़ख्म तारो ताज़ा है अभी .... vv

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