इलाहाबाद में ब्लॉग मंथन शुरु और तो इस तरह खत्म हुआ इलाहाबाद का ब्लॉग मंथन । विनीत ने जिस जिम्मेदारी से वहां लगातार हर एक बातचीत की तुरंत रिपोर्टिंग उससे मैं बहुत प्रभावित हूं। पूरी लगन के साथ हर एक वक्ता की बात तुरंत नोट करना/टाइप करना। बहुत अच्छा लगा। विनीत को अगर अफ़लातून ने उभरता सितारा कहा तो मुझे कत्तई आश्चर्य नहीं हुआ। बहुत अच्छा लगा। विनीत की रिपोर्टिंग की खास बात है कि उसमें उनकी अपनी छौंक नहीं है न अपना कोई मिर्च-मसाला। जो हुआ उसको जैसा का तैसा रखने का पूरा प्रयास किया विनीत ने। कुछ चूक भी हो गयी होगी शायद लिखने में जैसा मीनू खरे जी ने अपनी आपत्ति दर्ज कराई लेकिन उसमें विनीत की मंशा कुछ ऐसी नहीं रही होगी कि उनको चोट पहुंचे। कोई बात व्यक्ति सोचता है, उसे कहता है, अगला समझता है, उसे प्रकट करता है। फ़िर उसके प्रकट किये हुये को दूसरा समझता है। इस एक व्यक्ति से तीसरे व्यक्ति तक पहुंचते-पहुंचते बात काफ़ी कुछ बदल सकती है। इसमें बहुत कुछ इस पर निर्भर करता है कि बात की संप्रेषण क्षति (Transmission loss) कितनी हुई।
इस मसले पर आज जो कुछ और पोस्टें आईं उनमें कुछ ये हैं:
इलाहबाद चिट्ठाकार संगोष्ठी: बधाईयां! शर्म तो बेच खाई, ये तो लफ़्फ़ाजियों का समय है! इसमें ई-स्वामी ने अपने विचार व्यक्त किये और कहा:
बाकी की बातें आप उनकी ही पोस्ट पर बांच लें।
इलाहबाद में “हिन्दी चिट्ठाकारी की दुनिया” नामक एक कार्यक्रम यानी ब्लाग संगोष्ठी का आयोजन हुआ जिसमे नामवर सिंह को मुख्य अतिथी बनाया गया. वहां हिन्दी चिट्ठाजगत के तमाम आम-खासियों/मुहल्लेवासियों/भडासियों/संडासियों/शाबासियों समेत रवि श्रीवास्तवजी और अनूप शुक्लाजी ने उछल-उछल कर शिरकत की.
चिट्ठाकारी (हिन्दी?) में निहित ख़तरे… इसमें रवि रतलामी ने बताया कि
यदि आप ब्लॉगिंग में हैं, तो इन खतरों से बच नहीं सकते. इन खतरों को मोल लेना ही होगा. कोई भी आपके किसी भी हिस्से की धज्जियाँ कभी भी कहीं भी बड़े बेखौफ़ तरीके से उड़ा सकता है.
जाहिरा तौर पर, आपकी जानकारी के लिए, टिप्पणीकार विशाल पाण्डेय का ब्लॉगर प्रोफ़ाइल बन्द है याने बेनामी?. अब जनता को कैसे पता चले कि ये मरियल... और हँसोड़ के बीच या इधर उधर ऊपर नीचे कहाँ ठहरते हैं?
इस तरह हम भी पहुंचे हिंदी चिट्ठाकारी की दुनिया - राष्ट्रीय संगोष्ठी में इसमें प्रवीण त्रिवेदी मास्टर साहब ने अपनी शिरकत के किस्से बयान किये हैं।
ब्लॉगर जान गये हैं.. नामवर सिंह कौन हैं .. शरद कोकाश की संक्षिप्त टिप्पणी!
इलाहाबाद से ‘इ’ गायब, भाग -1इसमें इलाहाबाद के किस्से बयान करते हुये गिरिजेश ने लिखा:
पहला दिन जुमलों का दिन रहा। इस तरह के जुमले उछाले गए:
- ब्लॉगर खाए,पिए और अघाए लोग हैं।
- ब्लॉग बहस का प्लेटफार्म नहीं है।
- अनामी दस कदम आकर जाकर लड़खड़ा जाएगा।
- पिछड़े हिन्दी समाज के हाथ आकर ब्लॉग माध्यम भी वैसा ही कुछ कर रहा है।
- एक भी मर्द नहीं है जो स्वीकार करे कि हम अपनी पत्नी को पीटते हैं।
- इंटरनेट पर जाकर हमारी पोस्ट प्रोडक्ट बन जाती है।
- एक अंश में हम आत्म-मुग्धता के शिकार हैं।
- औरत बिना दुपट्टे के चलना चाहती है जैसे जुमले। . . .(बन्द करो कोई पीछे से कुंठासुर जैसा कुछ कह रहा है।)
यह बंद करो हमें अपने लिये भी सुनाई दे रहा है सो चलते हैं काहे से कि दफ़्तर का समय हो गया। चलते-चलते मास्टरनीजी की तुकबंदी पढ़ जी जाये। आज उनका जनमदिन भी है सो वह भी मुबारक हो:
चाय कम , खर्चे ज्यादा
बहस कम , चर्चे ज्यादा
प्रश्न कम , पर्चे ज्यादा
सोए कम, रोए ज्यादा
पाए कम , खोए ज्यादा
पोस्ट कम मार्टम ज्यादा
दुःख कम, मातम ज्यादा
औरत कम , मर्द ज्यादा
मलहम कम, दर्द ज्यादा
मक्खी कम , मच्छर ज्यादा
शगुन कम फ़च्चड़ ज्यादा
विचार कम आचार ज्यादा
सम्मलेन कम प्रचार ज्यादा
आज फुरसतिया जी फुर्सत में नहीं थे शायद....
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंपोस्ट का लिंक भी देना उचित नहीं लगा शायद आप को
जवाब देंहटाएंवक्ताओ मे दो ऐसे वक्ता भी हैं जिन पर ना जाने कितनी पोस्ट लिखी गयी हैं क्युकी उन पर एक बार नहीं कई बार यौन शोषण का आरोप लग चुका हैं । नाम देने से क्या फरक पडेगा ? क्या हिन्दी ब्लॉग जगत की मेमोरी { यादाश्त } इतनी कमजोर हैं । उन दोनों के साथ इलाहाबाद मीट मे एक ही मंच पर बैठ कर वार्तालाप करने से अनूप शुक्ल , मसिजीवी , रविरतलामी , डॉ अरविन्द , मनीषा पाण्डेय , आभा और मीनू इत्यादि को कोई आपत्ति नही हुई क्यों ।
आज के अख़बार मे एक IIT के पीएचडी कर रहे स्कॉलर के यौन शोषण और फिर एक लड़की की ह्त्या करने की ख़बर से जोड़ कर अगर आप इस बात को देखेगे तो शायद आप सब समझ सकेगे की क्यूँ जरुरी होता हैं ऐसे लोग का
बहिष्कार सामाजिक जगहों से । आप सब उनको महिमा मंडित करते हैं , उनके साथ चाय नाश्ता करते रहे इस इंतज़ार मे की कब उनपर लगे आरोप सत्य साबित हो ।
रचना से सहमत हूं
जवाब देंहटाएंइन सबके बावज़ूद सम्मेलन मे बहुत से पहली बार एक दूसरे से मिले।परिचय का दौर शुरू तो हुआ।कोई भी सम्मेलन हो या समारोह मज़ा तो खट्टे मीठे अनुभवो से कुछ सीखने मे ही आता है,और इसलिये हमने भी एक मीट छत्तीसगढ मे कराने के अपने पुराने विचार से नही हटने का फ़ैसला किया है।देखे कोशिश कब सफ़ल होती है,फ़िर मिलेंगे,फ़िर झगडेंगे और फ़िर उससे कुछ सीखेंगे।अगर ऐसा नही हुआ तो फ़िर लगेगा कि सब समान विचारधारा के लोग या सेट हुये लोगों का सम्मेलन हो रहा है।जो भी हो,जैसा भी हो एक बड़ा कुम्भ कहूंगा तो हो सकता है कुछ लोग नाराज़ हो जायें इसलिये इसे सम्मेलन ही कहूंगा,हुआ तो सही।और कितने लोगो ने इस बारे मे प्रयास किया या इससे बड़ा और इससे अच्छा सम्मेलन किया?
जवाब देंहटाएंमैं इस मामले में रचनाजी के साथ हूँ.
जवाब देंहटाएंसही मे आज बहुत जल्दी मे की है चिठा चर्चा धन्यवाद्
जवाब देंहटाएंजय हो अनिल भैया-तैयारी की जाय,
जवाब देंहटाएंगिरते हैं शह-ए-सवार ही मैदाने जंग में,
चिट्ठा चर्चा छोटी रही-बधाई
ये रचना जी किनकी बात कर रही हैं? इन प्रकार के चरित्रों की निन्दा की जानी चाहिये।
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जवाब देंहटाएंA sensible point, raised by Rachna Singh.
It should have been mentioned at least, lest it might be taken as cleverely ignored issue.
Intentions are never questioned, but an action asks clarification to justify itself.
A compromising comfort is deteriorating the Hindi Scenerio, leave apart the serenity and satisfaction of blogging.
Not deviating from the main point, I submit that Rachna's objection is genuine this time. I am with it.
A sensible point, raised by Rachna Singh.
जवाब देंहटाएंIt should have been mentioned at least, lest it might be taken as cleverely ignored issue.
Intentions are never questioned, but an action asks clarification to justify itself.
A compromising comfort is deteriorating the Hindi Scenerio, leave apart the serenity and satisfaction of blogging.
Not deviating from the main point, I submit that Rachna's objection is genuine this time. I am with it
रचना जी की बात पर ध्यान देनी चाहिए !! रचना जी से एकदम से सहमत
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंरचना जी की बात से सहमत हूँ। जघन्य अपराधों के आरोपियों का सामाजिक बहिष्कार होना चाहिए। केवल अपने आरोपों के प्रतिवाद के लिए दिए गए मंच के अलावा किसी सामाजिक मंच पर पर नहीं होना चाहिए। होता यह है कि ऐसे आयोजनों पर उन पर लगे आरोपों पर कोई बात नहीं करता। उस के विपरीत वे सम्मान पा जाते हैं। लेकिन उन की उपस्थिति से मंच के बहिष्कार को भी मै उचित नहीं मानता। वहाँ से उन्हें हटाए जाने की बात उठाई जानी चाहिए और ऐसे लोग यदि अपराधी नहीं हैं और खुद को निर्दोष समझते हैं तो उन्हें स्वयं ही ऐसे स्थानों से हट जाना चाहिए।
जवाब देंहटाएंरचना जी की बात किसी गंभीर बात को इंगित कर रही है. और इस मुद्दे पर मेरी उनसे पुर्ण सहमति है.
जवाब देंहटाएंरामराम.
मुझे नहीं पता रचना जी क्या और किसके बारे में कह रही हैं. बिना जाने-समझे उनसे सहमत कैसे हुआ जा सकता है? चर्चा की जगह यहां रचना-चर्चा होने लगी. जबकि बहुत से लोग मुद्दे से वाकिफ़ ही नहीं.
जवाब देंहटाएंचिट्ठा-चर्चा छोटी जरूर है मगर प्रभावशाली है।
जवाब देंहटाएंरचना जी की बात विचारणीय है - "क्यूँ जरुरी होता हैं ऐसे लोग का बहिष्कार सामाजिक जगहों से । आप सब उनको महिमा मंडित करते हैं , उनके साथ चाय नाश्ता करते रहे इस इंतज़ार मे की कब उनपर लगे आरोप सत्य साबित हो ।
जवाब देंहटाएंमैं रचना जी की बातों से पूर्णतयः सहमत हूँ !
डॉ अमर कुमार से सहमत -उन दोनों को किसके ख़ास आग्रह पर बुलाया गे था यह उजागर होते ही सारी बात समझ में आ जायेगी? मगर यह भी की क्या वे दोनों किसी न्यायिक प्रक्रिया द्बारा अपराधी घोषित हो चुके हैं ? इस पर दिनेश राय जी भी प्रकाश डालें !
जवाब देंहटाएंआरोप गंभीर है. जब तक कोई नाम नहीं बताएगा, समारोह में आने वाला हर मर्द शक के दायरे में रहेगा!
जवाब देंहटाएंकिसी को अपराधी घोषित करना एक प्रक्रिया हैं और जो बात सब जुदिश हो उसमे नाम नहीं लेना ही बेहतर होता हैं किसी भी सार्वजानिक स्थल पर । लेकिन सार्वजानिक रूप से बहिष्कार सम्भव होना चाहिये था । नये लोग धीरे धीरे जान सकेगे पर जो लोग वहाँ थे वो तो इस पूरे प्रकरण से परिचित दे । संयोजक को नये होने के कारण श्याद ना पता हो पर क्या उपस्थित लोगो मे किसी को भी ये पता नहीं था या क्या निमन्त्रण देने से पहले संयोजको ने किसी से भी विमर्श नहीं किया ।
जवाब देंहटाएंक्या वे दोनों किसी न्यायिक प्रक्रिया द्बारा अपराधी घोषित हो चुके हैं ?
जवाब देंहटाएंयही वो अमर वाक्य है जिसकी आड़ में गिद्ध और मगरमच्छ लोग विधानसभा एवं संसद की सीढियां तय करते आये हैं
लोग यहाँ तुर्रमखां बनकर नाम सामने लाने की बात कह रहे हैं ! यहाँ की मामूली बातों पर तो लोग मुंह में दही जमा के बैठे रहते हैं और इतनी बड़ी बात पे क्या नाम लेना उचित होगा रचना जी के लिए ? सुश्री रीता बहुगुणा जी का बंगला किसने जलवाया था ... रिक्शे और पान वालों को भी मालूम है .... जरूर आपको भी पता होगा ...लीजिये नाम उनका ...... छपवायिये दो-चार आर्टिकल अखबार में !
यदि किसी मंच से किसी को बहिष्कृत करना ही है तो न्योता क्यों? यदि घोषित अपराधी का बहिष्कार करना है तो देश के कई नेताओं का बहिष्कार करना होगा जो जेल में रह कर भी चुनाव जीते!!! क्या संगोष्टी में आने वाले इतने खूंखार दरिंदे थे कि नाम लेने से भी डरा जा रहा है?
जवाब देंहटाएंसुन्दरता कुछ कम सही, श्रृंगार ज्यादा है,
जवाब देंहटाएंमुद्दा सही उठाया है मगर, अंगार ज्यादा है.
-समीर लाल ’समीर’
उपर वाला कमेंट कहीं और के लिए था, मगर यहाँ हो गया. अब चलने दो.
जवाब देंहटाएं@cmpershad ji
"नेताओं का बहिष्कार करना होगा"- वैसे भी स्वागत उनकी कुर्सी का होता है, उनका नहीं. कल को हार जायें, तो गली का .. न पूछे उन्हें उनकी हरकतों के मद्देनजर.
रचना जी से सहमत.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट संगोष्ठी चर्चा के लिये बधाई । कितने अलग अलग चरित्रों को एक मंच पर साकार किया गया यह तो हम देख ही चुके हैं ।जिनसे सहमति है वह तो है ही लेकिन जिनसे विरोध है वह भी होना ही चाहिये । इति श्री रेवाखंडे संगोष्ठी पुराण अंतिम अध्याय?????
जवाब देंहटाएंmमैं भी रचना जी और प्रकाश गोविन्द जी से सहमत हूँ । इस चर्चा का पता तो प्रकाश जी से लगा। आज देख नहीं पाइA थी। क्या ये चर्चा भी किसी मुकाम पर पहुँचेगी?
जवाब देंहटाएंपोस्ट कि हेडिन्ग बहुत सही है:)
जवाब देंहटाएंवीनस केशरी
गण्यमान ब्लॉगर श्रेष्ठों ने एक-दूसरे की त्रुटियों को प्रकाशित कर दिया है । अत: अपनी-अपनी बात पर अडने की अपेक्षा उन पर विचार कर स्वीकार कर प्रतिकार किया जाये । ताकि सनद रहे अगले महाकुम्भ में काम आये । अस्तु ।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
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