लाख करे पतझड़ कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है
अरसे बाद पुनः प्रस्तुत हूँ |
इस बीच लिखना छूटा रहा, पढ़ना नहीं छूटा, न छूटता है और प्रार्थना करें कि कभी छूटे भी नहीं.
इस बीच ब्लॉगजगत में कई नए ब्लॉग, कई नए नाम व कई नए संवाद- प्रतिवाद जुड़ते गए | ब्लॉगवाणी जैसा सशक्त व निरपेक्ष एग्रीगेटर व्यथित हुआ, पुनः लौटा, दूसरी ओर ब्लॉग प्रहरी नाम से नया एग्रीगेटर आरम्भ होने का संवाद आया | आशा है, प्रहरी अपनी भूमिका बखूबी निभाएगा ही | अभी तो एग्रेगेटर के नियमन संबन्धी कार्य चल रहे हैं |
और भी जो कुछ जैसे जैसे घटा (या घटा - बढ़ा ) आप सभी सचेत ब्लोगर बंधु जानते ही हैं, किम् अधिकं ....!
अस्तु ! आगे बढ़ते हैं ताकि कुछ चिट्ठों की बानगी देख ली जाए | अधिक चिट्ठे तो देख नहीं पाई हूँ किन्तु जो भी देखे हैं, उनमें से कुछ का उल्लेख करना अवश्य समीचीन होगा |
संचिका पर लवली कुमारी ने एक अतिशय महत्वपूर्ण व सामान्य जन-जीवन से सम्बद्ध विषय उठाया है और उसकी सार्थक विवेचना भी की है |
स्त्रियों में मनोरोग पराशक्तियाँ और कुछ विचार विषयक अपने लेख में वे लिखती हैं कि -
कारण जानने के लिए हमे अपनी सामाजिक व्यवस्था की जड़ों की तरफ जाना होगा. स्त्रियों की दशा भारतीय ग्रामीण समाज में बहुत दयनीय है. बाल-विवाह, बहु पत्नी प्रथा, कुपोषण और इसके कारण रोगों में वृद्धि, तथा पारिवारिक एवं सामाजिक मामलों में स्त्रिओं की उपेक्षा आदि बहुत से कारण हैं जो स्त्री के अवचेतन मन -मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव डालते हैं. आज भी ग्रामीण भारत में जब तक स्त्री दैवी शक्तिओं से लैस नही हो जाती भोग्या ही रहती है. देव कृपा से लैस होने के बाद अचानक उसे आदर -सम्मान के भाव से देखा जाने लगता है, उसकी तरफ आँख उठा कर देखने का साहस वे लोग खो देते हैं जो कल तक उसे भोग्या समझते थे, जिसका उसके अवचेतन पर प्रभाव पड़ता है. मैंने एक गैर सरकारी संगठन के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता फैलाने के अभियान के दौरान कई ऐसे मामलों को देखा. मैंने पाया की धर्म और इश्वर की शक्ति को पीड़ित लोग अस्त्र की तरह इस्तेमाल करते हैं. मनोचिकित्सकीय परीक्षन के दौरान ऐसी स्त्रियाँ जब अपने मन के कपाट खोलती हैं तो आभावों और अत्याचारों से पीड़ित मन के कंपा देने वाले संस्मरण निकलते हैं.
दुर्भाग्य है कि देश की मातृशक्ति के जीवन मरण जैसे प्रश्नों पर खुल कर विचार करने तक को लोग परमात्मा और अध्यात्म पर आक्रमण मान लेते हैं और झट से खेमेबंदी आरम्भ हो जाती है | स्त्री की दयनीय स्थिति इस देश में तो अभी १०० वर्ष तक सुधरती दिखाई नहीं देती|
दूसरी ओर संगीता पुरी जी का आत्मकथ्य पढ़ कर उनके श्रम की सराहना करने को बाध्य होना ही पढेगा कि कैसे वे अपनी धरोहर को सहेजते सहेजते चूक कर बैठीं |
देशनामा की प्रश्नोत्तरी यद्यपि सुलझ चुकी है पुनरपि आप की जानकारियों में बढोत्तरी के लिए वहाँ जाना लाभप्रद हो सकता है
.... आज बड़ा भुन्नाया हुआ है...बार-बार एक ही सवाल कर रहा है कि आखिर उसका कसूर क्या है...दरअसल मक्खन महाराज ने अमेरिकी एम्बेसी में वीज़ा के लिए एप्लीकेशन लगाई थी...वो एप्लीकेशन रिजेक्ट होकर आ गई है...मक्खन का मूड तो खराब होना ही था...अमेरिकी एम्बेसी ने रिजेक्शन का जो कारण दिया है...वो ये है...कृपया जिस केटेगरी के लिए आपने वीज़ा एप्लाई किया है, ऐसी कोई केटेगरी हमारे कानून में नहीं है...इसके लिए आपको बस घर के नज़दीक ही सुअरों के बाड़े में जाना होगा और ऊपर वाले ने चाहा तो आपकी मनमुताबिक वायरस से ग्रस्त होने की तमन्ना पूरी हो जाएगी...
अनिल पुसदकर जी ने हिट होने का एक नायाब नुस्खा धर दबोचा है, तवज्जो दें कि इस नुस्खे से सदा दूर ही रहिएगा | उनके विचारों का एक अंश कुछ यों है -
उन्हे शायद ही कोई जानता होगा, मगर आज ? आज तो ऐसा लग रहा है कि वे देश की जानी-मानी हस्ती हैं।किसी भी वीवीआईपी से भी वीआईपी।हवाई जहाज से मुम्बई से दिल्ली जाने के निकले तो साथ मे जाने-माने न्यूज़ चैनलों के फ़ाड़ेखां टाईप के रिपोर्टरो और कैमरामैनो का जुलूस।और तो और हवाई जहाज मे भी कव्हरेज के लिये टीम का साथ मे सफ़र।हवाई जहाज से उतरते ही संवाददाता से जानकारी।उनकी बाड़ी-लेंग्वेज कैसी है?कम्फ़र्टेबल है नही?नर्वस तो नही है? ऐसे पूछा जा रहा था...
ब्लॉगर बंधुओं के डर का कारण जानने के लिए आप को यहाँ ( जिससे डरते हैं ब्लोगर ) जाना होगा | परन्तु आप डरिये मत, क्योंकि -
जिसका कोई अस्तित्व ही ना हो उससे किसलिए डरना। अब चन्द बेनामी वारयरस के चलते सभी ब्लोगरो को स्कैनिंग से गुजरना पड़े भला ये कहाँ का न्याय होगा।
इधर कुछ वर्षो से आपने बड़े बड़े गेम सो देखे हैं, देखे होंगे किन्तु एक नया गेम शो गत दिनों शुरू हुआ, जो है - सादगी का गेम शो | इसमें कौन कौन भाग ले रहा है व भाग लेने की क्या प्रक्रिया है, यह तो आप को वहाँ स्वयं जाकर ही पता लगाना पड़ेगा |
प्रतिवाद पर बड़ी मछली के बचने की गाथा पर अपना मत दें क्योंकि हमें वह गाना याद आ रहा " यह तो होना ही था" वैसे हमारा सवाल यह है कि क्या आप जानते हैं कि अपने वोडाफोन वाले मछली के भतीजे ही हैं ?
में २५-३० साल से सिगरेट पीता था, मुझे पता हैं, ऊपर लिखे हुए बंधन तब तक कारगर नहीं होते जब तक आप में द्रीर इच्छाशक्ति ना हो, और मेरे विचार से सरकार द्वारा लगाये हुए बन्धनों के साथ इसके उपाए भी बताने,चाहिए,यही नहीं और भी व्यसनों को छोड़ने के उपाए बताये,जाने चाहिए,शराब छुड़वाने के भी कारगर उपाए है,परन्तु इस विषय में सरकार जाग्रति ही नहीं देती, इसके लिए भी Annomynus नाम से संस्था है, और उस संस्था द्वारा हमारे एक जानकार शराब छोड़ चुके हैं, वोह रहते तो पूना में हैं,परन्तु उनोहने दिल्ली में ही इस Annomynus संस्था में भाग लेकर शराब बिलकुल छोड़ दी है,कभी वोह इधर मेरे पास आयेंगे तो उनसे पूछ कर इस संस्था,और उसकी कार्यविधि के बारे में लिखूंगा |
सिनेमाँ में काम करने वाले संजय दत्त Drugs के आदि थे, उनके पिता सुनील दत्त ने उनका उपचार कराया और वोह,Drugs छोड़ चुकें हैं, सरकार को चाहिए रोक तो लगाये परन्तु उपचार को भी तो,पोलियो,तपेदिक,ऐड्स इत्यादि की तरह सार्वजानिक करें |
एक सौ पचासवीं पोस्ट के साथ अपने महेंद्र भाई ने चिट्ठी चर्चा की महफ़िल जमाई है | आप जाकर उन्हें उनके इस अत्यधिक श्रमपूर्ण कार्य हेतु बधाई अवश्य दें | उनकी लगन का आलम यह है कि -
मंदिर हो या महफ़िल हो इस कलम का काम ब़स चलना है
आप पढ़े या न पढ़े हमारा काम आपकी चिठ्ठी लिखना है ..
इस चिठ्ठी के द्वारा आपकी पोस्टो की महफ़िल को सजाना है
मंदिर हो या महफ़िल हो हिंदी भाषा का परचम फहराना है..
खुद को हिंदी अखबार होने का दावा करने वाले एक समाचारपत्र में कैसी हिंदी छपती है इसकी एक बानगी प्रस्तुत है ।
मैं बीच-बीच के अंशों को ‘इलिप्सिसों – ellipses’ के प्रयोग के साथ लिख रहा हूं । पूरा विवरण आप अधोलिखित वेबसाइट पते पर देख सकते हैं:-
http://www.bhaskar.com/2009/09/30/090930015246_lifestyle.html
हां तो आगे देखिए उक्त खबर के चुने कुछ शब्द/वाक्यांश:-
“बच्चों में झूठ बोलने की हैबिट को दूर करें [शीर्षक]
“Bhaskar News Wednesday, September 30, 2009 01:45 [IST]
“प्रजेंट टाइम में अधिकांश पेरेंट्स अपने चिल्ड्रन्स के झूठ बोलने की हैबिट से परेशान हैं। … सीखी हुई हैबिट है, जिस पर पेरेंट्स … इसे रोका या चैंज किया … साइकेट्रिस्ट डॉ. राकेश खंडेलवाल का। उन्होंने इस हैबिट को दूर करने के कुछ टिप्स बताए, जो पेरेंट्स के लिए मददगार साबित हो सकते हंै।
“1. बच्चों से ऐसे क्वैश्चन नहीं करना चाहिए, जिनके आंसर में झूठ बोलना … बच्चे को कलर का पैकेट दिलवाने के बाद … वह वॉल को चारों ओर … से रंग-बिरंगी कर देता है। उस टाइम … उसे कहें कि आज और कलर्स यूज करने की इजाजत नहीं है।
“2. … फैमिली आगे बढ़कर … नहीं करना चाहिए।
“3. … बच्चे फ्रैंड्स के सामने अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाने और इमेज सुधारने … उनके रिलेशन में सभी ऑफिसर रैंक पर हैं। उनके कपड़े बहुत चीफ हैं। इसके लिए बच्चे को अकेले में कॉन्फिडेंस से समझाएं। उसे कहें कि उसकी ऑरिजनलिटी को दिखावे से ज्यादा पसंद किया जाएगा।
“4. पेरेंट्स की ओर से बच्चों के बिहेव पर टफ और सख्त नियंत्रण या बहुत ही फ्री एन्वायरमेंट बच्चे को झूठ बोलने को मोटिव करता है। इनके बीच का माहौल उपयुक्त रहेगा।
“5. … झूठा होने का लेबल नहीं लगाएं।
“6. बच्चे से फ्रैंडली रिश्ता बनाएं। …
“7. फ्री स्ट्रेस के माहौल …बच्चों में टफ और मुश्किल बात को कहने के सोशल कौशल का अभाव …”
पत्र की इसकी ढीठाई की ओर सभी का ध्यान जाना चाहिए और अपना लिखित या मौखिक विरोध ( किन्तु प्रकार्यात्मक ) अवश्य प्रकट करना चाहिए क्योंकि स्थिति बदलना हमारे यत्नों के हाथ में है | वर्ष भर पहले ही नई दुनिया का रवैया ( प्रभु जोशी जी द्वारा चलाए अभियान द्वारा / 2 / ३ ) पूर्णतया सुधर गया था |
और एक समाचार ऐसा जिसे पढ़ कर आप चौंकेंगे जरूर कि कहाँ तो इस देश में किसान आत्महत्या के लिए बाधित है और कहाँ किसानों का प्रदेश ऐसा कि - ९० उम्मीदवारों में ८० करोड़पति
हरियाणा में जितने उम्मीदवार मैदान में हैं उसमें से 51 प्रतिशत के करीब करोड़पति या फिर अरबपति हैं. करोड़पति उम्मीदवारों को मैदान में उतारने में कांग्रेस सबसे आगे है. प्रदेश की 90 सीटों के लिए कांग्रेस ने 80 करोड़पतियों को मैदान में उतारा है. हालांकि प्रदेश में अपनी संपत्ति की घोषणा करने वाले उम्मीदवारों में सबसे धनी उम्मीदवार भजनलाल की पार्टी के पास है. कोसली से मैदान में उतरे मोहित ने 92 करोड़ की परिसपत्तियों की घोषणा की है जिसमें चल और अचल दोनों तरह की संपत्ति शामिल है. मोहित के बाद प्रदेश में सबसे अधिक संपत्ति की घोषणा उद्योगति विनोद शर्मा ने की है. उन्होने 87 करोड़ से अधिक की परिसंपत्तियों की घोषणा की है.
अंत में जाते जाते आपको कल्पनालोक के सुमधुर संसार में विचरण का अवसर देने के लिए एक लिंक थमा रही हूँ - देवदास का | इसे डाऊनलोड कर पढें व उस रुमानी दुनिया में कुछ देर घूम फिर आएँ | आप के लौटने पर फिर भेंट होती है, तब तक के लिए सुप्रभात, नमस्ते, शुभकामनाएँ और अभिनन्दन |
विदा दें |
चर्चा से चर्चाकार की अभिरुचि इंगित हुयी ! सहज ही है !
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा आपका संकलन। धन्यवाद। लवली कुमारी से कहना चाहूँगा कि नगरों में महिलाओं की स्थिति गाँवों के मुकाबले में अच्छी नहीं है बल्कि और भी बुरी है। गाँव की औरतों को घर से बाहर तो निकलने को मिलता है। बहुत से निम्न मध्य शहरी परिवारों की महिलाओं को वह भी नसीब नहीं है। और यदि आप ध्यान दें तो अधिकांश बहुएं जो जिन्दा जलाई जाती हैं, शहरी होती हैं।
जवाब देंहटाएंअभी अभी सुबह सुबह आपके द्वारा की चर्चा देखी और संयोग कि कल ही पढ़ी आपकी ही कविता सामने रखी है:
जवाब देंहटाएंएक मछली सुनहरी
ताल के तल पर ठहरी
ताकती रही रात भर
दूर चमकते तारे को।
ब्राह्ममुहूर्त में
गिरी एक ओस बूंद
गिरा राते का आंसू
मछली के मुंह में
पुखराज बन गया।
सप्ताह की शुरुआत आपकी सुरुचि पूर्ण चर्चा से हो यह अपने आप में खुशनुमा एहसास है। जय हो!
*गिरा राते का आंसू= गिरा तारे का आंसू
जवाब देंहटाएंसुनहरी रश्मि किरणों सी रही चिट्ठा चर्चा ...साधुवाद ...!!
जवाब देंहटाएंदैनिक भास्कर मैंने कभी पढ़ा तो नहीं मगर इसका नाम खूब सुन रखा था, आज इनका लेख पढ़ कर बेहद आश्चर्य हुआ , यह हैं हमारे राष्ट्रीय दैनिक समाचार पत्र ?
जवाब देंहटाएंऐसी मानसिकता और आचरण को उजागर करने के लिए आभार !
बहुत बढिया और सुंदर चर्चा.
जवाब देंहटाएंरामराम.
स्वस्थ, निष्पक्ष और सुरूचिपूर्ण चर्चा के लिए साधुवाद...
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
मोहक चर्चा के लिए साधुवाद और आभारी हूँ चर्चा के लिए ..
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंआपको पुनः अपने मध्य देखना ही सुखद है,
बतायेंगी नहीं, इस बीच क्या क्या पढ़ड्डाला ?
स्वस्थ, निष्पक्ष और सुरूचिपूर्ण चर्चा के लिए आभार
जय हिंद...
मर जाता जो मन का हिस्सा , उसको हरा-भरा करने में माली ही तो दम भरता है |
जवाब देंहटाएंलाख करे पतझड़ कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है
जवाब देंहटाएंमर जाता जो मन का हिस्सा , उसको हरा-भरा करने में माली ही तो दम भरता है |
बहुत सुदर चिट्ठा चर्चा .. मेरे ब्लाग को शामिल करने के लिए धन्यवाद .. लवली जी की संचिका का लिंक नहीं बन सका है .. कृपया बना दें !!
जवाब देंहटाएंसंगीता जी, लवली की पोस्ट का लिंक पहले से व आरम्भ से ही बना हुआ है, आप " स्त्रियों में मनोरोग पराशक्तियाँ और कुछ विचार" (अर्थात संचिका से तीसरी पंक्ति ) को क्लिक कर देखें. जाने क्या कारण था कि ८-१० बार यत्न के बाद व रि-फोर्मेटिंग के बाद भी उसे बोल्ड नहीं किया जा सक रहा था, इसलिए ऐसे ही छोड़ना पड़ा |
जवाब देंहटाएंअनूप जी! मेरी कविताएँ पढ़ने और एक को यहाँ उद्धृत करने के लिए विशेष धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंएक अर्से बाद कविताजी को चर्चा करते हुए सुखद अनुभव हुआ। पढते-पढ़ते अंत तक पहुंच गए तो उनका ‘किम अधिकं’ किम लघुतम लगा। चलते चलते कविताजी की एक कविता ‘चलते चलते’ मैं भी ठेल दूं:)
जवाब देंहटाएंगली
बस्ती
मुहल्ले
सारा शहर
सारा देश
सो गया॥
और आप जाग कर चर्चा करने में व्यस्त थीं!!!
बहुत दिनों बाद आपकी चर्चा से आनंदित हूँ । चर्चा अच्छी लगी । आभार ।
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया और सुंदर चर्चा.
जवाब देंहटाएंआलेख के साथ प्रस्तुतिकरण भी पसन्द आया.
जवाब देंहटाएंएक मछली सुनहरी
जवाब देंहटाएंताल के तल पर ठहरी
ताकती रही रात भर
दूर चमकते तारे को।
ब्राह्ममुहूर्त में
गिरी एक ओस बूंद
गिरा राते का आंसू
मछली के मुंह में
पुखराज बन गया।
बहुत ही सुन्दर कविता. अनूप जी धन्यवाद इसे पढवाने के लिए.
चिट्ठा चर्चा रोचक और बहुत बढ़िया रही!
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया और सुंदर चर्चा.
जवाब देंहटाएं@कविता जी - चर्चा अच्छी लगी...आपको पुनः यहाँ देख कर ही अच्छा लगा .. ..उस पोस्ट से ज्यादा महत्वपूर्ण उसपर आई टिप्पणियाँ ही रही.
जवाब देंहटाएं@लक्ष्मी जी आगे उस पर भी लिखा जाएगा.
शीर्षक अत्यंत प्रेरक.
जवाब देंहटाएंचर्चा अत्यंत सटीक.
पढ़ना छूटना चाहिए भी नहीं; छूट सकता भी नहीं.
और चूंकि ''पढ़ना ही लिखना भी है'' इसलिए लिखना भी नहीं छूटेगा आपका. यह प्रविष्टि स्वतःप्रमाण है.
सही कहा; भारत में जड़ता का नया युग आरम्भ हो गया लगता है और ऐसे में स्त्रियों की दशा सुधरने के आसार न के बराबर ही हैं. भोगवादी संस्कार एक बार फिर सारे समाज पर हावी हो चले हैं.
और हाँ, भाषा को बहता नीर कह कर इतना गन्दला नहीं किया जाना चाहिए कि उसका बहाव यानी संप्रेषण ही बाधित हो जाए. स्वीकार्य कोड मिश्रण के भी अपने नियम हैं , उन्हें नकार कर मनमाना भाषिक आचरण सह्य नहीं होना चाहिए.
प्रति सप्ताह आपकी चर्चा की प्रतीक्षा रहेगी.
Kavita jee!
जवाब देंहटाएंBlogprahari! par aane ke liye dhanyavaad!
aapka chithacharcha shamil kar hame khusi hai.
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