बहुत सी चर्चाएँ चिट्ठा बाजार में आ रही हैं. मौक़े की नज़ाकत भी यही कहती है. और भी चर्चाएँ होनी चाहिएँ - तमाम प्लेटफ़ॉर्म पर, तमाम विषयों पर केंद्रित. नित्य प्रकाशित होते सैकड़ों पोस्टों धारदार और पैनी नजर के लिए एक दो नहीं, दर्जन दो दर्जन चर्चाएँ नित्य होनी चाहिएँ.
बहुत से नए चर्चा मंडल हाल ही में अवतरित हुए हैं. पहले से भी कुछ प्रयास होते रहे हैं. ग्लोबल वाइसेज में कुछ समय तक हिन्दी चिट्ठों की नियमित चर्चाएँ ( कड़ी 1, कड़ी 2 ) होती रही थीं. बाद में इसमें कुछ ग्रहण सा लग गया. शायद अमित कुछ बता पाएँ.
मसिजीवी लंबे समय से हिन्दी ब्लॉग रिपोर्टर पर हिन्दी चिट्ठों की चर्चा अंग्रेज़ी में करते रहे थे. परंतु मामला कुछ जमा नहीं लगता है इसीलिए 2008 में 200 से अधिक पोस्टें आईं, तो 2009 में आंकड़ा दर्जन भर पर बमुश्किल पहुँच रहा है. इसका जोड़ घटाना – याने कि इनके पाठकों व पहुँच के बारे में यदि कभी खुलासा करें तो वो लगता है कि वाकई दिलचस्प होगा. मसिजीवी ने टिप्पणियों की चर्चा का एक नया, नायाब खयाल भी पेश किया था, मगर वो भी बहुत जम नहीं पाया (शायद?). और हाल ही में टिप्पणियों की चर्चा का एक और नया अवतार आया है.
जबलपुर से चर्चाएँ नियमित होती रही हैं. महेन्द्र मिश्र चिट्ठी-चर्चा के नाम से आयोजन अपने ब्लॉग समयचक्र में करते रहे हैं. यहीं के गिरीश बिल्लोरे मुकुल भी चिट्ठों की चर्चा करते रहते रहे हैं.
अजय कुमार झा अपने चिट्ठे झा जी कहिन में लंबे समय से चिट्ठा चर्चा कर रहे हैं और बख़ूबी कर रहे हैं. हाल ही में पंकज मिश्र जोर शोर से मैदान में उतरे हैं. मगर फिर भी, पोस्ट होते चिट्ठों के बीच हो रही चर्चाएँ नगण्य सी ही हैं. आगे चिट्ठे बढ़ेंगे, पोस्टें बढ़ेंगी. ऐसे में चर्चाओं का बढ़ना लाजमी है.
चिट्ठाचर्चाकार बनने के लिए आप तैयार हैं?
आगे चिट्ठे बढ़ेंगे, पोस्टें बढ़ेंगी. ऐसे में चर्चाओं का बढ़ना लाजमी है.
जवाब देंहटाएंआप का कहना सही है।
मैं भी विचार मे तो लगा हूं, देखो क्या होता है. :)
जवाब देंहटाएंटेम्पलेट देख इस चर्चा के नकली होने का अहसास हुआ..यूँ कोई लिहाफ बदलता है कोई भला!
जवाब देंहटाएंमन खिन्न हुआ रोज बदलाव से..कोई डर है क्या? लगत्ता तो है!!
अच्छा सिंहावलोकन -मगर यह भोपू कभी बाएँ कभी दायें -अब फिर तो दायें नहीं होगा न ! इस देजा वू से राहत दो हे संतोषी माता !
जवाब देंहटाएंसोचिये!! कहीं ऐसा हो कि सभी चिट्ठे चर्चा में उतर आये तो??
जवाब देंहटाएंबकिया दो सलाह टेम्पलेट मास्टर को (जबर्जस्ती की ) यह बड़ा वाला भोपू और आदमी हटा दें तो पेज भी जल्दी लोड होगा और स्क्रॉल भी कम करना पड़ेगा !! और यह कम्मेंट में जो छोटा सा कला चौकोर बक्सा आ रहा है यह डिस्टर्बिंग एलेमेन्ट लग रहा है
"मिड डे मील ....... पढ़ाई-लिखाई सब साढ़े बाइस !!"
"पोस्ट होते चिट्ठों के बीच हो रही चर्चाएँ नगण्य सी ही हैं."
जवाब देंहटाएंचर्चाएं और बढे़ पर आशा यही है कि देखा-देखी की बजाय कुछ ओरिजिनल हो। जिन चिट्ठों पर अन्य ने चर्चा न की होंउन्हे दूसरे चर्चा का विषय बनाएं। प्रायः यह देखा गया है कि उन्हीं चिट्ठों की चर्चा होती है जिन पर पहले ही चर्चा हो चुकी है। तुर्रा यह कि भाषा की शालीनता भी दांव पर लगी हुई है॥
* अरविंद मिश्र जी कहते हैं कि "मगर यह भोपू कभी बाएँ कभी दायें.." यह तो चाकलेट खर्च कराने के तरीके हैं:)
आपके विचारो से शतप्रतिशत सहमत हूँ . आभारी हूँ समयचक्र का उल्लेख करने हेतु....
जवाब देंहटाएंचर्चा तो होती ही रहनी चाहिये,चर्चा ही नही हुई तो फ़िर क्या हुआ।
जवाब देंहटाएंमैं तो शुरू से ही कहता आ रहा हूं कि चाहे बात ऐग्रीगेटर्स की हो या चर्चा की..जब दिनों दिन ब्लोगस की संख्या बढ रही है ....तो देर सवेर अधिक विकल्पों की जरूरत तो पडेगी ही..और ये खुशी की बात है कि..विकल्प बढ भी रहे हैं....
जवाब देंहटाएंप्रसाद जी शायद आपका कहना सही है....मगर इस विषय में सिर्फ़ दो बातें कहनी है...चर्चा तो आमतौर पर उसी की होगी न जो अच्छा होगा....सिर्फ़ चर्चाकार की नज़र में नहीं...बल्कि आम पाठकों की नज़र में भी....अब ये मत पूछियेगा कि इसे तय कर्ने के क्या पैमाने हैं...सबके अलग अलग ...मेरे भी हैं.....दूसरी ये कि...कौन कहता है कि आप उसी चिट्ठे को बार बार पढें...जिस चर्चा में जो नया मिलता है ...उसी को अपना प्रसाद दे दिजीये.....
बकिया चाकलेट खर्च करवाने वाली बात से हम सहमत हैं......मगर इसी बहाने किसी बच्चे को चाकलेट तो मिल ही रही है न.....
आपके विचारो से सहमत
जवाब देंहटाएंसमीरजी की बात भली लगी. चिठ्ठा चर्चा के टेम्पलेट बदलता कोन है ? चिठ्ठा चर्चा के सभी के सभी चर्चाकार इस टेम्पलेट के बदलाव मे योगदान करते है ? या किसी एक को ही मेहनत करनी पडती है ? क्यो कि टेम्पलेट बडा ही सुन्दर है. दाद देनी पडॆगी जी. कल नऎ टेम्पलेट का ईन्तजार रहेगा जी.
जवाब देंहटाएंमुजे लगता है कुछ दिनो से चर्चाऎ गोण हो गई है टेम्पलेट के सामने.....
रविरतलामीजी बेहद नपी तुली सटीक चर्चा अच्छी लगी