ईश्वर मध्ययुगीनता के प्रतीकात्मक अवशेष का नाम है। जब जब इंसान को यह भ्रम होने लगता है कि वह मध्ययुगीनता से बाहर तो नहीं आ गया वो झट से भगवान को याद कर लेता है तुरंत ही पूरी हिंस्र मध्ययुगीनता अपने धुर नग्न रूप में उभर कर सतह पर आ जाती है। तलवार गंडासे ले कर ये 'धार्मिक' सड़क पर निकल पड़ता है और दो चार गैलन खून बहाने के बाद अपनी मध्ययुगीनता को प्रमाणित कर वापस आ बैठता है। कभी कभी वह केवल आनुषंगिक पद्धति से ही ऐसा करता है अनुष्ठान, व्रत-उपवास, ज्योतिष, वास्तु, फेंगशुई से- पर अक्सर उसकी मध्यकालीन पहचान की प्यास बाकायदा धर्म के दंगों से ही बुझती है। चिट्ठासंसार भी कुछ अलग नहीं है जब मनुष्य ने खुदा बनाया था तो सोचा होगा कि अव्याख्येय कि जिम्म्ेदारी इस पर डालकर चैन की बंसी बजाएंगे...पर अपने हिस्से का काम दूसरे पर डालने से उसके हम पर हावी हो जाने की जो गुंजाइश होती है वो सच साबित हुई है। ये आदिम कल्पना अब सल्ल. बल्ल कर खुद को सर्वोपरि घोषित करने पर उतारू है। लिंक विवेक ने अपनी पोस्ट में इकट्ठे दे दिए हैं...जिनका मन न माने वे झांक सकते हैं-
सलीम खान मै मुस्लिम धर्म अपनाना चाहती हूँ बशर्ते -
हम तुम्हें गाली दें, तुम हमारे मुँह पे थूको -
मेरा ब्लॉग न हुआ कूड़ा घर हो गया हो उन्होंने चेलेंज के साथ १३ बार मेरे ब्लॉग पर गंदगी फैलाई
ये क्या हो रहा है?
इस्लाम में महात्मा गाँधी जैसा कोई व्यक्तित्व क्यों नहीं होता
जिनका मन विचलित है वो होने दें पर इस हालिया हल्लम हल्ले (धर्म को लेकर मचा ये बबाल न तो हिन्दी ब्लॉगिंग में पहला है न आखिरी...इस एंगल को लेकर हम लोग इतने आत्मनिर्भर हैं कि यदा यदा ही धर्मस्य....पर किसी अवतार की जरूरत नहीं होती) को लेकर अपनी चिंता ये है कि इसने 'हमारे कट्टरपंथी' और 'उनके कट्टरपंथी' जैसी जमात खड़ी कर दी है। अचानक 'उनके' जहर फैलाने वालों की गंदगी देखकर 'अपने' जहर फैलाने वाले सभ्य लगने लगे हैं। शर्मिंदगी के साथ एक स्वीकारोक्ति ये भी है कि भीतर कहीं एक एग्नोस्टिक-सैडिस्टिक मन एक बार को कहने भी लगा कि 'अरे लड़ने मरने दे आपस में...काहे दुखी होता है...दोनों ही तो इंसानियत के बराबर दुश्मन हैं'- पर फिर संभल गए क्योंकि ये भी सच है कि जब कट्टरपंथी आपस में भिड़ते हैं तो एक दूसरे को खत्म नहीं करते उलटा एक दूसरे को बढ़ावा देते हैं।
इस माहौल में आपको कौन सी पोस्टें पढ़वाई जाएं ? तो चलिए टाईम मशीन में, शुएब की कुछ शानदार पोस्टों की ओर -ताकि इन खुदागिरी करने वालों को दर्पण दिखाया जा सके-
मसलन हम खुदा है-56 में शुएब फरमाते हैं-
सभी भारतीयों ने एक साथ बुलंद आवाज़ मे ख़ुदा से कहाः ख़ुदा को उसके ख़ुदा होने का वासता, ख़बरदार जो हमारी पाक धर्ती पे अपने क़दम रखा। जाओ जाओ हमें आपकी कोई ज़रूरत नहीं…… ईराक़ जाओ, अफ़गानिस्तान जाओ…. इन देशों को जाने अगर हिम्मत नहीं तो अपने स्वर्ग वापस जाओ मगर इस पाक धर्ती पे अपने क़दम ना रखो। हम भारती अपने देश के ख़ुद भगवान हैं, यहां पहले से इतने भगवान हैं कि हमें किसी नये भगवान पर ईमान नहीं।
दो हाथ वाले, चार हाथ वाले, बगैर हाथ वाले और बगैर दिखाई देने वाले, क़बरों मे सोए हुए सूली पर लटके हुए हर किसम के ख़ुदा हमारे देश मे मौजूद हैं अब हम भारतीयों को किसी और ख़ुदा की ज़रूरत नहीं। हम भारतीय ख़ुद ख़ुदा हैं ख़ुद क़यामत मचाते हैं, ख़ुद लुटेरे हैं, ख़ुद फितनेबाज़ भी हैं, ख़ुद दंगा फसाद मचाते हैं, अपने फैसले हम ख़ुद करते हैं। हम भारती हैं अपनी मर्ज़ी के राजा हैं - आप जाओ यहां से, हमारा किसी भी नये ख़ुदा पर ईमान नहीं
खुदा को दॉंत नहीं किस्त में-
गुजरात सरकार के बारे ख़ुदा ने कहाः मीडिया वालों ने हल्ला मचा रखा है जैसे मोदी कोई और नहीं बल्कि सोनिया का भाई है। हम ने मोदी को ऐसे ही कुर्सी पे नहीं बिठाया! बल्कि ख़ुदा जिसको चाहे कुर्सी सोंपदे और जिसको चाहे ज़लील और रुसवा करे। ख़ुदा ख़ुद चाहता है कि लोगों को धर्म मे लडवाए क्योंकि ख़ुदा का कोई धर्म नहीं और ख़ुदा की मर्ज़ी के बगैर किसी को धर्म बनाने का अधिकार नहीं
34वीं किस्त यानि 9/11 जूनियर में-
खुदा की नींद हराम, अपना बिस्तर छोड फोरन महल से बाहर चीखते हुए भागा। आसमान पर कान फाडते अमेरिकी सेना के लडाकू जहाज़, खुदा ने झिल्लाते हुए कहाः लानत है, हमारी नींद खराब करदी। वो तो शुक्र है अमेरिका ने खुदा को तसल्ली दीः ये सब आप ही की सिक्यूरिटी के लिए आए हैं। थंडा पानी पीने के बाद खुदा ने फरमायाः समझ मे नही आता आखिर ये लडाकू जहाज़ कान क्यों फाडते हैं? हम भी जगह जगह भूकम्प और भूचाल लाते हैं मगर मजाल है जिस से कोई आवाज़ निकले। अगर किसी को डराना है तो उसके हाथ पैर तोड देते या फिर उसे जान से ही मार डालते जैसे हम भूकम्प भेज कर सेकडों को एक साथ मारते हैं मगर किसी के कान नही फाडते
32वीं किस्त में अफजल की फांसी पर खुदा के उद्गार
अफज़ल की बेगम खुदा से इलतिजा कर बैठीः बडी मेहरबानी अगर अप मेरे अफज़ल की जगह ले लें वैसे भी खुदा को मौत नही आती – अगर उसे लटका दिया तो मैं दुनिया मे अकेली अपने बच्चे के साथ और अफज़ल जन्नत मे हूरों के साथ जो मुझे बरदाश्त नही। खुदा ने अपनी बात जारी रखीः हर इनसान की ज़िन्दगी और मौत खुदा के हाथ मे है मगर आतंकवादीयों से खुदा खुद खौफ खाता है, क्योंकि वो यकीनन हमारे स्वर्ग तक मिज़ाइल से निशाना बना सकता है। हम ने मुजाहिदीन से जन्नत का वादा किया, मगर वो बेचारे हमेशा से दुनिया ही मे बुरी मौत मारे जाते हैं
वैसे खुदा सीरीज में अपनी पहली पोस्ट में शुएब ने कहा था-
मुझे बहुत कुछ लिखना है और ऐसे वैसे बातें लिखना है जो आज से पहले कभी न पढी हों न सुनी हों । जी हां, ये ब्लॉग अमेरिका और खुदा के बीच चल रही रिश्तेदारी पर है? ठीक ही पढा, क्योंकि इस वक़्त खुदा अमेरिका मे मेहमान है
शुएब की बात इसलिए की जा रही है कि कहीं ऐसा न हो कि कुछ लोगों को एक पूरी कौम को सलीमीफाई या कैरानवीकृत करने का मौका हाथ लग जाए। उल्लेखनीय है कि इसी खुदा से मिलो श्रृंखला के लिए जिसमें अब तक 79 कडि़यॉं शुएब दे चुके हैं, शुएब को न जाने कितनी गालियॉं, धमकी व फतवे भुगतने पड़े हैं इनमें पाकिस्तानी उर्दू ब्लॉगरों की एक पूरी की पूरी रेवड़ शामिल है। दूसरा उद्देश्य या याद दिलाना भी है कि पंगे पचड़े नए नही है सनातन चल रह हैं...और ये तो नूंहए चाल्लेंगे...ज्यादा टेंशन नहीं लेने का। खुद ओसामा भी हिन्दी ब्लागिंग में आ जाए तो हजम हो जाएगा...फिकर नॉट।
भईया हम खुदा और खुदाई से दूर रहने वाले प्राणी हैं !
जवाब देंहटाएंआज का ज्वलंत बिंदु पकडा आपने ! अब लग रहा है कि यह धार्मिक स्वाइन फ्लू बौद्धिक जगत में भयंकर ढंग से अपने पैर पसार चुका और इस संक्रमण के लिए इस्लाम और अन्य सभी धर्मो के महान ज्ञांता, लेखक, रचनाकार एवं समाज सुधारक इस्लाम पीठ के संकराचार्य श्रीमान सलीम खान एंड कंपनी को बधाई देना चाहूँगा
जवाब देंहटाएंदोनों धर्म इस महान देश के अटूट हिस्सा हैं , और दोनों बच्चे ने इसी मिटटी में जन्म लिया है , और मरते दम तक साथ साथ यहीं जीना है ! फिर हंसते हुए क्यों नहीं रह सकते , बहुमत शांति से रहना चाहता है, किसी भी धार्मिक असहिष्णुता का समर्थन नहीं किया जा सकता, दोनों ही धार्मिक आस्थाओं का सम्मान सर्वोच्च और परम आदरणीय है, एक दूसरे धर्म की खिल्ली उडाने की चेष्टा, अपनी विद्वता ( मूर्खता ) विश्व के सामने प्रकट करने की चेष्टा मात्र है, और जो ऐसा करेगा वो अपने अदूरदर्शी संकीर्ण मन को ही उजागर कर रहा है !
जवाब देंहटाएंहर धर्म में नास्तिक होते हैं और होते रहेंगे , मगर इनको दूसरों के आस्था का मज़ाक नहीं उड़ना चाहिए , हम सब आज़ाद है मगर अभिव्यक्ति की आजादी का फायदा उठाकर, दूसरों का दिल दुखाने का कार्य एक गुनाह है, ऐसा मेरा मानना है ! जो भी ऐसा कर रहा है वह धर्मं के प्रति सिर्फ अज्ञानी है और बुरे इतिहास का भाग बनेगा !
बुरा धर्म नहीं है ...बुरे हम हैं जो उसे गलत पारिभाषित करते हैं ... प्रार्थना है ...कृपया ऐसा न करें इससे आपका तो नहीं ...मगर आने वाली पीढियों का बड़ा नुक्सान होगा , हमारा बड़े होने के नाते यह फ़र्ज़ हैं की हम इन बच्चों से उनकी खिलखिलाहट ना छीने....
सादर
इस पोस्ट पर टिप्पणी के रूप में यह कविता जो मेरे ब्लॉग का शीर्ष वाक्य भी है:
जवाब देंहटाएंमनुष्य ईश्वर का विधाता है
जैसे आँख प्रकाश की माता है
जागो रचो एक नया ईश्वर
जागता इंसान ही अपना त्राता है
मनुष्य ईश्वर का विधाता है - कवि गोपाल
जब तक धर्म के ठेकदार समाज सुधारक बनते रहेगे तब तक इस स्थिति मे कोई सुधार नहीं होगा ।
जवाब देंहटाएंसबसे ज्यादा मुसलमान गैर मुस्लिम देश के वाशिंदे हैं { आज आया हैं हिन्दुस्तान टाइम्स मे एक सर्वे } ।
अल्पमत और बहुमत तो राजनीती हैं
जवाब देंहटाएंजिसका डर था, वही बात हुई ख़ुदा महाराज यहाँ भी मौज़ूद हैं ?
यह क़लाम या शे़र जिसका भी हो, मगर आज की चर्चा पर बड़ा मौज़ूँ बैठ रहा है
कोई चाल ऐसी चलो यारो अब,
कि समन्दर भी पुल पर चले
फिर वो चले उस पे या मैं चलूँ
शहर हो अपने पैरों तले
कहीं ख़बरें हैं, कहीं क़ब्रें हैं
जो भी सोए हैं क़ब्रों में छेड़ो मत उनको जगाना नहीं
ज़ल्द क़यामत ये ख़ुद ही लायेंगे तुम घबड़ाना नहीं
ये शेर शायद इन लोगों पर पूरी तरह से फिट बैठता है।
जवाब देंहटाएंन खुदा ही मिला न विसाले सनम
न इधर के रहे,न उधर के रहे ।।
कुछ भी साझ में नही आ रहा है कि क्या लिखा जाये?
जवाब देंहटाएंक्या हम इस मुद्दे को तूल देकर आग में घी नहीं डाल रहे हैं? पूजा-इबादत घर के भीतर रहे तो ही अच्छा, बिलावजह ईश्वर को इस गंदगी में न घसीटें॥
जवाब देंहटाएं"शर्मिंदगी के साथ एक स्वीकारोक्ति ये भी है कि भीतर कहीं एक एग्नोस्टिक-सैडिस्टिक मन एक बार को कहने भी लगा कि 'अरे लड़ने मरने दे आपस में...काहे दुखी होता है...दोनों ही तो इंसानियत के बराबर दुश्मन हैं'- पर फिर संभल गए क्योंकि ये भी सच है कि जब कट्टरपंथी आपस में भिड़ते हैं तो एक दूसरे को खत्म नहीं करते उलटा एक दूसरे को बढ़ावा देते हैं।"
जवाब देंहटाएंBut I feel the only thing I can do is to ignore it.
"शुएब" के नाम से खुदा - खुदा करके लिखी गई इन पोस्टों के सन्दर्भ को पढकर भगवान वालों के कलेजे को ठन्डक पहुंचेगी । वजह = खुदा की खिंचाई एक मुस्लिम कर रहा है ।
जवाब देंहटाएंएक हिन्दू जब हिन्दू देवताओं को गाली देता है तो बडा अच्छा लगता है , मुसलमानों को ।
भगवान मध्ययुग में आया है ? तो इससे पहले बौद्धों को किसने मारकर भगाया भारत से . खुदा ने या भगवान ने
यह सारा मामला तूल देने का परिणाम है ।
इस मन्च पर पोस्ट के साम्प्रदायिक झुकाव को देखकर निराश हुई ।
चर्चा में भी धर्म आ गया ..?
जवाब देंहटाएंवाकई, यह रूप देखने के बाद तो धर्म बवाल ही लगने लगता है.
जवाब देंहटाएं@ अर्कजेश, जिस तरह अब तक हम पढते पढ़ाते रहे हैं मध्ययुगीनता (मध्यकाल से भिन्न) एक गैर-कालिक अवधारणा है। ईश्वर की केंद्रिकता मध्ययुगीनता की क्लासिकल विशेषता है, साहित्य, आलोचना या समाजशास्त्र में स्थापित बिंदु की तरह देखा जाता है, विवाद या बहस की तरह नहीं।
जवाब देंहटाएंदूसरी ओर शुएब की ,खुदा सीरीज अगर किसी को खुदा विरोधी दिखाई देती है तो यकीनन उसने शुएब को बिना पढे ही राय बनाई है। हम तीनेक सालों से उनकी इस सीरीज को एनलाइटेंड व आधुनिक लेखन के रूप में ही जानते रहे हैं। उनके खुदा में भगवान तयशुदा तौर पर शामिल है।
मसिजीवी से सहमत, शुऐब का लेखन और शैली बेहतरीन है…।
जवाब देंहटाएं@ मसिजीवी - जैसा आपने कहा है वह एकदम सही है कि सभी मुसलमानों को सलीमीफ़ाई या कैरानवीफ़ाई करने की ज़रूरत नहीं है, खुद हिन्दी ब्लॉगिंग में कई (बल्कि अधिकतर) मुस्लिम हैं जो बेहद सुलझे हुए और समझदार हैं, लेकिन जब कोई व्यक्ति "कूड़े का ढेर" आपके दरवाजे फ़ेंकने पर आमादा ही हो जाये तब उस "एकाध पागल" को समुचित जवाब देना जरूरी हो जाता है…। एक बात और - यदि वह "कूड़ा फ़ेंकने वाला" कभी शुऐब भाई, महफ़ूज़ भाई आदि को पढ़ ले तो उसे अकल आ जाये और अक्ल आते ही वह आत्महत्या कर लेगा।
धर्म अफीम है, ये कुछ लोग साबुत कर ही देते हैं.
जवाब देंहटाएंमनुष्य ईश्वर का विधाता है
जवाब देंहटाएंजैसे आँख प्रकाश की माता है
जागो रचो एक नया ईश्वर
जागता इंसान ही अपना त्राता है
मनुष्य ईश्वर का विधाता है - कवि गोपालnice...........................nice..............nice