डिस्क्लेमर : मेरा कोडक का कैमरा जाने कैसे डिसफ़ंक्शनल हो गया और उसके फ्लैश ने काम करना बंद कर दिया, साथ ही वो कम रौशनी में ब्लर्ड इमेज लेने लगा (क्या ये रिपेयर हो सकता है?). पुराने जमाने का मेरा वीडियो रेकॉर्डर भी हाल के कम प्रकाश में सही फोटो / वीडियो खींच नहीं पा रहा था. लिहाजा मैंने मित्रों के कैमरों के मेमोरी कार्डों को उधार मांग कर उनमें से खींचे कुछ चित्र वहीं आयोजन स्थल से मेरे रिलायंस मोबाइल के जरिए इंटरनेट (जिसकी गति कछुआ चाल से भी धीमी होती है,) पर चढ़ाए गए थे. तो उन मेमोरी कार्डों में से डाउनलोड किए बाकी बचे कुछ और चित्रों की झलकियाँ प्रस्तुत हैं. बहुत से चेहरे फिर भी छूटे हुए हैं. तमाम चिट्ठाकार मित्रों ने सम्मेलन के सैकड़ों हजारों फोटो खींचे हैं. आशा है कि वे भी अपने चिट्ठों पर तमाम चित्रमय झलकियाँ व दीगर विवरण जल्द ही पेश करेंगे.
तो देखिए इलाहाबाद व सम्मेलन की कुछ चित्रमय झलकियाँ -
पहले, इलाहाबाद की गलियों से कुछ चित्र -
इलाहाबाद जंक्शन आधुनिकता व प्राचीनता का संगम : रेलवे प्लेटफ़ॉर्म पर गधों/खच्चरों से लदान
शिक्षा का प्राचीन केंद्र – स्वसिद्ध?
रद्दी पेपर के बैग पर चलती, मुस्कुराती जिंदगी -
जिंदगी कठिन है, मगर इतनी भी नहीं कि मुस्कुराया न जा सके…
द रिक्शा आर्ट?
संगम पर
अब, एक पीस तो खा सकते हैं? और हाईजीन? जब पेठ की सभी बीमारियों के लिए लाभदायक है तो फ़ालतू की बात काहे करते हैं?
अब चलिए चलते हैं सम्मेलन पर वापस -
खचाखच भरा सभागार
खचाखच भरा सभागार 2
खचाखच भरा सभागार 3
सड़क पर चाट सम्मेलन?
किस गहन चर्चा में?
और, अंत में – एक पोस्टर दीवार पर -
कहा क्या गया है, ये तो समझ में ज्यादा कुछ नहीं आया, मगर पंकज का पोस्टर लाजवाब है. तमाम कक्ष ऐसे उच्च कोटि के पोस्टरों से सजा धजा था.
(सभी चित्र – अनूप शुक्ल, विनीत, अजित वडनेरकर, मसिजीवी, सिद्धार्थ के कैमरे से.)
सारे चित्र सुन्दर है आभार कई मनोरंजक चित्र दिखाने का
जवाब देंहटाएंबेहतरीन...वाकई...नामवर जी की बात समझाने के लिए शायद उनकी क्लास ही लेनी पड़े...
जवाब देंहटाएंबहुत ही आकर्षक चित्र.इस कलात्मक दृष्टि और अभिव्यक्ति के लिए आभार.ओम ने भी बहुत सारे चित्र लिए थे. मैं उससे कहूँगी प्रेषित करने के लिए. हॉल में लगे पोस्टरों ने मुझे भी प्रभावित किया. खास कर केदारनाथ अग्रवाल जी की कविताओं से सजे पोस्टरों ने.
जवाब देंहटाएंबेचारे हिन्दी साहित्य और हिन्दी संस्थान वाले। अब इस पोस्ट में कितनी हिन्दी यूज हुई है कि हिन्दी वालों का मालिकाना हक बने! :-)
जवाब देंहटाएंचित्र भी किसी भाषा के होते हैं क्या?
रिक्शा आर्ट गजब है...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चित्र. पंकज जी का पोस्टर लाजवाब.आप लोगों की इस लाइव-रिपोर्टिन्ग ने हम सब को जो वहां नही पहुंच पाये, कार्यक्रम से जोडे रखा.सराहनीय प्रयास.
जवाब देंहटाएंwaah waah... dhanyawaaad wahan ki tasveeren dikhane ke liye.. :)
जवाब देंहटाएंनामवर जी या पंकज ही अर्थ समझा सकते हैं
जवाब देंहटाएंक्या करियेगा अर्थ समझ कर? नामवर जी ने कहा है तो सही ही होगा और ऊँची बात होना तो तय है ही. समझ आ जाये तो फिर साहित्य कैसा?
जवाब देंहटाएंबढ़िया चित्र प्रदर्शनी.
अर्थ पूछ कर शर्मिंदा ना करे !!!!चित्र लाजवाब
जवाब देंहटाएंनयनाभिराम !
जवाब देंहटाएंओहो, बस इतनी सी तस्वीरं....!
जवाब देंहटाएंदिल माँगे मोर...
अच्छा लगा...चित्रों से दूरी पता ही नहीं चलती
जवाब देंहटाएंकलावाद पर कल-कल करती टिप्पणी के लिए कला प्रेमी पंकज जी को बधाई। कला और सौंदर्यशास्त्र का यह फ़ंडा तो समझ से परे रहा:)
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति. आभार..
जवाब देंहटाएंचाहे कोई कुछ लिखे चाहे कोई कुछ कहे , कोई लडे कोई भिड़े , कोई खुश हो कोई नारज़ हो . कोई बोलता रहे .कोई चुप रहे , कोई उपस्थित रहे कोई गायब हो जाये रवि रतलामी की ज़रूरत ब्लॉगजगत् को हमेशा रहेगी
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जवाब देंहटाएंलाला अमरनाथ स्पीक्स :
ऑस्ट्रैलिया से मैच हार गये तो क्या,
इस चर्चा को देख मन चौके छक्के लगाने लग पड़ा है ।
फोटूओं का कहना ही क्या ! किसी भी चित्र का खिल जाना स्वाभाविक है , यदि अपना स्पर्श मात्र कर दें, भीष्म पितामह !
बहुत सुंदर चित्र, मजे दार चर्चा दिल खुश हो गया
जवाब देंहटाएंआप का धन्यवाद
चर्चा के साथ कम से कम आपने इलाहाबाद के दर्शन करा दिए ... आभार.
जवाब देंहटाएंअरे वाह, यह तो ‘एक्स्ट्रा कॅरिकुलर एक्टिविटी’- बोले तो ‘आयोजनेत्तर गतिविधियों’ की शानदार पोस्ट है। बहुत अच्छी लगी यह प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंगंगा जी के घात पर भी संतान की भीड़
जवाब देंहटाएंतस्वीरें लाजवाब हैं रवि भाई
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- लावण्या
चित्र प्रस्तावना बहुत अच्छी लगी !
जवाब देंहटाएंइलाहबाद की गलियों में घूमना सुखद रहा ऐसी गलियों में ही तो अब तक का लगभग सारा जीवन बीता है. काफी दिनों के बाद चिटठा चर्चा की पोस्ट रीडर के फीड में दिख रही है.
जवाब देंहटाएंसुन्दर चित्र,हम तो आ न सके रवि भैया आप सभी लोगो के जरिये पता चल रहा है खट्टे-मीठे समेल्लन का।
जवाब देंहटाएंwah, chitra dekh kar maza aayaa/
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चित्रमय पोस्ट। नामवर जी के सूत्र का अर्थ समझाने वाला कोई है?
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