रंजना जी अपने ब्लॉग पर नक्सलियो के उत्पात के बारे में लिखती है
यह हमारे देश की कैसी न्याय प्रणाली है,जिसमे दुर्दांत अपराधियों के मानवाधिकारों के लिए भी इतनी चिंता की जाती है कि न्यायिक प्रक्रिया में उसमे और सामान्य अपराधी में कोई भेद नहीं किया जाता और दूसरी ओर कमजोर मासूम आदमी की रक्षा के लिए कोई व्यवस्था नहीं....
कहा जाता है कि दलित शोषित गरीब लोग हथियार उठा नक्सली बन रहे हैं.यदि यह समूह दलित शोषित उन गरीब लोगों का है,जिनके पास अन्न,वस्त्र,छत,जमीन और रोजी रोजगार नहीं हैं, तो भला इनके पास बेशकीमती अत्याधुनिक हथियार कहाँ से आ जाते हैं ?? यह सोचने और हंसने वाली बात है..यह किसी से छुपा नहीं अब कि, इस समूह के आय के श्रोत क्या हैं और इनके उद्देश्य क्या हैं... | रंजना सिंह |
समूह तो पथभ्रष्ट हो ही चुका है,पर सबसे दुखद यह है कि हमारे देश के कर्ताधर्ताओं को अभी भी यह कोई बड़ी समस्या नहीं लगती.हमारे यहाँ एक विचित्र व्यवस्था है,व्यक्ति का अपराध ही दंड प्रक्रिया से गुजरता है,समूह का अपराध जघन्य नहीं माना जाता और उसमे भी जितना बड़ा समूह, वह उतना ही उच्छश्रृंखल उतना ही मुक्त होता है... जानकार जानते हैं कि अपने ही देश में कई समूहों ने इसे अपना रोजगार बना लिया है..कहीं उल्फा ,कहीं नक्सल कहीं किसी और नाम से एक समूह संगठित होता है
निर्भय जैन अपने ब्लॉग पर करवा चौथ की कथा के बारे में लिखते है
एक समय की बात है कि एक करवा नाम की पतिव्रता धोबिन स्त्री अपने पति के साथ तुंगभद्रा नदी के किनारे के गाँव में रहती थी। उसका पति बूढ़ा और निर्बल था। करवा का पति एक दिन नदी के किनारे कपड़े धो रहा था कि अचानक एक मगरमच्छ उसका पाँव अपने दाँतों में दबाकर उसे यमलोक की ओर ले जाने लगा। वृद्ध पति से कुछ नहीं बन पड़ा तो वह करवा...करवा.... कह के अपनी पत्नी को पुकारने लगा।…………. पूर्ण कथा आप यहाँ क्लिक करके पढ़ सकते है
ब्लॉग सच्चाई कुछ और है पर 'ab inconvenienti' सिगरेट पिने वालो के लिए लिखते है
तकनीकी बाते
यूनिकोड कन्सॉर्शियम, लाभ न कमाने वाला एक संगठन है जिसकी स्थापना यूनिकोड स्टैंडर्ड, जो आधुनिक सॉफ्टवेयर उत्पादों और मानकों में पाठ की प्रस्तुति को निर्दिष्ट करता है, के विकास, विस्तार और इसके प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए की गई थी। इस कन्सॉर्शियम के सदस्यों में, कम्प्यूटर और सूचना उद्योग में विभिन्न निगम और संगठन शामिल हैं। इस कन्सॉर्शियम का वित्तपोषण पूर्णतः सदस्यों के शुल्क से किया जाता है। प्रवीण त्रिवेदी | अपने चिट्ठे या ब्लॉग पर ज्यादा पाठक कैसे लाये जायें इस पर अंग्रेजी में तो इंटरनेट पर ढेरों लेख मिल जायेंगे। हिंदी में इस बारे में बहुत ही कम लिखा गया है। और अगर लिखा गया है तो ज्यातार वही तरीके लिखे गये हैं जो अंग्रेजी में लिखे गये हैं। भारतीय जरूरतों के हिसाब से हिंदी चिट्ठों के लिये SEO यानि Search Engine Optimization (गूगल से हिंदी अनुवाद ’खोज इंजन अनुकूलन’) की जरूरतें अलग भी हो सकती हैं। जगदीश भाटिया | |
एक छोटी सी जावा स्क्रिप्ट से आप यू-ट्यूब से विडियो को ।MP4 फॉर्मेट में डाउनलोड कर सकेंगे | मैं स्क्रिप्ट यहाँ लिख रहा हूँ ,उसे आप जिस विडियो को डाउनलोड करना चाहते है ,उसी पेज के URL बार में पेस्ट करना होगा | बस चित्र की तरह आपके सामने विडियो फाइल डाउनलोड के लिए तैयार मिलेगी | राहुल प्रताप सिंह राठौड़ | हिन्दी में गूगल सर्च करने के प्रति अब लोगों की रुचि बढ़ते जा रही है। यकीन नहीं होता तो http://google.co.in खोलिए और अंग्रेजी के एक दो अक्षर टाइप कीजिए। फौरन आपके समक्ष ड्रॉपडाउन बॉक्स खुलेगा और हिन्दी में किए गए सर्च की लिस्ट दिखाई देने लगेगी। जी के अवधिया |
ब्लॉग दिल की बात पर डा. अनुराग आर्य कुछ यु फरमाते है
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कविताओ का कोना
फिर कोई पूछ ही लेता है घर के बारे में माँ-पिता के बारे में अजूबा सा लगता होगा एक प्रौढ़ लड़की बिना अभिभावक के अकेले कैसे काटती है ज़िंदगी, जी लेगी वो अगर दुनिया ना कुरेदे उसके ज़ख्मों को - अराधना चतुर्वेदी | | यूँ मैं झेलता तुम्हारे जाने की आवाज़ कि सीढ़ियों पर बिछा देता अपनी आँखें और नीचे की ओर धंसती इस कुतुब मीनार से नीचे फेंकता कीचड में अपनी कविताएँ एक एक करके। मैं तुम्हारे जबड़े में डालता अपना दिमाग और शराब की बासी गंध के बीच तुम मुझे तमीज़ से खाती जानेमन। |
| एक दिन नश्वरता का होगा भीगी पलकों रुंधे कंठ और हृदय में हाहाकार का होगा शेष सबका होगा बस तुम्हारा न होगा वह एक दिन | |
गये वक्त को मै, ऎश की तरह झाड देता हू और वो माटी के साथ मिल जाता है, खो जाता है उसी मे कही...... बस होठो पर एक रुमानी अहसास होता है, कहते है कि वक्त को जलाने का भी अपना ही मज़ा है...... - पंकज उपाध्याय | | देखो तो खिला है चाँद कैसा तीज का चौथ का होता भला तो इस तरह देता दरस ? ढूंढ़ते फिरते अटारी , आंगना,घर द्वार हम ताकते रहते उचक कचनेरियों के पार हम देखते, अटका न हो वो बदलियों की आड़ में या फिसल कर गिर गया हो बेरियों के झाड़ में |
बाथरूम में घुसकर उछलने वाले चालू मेंढको से किस प्रकार निजात पायी विवेक सिंह ने.. आइये देखते है
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ब्लॉग काव्य मंजूषा पर लिखा गया है
ब्लॉग काल चिंतन पर टी चैनलों द्वारा अमिताभ बच्चन की अच्छी फिल्मो को ना दिखाए जाने पर लेख लिखा गया है
देखता हूँ एक बार फिर से "अब तक बच्चन" नाम से मेक्स चैनल पर अमिताभ बच्चन की फिल्मों की श्रृंखला परोसी जा रही है। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब किसी चैनल ने इस मेगास्टार के सम्मान में ऐसा प्रयास किया हो। लेकिन बार बार उसी घिसी पिटी लिस्ट को दोहराना चैनलों को लकीर का फ़कीर साबित करता है। ऐसा भी नहीं है कि फिल्मों का चयन उनकी बॉक्स ऑफिस सफलता के आधार पर किया जाता हो। मि नटवरलाल, इन्कलाब, शहंशाह, अग्निपथ अपने ज़माने की सुपर हिट फिल्मों में नहीं गिनी जाती। सूर्यवंषम जैसी फिल्मों का प्रदर्शन तो हास्यास्पद है।
ब्लॉग चीरफाड़ पर एस.एन. विनोद जी लिखते है
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राजीव जैन अपने ब्लॉग पर बता रहे है एक स्वाभिमानी व्यक्ति की कहानी
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आज के कार्टून
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ब्लॉग मानसिक हलचल पर बुधवारीय पोस्ट में प्रवीण पाण्डेय जी कार्यक्षेत्रों में दिखने वाले चार आयामों वाले व्यक्तित्वों के बारे में बता रहे है
1 पहले लोग वो हैं जो न केवल अपना कार्य समुचित ढंग से करते हैं अपितु अपने वरिष्ठ व कनिष्ठ सहयोगियों के द्वारा ठेले गये कार्यों को मना नहीं कर पाते हैं। कर्मशीलता को समर्पित ऐसे सज्जन अपने व्यक्तिगत जीवन पर ध्यान न देते हुये औरों को सुविधाभोगी बनाते हैं।
2 दूसरे लोग वो हैं जो सुविधावश वह कार्य करने लगते हैं जो कि उन्हें आता है और वह कार्य छोड़ देते हैं जो कि उन्हें करना चाहिये। यद्यपि उनके कनिष्ठ सहयोगी सक्षम हैं और अपना कार्य ढंग से कर सकते हैं पर कुछ नया न सीखने के सुविधा में उन्हें पुराना कार्य करने में ही मन लगता है। इस दशा में उनके द्वारा छोड़ा हुया कार्य या तो उनका वरिष्ठ सहयोगी करता है या कोई नहीं करता है।
3 तीसरे लोग वो हैं जिन्हें कार्य को खेल रूप में खेलने में मजा आता है। यदि कार्य तुरन्त हो गया तो उसमें रोमान्च नहीं आता है। कार्य को बढ़ा चढ़ा कर बताने व पूर्ण होने के बाद उसका श्रेय लेने की प्रक्रिया में उन्हें आनन्द की अनुभूति होती है।
4 चौथे लोग वो हैं जो सक्षम हैं पर उन्हें यह भी लगता है कि सरकार उनके द्वारा किये हुये कार्यों के अनुरूप वेतन नहीं दे रही है तो वे कार्य के प्रवाह में ही जगह जगह बाँध बनाकर बिजली पैदा कर लेते हैं।
पोस्ट ऑफ़ द डे
पोस्ट ऑफ़ द डे में पढिये कंचन जी के ब्लॉग पर ब्रेव लेडी "श्रीमती संजीता राजरिशी" जी के बारे में
बाप रे... खुद पे शर्म आने लगी। जो बात मैं जान रही हूँ, वो ये भी जान रही हैं। जिनसे मैं ६ माह से जुड़ी हूँ उनसे वो १४ साल से जुड़ी हैं। जो बात मुझे लग रही है उसके १० २० गुना ज्यादा इन्हे लग रही है। फिर भी बस एक बात कि जिस शख्स से बातकर रही हैं वो उस से जुड़ा है जिससे वो जुड़ी हैं। बस इस बात के चलते अपनी बात किनारे और ऐसा सामान्य और प्रेम भरा व्यवहार।
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तो दोस्तों ये थी आज की चिठ्ठा चर्चा.. कल और आज में कई ब्लोग्स ऐसे थे जिन पर कुछ अच्छी पोस्ट आई पर सबको समेटना थोडा मुश्किल था.. कुछ पोस्ट के लिंक आप भी टिपण्णी के माध्यम से दे सकते है.. अभी हम विदा लेते है.. फिरमिलेंगे
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http://mithileshdubey.blogspot.com/2009/10/blog-post_06.html
जवाब देंहटाएंआप इस चिट्ठे को शामिल कर सकते है।
चिट्ठे का लिंक है।
जवाब देंहटाएंयह तो पत्रिका हो गई. :)
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत फॉर्मेटिंग ! सजी सँवरी बेहतर चिट्ठों के उल्लेख वाली इस चर्चा के लिये धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति..बधाई!!!
जवाब देंहटाएंभाई कुशजी!, क्या वाचन किया है चिठठा चर्चा का शुब्बान अल्ला! अति सुन्दर, पर बडॆ ही अच्छे से, बहूत मगल भावनाऎ. वैसे हम तो आपके लेखनी के पुराने फ़ैन है जी!
जवाब देंहटाएंसंतुलित चर्चा के साथ एक अच्छा पृष्ठ संयोजन
जवाब देंहटाएंबधाई
बी एस पाबला
आपका यह पत्रिका कलेवर कम्प्लीट है
जवाब देंहटाएंहीट है
चर्चा उत्कृष्ट है.
- सुलभ सतरंगी (यादों का इंद्रजाल)
शानदार चिट्ठाचर्चा। नया कलेवर बढ़िया है
जवाब देंहटाएं" कभी कभी अपने पैसे से सिगरेट पिला देता हूँ, जिससे की यह धरती के बोझ जल्द दुनिया से विदा लें"
जवाब देंहटाएंवाह जी, अच्छा तरीका ढूंढ निकाला धरती को हल्का करने का:)
तुमने कहा जल्दबाजी में की गयी चर्चा है यह......लेकिन यह यही सिद्ध करता है कि कलाकार कलाकार ही होता है,कितनी भी हडबडी में वह अपना काम क्यों न कर जाए,वह अनूठी ही रचेगा.....
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बहुत ही सुन्दर चर्चा...हमलोग तो इन्तजार करते रहते हैं,तुम्हारे चिट्ठाचर्चा का...जियो...
बहुत बढ़िया.बधाई.
जवाब देंहटाएंकलेवर खूबसूरत है .गौरव ओर पंकज की कविता बहुत पसंद आयी...इसे आप आजाद नज़्म भी कह सकते है ...पर नंदिनी जी का लिखा यहां पढियेगा .बेहद खूबसूरत है.....
जवाब देंहटाएंमुहब्बत की उम्र से ज्यादा
दूसरा प्रकाश जी ने बेहद खूबसूरती से कुछ टुकडो को जोड़ा है उन्हें
यहां
देखिये ....
एक नज़्म कल दर्शन ने लिखी थी बेहद उम्दा थी....कल वक़्त मिला तो उसका भी लिंक दूंगा.....अभी निकलना है .
खूबसूरत कलेवर में चर्चा !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अन्दाज़ में प्रस्तुत चर्चा.
जवाब देंहटाएंप्रिय कुश भाई,
जवाब देंहटाएंबहुत सधी हुई, संतुलित और सुन्दर चर्चा। बिल्कुल ऐसा लगा जैसे आपके साथ बैठकर आपकी स्नेहमयी, दार्शनिक और साहित्यिक अंदाज़ वाली कॉफ़ी पी रहे हों। आभार।
बढिया चर्चा।
जवाब देंहटाएंकुश जी आपका यह प्रस्तुतिकरण का तरीका हमे पसन्द आया । यह सुरुचिपूर्ण होने के साथ सुविधाजनक भी है । बधाई ।
जवाब देंहटाएंकुश भाई..धन्यवाद हमारी ’आज़ाद नज़्म को’ शामिल करने के लिये :) और यकी मानिये सब कुछ यही मिल गया..अब क्या गूगल रीडर खोलू? :)
जवाब देंहटाएंआभार लीजिये॥
जवाब देंहटाएंबेहतर प्रस्तुति !
तुमसे और क्या उम्मीद ही की जा सकती है ?
बहुत बढिया चर्चा.
जवाब देंहटाएंरामराम.
वाह....!
जवाब देंहटाएंआज की चिट्ठा-चर्चा तो बड़े करीने से सजाई है।
बधाई है......बधाई है........!!
kush ji,
जवाब देंहटाएंbaap re chittha charcha mein kitnon ki shakal nazar aayi hain
aur dekhiye hamri dulhan bhi muskaayi hai..
thank you, shukriya, dhanyawaad..
नया रूप और नई सज्जा भा गई है मन को अब तो ये ई पत्रिका हो गई और चर्चा भी खास लगी
जवाब देंहटाएं