सच तो यह है कि हम अपने इतिहास पुरूषों व जन नायकों के कद्रदान न होकर कब्रबिज्जू हो गये हैं । जिस तरह कब्रबिज्जू कब्रस्तान में दफनायी गयीं लाशों को कुतरने की फिराक में लगा रहता है, वैसे ही हम भी अपने इतिहास पुरूषों की छवियों पर खरौंचें पैदा करते रहते हैं, उनकी कमियों के तिल को ताड़ बनाने का प्रयास करते हैं ।
पत्रकार कभी समाज के लिये मार्गदर्शक और जनता की आवाज उठाने वाले माने जाते थे। लेकिन आज कुछ पत्रकार दूसरे काम भी करने लगे हैं और कहते हैं मेरा काम न हुआ तो, ....... छाप देंगे। कुलदीप कहते हैं:
आजकल हर कस्बे हर नगर में हजारों पत्रकार बिना लिखे और बिना अखबार निकाले ही बड़ी-बड़ी 'तोपों' को डराते फिर रहे हैं। ये 'तोपें' भी डर जाती हैं और इन 'प्रेस' अर्थात अखबार वालों को कुछ न छापने के लिये उनका खर्चा-पानी दे देते हैं और अखबार बिना छपे ही खप जाता है।अखबार वालों के धमकाने के तरीके पर चर्चा करते हुये कुलदीप लिखते हैं:
अगर उनको अपने पेट भरने में कोई समस्या आड़े आती है तो बड़ा सा मुंह खोल कर बोलते हैं कि 'हमसे डरो, हम अखबार वाले हैं। मेरा मेरा काम नहीं हुआ (पेट नहीं भरा) तो हम अखबार छाप देंगे।'
पत्रकारों के इसी रुझान के चलते प्रख्यात पत्रकार अखिलेश मिश्र ने लिखा है:मीडिया: ठसक बढ़ गई, हनक जाती रही
प्रमोदसिंह लिखते हैं:
एक पराये शहर के पराये घर लड़की अचानक खुद को आईने में देखेगी और चौंक जाएगी. बिस्तरे पर अधखुला एक पराया बक्सा होगा, बेढंगी तरतीब और अधनंगे सपनों से स्वयं को बचाता, रहते-रहते जाने किस अप्रत्याशित की आशंका में सिहर जाता, लड़की देरतक बहुत, बहुत, बहुत सारा मंत्र बुदबुदायेगी, हर बुदबुहाहट में कांपती खुद को और-और अकेली पाएगी.सिद्धार्थ टिपियाते हैं:
ओह! हम तो फिर चकरा गये।
इलाहाबाद आइए तो जरा समझाइए इसका मतलबवा..। :)
लवली कुमारी ने मानसिक असंतुलन और पराशक्तियों से संबध में एक महिला के केस के माध्यम से अपनी बात समझाई:
एक परिचित महिला के पुत्र की कुछ साल पहले सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई. वे एक धनी परिवार की संतुष्ट महिला थीं. बच्चे की मृत्यु के पंद्रह दिनों तक वे खुद रोती-बिलखती रहीं. फिर एक सुबह उठी और आश्चर्यजनक रूप से उनका व्यहवार बदल चुका था. उन्होंने बताया की रात को उनके कमरे में प्रकाश फ़ैल गया भगवान जी प्रगट हुए और उन्होंने बताया की तुम्हारा पुत्र जीवित है. सारे लोग जो तुम्हारे आस- पास हैं अज्ञानी हैं.
इस घटना के बाद उन्होंने अपना काल्पनिक संसार बना लिया वे अपने बच्चे के कपडे धोतीं, उसके लिए खाना बनाती, उसके स्कूल फीस जमा करने जाती और किसी के समझाने पर भी यह स्वीकार नही करती कि उनका पुत्र मर चुका है. उनका कहना था की "तुम पर क्यों विश्वास करूँ जब मुझे भगवान ने खुद प्रगट होकर कहा है की तुम सब अज्ञानी हो"
साफ़-सफ़ाई का जिंदगी में बहुत महत्व है। यहां तक कि अगर ठीक से हाथ धोयें तो हर दिन 400 बच्चों की जान बच सकती है। रपट विस्तार से बांचिये
सत्येन्द्र शेर के आदमखोर होने की पड़ताल करते हैं:
शेर संरक्षण के नाम पर हमारी सरकार कभी भी कटिबद्ध नहीं रहीं और आज आबादी के दबाब में यह सब बातें थोथी लगती हे। संरक्षण के प्रति सबसे गंभीर खतरा तो मनुष्य की बढती आबादी हे। इस आबादी को जिंदा रहने लिए संसाधनों की आवश्कता हे। इस देश की दो तिहाई आबादी जो गावों में रहती हे वह प्राक्रतिक संसाधनों पर निर्भर हे। उन संसाधनों से उसका अधिकार कैसे छिना जा सकता हे और आख़िर वह संसाधन कब तक उनकी जरूरतों को पूरा कर पायेंगे।इस देश की जो आबादी अपना खाना पकाने के लिए लकड़ी का उपयोग करती हे क्या उसका कोई विकल्प हे जो की उन्हें अगले पाँच सालो में उपलब्ध करवा दिया जावे? शेर के जिंदा रहने का एक उत्तर इस प्रश्न में छिपा हे।
श्रुति मेहेंदले सवाल करती हैं:
बचपन क्यों है चला जाता....
कभी कभी मै अपने बचपन कि सैर पर निकल पड़ती हु ....
कितना निर्मल और निष्पक्ष होता है ये बचपन ...
ना ये जाने भेद भावः ना ये करे पक्षपात .....
जीवन कितना सरल होता है बचपन का ,,,
ललित शर्मा से सुनिये छत्तीसगढ़ी में किस्सा:
जइसन के मालिक लिये दिये, तइसनेच देबो असीस,
रंग महल मा बईठो मालिक जियो लाख बरीस
नीरज गोस्वामी आवाहन करते हैं:
किसको देता है सब कुछ
नीली छतरी वाला वो
जो देखा, सच बोल दिया
तुम क्या नन्हे मुन्ने हो
काँटों वाली राहों में
फूलों वाले पौधे बो
याद में उसकी ऐ 'नीरज'
रोना है तो खुलकर रो
विवेक सिंह कार्टूननिस्ट तो बन ही गये थे अब वे गजलकार भी बन गये:
अब सुधर जा कुछ भलाई भी कमा ।
पाप तो तूने बहुत कमा लिया ॥
अब दुआएं लूटने की फ़िक्र कर ।
खा चुका है अनगिनत तू गालियाँ ॥
कल प्रख्यात वैज्ञानिक सुब्रह्मनियम चंद्रशेखर का जन्मदिन था। इस मौके पर उनके बारे में जानकारी देते हुये जीशान हैदर जैदी ने लिखा :
चंद्रशेखर का उल्लेखनीय कार्य चंद्रशेखर लिमिट के नाम से जाना जाता है। जो तारों के अन्त से सम्बंधित है। दरअसल किसी भी तारे की एक आयु होती है। जिसके पश्चात उसका अन्त हो जाता है। तारों में नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया से ऊर्जा पैदा होती रहती है। हाईडोजन के नाभिक आपस में जुड़कर हीलियम के नाभिक बनाते रहते हैं। जिसके फलस्वरूप एनर्जी पैदा होती है। लेकिन एक समय ऐसा आता है जब इस एनर्जी को पैदा करने वाला ईंधन समाप्त हो जाता है। यहीं से तारे की मृत्यु हो जाती है। कुछ इस तरह जैसे किसी दीपक का तेल खत्म हो जाये। अब सवाल पैदा होता है कि मृत्यु के बाद तारा किस रूप में परिवर्तित होता है? साइंस के अनुसार यह तारा न्यूटान स्टार या ब्लैक होल या फिर सफेद बौने में परिवर्तित हो जाता है। तारा इन तीनों में से कौन सा रूप लेगा, इसी से सम्बंधित है चंद्रशेखर लिमिट।
एक लाईना
- हौले से तुम्हारे कानों में कहता हूँ कि आई लव यू... : हौले से इसलिये काहे से कि ध्वनि प्रदूषण बच सके।
- मारो...मारो!!!! : कविता सुना के भागा जा रहा है
- वो कब मिलेगी :यही तो पता करने गयी है
- नियति (कविता):तुम्हारे साथ साथ मुझको भी,कहीं बदनाम नहीं कर दे
- हत्या के बाद युवक को जलाया :ताकि सब हिसाब बराबर हो जाये
- दादाजी के नेट पे बैठने का मतलब "डिमेंशिया"से बचाव :चलो दादाजी, बैठो! आव!
- 'आ'एम हैप्पी':छम्मकछल्लो कहिस
- फ़ासलों मे दोस्ती के फ़साने लिख दें :लिखो लेकिन फ़ॉन्ट यूनीकोड रखना
- बिज़नस स्कूलों के सर्वे का खेल :समझ सका न कोय
- मुझे देखो .. :मैं कवि हूं, ब्लागर हूं -मेरे दिल की इबारत, इशारत, अदा देखो !
- विधायक से तंग आकर महिला अधिकारी ने की आत्महत्या :विधायक क्या कर सकता है अब सिवाय आरोपों को गलत बताने के
- बेवकूफों के लिये यहाँ कोई जगह नहीं है :यह जगह ब्लागरों के लिये आरक्षित है
- उर्दू मीडिया : नोबेल से नवाज़ने का मतलब : समझ के का करोगे भैया अब तो ऊ जायेगा ओबामा जी के ही पास
- 'तंदुरुस्ती गुरू' :ने दादाजी से एकन्नी उधार ली और उतर गए पंजा लड़ाने
- जाड़े के दिन :फ़िर फ़सल बिकेगी कम्बल के लिये
- चिट्ठाकारों को नंगा करने की साजिश!:जाड़े के मौसम में !
- आप हैं कौन ? :बताइयेगा टिपियाने के बाद!
और अंत में
फ़िलहाल इतना ही। आप मौज-मजे से रहिये। जो होगा देखा जायेगा।
अच्छी लगी यह प्रात चर्चा !
जवाब देंहटाएंसुघर चर्चा करे हच गा संगवारी
जवाब देंहटाएंसुबह-सुबह चर्चा पढना पूरे दिन के लिये एनर्जी दे देता है।
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया चर्चा.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बढ़िया चर्चा।
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा !!
जवाब देंहटाएंअच्छी लगी ये चर्चा
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया !
जवाब देंहटाएंबेवकूफों के लिये यहाँ कोई जगह नहीं है :यह जगह ब्लागरों के लिये आरक्षित है
जवाब देंहटाएंआपकी टिप्पणियां सटीक हैं।
एक लाइना बहुत अच्छी लगी.
जवाब देंहटाएंसुबह सुबह जब पढ़ लेते हैं चिट्ठा चर्चा।
जवाब देंहटाएंतभी तो हम लिख पाते हैं अगला परचा (पोस्ट)॥
जाने कैसे कुछ अच्छे चिट्ठे छूट ही जाते हैं,,,आभार ;चिट्ठाचर्चा का...आपके माध्यम से ये अनहोनी रूक जाती है...आज चिट्ठों की आवक गंभीर तो अपने शुकूल जी भी गंभीर...पर 'एक लाइना' में ...पुराना कूकर सीटी बजाना कैसे छोड़ सकता है...
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत चर्चा । श्रीश जी की टिप्पणी ने चर्चा को अलग रंग दिया । आभार ।
जवाब देंहटाएंachha laga
जवाब देंहटाएंआजकल हर कस्बे हर नगर में हजारों पत्रकार बिना लिखे और बिना अखबार निकाले ही बड़ी-बड़ी 'तोपों' को डराते फिर रहे हैं। ये 'तोपें' भी डर जाती हैं ..."
जवाब देंहटाएंइसलिए कि इन तोपों के हाथ कालिख से पुते हैं:)
विस्तृत चिट्ठा चर्चा है .........
जवाब देंहटाएंतोप की अच्छी मिसाल
जवाब देंहटाएंवाह ! कितनी अच्छी जानकारी... शीर्षक ही कमाल का है और मन की बात कहती है... शुक्रिया अनूप जी...
जवाब देंहटाएंshukriyaa ANUP JI bahut sundar chiththa characha
जवाब देंहटाएंमस्त चर्चा
जवाब देंहटाएंशीर्षक बहुत ही प्यारा दिया है आपने। साथ ही चर्चा भी अच्छी चलाई है। साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन को चर्चा में शामिल करने का शुक्रिया।
जवाब देंहटाएं( Treasurer-S. T. )
बढिया चर्चा....
जवाब देंहटाएंचिठ्ठा चर्चा की वजह से अच्छी पॊस्टें छूटने नहीं पातीं ।
जवाब देंहटाएंबढिया चर्चा. सच है चिट्ठाकार की सबपे नज़र है. सत्येन्द्र जी का ज़िक्र करके अच्छा किया.
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा। शुक्रिया अनूप जी. :)
जवाब देंहटाएंपठनीय, विचारणीय और रोचक चर्चा .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद.
एक लाइना से चार चाँद लग गए .....
जवाब देंहटाएंवाह...
जवाब देंहटाएंचिट्ठा चर्चा में तो आज बहुत छँटी हुई पोस्ट लगाई हैं।
बधाई!
पठनीय और रोचक चिठ्ठा चर्चा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद.
ब्लौगजगत की क्रांतिकारी घटना...ग़ज़ल क विवेकिया-अंदाज़ :-)। खूब भालो!
जवाब देंहटाएंअच्छी चरचा, देव!
कम स्पेस में ज़्यादा से ज़्यादा चिठ्ठों को प्रस्तुत करने का यह प्रयास सराहनीय है ।
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