आज की चर्चा की शुरुआत ब्लाग-स्मरणीय समीरलालजी की चर्चा के साथ। वे चूंकि मौन हैं लिहाजा कुछ लिखने से परहेज करते हुये एक लम्बी कविता पोस्ट किये हैं। कविता उनकी घटनास्थल पर जाकर देखें लेकिन यह समाचार इधर ही ग्रहण् कर लें कि चार तारीख को उनके कनाडा स्थित गरीबखाने के आसपास उनके बिखरे मोती कविता संग्रह एक और विमोचन हो गया। इस शानदार विमोचन की जानदार रपट पेश किये जाने का आश्वासन दिये हैं। सो आप इंतजार करिये उनकी रपट का। वैसे ये सवाल दो कौड़ी का है कि जब वे विस्तार से रपट पेश करेंगे तब भी क्या मौन ही धारण किये रहेंगे?
समीरलालजी की चर्चा सबसे शुरु में इसलिये करनी पड़ी काहे से कि चचा टिप्पणी वाले के यहां समीरलालजी ने दुखड़ानुमा रोया है कि लोग् उनके लिखे कि चर्चा नहीं करते। क्या दिन आ गये हैं। कोई चर्चा नहीं करता और उनके जैसे अदने लेखक को सबको बताना पड़ रहा है। लाहौल-ब्लाग-कूवत।
लिंक देखें- ये क्या हो रहा है?-हम मौन साधे हैं आप हल्ला मचा रहे हैं।
ये बात् तो आप हाईस्कूल करने के पहले ही जानते होंगे कि गुरुजी लोग बोले तो मास्टरसाहब लोग आल पावरफ़ुल होते हैं। भगवान और मास्टरसाहब खड़ें हो पहले मास्टरसाहब को नमस्ते करने की बात् कबीर जी बता गये हैं। और कहीं मामला मास्टरनी तब तो फ़िर बात ही अलग। देखिये शेफ़ालीजी जो कि मास्टरनी भी हैं ने करवाचौथ के दिन देवियों की लाइन लगवा दी। आप् जलवे देखिये:
है न धांसू वाह-वाह टाइप करवाव्रत! | आपको यह जानकर किंचित हैरानी च परेशानी हो लेकिन यह सच है भाई कि ब्लाग जगत में एक सागर भाई हैं। वे तब लिखते हैं जब उनकी लेखनी फ़ुर्सत पाती है। हाऊ फ़न्नी हैं न्! इस साथ् ही वे अपने को आलसी लेखक भी कहते हैं। और भी न जाने क्या कहते हैं अपनी तारीफ़ में जैसे कि ये-अभागा? क्या याद आये ? मैक्सिम गोर्की ? ... यह खालिस देसी संस्करण है... नंबर १: बेवड़ा, आलसी, निकम्मा... और किन-किन नामों से शुशोभित करूँ! बड़ा पेशोपेश है भाई...... नज़्म हमारी शिराओ का आपरेशन कर डालता है..अब् ऐसे भाई जब मौज में आते हैं तो लिखते हैं:
अब् हम आगे न कहेंगे वर्ना मन करेगा- बवाल लिख/जलाल लिख/सवाल लिख/ हो गया कोई हलाल लिख। |
हिमांशु अपने क्लिष्ट और किंचित संस्कृतनिष्ट भाषा की बजाय सरल-सुबोध भाषा में अपनी बात कहते दिखे। देखिये आप भी। शीर्षक भी उनके इरादे का विज्ञापन कर रहा है-मैं सहजता की सुरीली बाँसुरी हूँ: ऐसी सरल-सुबोध कवितायें शायद वे और लिखें: मैं सहजता की सुरीली बाँसुरी हूँ | नीरज गोस्वामी ज्यादातर मिलन-जुलन के मूड में दिखते हैं। अक्सर ही झमाझम प्रेम की पुड़िया बांटते रहते हैं लेकिन आज तो एकदम डंके की चोट पर कह दिया उन्होंने। क्या कहा देखिये आप खुद ही: तीर खंजर की ना अब तलवार की बातें करें टूटते रिश्तों के कारण जो बिखरता जा रहा इस तरह तुम बसे मेरी आँखों में । |
अंग्रेजी भारत के बच्चों को रह-रहकर सताती है। आज सुबह विवेक सिंह की पुरानी पढ़ी हुई अंग्रेजी एक हिन्दी कविता के रूप् में फ़ूट पड़ी। देखिये आप भी: ब्रूटस ! तुम भी इनके साथ ? मुझे न मरने में आपत्ति उड़ी सदा ही मुझे देखकर ब्रूट्स निकल लिया, | जब सीजर का दुख फ़ूटा तो ब्रूट्स कैसे पीछे रह सकता है। उसने भी अपना रोना रोया। पहले तो लोगों ने उसको टरकाना चाहा लेकिन उसने अपनी बात कह ही ली: सीजर हम अब भी तेरे साथ! प्रेम का बदल गया अब रूप इधर धरा का बढ़ता जाता ताप शिकायत सब बच्चों जैसी बात |
अब कुछ पठनीय च मननीय पोस्टें बता दें आपको। बाकी की आप अपने हिसाब से देख लेना। हम बीच में आयेंगे नहीं:
बैजनाथ की वेदना और बैदजी- अजित वडनेरकर
सब ज़ीरो से सुपर हीरो : बनवारी लाल चौकसे की कहानी उनकी अपनी जुबानी- रविरतलामी के यहां बांचिये।
महिलाओं में परकाया प्रवेश : कुछ दिलचस्प तथ्य/अनुभव- अजय कुमार झा
बाईक चलाईए, मोड़कर बैग में रखिए, ऑफिस या घर ले जाइए, यात्रा पर ले जाईए!- क्या बात है!
अल्पना वर्मा जी बनीं पहली क्विज चैम्पियन- अल्पना जी को चैम्पियन का खिताब मुबारक हो
आज अभिषेक प्रसाद का जनमदिन है- जन्मदिन की बधाई हो!
एक लाईना |
1. ये क्या हो रहा है?: बिखरे मोती का समेट के विमोचन2.ब्रूटस ! तुम भी इनके साथ ?: क्या समझते हो ये तुम्हारे ब्लाग पर टिपियायेंगे? 3.सीजर हम अब भी तेरे साथ!: तेरी वाट लगा के ही मानेंगे 4.उड़न तश्तरी...गलती अब भी जारी है: सुधार लो वर्ना बाद में पछताना पड़ेगा। 5.मैं सहजता की सुरीली बाँसुरी हूँ: लेकिन बजाने में सांस फ़ूल जायेगी। 6.उगे बीज को मरते देखा, जैसे कोई गर्भपात हो गया।: ये तो झाम हो गया, पुलिस आती होगी- पैसे निकाल लो कुछ्! 7. तय किए गए समय सीमा के अंदर प्रवीण जाखड जी के प्रश्नों के जबाब तैयार हैं !!: अब प्रदीप जाखड़ अगले सवाल करें ताकि बात आगे बढ़ सके। 8. धर्म प्रचार पर हंगामा हो रहा है हमारी ब्लॉग दुनिया में, इसे दूर करें !!!!! विरोध में सात दिन ब्लॉग पर पोस्ट पब्लिश नहीं करुँगा…: आठवें दिन के लिये धमकी सात दिन के बाद! |
और अंत में
इसी माह 23-24 अक्टूबर को इलाहाबाद में ब्लागिंग सेमिनार की जानकारी सिद्धार्थ दे ही चुके हैं। इस मौके पर ब्लाग जगत की कुछ बेहतरीन रचनाओं का संकलन करके पुस्तक रूप में प्रकाशित करने की भी योजना है। आपसे अनुरोध है कि अपनी दो-चार रचनाओं के बारे में बतायें जिनको इस अवसर पर आप छपवाना चाहते हैं।
इस संबंध में सूचना यहां देखें। सिद्धार्थ का मेल पता जिस पर आप अपनी रचनायें भेज सकते हैं है---sstripathi3371@gmail.com
आज की चर्चा का काम शिवकुमार मिश्र का था। आखिरी समाचार मिलने तक वे भोजन जैसा कुछ् करते पाये गये थे। इसके बाद संभवत: डा.अमर कुमार ने उनको सीजर-ब्रूटस खोज में लगा दिया हो। बहरहाल अब जो है सो हुआ। आप ये चर्चा बांच ही लिये। अब क्या करते सकते हैं –सिवाय टिपियाने के।
फ़िलहाल इतना ही। बकिया चकाचक। कल मिलियेगा गुरुजन से चर्चा में। तब तक शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंनिट्ठल्ले ने नाहक ही घिसिर पिसिर में शिव कुमार मिसिर को फँसा दिया,
रात के बारा बजे ,दुन्नों ज़ूलियस आउर सीज़र त ईहाँ चिट्ठाचर्चा के पिछवाड़े बरामद हुये ।
बकिया जन जायें, चैन से सोयें । कल की कल देखी जायेगी ।
बहुत दिन बाद यहाँ आने पर पता चला कि इस दुनिया में भी बड़े-बड़े परिवर्नत चुटकी बजाते हो सकते हैं, और हो भी रहे हैं। बहुत अच्छी चर्चा है। बधाई।
जवाब देंहटाएंपुस्तक के लिए अपनी प्रविष्टियाँ सीधे hindustaniacademy@gmail.com पर भी भेंज सकते हैं। धन्यवाद।
उम्दा कविताओं के लिंक मिले
जवाब देंहटाएंचकाचक चर्चा पढ़ मन हर्षित है ।
जवाब देंहटाएंतय किए गए समय सीमा के अंदर प्रवीण जाखड जी के प्रश्नों के जबाब तैयार हैं !!: अब प्रदीप जाखड़ अगले सवाल करें ताकि बात आगे बढ़ सके।
जवाब देंहटाएंअनूप जी, ये प्रवीण जाखड़ तो ठीक...लेकिन ये अगले सवाल पूछवाने के लिए प्रदीप जाखड़ जी को कहां तैयार किया जा रहा है, कृपया साफ़ करने का कष्ट करें...
ये बढ़िया रहा. चच्चा के दरबार में परियाद का असर बढ़िया रहा कि दस पोस्टों से बंद जिक्र आ ही गया. चच्चा का दरबार तो सिद्ध निकला. :)
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा और अच्छा लगा.
आज की चिट्ठा चर्चा सार्थक रही।
जवाब देंहटाएंघनी और धाँसू चर्चा -फोटुयें भी !
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा रही। आपने इलाहाबाद ब्लागर मीट की खबर देकर चौंकाया। पिछली बार के आरक्षण को रद्द कराने के पैसे ही अभी एजेंट ने नहीं लौटाए हैं। इस मीट की सूचना अभी हमें नहीं मिली, पर मिले तो भी नहीं आ सकेंगे क्योंकि इन्ही तारीखो में दिल्ली का कार्यक्रम पक्का हो चुका है। मीट के लिए अग्रिम शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंअजित वडनेरकर की मेल से प्राप्त टिप्पणी
बढिया रहस्यवादी चर्चा लगी. दिवाली के मौके पर बहुत आनंद दायक चर्चा है.
जवाब देंहटाएंरामराम.
चर्चा में पुरानी बतकही का आनंद आ जाता है,,,,वास्तव में..
जवाब देंहटाएंओह तो आज हमारा जिक्र हो ही गया, वो भी आठवें दिन की धमकी के इंतजार के लिये। :)
जवाब देंहटाएंचर्चा का कलेवर खूब निखर आया है...पहले कुश की मेहनत और फिर अब फुरसतिया देव की...
जवाब देंहटाएंहैरान रह जाता हूँ कई बार इस समर्पण पर
बढ़िया
जवाब देंहटाएंनया कलेवर भी शानदार
बी एस पाबला
अपनी धुन में आने पर खूब निखर जाते हैं आप । चित्रमय चर्चा के लिये बेहद खूबसूरत प्रयोग लाइवराइटर का । सब कुछ सिस्टमेटिक हो जाता है इससे ।
जवाब देंहटाएंचर्चा सुन्दर लगी । आभार ।
वाह चिट्ठाचर्चा का तो रूप रंग ही बदल गया...........नये मेकअप में और भी बढिया.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया..
जवाब देंहटाएंब्रूटस ..सीसर ... कौन थे[हैं]?