अभी पिछली पोस्टों पर कमेंट देखे। और तमाम आत्मीय टिप्पणियों के अलावा डा.अमर कुमार की टिप्पणी है:
मोबाइलवा में विडीयो लेने का भी अथिया जोगाड़ होगा, ऊ भि दीखाइये, न !तो भैया आपको बता दें इहां मोबाइल खाली फ़ोटू गिरी के काम आ रहा है। बकिया ब्लागिंग लैपटाप के सहारे हो रही है। मोबाइल में वीडियो की सुविधा का जुगाड़ अभी हुआ नहीं। कल हम फ़ोटुये लेने में लगे रहे। हिन्दुस्तानी अकादमी ने जो कुछ लिया होगा वो शायद बाद में दिखाई जाये।
ई रिपोर्टिंग नज़ारा तनि अउर लाइव-लाइव लगेगा के नाहिं !
ब्लगियार पुर की जनता बहुतै अशीस देगी ।
कल के घटनाक्रम पर विनीत ने विस्तार से रपट दी है। उनका आवाजरिकार्डर कहीं गुम हो गया सो स्वाभाविक रूप से वे थोड़ा गुमसुम हैं। लेकिन आज भी रिपोर्टिंग तो जारी ही रहेगी उनकी।
अपने आकर्षक और ध्यान खींचने वाले शीर्षक देने की स्वाभाविक पत्रकारीय ललक के चलते संजय तिवारी ने अपनी रपट में लिखा -ब्लागरों के निशाने पर नामवर सिंह।
नामवारजी बड़े-बुजुर्ग हैं। अपनी अस्सी साल से अधिक की उम्र में वे ब्लागिंग जैसी विधा के बारे में कुछ जानकर कहे दिये। उन्होंने जो कहा सो , जहां तक मेरी जानकारी है , कहकर कहा। एक ही बात उन्होंने कही जो कि सही नहीं थी कि वर्धा विश्वविध्यालय वालों ने ब्लाग को हिंदी शब्द चिट्ठाकारी दिया। बाकी जो भी बातें कहीं वे कहीं भी अभिव्यक्ति संबंधी मंच कही जा सकती हैं। वे ब्लागिंग से जुड़े नहीं हैं। ब्लाग लिखते नहीं हैं। टिपियाते नहीं हैं कहीं। उनकी जितनी जानकारी है उतना उन्होंने कहा और सामान्य रूप में जो कहा वो आम आदमी के रूप में सही ही कहा। इसमें क्या गलत है अगर कोई कहता है- स्वच्छंदता और स्वतंत्रता में अंतर है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ जिम्मेदारी भी होनी चाहिये। ब्लाग ने बहुत कम समय में विस्फ़ोट के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज करायी है। पूत के पांव पालने में ही दिखने लगे। कल को अराजकता की स्थिति में राज्य इसमें अपनी भूमिका भी निभा सकता है। इसी तरह की बातें शाकाहारी, शिक्षाप्रद बातें उन्होंने कहीं।
उनको जानकारी नहीं थी कि ब्लाग को चिट्ठा वर्धा विश्वविद्यालय वालों ने नही आलोक ने कहा। इसको मैंने अपने पोस्ट में कहा भी। अब इसपर कोई कहे कि ब्लागरों के निशाने पर नामवर सिंह तो भैया यह उसकी समस्या है। हम लोगों की समस्या है कि नामधारी लोगों के आगे हम या तो बिछ जाते हैं या फ़िर उसके हर हाव भाव को माइक्रोस्कोप से देखते हुये उस पर हल्ला बोलकर अपनी क्रांतिकारी संवेगों की संतुष्टि कर लेते हैं। हम नामवरजी को सुनकर प्रमुदित च किलकित उत्ता नहीं हो पाये जित्ता हो सकते थे काहे से कि हम उस समय रपट लिख रहे थे। बकिया वे हमारे निशाने पर तो कत्तई नही थे।
कल का सत्र ब्लागरों वाले अंदाज में ही हुआ। ब्लागरों को जो याद था , जो बोलना चाहते थे वही बोले। सबके विचार सुनते हुये आनन्दित होते रहे। पहले बहुत कम लोगों ने अपने नाम दिये थे। लेकिन धीरे-धीरे बहुत लोग बोले। ऊ सब विस्तार से बाद में बताया जायेगा।
कल रात फ़िर अजित वडनेरकर को विदा करने के बाद बैठकी हुई। अलग-अलग जगह लोग बैठे होंगे। हम लोग अफ़लातून, प्रियंकर, रविरतलामी, यशवंत , संजय तिवारी, अमिताभ त्रिपाठी ,सिद्धार्थ , अरविन्द मिश्र और , और ,और, और लोग कम-ज्यादा देर तक बतियाते रहे।
आज सुबह-सुबह चाय की दुकान पर चाय, जलेबी के दौर चले। अफ़लातून जबरियन पैसा दिये काहे से कि वो बड़ा नोट तुड़वाना चाहते थे। हिन्दुस्तान में लगता है समाजवादी तोड़-फ़ोड़ का काम काफ़ी करते रहे हैं।
बात ओबामा को नोबल पुरस्कार की भी हुई। हम कहे कि भाई हमें ई बात नहीं समझ आती कि हमको नहीं मिला तो हम तो नहीं एतराज किये। बकिया लोग काहे हल्ला मचा रहे हैं जी?
जहां हम ठहरे हुये हैं वहां टंकी भी है। मसिजीवी ने समझा शायद ब्लागरों के लिये बनवायी गयी हो। लेकिन कोई टंकी-ब्लागर आया नहीं।
बकिया बातें बाद में होंगी। फ़िलहाल आप मौज से यहां की फ़ोटॊ-सोटॊ देखिये और आनन्दित होइए।
(अनूप शुक्ल का चित्र अफलातून द्वारा खींचा गया)
पुनश्च: यहां प्रयुक्त शब्द लोटपोट अफ़लातून जी के सौजन्य से। पहले इसे बताने में चूक गये। अब अफ़लातूनजी के टोकने पर संशोधन कर रहे हैं।
बहुत आनंद आया ई रिपोर्ट पढकर. जारी रहे.
जवाब देंहटाएंरामराम.
भैया रिपोर्ट जल्दी-जल्दी दो इहंवा तो परान सूखत है जाने बदे, कि उहंवा का-का हुआ...
जवाब देंहटाएंबड़ा नोट तुड़वाने के लिये हम भी इंतजार कर रहे हैं। :)
जवाब देंहटाएंमस्त चर्चा।
हमें तो सम्मेलन की महारिपोर्ट का इंतजार है। जिसमें चित्रों की भरमार हो। सचमुच की न मारममार हो। धारदार ब्लॉगिंग का जिसमें छिपा बसा प्यार हो। अगले चुनावों में ब्लॉगरों की ही सरकार हो। उनकी सब जगह दरकार हो। ब्लॉगिंग पर नोबल पुरस्कार हो। इसकी घोषणा तो करवा ही दीजिए फुरसत में।
जवाब देंहटाएंफोटो तो दिखा नहीं। सुबह जलेबी की बात तो हमें मसिजीवी भी बता दिए थे। हम तो जानना चाहते थे शाम को रात को क्या क्या खाने को मिला। कोई बता ही नहीं रहा है। सब कहते हैं बहुत अच्छा था। अभी ब्लागर लोगन को एक दिन और रुकना है जिस से इस स्टेटमेंट पर शंका होने लगी है। कहीं आयोजक लोग नाराज ना हो जाएँ। विनीत का आवाज रिकार्डर गुम होने का गम हमको भी है। पर हम भी आस लगाए बैठे हैं कि शायद मिल जाए। वरना इलाहाबाद और यू.पी. दोनों बदनाम होगा। अब यूं ना कहिएगा कि इस में भी नाम तो होता ही है। नामवर जी जैसे महान लोग छोटी मोटी गलती करने से शोभित होते हैं अगर वे गलती नहीं करते तो संजय तिवारी इतनी झक्कास रिपोर्टिंग कइसे करते। बाकी तो ऐसा कुछ ना था उन की बातों में जो हम बचपन से ना सुनते आए हों। बड़े लोग पहले ही कह गए हैं कि जबान संभाल कर बोलना वरना यह तो बोल बाल कर दांतों के पीछे छुप जाएगी। और ये गंजी खोपड़ी है उस की खैर नहीं है।
जवाब देंहटाएंबाकी जो जो ब्लागर बोले जिस की रिपोर्ट विनीत ने दी उस में तो लग रहा था कि सम्मेलन में भी ब्लागर भाई खाली ब्लागरी ही करते रहे। अरे वहाँ तो ब्लागरी छोड़ सम्मेलन करते।
हम सोचे थे कि हमें आप की रिपोर्टिंग हर तीसरे घंटे मिलेगी। पर कल के बाद आज मिल रही है। खैर हम अगली रिपोर्ट का इंतजार कर रहे हैं। ऐसा न हो कि अब कानपुर से ही आए।
गब्बर और सांभा आपको इस रिपोर्टिंग के लिये बधाई देते हैं। और जलेबी गब्बर और सांभा के लिये भी भिजवाई जाये। अकेले नही खाने का। क्या?
जवाब देंहटाएंजय भवानी।
और शुगरु्फ्री जलेबी ? ऐसा रिकार्डर भी बनना चाहिए जो गायब न हो सके। जिसका है वो हाथ लगाए तो ठीक, दूसरे लगाए तो करेंट ठोके।
जवाब देंहटाएंबड़े पछतावे के साथ कहना पड़ रहा है कि इलाहाबाद में रहते हुए भी मैं आज वहां नही जा सकी लेकिन यह कम्पूटर और कन्टूपर(मोबाइल) दोनों ही बड़े कमाल की चीज है। बहुत आनंद आया यह सब पढ़कर जो कल समय से पहले ही छोड़कर मैं चली आयी थी। आज यहीं से काम चलायेंगे।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद।
यह सब बैठक आप लोग छुप-छुप कर कब करते है... हमको ललचाने के लिए... हमें बताते तो हम भी आते... आप लोगो के पैर छूने... इतने बड़े-बड़े हस्ती एक साथ जमा हुए हैं... हम बस तस्वीर देख कर आँख सुता रहे है... फिर भी धन्यवाद तो कहना ही पड़ेगा... भाग भूत लंगोट सही... :)
जवाब देंहटाएंआनंदित करने वाली रिपोर्ट. वहां के वीडियो भी ज़रूरी हैं. जो लोग दिज़िटल कैमरा लिये हैं, उनके कैम्रे से फ़िल्म भी बन सकती है. कोशिश करें कि तस्वीरों के साथ-साथ चल-चित्र का आनंद भी हम ले सकें.
जवाब देंहटाएंकोई मारपीट हुई अबतक? कोई वारदात? कोई जूतमपैजार?
जवाब देंहटाएंढंग से लगता संचालन हो नहीं रहा है! :-)
अच्छा लग रहा है, ब्लॉग संगोष्ठी का अद्यतन प्रसारण|
जवाब देंहटाएंऔर हाँ, ऐसा नहीं है कि नामवर जी जानते नहीं हों की ब्लॉग को चिट्ठा नाम वर्धा वि. वि. ने नहीं दिया | वे जानते होंगे क्योंकि यह हर कोई आमौ-ख़ास जानता है | परन्तु नामवर जी का यही तरीका है कि सारे प्रकरण में विवाद की एक चिंगारी छेड़ दो और चर्चा में बने रहो| सबका ध्यानाकर्षण !!
ब्लॉग जगत में आप नहीं देखते हैं कि लोग-बाग़ भी यही करने की राह पर चल निकले हैं| चर्चा (चिट्ठाचर्चा सहित दूसरी भी चर्चाएँ ) में आने के लिए लोग कितने बेताब रहते हैं ?? पूरा इतिहास खंगाल लीजिए, आप तो ब्लॉग-इतिहास के सर्वमान्य इतिहासकार हैं, हमसे बेहतर जानते हैं| टंकी पुराण से गाली पुराण तक ......
आधुनिक साहित्य-समाज में ऐसे ही तो केन्द्रीकरण { :-) } होता है |
विनीत की रपट, फुरसतिया का फुरसतनामा, एकेडेमी की आधिकारिक जानकारी और विस्फोट का समाचार सभी बाँचे गए हैं.
सभी को धन्यवाद|
पुनश्च :
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और हाँ आपको बधाई ! कल चिट्ठाचर्चा का पेजव्यू आँकड़ा पुराने सब रेकोर्ड तोड़ कर १२२६ पहुँच गया| कोई मिठाई शिठाई बाँटीं जानी चाहिए| हमें भेजने के लिए ८ दिन का मार्जिन लेकर लम्बे समय तक चलने वाली मिठाई (जैसे - काजू बर्फी आदि )
डाक से भिजवाने की व्यवस्था कीजिए और सिद्धार्थ को भी कहला दीजिए | हम मुँह मीठा करने का इंतज़ार करते जा रहे हैं |
बहुत उम्दा तरीके से बयां की जा रही है स्थितियां...अच्छा लग रहा है.
जवाब देंहटाएंजैसे ही इलाहाबाद के दर्जीयों को पता चला कि ब्लॉगरों का जमावडा हो रहा है वो अंदर ही अंदर बहुत खुश थे....उनको पूरी आशंका थी कि कपडे वपडे तो फटने तय हैं....डॉक्टर अलग खुश थे कि पट्टीबाजी का होलसेल मौका हाथ आया ही समझो.....पर हाय रे उनकी किस्मत .....तोड फोड भी नहीं हुई कहीं......यानि ब्लॉगर सम्मेलन आशानुरूप नहीं रहा :)
जवाब देंहटाएंबढिया रिपोर्टिंग।
कुल मिलाकर धांसू-फांसू-हांसू पोस्ट।
..बड़ी - बड़ी बातें तो हमें समझ नहीं आती हैं.... हाँ जलेबी के नाम से मुँह में पानी आ गया .
जवाब देंहटाएंis photo se ye pata chalta hai ki anoop ji muskura muskura ke charcha karte hain. :D aur pose bhi fursat wala hota hai.
जवाब देंहटाएंसभी तरह की रिपोर्टें पढने को मिलीं। सम्मेलन तो सम्मेलन की तरह ही चला- आठ अंधे और एक हाथी की तरह- जिसने जो छुआ, उसे वैसा लगा:)
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंहम तो जानिये रहे थे...आप लोग कुछो घर छोड कर थोडबे जाएंगे....अरे कम से कम पेटवा तो छोड जाते..कभी जलेबिया दबा रहे हैं त कभी कुछ आउर..बता देते त द्विवेदी जी और हमको भी आने-न आने का गम या खुशी होती फ़ोटो एतना छोटा ..अरे नीचे वाला महाराज..उपर वाला में तो लैपटोपवा भी मजे मा दिख रहा है....काहे आया..कौन साईज़ है ई..स्टैंप साईज़ से भी छोटा...खलिया नामे दिख रहा है..जरूर करीना कपूर वाला ज़ीरो साईज़ होगा ..गंगा पार उतरिय फ़िर बतियायेंगे
जवाब देंहटाएंहम तो जानिये रहे थे...आप लोग कुछो घर छोड कर थोडबे जाएंगे....अरे कम से कम पेटवा तो छोड जाते..कभी जलेबिया दबा रहे हैं त कभी कुछ आउर..बता देते त द्विवेदी जी और हमको भी आने-न आने का गम या खुशी होती फ़ोटो एतना छोटा ..अरे नीचे वाला महाराज..उपर वाला में तो लैपटोपवा भी मजे मा दिख रहा है....काहे आया..कौन साईज़ है ई..स्टैंप साईज़ से भी छोटा...खलिया नामे दिख रहा है..जरूर करीना कपूर वाला ज़ीरो साईज़ होगा ..गंगा पार उतरिय फ़िर बतियायेंगे
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