आज सुबह का सत्र कुछ देर से साढ़े ग्यारह बजे शुरु हुआ। इस समय हिमांशु बोल रहे हैं। कहा कि ब्लाग के लिये मैं कुछ अलग नहीं लिखता। वही लिखता हूं जो अन्यथा भी लिखता।
इसके पहले आज अध्यक्ष के रूप में मंच पर प्रियंकर हैं। संचालक के रूप में इरफ़ान। आज कल की तरह अराजकता सी नहीं है । संचालक महोदय ने सबको बता दिया है कि सब को अनुशासन में रहना है। समय सीमा का ध्या रखना है। सवाल अंत में पूछे जाने हैं। ये नहीं कि जब मन आया उठ खड़े हुये और सवाल को भी उठा दिया।
मसि्जीवी ने शुरुआत की आज की बात की।तीन बिन्दु उठाये। उनके बारे में बगल बैठे विनीत अपनी पोस्ट में लिख चुके हैं। इसके बाद गिरिजेश राव, हेमंत , विनीत कुमार, अरविन्द मिश्र माइक के सामने आये-गये। फ़िलहाल हिमांशु हैं।
अरविन्दजी ने अपने ब्लाग का प्रचार किया केवल कि हमारे साइंस ब्लाग में ये किया जा रहा है, वो किया जा रहा है।
विनीत ने बहुत बेहतरीन बोला। उनको और समय मिलना चाहिये था। विनीत ने इस बात को खारिज किया कि ब्लाग में संपादक नहीं है। उन्होंने कहा पहले एक था अब पचास हैं। आपके पाठक आपको सही करते हैं। टोंकते हैं। सुधारते हैं। संपादक का रूप बदल गया है। पहले वह पहले देखता था और रोकता/टोंकता था। अब वह छप जाने के बाद अपना काम करता है।
विनीत ने कहा कि आज हिन्दी में भले महावीर प्रसाद द्विवेदी न हों लेकिन तमाम रेणु, तमाम प्रेमचन्द छोटे-छोटे ताजमहल के रूप में उभर रहे हैं। ब्लाग विविध रूप में अनगिनत तरह से विविध रूप में भाषा को समृद्ध कर रहा है। यह बहुत सुकूनदेह है घर परिवार के लोग अपनी दिन भर की घिचिर-पिचर के बीच अपनी अभिव्यक्ति कर रहे हैं। विनीत ने तमाम टिप्पणियों का भी उदाहरण दिया।
हिमांशु ने गिरिजेश की तमाम कविताओं का उदाहरण दिया। यहां की फ़ोटो आज सुबह से अब तक की गतिविधियों की हैं।
लोटपोट! :) संभाले रखिएगा लोटपोट को! खोने की आदत होती है इसे!
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
चर्चा पढ़कर और फोटो देखकर अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंजब अगली बार माइक पकड़ें, हमारी ओर से राम राम बोली जाय सबको ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लगा
जवाब देंहटाएंsundar* * * *
जवाब देंहटाएंहमारी तरफ से भी सबको प्रणाम बोला जाय !
जवाब देंहटाएंत्वरित रपट के साथ-साथ चित्र भी बढ़िया लगाए है।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
काश मैं भी वहां होता.
जवाब देंहटाएंजारी रहिये...अति उत्तम रिपोर्टिंग...
जवाब देंहटाएंयह अच्छा लगा कि आज सब अनुशासन में हैं । यह ब्लॉगिंग का अनुशासन पर्व है। ब्लॉग कैसे लिखे जाये इस पर एक कार्यशाला की जा सकती है । साहित्य मे लेखक/कवि पहला सम्पादक/आलोचक होता है और पाठक दूसरा ,तीसरे आलोचक की भूमिका बाद मे है । यह बात मैं अपने ब्लॉग "आलोचक " http://sharadkokaas.blogspot.com में लिख चुका हूँ ।ब्लॉग में अभी लिखना शुरू हुआ है तो क्या लिख तो लोग बरसों से रहे हैं । हाँ इस बात का अवश्य ध्यान रखा जाये कि जो लोग साहित्येतर विषयों पर लिख रहे हैं वे कहीं अपने आपको अपमानित न महसूस करें आखिर ब्लॉग किसी की बपौती नहीं है।
जवाब देंहटाएंआयोजकों को धन्यवाद. एसा आयोजन को हंसी-ठठ्ठा नहीं है..
जवाब देंहटाएंमहत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा हो रही है.........
जवाब देंहटाएंवाह ताजा समाचार का अपना ही अलग मजा है।
जवाब देंहटाएंकाश! मेरा भी एक फोटो होता।
जवाब देंहटाएंलाइव कवरेज़ जैसा कुछ होना चाहिए था.... इन्टरनेट पर ऐसा कुछ जुगाड़ तो जरूर ही होगा...
जवाब देंहटाएंवैसे... ये भी लाइव से कम नहीं है..
विनीत जीका यह बयान पसंद आया- हमें सम्पादक जो बना दिया:) अच्छी सटीक रिपोर्टिंग के लिए आभार॥
जवाब देंहटाएंफोटो और रिपोर्टिंग दोनों ही स्तरहीन हैं !
जवाब देंहटाएंलगता है इलाहाबाद में कुछ लोगों को पर्याप्त भाव नहीं मिल पाया,
जवाब देंहटाएंसम्मेलन स्तरहीन नहीं रहा होगा,
कुछ लोग ऊपर के स्तर पर जा बैठे होंगे तो कुछ को निचले स्तर पर धकेल दिया गया होगा,
यह विवेक सिंह की परिकल्पना है,
जैसे आवोगाद्रो की परिकल्पना बाद में सत्य पायी गयी, वैसे ही हो सकता है हमारी परिकल्पना भी सत्य हो :)
”अरविन्दजी ने अपने ब्लाग का प्रचार किया केवल कि हमारे साइंस ब्लाग में ये किया जा रहा है, वो किया जा रहा है।”
जवाब देंहटाएंDr. Arvind Misra Ji के द्वारा सामाजिक मन्च से दिये गये उदबोधन को प्रचार बता कर चर्चाकार उनकी, चर्चा के इस सामाजिक मन्च से, मानहानि कर रहे हैं. कोई व्यक्तिगत कारणवश ऐसा किया जाना उचित नहीं लगता. चर्चाकार को सामाजिक मन्च की मर्यादा एवं Dr. A. Mishra के सम्मान का ख्याल रखना चाहिये. यह मन्च व्यक्तिगत भड़ास निकालने के लिये नहीं प्रयुक्त किया जाना चाहिये.
लोगों की पर्सनालिटी अलग अलग थी। पर सब बड़े भले लगे। काश मेरे पास और समय होता!
जवाब देंहटाएंपरिकल्पना और प्लान में फर्क होता है आपको परिकल्पना लग रही है और मुझे पूर्व नियोजीत प्लान , और मेरी बात सत्य है :)
जवाब देंहटाएं''अरविन्दजी ने अपने ब्लाग का प्रचार किया केवल कि हमारे साइंस ब्लाग में ये किया जा रहा है, वो किया जा रहा है।''
जवाब देंहटाएंमैं तो स्वयं डॉ अरविन्द जी के व्याख्यान के समय श्रोता के रूप में मौजूद थी पर मुझे तो कुछ भी ऐसा नहीं लगा कि अरविन्द जी कहीं से भी अपने ब्लॉग का प्रचार कर रहे हैं .वहाँ पर उपस्थित सभी ने अरविन्द जी को बहुत गौर से सुना और महत्वपूर्ण बिन्दुओं को नोट किया .मुझे लगता है कि इस मंच का उपयोग भी अब एक दुसरे की छींटा-कशी में किया जा रहा है जो कि शोभा नहीं देता खास तौर पर वह भी आप जैसे वरिष्ठतम ब्लोगर के द्वारा ,यह सब शोभनीय कतई नहीं कहा जा सकता.
खान पान क जो कार्य क्रम बीच मे हुआ उसे तो आप गोल कर गये :)
जवाब देंहटाएंवीनस केशरी
जवाब देंहटाएंतेल देखा और तेल की धार भी देखा, जी ।
तेलिया मसान की भेड़िया धसान भी देखा, जी ।
हमने अनूप जी से वादा किया था, और इन्कॉगनिटो ( Incognito ) बन कर हो भी आये ।
बहुत मज़ा आया, स्वयँ भृत्य बना तो क्या ? पर आज साहबों को हज़ूर हज़ूर की मुद्रा में भी तो देखा !
सब कुछ वही नहीं है, जो यहाँ बँचवाया जा रहा है । ज़िन्दगी में लफ़ड़े और भी हैं स्वप्रचार के सिवा !
विवाद की चिंगारी छोड़ने का ऎसा कोई इरादा भी नहीं है, बकौल डा. कविता...
" .... विवाद की एक चिंगारी छेड़ दो और चर्चा में बने रहो| सबका ध्यानाकर्षण !!
ब्लॉग जगत में आप नहीं देखते हैं कि लोग-बाग़ भी यही करने की राह पर चल निकले हैं| चर्चा (चिट्ठाचर्चा सहित दूसरी भी चर्चाएँ ) में आने के लिए लोग कितने बेताब रहते हैं ?? पूरा इतिहास खंगाल लीजिए, आप तो ब्लॉग-इतिहास के सर्वमान्य इतिहासकार हैं, हमसे बेहतर जानते हैं| टंकी पुराण से गाली पुराण तक ...... "
आप शायद ठीक ही होंगी डा. कविता कि, ज़िन्दगी में लफ़ड़े और भी बहुत हैं स्वप्रचार के सिवा ! मुज़रा तो देख ही लिया पर चिंगारी छोड़ने का कोई इरादा नहीं है ! चर्चा शुभ हो ।
@ अनूप जी -
जवाब देंहटाएंसंभव हो तो कभी यह भी बताइयेगा (करके )कि इस तरह की तुरंता चर्चा कैसे की जानी चाहिये ताकि वह उच्च स्तरीय हो सके।
फ़ोटो तुरंत लिये गये। तुरंत अपलोड किये गये। कैमरे की भी कुछ सीमाई का यें होती हैं
इस तरह की चर्चा ऐसी होनी चाहिए कि किसी की बात को अलग तरीके न पेश किया जाए ...और हां एक बात अगर अरविंद मिश्र को मलाल था मच्छर काटने का और उन्होंने पोस्ट लिख दी और आपको किस बात का मलाल था जो आपने ऐसे विवादीत बात लिखी और ?
कमरे की सीमाए होती है लेकिन कैमरे को समर्दर्शी होनी चाहिए
कमरे = कैमरे पढा जाय !
जवाब देंहटाएं@ पंकज मिश्र, ये तो आप अरविन्द मिश्र जी से पूछिये। वे शायद बता सकें कि स्तरीय कार्य कैसे किये जा सकते हैं। हमसे जो बना हमने किया जिसको अरविन्द जी ने स्तरहीन कहा।
जवाब देंहटाएंहमको इसी बात का मलाल है कि हमें वहां जाने, रहने और वापस आने के दौरान ऐसा कोई अनुभव नहीं हुआ जिसका हम मलाल कर सकें। हमें जैसा लगा वैसा लिखा। अब आप घर बैठे बिना अरविन्दजी को सुने इसे विवादित बता दें तो यह आपकी नजर है।
@ बैठा भले घर था लेकिन आपकी दया से नजर हमेशा आप पर ही था आपने लाइव जो किया ...आप ये बताओ पहले अपने पोस्ट में प्रचार लिखा या पहले अरविन्द जी ने कमेन्ट लिखा ?
जवाब देंहटाएंऔर आप ज़रा कैमरे वाली बात पर भी प्रकाश डाले
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जवाब देंहटाएंशुभ विवादम !
अभी चिट्ठाचर्चा खोला,
मेरा चर्चा अभिवादन स्वीकार किया जाये ।
आपका स्वागत है डा. साहब , हमारे यानी पंकज की तरफ से !!!:)
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