ज्ञाता कहते हैं कि विश्व सपाट हो गया है। न केवल सपाट हो गया है अपितु सिकुड़ भी गया है। सूचना और विचारों का आदान प्रदान सरलतम स्थिति में पहुँच गया है। अब सबके पास वह सब कुछ उपलब्ध है जिससे वह कुछ भी बन सकता है।पोस्ट में आगे सुख-समृद्धि के सागर और हिमालय अमेरिकाजी की बात की है। सब अमेरिका बनना चाहते हैं लेकिन बेचारा अमेरिका क्या बन रहा है यह भी देखा जाये कभी ’लेजर’में बैठ के- ई है लब्बो-लुआब प्रवीण पाण्डेयजी का। हुबली प्रस्थान कर गये प्रवीणजी यह पोस्ट लिखकर।
लाईन, लिनेन, लिनोलियम में लकीर के किस्से सुना रहे हैं शब्द सारथी अजित वडनेरकर।
कुल जमा २० पोस्टों पर २२ टिप्पणियां हैं जोगिन्दर रोहिल्ला के ब्लाग पर। वे सपना लिये हुये हैं:
मैं चला तो हूँ आंखों में
अनगिनत सपने ले के ,
देखता हूँ कितने होंगे पूरे
और कितने रहेंगे अधूरे ।
किशोर कुमार के जीवन से जुड़े तमाम किस्से पढिये-दिलीप के दिल से में
ये बगल का चित्र है चोर बाजार से इस पोस्ट का शीर्षक है -क्या यह चित्र देख कर भी आप पानी नही बचायेंगे ! बताइये भला! कौन माई का लाल कह सकता है कि नहीं चाहेंगे?
बात जब पानी की हो रही है तो यह भी जानते चलिये डा.साहब से कि पानी कैसा पियें? काहे से कि जइसा डा.साब बताते हैं
जो पानी हमें साफ़-स्वच्छ दिखता है....उस में तरह तरह की कैमीकल एवं बैक्टीरीयोलॉजिकल अशुद्दियां हो सकती हैं जो हमें तरह तरह के रोग दे सकती हैं।
डा.साहब एक और जानकारी दे रहे हैं- सी.टी स्कैन से भी होता है ओवर-एक्सपोज़र ?
दो दिन पहले माननीय शिक्षा मंत्रीजी कहते सुने गये कि देश के आई.आई.टी. गणों में प्रवेश के लिये इंटरमीडियेट में ८५% अंक लाने होंगे। अभी यह अंक सीमा ६०% है। इसका मतलब और जोर लगाना पड़ेगा नौनिहालों को । और बेहाल होना पड़ेगा आई.आई.टी. में आने के लिये। हालांकि माननीय शिक्षा मंत्री जी ने बाद में कहा कि अंक सीमा वे नहीं कोई कमेटी तय करेगी। इस बारे में एक देखिये एक गपशप प्रभात गोपाल की-सिब्बल साहब चाहें, तो कुछ भी कर सकते हैं।
पाकिस्तान विधटन के कगार पर देखिये ब्रिगेडियर चितरंजन सावंत,वी एस एम का लेख।
मोबाइल ने एक लफ़ड़ा ई किया है कि प्रेम-स्रेम करने वालों की कसरत कम कर दी है। पहले प्रेम में कसरत बहुत हो जाती थी। अच्छा खासा वर्क आउट हो जाता था। पहले के प्रेम पत्र हस्तांतरण के किस्से सुनाते हुये अद्यतन समाचार मिलने तक कुंवारे ही बने अनिल पुसदकर बताते हैं:
बात निकली महमूद के घर मे चलने वाली बुनियाद लायब्रेरी की जो जाकर खत्म हुई लव लैटर यानी प्रेम पत्रों पर्।किताबों मे खत छिपाकर रखना और उसे वापस करते समय दूसरी पार्टी का पंहुच जाना और किताब वापस होने से पहले ही ट्रांसफ़र होना।कितने रिस्क होते थे उस समय्।अब ससुरे मोबाइल ने सारे लफ़ड़े खतम कर दिये हैं। देखिये कित्ता दुखी किया इस मुये मोबाइल ने:
ये साला मोबाइल सब खेल ही खतम कर दिया।अब क्या मज़ा आता होगा?मोबाईल पे फ़िक्स करो और मिल लो।मज़ा तो साला अपने समय आता था।मिलना तो दूर एक झलक के लिये कई चक्कर मारने पड़ते थे।उसके भाई और बाप से ज्यादा प्राब्लम उस मुहल्ले के लफ़ंगों और उस्के चाहने वालों से होती थी।मेरे अपने के असरानी की तरह कई बार उसके मुहल्ले के लफ़ंगो से तू-तू मै-मै से लेकर हाथापाई तक़ हुई।
बताओ कहां-कहां तो हाथापाई कर डाली होगी अनिल ने। लेकिन कैसे कठकरेजे हैं छत्तीसगढ़िया कि अब इनके लिये कोई हाथापाई करने के हालात तक नहीं पैदा कर रहा है। न हो तो फ़ेंक दो भैया मोबाइल और ले लो रिस्क और शुरु कर दो कहीं खतो किताबत। जो होगा देखा जायेगा।
अल्लेव ई एक और छ्तीसगढ़ के भैया हैं गिरीश पंकज। उनका तो कौनौ परेशानी नहीं। सब परेशानी अनिल को ही काहे होती है भाई! देखिये गिरीश क्या कहते हैं:
कभी श्रृंगार करती है,
कभी मनुहार करती है.
मेरे सपनो की वो रानी,
मुझे बस प्यार करती है.
कभी वह पास आती है,
कभी वह दूर जाती है.
कभी ख्वाबों में आकर के,
सितारों को सजाती है.
अधर जब खोलती है वह,
लगे झंकार करती है..
अपने विभाग के अधिकारी मनोज कुमार का ब्लाग दो दिन पहले देखकर बड़ी खुशी हुई। मनोज लिखते हैं:
छोड़ दी बैसाखियाँ जब,
चरण ख़ुद चलने लगे।
हृदय में नव सृजन के
भाव फिर पलने लगे।
भावनाओं का उमड़ता, वेगमय उल्लास लेकर।
समय देहरी पर खड़ा है हाथ में मधुमास लेकर।
एक गहरी श्वांस लेकर !!
सोलह साल की हैं जेसिका और वो निकल पड़ी दुनिया का चक्कर लगाने। देखिये सरिता झा की पोस्ट!
दुनिया भर में ट्विटर का हल्ला है भैये। फ़िर बढ़ई मिस्त्री कैसे इससे अछूते रह सकते हैं। अनुराग आर्य ने बुलाया नसीम भाई को इसी लेटेस्ट तरीके से :
तो क्या वो दिन दूर नहीं जब . आप अपने बढ़ई नसीम भाई को ट्विटर पे सुबह सुबह ट्विट करोगे के " .अमां नसीम भाई .एक खिड़की का पल्ला जरा बुरा मान गया है …आ कर थपथपा दो.... या फेस बुक पे आप का इलेकट्रीशियन आप को जवाब भेजे .. .ऊपर वाले स्टोर की बत्ती जो आंख मार रही थी बदल दी है .....नीचे इनवर्टर का भी फ्युस चेंज हुआ है ...कुल मिलाकर इत्ते मेरे बनते है ...अकाउंट में ट्रांसफर कर देना ...
''ये त्यौहार ही हमारी मुनसिपेलिटी हैं'' ई बात कह गये हैं हमारे भारतेन्दु बाबू। उसी बात को पकड़ के आगे बैटिंग कर रही हैं मास्टरनी शेफ़ाली पाण्डेय। मुनसिपैलिटी कथा सुनाते-सुनाते कुमायूंनी चेली धिक्कार मोड में आ गयीं और कहन लगी:
धिक्कार है, इन पेप्सी, कोक वालों को, इन एडिडास वालों को, इन पेन , पेंसिल बनने वालों को, करोडों की बोली लगाने वालों को ,उन्हें भी धिक्कार जिनकी शानदार पार्टियों में इन्होने ठुमका लगाया , दुकानों के रिबन काटे ,रियलिटी शो में शो पीस बने , जिनके लिए इन्होने अपना बल्ला तक ताक पर रख दिया, धिक्कार की यह सूची इतनी लम्बी है कि एक पोस्ट में उन्हें समेटना संभव नहीं हो पायेगा ,बाकी अगली पोस्ट में
.
पुरानी पोस्टों से
जिन कुछ लोगों के ब्लाग लिखना बंद कर देने पर खुंदक आती है मुझे उनमें एक इंद्र अवस्थी उर्फ़ ठलुआ नरेश हैं। इनके खानदान में ठलुहई की शाश्वत परम्परा चली आ रही है। ठलुआ नरेश को न जानते हों तो उनके परिचय पर नजर डाल ली जाये। वे अपने बारे में लिखते हैं:जन्म से कलकतिया, अभियांत्रिकी (कंप्यूटर साइंस) इलाहाबाद से, मूलत: उत्तर प्रदेश से. नौकरी और प्रोजेक्ट बड़ौदा, मुंबई, कलकत्ता, जमशेदपुर, लास एंजिलिस में करने के बाद वर्तमान में पोर्टलैंड, ओरेगन, संयुक्त राज्य में कार्यरत. जहाँ रहे प्रवासी माने गये, जैसे कलकत्ते में यूपी वाले, यूपी में बंगाली, बड़ौदा-मुंबई में श्रद्धानुसार भैया या बांग, अब यू. एस. में देसी या इंडियन. पंगा लेने की आदत नहीं, लेकिन जहाँ भी रहे, ठँस के रहे, हर जगह अपना फच्चर फँसाते रहे. लोगों ने मौज ली तो हमने भी लोगों से मौज ली. बहरहाल हमको भी शिकायत का मौका नहीं मिला. शायद इसी स्थिति को प्राप्त होने को ठेलुहई कहते हैं.
कुछेक लेख लिखकर ही ठेलुहा नरेश ने अपनी दुकान का शटर गिरा लिया। जो लिख के दुकान बंद कर दी वे तो आप यहां बांच लीजिये अगर मौका हो। हिंदी के बारे में लिखा यह लेख खासतौर पर देखियेगा। अपने एक और लेख में परदेश में गाड़ी ठुकने की कथा विस्तार से बताते हुये इंद्र अवस्थी लिखते हैं:
महीने भर पहले जब सुना कि फलाने की गाड़ी ठुक गयी है तो कई लोग बधाई देने पहुँचे. सब पूछने लगे कि अब कौन सी खरीदनी है तो साँप सा लोट गया मन में. एक सज्जन तो इधर-उधर देखने के बाद आँख बचा के नयी गाडी और नयी बीवी की तुलना करने लगे. हम चुप बैठे रहे. हमने शोक प्रकट किया लेकिन जिनकी गाड़ी ठुकी थी उनकी खिली हुई बाँछों के आगे ऐसा लगा ज्यों हमीं ठुक गये.इसके बाद जहां चाह वहां राह के शाश्वत धर्म को निबाहते हुये अपनी भी गाड़ी ठुकवा ली और वीर पति/पिता बनने की हसीन लालसायें पाल लीं। देखिये:
घर पहुँच कर हमने चाय माँगी (खुद नहीं बनायी) और हमें अपनी आवाज में गरज का भी आभास हुआ. और थोड़ी देर गंभीरता ओढ़े चुप भी बैठे रहे, पर हमेशा की तरह इस बार भी इस भावखाऊ अवस्था में हमें अकेला ही छोड़ दिया गया तो हमसे रहा नहीं गया और हम टप्प से बोल पड़े - अरे सुनती हो , आज गाड़ी का ऐक्सीडेंट हो गया.
हमें अविश्वास भरी नजरों से देख के सवाल पूछा गया - तुमने किया या किसी और ने.
हमने मंद मंद मुस्कुराते हुए कहा - हमारे होते हुए मजाल है जो और कोई ठुकवा ले.
इस पर हमें 'चल झूठे' जैसी नजरों से देख के फिर पत्नी ने पूछा - सच?जिसपर हम किसी फिल्म से सीखे संवाद तुरंत बोल दिये - मुच!
हमारी अवस्थी की मुलाकात का एक किस्सा देखने का मन् हो तो इधर देखियेगा।
एक लाईना
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और अंत में
फ़िलहाल इतना ही। चिट्ठों की चर्चा आज हिमांशु ने भी की है। काफ़ी पोस्टें काम की उधर मिल जायेंगी। देखिये और हिमांशु के प्रयास को सराहिये।
हम तो चले आफ़िस। आप मौज करिये। जो होगा देखा जायेगा।
अनूप जी ने इस चर्चा में एक अच्छी बात उठाई उसे मै अपने ढंग से कह रहा हूँ, "पुरानी पोस्टों से ".. मुझे हमेशा से लगता रहा है कि नए चिट्ठों की तरह ही एक पुराने चिट्ठों की भी चर्चा का ब्लॉग होना चाहिए, फायदा नं.१--नए चिट्ठाकारों को पता चले कि कौन से चिट्ठाकार की कौन सी रचना बहुत ही अच्छी रही है..? फायदा नं.२--अच्छे चिट्ठाकारों की भी पुरानी प्रविष्टियाँ धुल चाट रही हैं, उन्हें कौन पूछता है.? फायदा नं. ३---इससे अच्छे चिट्ठों का प्रचार होगा, चाहे रचना किसी ब्लोगर सेलिब्रिटी की हो या ना हो..
जवाब देंहटाएंमेरा मंतव्य सिर्फ इतना है, कि कम से कम जो भी वरेण्य और "must read" कभी भी लिखा गया है,उस तक सबकी पहुँच एक समान हो....
आशा है आप सभी विचार करेंगे....
सुन्दर, और पाठक साहब की बात से भी सहमत की यह जो नयी बात आपने की "पुराणी पोस्टो से वह एक सार्थक और सही कदम है कई बार क्या होटा है की कुछ बहुत अच्छी पोस्ट/लेख जो चिठ्ठा चर्चा की नाजोरो में नहीं आते उन्हें भी बाद में स्थान मिल जाए ! इस शुभ कार्य के लिए बधाई !
जवाब देंहटाएंटंकण त्रुटियों के लिए क्षमा, ये स्स्साला गोगल ट्रांस्लितेरेशन भी कभी कभार अर्थ का अनर्थ कर देता है !
जवाब देंहटाएंवाकई पुराने चिट्ठाकार जो किसी कारणवश अनियमित हुए हैं परंतु उनका योगदान कम तो नहीं है, और उनकी बेहतरीन रचनाओं तक सबकी पहुंच होना चाहिये।
जवाब देंहटाएंचिट्ठा चर्चा की नित नवीन प्रयुक्तियो का कायल हूँ । पुरानी पोस्टों से में छाँट-छाँट कर बेहतर प्रविष्टियाँ प्रस्तुत करना सबके लिये उपयोगी होगा । श्रीश जी की टिप्पणी भी काबिले-गौर है ।
जवाब देंहटाएंएक लाइना तो बेहतर है ही । आभार ।
एक लाइना में बढिया पोस्ट.
जवाब देंहटाएंमस्त चर्चा की हिमांशु जी ने।अनूप जी अकेला मैं ही था जो रिस्क नही उठा पाया,वर्ना हमारे ग्रुप मे तो एक समय लव मैरिज का फ़ैशन चल पड़ा था।अपहरण से लेकर हत्या के प्रयास भी हुये और इन सब के बावज़ूद हमारा ग्रूप पीछे नही हटा सिवाय मेरे जो कभी आगे ही नही बढा।लगता है अपनी गाड़ी मे चार रिवर्स और एक फ़ारवर्ड गियर है,देखते हैं कब लगेगा।और हां आर्य समाज वाले पंडित जी उस समय हम लोगो को देखते ही समझ जाते थे लफ़ड़े वाली शादी होगी,आर्य समाज के तत्कालीन मह्त्वपूर्ण पदाधिकारी की पुत्री की भी शादी हम लोगो ने भिलाई के आर्य समाज मंदिर मे ही करवा दी थी।दो सौ से ज्यादा शादी करवाने का रिकार्ड होगा मगर एक अपनी ही नही करवा पाये।हा हा हा हा।इस पर भी सीरिज़ लिखना पड़ेगा लगता है।वैसे अब रिस्क कम है तो फ़िर से ट्राई कर लेंगे हमारे समय की बहुत सी अडियल पार्टिया सेल मे लटकी हुई होंगी हमारे जैसे।मज़ा आ गया।
जवाब देंहटाएंभई यह एक लाइना के बाद आपका कमेंट तो ऐसा लगता है जैसे सिया के साथ राम ।
जवाब देंहटाएंये एक लाईना बहुत अच्छी लगी आभार्
जवाब देंहटाएंबढिया एक लाईना !अच्छी चिट्ठा चर्चा..
जवाब देंहटाएंएक लेना वाकई मजेदार रहे..
जवाब देंहटाएंआईला क्या ठोंक बजा के चर्चा कर डाली जी आपने.. बहुते ही मस्त लग रही है..
जवाब देंहटाएंवाकई पुरानी प्रविष्टियों को देखकर अच्छा लगा..
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंचर्चा में शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंअनूप शुक्ल जी!
जवाब देंहटाएंआपने बहुत बढ़िया और चुनिन्दा पोस्टों की चर्चा की है।
आभार!
सुन्दर चर्चा , एक लाइना कमाल की है
जवाब देंहटाएंपुरानी प्रविष्टियों को देखकर अच्छा लगा..बढिया चर्चा
जवाब देंहटाएं"जो पानी हमें साफ़-स्वच्छ दिखता है....उस में तरह तरह की कैमीकल एवं बैक्टीरीयोलॉजिकल अशुद्दियां हो सकती हैं जो हमें तरह तरह के रोग दे सकती हैं।"
जवाब देंहटाएंअब तो पानी पीने से भी लोग डर रहे हैं। पता नहीं बोतल में भी कितने कीटाणु हों:)
पुरानी बेहतरीन प्रविष्टियों का स्वागत किया जायेगा ।
जवाब देंहटाएंचयन पूर्ववत बढिया है|
जवाब देंहटाएंमनोज जी की कविता और "ठलुहई" से मिलाने का शुक्रिया, देव!
जवाब देंहटाएंचर्चा में की गयी मेहनत हमेशा हैरान करती है मुझे...
ये जो पुरानी पोस्टो का सिलसिला शुरू किया है ....उसके लिए आपको सौ में सौ नंबर ....पढ़कर बांछे खिल उठी....पुराने कई लोग कित्ता मस्त लिखते थे ....
जवाब देंहटाएंआखिर में आज की बेस्ट एक लेना .....स्वेटर बुनने वाले प्रोफेसर -जाडे में ओर अच्छे लगेगे
बढ़िया चर्चा ....एक लाइना से ज्यादा मस्त कोई पोस्ट नहीं हो सकती ...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया पोस्ट...ठेलुआ नरेश को देख प्रसन्नता हुई.
जवाब देंहटाएंएक लाईना-जोरदार!!
अपने मन में ही अचानक यूं सफल हो जाएंगे
जवाब देंहटाएंक्या ख़बर थी कि आपसे मिलकर ग़ज़ल हो जाएंगे
आपने हमारी भी चर्चा की, शुक्रिया। एक लाइना मन को तृप्त करने वाला है। पुराना पोस्ट उपयोगी है।
बहुत ही दिलचस्प लेखन ! एक-एक एकलाइना पर एक-एक मोती बारुं जी !!
जवाब देंहटाएंसाधुवाद !!!
अहो !! भाग हमारे..
जवाब देंहटाएंआज हमहूँ इहाँ पधारे...
देख भये सुखारे
और तपाक टिपण्णी दै डारे...