मंगलवार, फ़रवरी 16, 2010

....मेरी चादर मेरे पैरों के बराबर कर दे


सरकती जाये रुख से नकाब आहिस्ता-आहिस्ता वाले अंदाज में ब्लॉग जगत के पुरस्कार घोषित हो रहे हैं। इसी तरह गतिमान रहा मामला तो महीने दो महीने में तो निपट ही जायेगा सम्मान समारोह और उस पर क्रिया-प्रतिक्रिया यज्ञ ।

हर मामले की तरह इस पर भी अजय झा ने अपना एक्सपर्ट कमेंट दे दिया है। उधर अदा जी ने इनाम देने के लिये कद-काठी-चेहरे-मोहरे-अकल-शकल के लिये विज्ञापन दे दिया है। समीरलाल ने अपनी कैटेगरी में फ़िट होने के लिये हमेशा की तरह मानक बदलवाने का समीरहठ किया है और कहा है:
एक युवा कवि चाहिए
जो लगभग ५५ का हो
जो भी उसने लिखा हो
कोई समझ न पाया हो

-आगे वो दुबला पतला में लफड़ा फंस रहा है, जरा नियम थोड़ा ढीले करिये न!! :)


कुल मिलाकर बड़ी अफ़रातफ़री मची है इनाम-इकराम के बहाने। अब आप कहियेगा कि ई भैया अफ़रातफ़री कौंची होती है? तो आप शौक से पूछिये! हम भी बताने के लिये हलकान बैठे हैं। आखिर अजित वडनेरकर कौन मर्ज की दवा हैं। अरे भाई ये शब्द संपदा संबधी हर मर्ज की दवा है। बोले तो आल इन वन। अर्थ समारोह का फ़ीता काटते हुये शब्द सारथी फ़रमाते हैं:

हिन्दी के सबसे ज्यादा इस्तेमालशुदा शब्दों में अफ़रातफ़री का भी शुमार है जिसका मतलब है अस्तव्यस्त होना, हंगामा होना, बदहवासी फैलना। इस शब्द के और भी कई प्रयोग होते हैं जैसे गड़बड़ी फैलना, घोटाला होना, गोलमाल करना जिनमें मूलतः अनियमितता की बात उभर रही है।
अर्थ बताते-बताते समझाइस शेर भी ठेल दिये भाईजी ने। देखिये न सही:
मगर गृहस्थ के लिए भी अपरिग्रह ज़रूरी है। monkeys-survivingकिसी शायर ने खूब कहा है-और कुछ भी मुझे दरकार नहीं है लेकिन, मेरी चादर मेरे पैरों के बराबर कर दे। यानी ग्रहस्थ भी उतने में गुज़ारा करे जितने में शांति और मंगल की सृष्टि हो जाए। सुखानुभव संग्रह में नहीं बल्कि निरपेक्ष जीवन में है। कबीर भी कह गए हैं कि साईं इतना दीजिए, जामे कुटुम समाय। मैं भी भूखा न रहूं, साधु न भूखा जाय।।
इस शब्द मंथन से अर्थ मक्खन निकालते हुये बताया अजित जी ने:
इस तरह इफ़्रातो-तफ़्रीत (तफ्रीक़) के मायने हुए न्यूनाधिक्य, कमोबेश, थोड़ा-बहुत, कम-ज्यादा आदि। संदेश यही कि हमें संतुलन रखना है। न ज्यादा और न ही कम। हमारे हर कर्म में तारतम्य, संतुलन बना रहे। किसी बात की कमी भी बुरी और ज्यादती भी खराब। मध्यमार्ग ही सही है।
मतलब अर्थ ही बदल गया हड़बड़ी में और दुनिया संतुलन वाले शब्द-युग्म को हड़बड़-भड़भड़ वाले डस्टबिन में फ़ेंक के चल दी। भाग ली। स्टेचू बोलना पड़ना इसको तो।

लेकिन स्टेचू हम काहे को बोलें जब पहले ही पंकज उपाध्याय बोल चुके हैं वह भी कविता में। देखिये न! :

याद है, तुमने जब मुझे
भरी रोड पर ’स्टेचू’ बोला था,
वो लम्हा फ़्रीज़ हो गया था,
सिर्फ़ तुम्हारे एक ’पास’ के इन्तजार मे.....

आज जब ज़िन्दगी भागती है,
हर एक लम्हे पर पाव रखकर....
मै मजबूर लम्हो के बीच,
खडा सोचता हू, कि
तुम आओ और ’स्टेचू’ बोल दो....

और इस बार कोई ’पास’ नही.......


अब इस कविता स्टेचू से असल के स्टेचू बनाने वाले की बात की जाये जरा। तो चलिये राजकुमार सोनी के ब्लॉग पर। वे कलासाधक मूर्तिकार पद्मश्री नेलसन के बारे में जानकारी देते हुये बताते हैं:

पद्मश्री नेलसन की जीवनयात्रा को लेकर बहुत कुछ लिखा जा चुका है। लेखकों ने उनकी जीवनयात्रा के लगभग सभी पहलुओं को खंगाल डाला है। बावजूद इसके जान मार्टिन नेलसन के पक्ष में जो सबसे अहम बात है, वह यह है कि वे ईसाई हैं और हिन्दु देवी-देवताओं की सैकड़ों मूर्तियों में जान फूंकने का काम वे बड़ी ही शिद्दत के साथ कर चुके हैं। नेलसन द्वारा निर्मित की गई हर मूर्ति को देखकर लगता है कि मूर्तियां जैसे अभी बोल पड़ेगी - अरे लोगों मैंने तो नहीं कहा था कि तुम मेरा नाम लेकर लड़ बैठो। क्यों अपने झगड़े में हमें घसीटते हो। नेलसन एक श्रेष्ठ किस्म के सृजनधर्मी हैं।

अब थोड़ा लिखाई-पढ़ाई और किताबों की भी बातें कर लॆं जरा। नीरज जी बता रहे हैं शायर " शीन काफ निजाम" उर्फ़ "शिव कुमार निजाम" के बारे में! किताब के बारे में तो आप नीरज जी के इधर बांचिये!हम तो आपको शायर साहब के कुछ शेर सुनायेंगे बोले तो पढ़ायेंगे। फ़र्माइये वह जिसे हिन्दी में मुलाहिजा कहते हैं:

पहले ज़मीन बांटी थी फिर घर भी बट गया
इंसान अपने आप में कितना सिमट गया

अब क्या हुआ की खुद को मैं पहचानता नहीं
मुद्दत हुई कि रिश्ते का कोहरा भी छट गया

गाँवों को छोड़ कर तो चले आये शहर में
जाएँ किधर कि शहर से भी जी उचट गया
ये पहला वाला शेर पढ़कर स्व.रमानाथ अवस्थीजी की ये पंक्तियां याद आ गयीं:
धरती तो बंट जायेगी
पर नीलगगन का क्या होगा?
हम तुम ऐसे बिछड़ेंगे
तो महामिलन का क्या होगा?

ये जयपुर वाले नीरजजी तो खाली किताबों के बारे में माउस डाल दिये। अब उधर देखिये उदयपुर से डा.श्रीमती अजित गुप्ता तो और ऊंची सलाह दे रही हैं। विवाह के बारे में सलाह और वो भी फ़ोकट में। देखिये सलाह का फ़िनिशिंग टच:

अब इस देश की बालिकाओं और युवतियों तुम्‍हारे सोचने का समय शुरू होता है अभी। कि तुम अपने लिए बॉडी-गार्ड ढूंढती हो या फिर अपनी बॉडी का गार्ड स्‍वयं बनती हो। मैंने अनेक हल दिए हैं परम्‍परा से चली आ रही इस ...गर्दी के खिलाफ, फैसला आपको करना है। हमारी तो जैसे-तैसे कट गयी लेकिन तुम्‍हारी बढ़िया कटे इसके लिए मैंने फोकट में ही सलाह दी है। मैं जानती हूँ कि मेरी फोकटी सलाह को आप कोई भी नहीं मानेगा लेकिन जब मैं पैसे लेकर सलाह देने लगूंगी तब आप सब अवश्‍य मानेंगी। सीता-सीता।


लेकिन अगर आप बालिका नहीं बालक हैं तब भी इस सलाह का समुचित सुधार करके उपयोग कर सकते हैं।कोई टोकेगा नहीं। फ़िलहाल आप चलिये सपने की यात्रा में स्मार्ट इंडियन पिट्सवर्ग वाले अनुराग शर्मा के साथ।

उधर दिल्ली की देखा देखी जोधपुर में भी ब्लॉगर मिलन हो लिया। कल हरिप्रसाद जी ने मिलन छटा दिखाई अलग-अलग पोज से। इकल्ले-इकल्ले जियोग्राफ़िया मय ब्लागिंग हिस्ट्री शीट के डाल दिया। इब देखते हैं कहां तक बचते हैं ब्लॉगर।

अरे इनको छोड़िये और देखिये पाखी की मस्ती। फोटो देखिये पहले इसके बाद आगे बढ़ियेगा!



परसों जहां संस्कार, सभ्यता, बाजारीकरण, नैतिकता की ठेकेदारी, और वैलेंटाइन डे के बहाने एक सच बताते हुये झुमका गिरा रे वाले शहर बरेली से अपनी मां को जन्मदिन और वेलेंटाइन दिन की बधाई देते हुये लिखा:
और अपने मित्रों से कहना है, कि प्रेम को अंतरतम से महसूस करें, वह किसी दिन, किसी व्यक्ति का मोहताज नहीं, किसी व्यक्ति से भी हो सकता है, शरीरी हो जरूरी नहीं, अशरीरी भी हो सकता है। जरूरी नहीं कि मुखर होकर ही अभिव्यक्त हो, मौन अभिव्यक्ति से क्या प्रेम न होगा..?
वहीं कल प्रशान्त में अपनी मम्मी को मिस किया और बाकायदा एस.एम.एस. किया:
कल रात बैंगलोर से बस पकड़ते समय मम्मी को एक एस.एम.एस.लिखा था.. "miss you mommy!! :'( "

पीडी की इस पोस्ट के बाद उनके पास समझाइस भरे संदेशे आये। डा.पूजा ने पहले तो समझाया:
का हो बबुआ एतना चिंता उनता करी के कहाँ जाई,आई हो दादा, बाल उल सफ़ेद होक्खे खाली..कोई बियाहो नइखे करत तब...एतना न सोचा हो...सब ठिक्के हो जात. सबर करी तनी.
लेकिन फ़िर जब पीडी फ़िर लिखे:
अभी सुन रहे हैं "माचिस" के गाने.. ये तो और उदास किये दे रहा है.. :(
तो डाक्साब हड़का दिये सच में:
बकलोल हो, माचिस के गाने सुन रहे हो...फिर कहोगे जगजीत सिंह सुन रहे हैं...ई सब कोई मूड अच्छा करने का उपाय है. कोई तोडू फोडू गाना सुनो, हल्ला मचाओ, दू चार ठो दोस्त को बुलाओ, हाहा ठीठी करो...टंच हो जाओगे.
पोस्ट पढ़ने के बाद हम फोन करके पीडी से का बतियाये ई हम न बतायेंगे। :)

हिन्दी ब्लॉगिंग में महफ़ूज अली में ब्लॉगिंग से सारे गुण मौजूद हैं। जो कहीं नहीं है वह महफ़ूज के यहां मिल जायेगा। गिरीश बिल्लौरे से बातचीत करते हुये पता चला कि वे भारत के पहले ब्लॉगर भी हैं। सुनिये सराहिये सीधी बात!

चलते-चलते सुनिये और पढिये अवधी के गीतकार लवकुश दीक्षित की आवाज में यह अप्रतिम लोकगीत टुकुर-टुकुर देउरा निहारै बेईमनवा

मेरी पसंद


इससे पहले कि
हो चुकी हो बहुत देर..
इससे पहले कि
वे तुम्हें बाँट चुके हों खेमों में..
इससे पहले कि
तुम्हारे औंधे पडे जिस्म को मरा समझ
गिद्ध बुनने लगें दावतें..
इससे पहले कि
इतिहास तुम्हें मुहरबंद करदे..
उठो
तोडो अपनी यह सदियों लंबी
आत्मघाती नींद..
साधो
असम्भव की छाती पर
सम्भावनाओं की लय ताल..
कसो
बुद्धि की प्रत्यंचा..
करो लक्ष्यवेध..
धकेल कर
सारी दुनिया को एक तरफ
छीन लो अपना स्वत्व..
इससे पहले कि
हो चुकी हो बहुत देर..

नवोत्पल से साभार

और अंत में


फ़िलहाल इतना ही। बकिया मौका मिलने पर।

तब तक आप का करेंगे? मस्त रहिये। कौनौ हर्जा है का?

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36 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर चुनाव...मजा आया...:)

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  2. यह माकूल तो नहीं,
    पर अन्य पाठकों के सम्मुख
    इस चर्चा से अलग हट कर एक जिज्ञासा है ?
    चिट्ठाचर्चा के एक नियमित टिप्पणीकार व विनोदी पाठक
    श्री चन्द्र मौलेश्वर पेरशाद जी के विषय में कोई जानकारी हो तो,
    उसे यहाँ साझा करें । अँतिम सूचनानुसार वह आँतों की परेशानी से जूझ रहे थे !

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  3. धरती तो बंट जायेगी
    पर नीलगगन का क्या होगा?
    हम तुम ऐसे बिछड़ेंगे
    तो महामिलन का क्या होगा?

    ये पन्क्तिया तो गीतकार गोपाल दास नीरज जी की है.

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  4. बहुत बढ़िया अनूप जी । सार्थक चर्चा ।

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  5. अच्छी है चर्चा. कुछ लिंक देखे. पर आज फिर...मुझे आपकी पसंद सबसे अच्छी लगी.

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  6. नवोत्पल की कविता..... इस्सस... श्रीश ने जबरिया हमको भी ठेल दिया है इस मंच पर

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  7. PD से बातचीत करना बिछड़े दोस्त के मिलने जैसा है... मैंने चुपचाप उसके कई पोस्ट पढ़े हैं दिल खोल कर लिखता है... सच्ची सच्ची बात... "दो बजिया बैराग" अब तक याद है

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  8. ऊपर वाला फोटू बहुत अच्छा है ।

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  9. बहुत सुन्दर चर्चा ... अच्छी चर्चा ...

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  10. बढिया चर्चा. तस्वीरें देखने के लिये लिंक नहीं खुल रहा. मेरी पसंद का हमेशा की तरह जवाब नहीं.

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  11. सीमेंट ईट रोड़ी ओर कुछ जिम्मेदारियों में फंसा आदमी कमलेश्वर की कहानियो को किताब को पढने के लिए मुकरर वक़्त को मुल्तवी कर आहिस्ता आहिस्ता कुछ पढनेवास्ते जब कंप्यूटर खंगालता है किसी उम्मीद में .....
    नवोत्पल की कविता .... ....मसलन दर्शन की आम आदमी ....बेदखल की डायरी के बिंदास सच .जो आदमी के चेहरे का एक ओर सच उघाड़ते है .....उम्मीद को हवा देते है ....
    ..ओर भी बहुत खंगालने को बाकी है ......कौन कहता है ब्लोगिंग में पढने को कुछ नहीं है ?
    श्री चन्द्र मौलेश्वर पेरशाद जी के विषय में जानकारी का इंतज़ार रहेगा ....

    फ़िलहाल लक्ष्मण क्रीज पर है .......

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  12. हिन्दी ब्लॉगिंग में महफ़ूज अली में ब्लॉगिंग से सारे गुण मौजूद हैं। जो कहीं नहीं है वह महफ़ूज के यहां मिल जायेगा। गिरीश बिल्लौरे से बातचीत करते हुये पता चला कि वे भारत के पहले ब्लॉगर भी हैं। सुनिये सराहिये सीधी बात!

    chalo ab jab bhi hindi bloging kaa ithihaas rachaa jayega saari galti mehfooj ki hogii

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  13. लो कल्लो बात हम तो भागते भूगते , ईनाम शिनाम पर कुछ राय विचार जानने के लिए मन का बतवा ठेल दिए , आप कह रहे हैं हमेशा की तरह एक्सपर्ट कमेंट , लगता है जल्दीए , हमको भी आपके साथ फ़ुर्सत में बैठ के ई एक्सपर्टियाना सीखना ही पडेगा ,
    बहरहाल चर्चा टनाटन है

    अजय कुमार झा

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  14. ई डॉक्टर पूजा कौन है अनूप जी, कौनो लिंक पकड़ा देते ;)

    पंकज की कविता पढ़ी, आजकल नए ऑफिस में लगता है बिजी हैं तो लिखना कम हो गया है.
    पाखी की तस्वीर बेहद प्यारी है, ऐसा बचपना काश वापस आ पाता...यहाँ देख कर मन खुश हो गया...आपको धन्यवाद :)
    बाकी लिंक्स देख कर आते हैं. आजकल एक लाईना लिखना काहे बंद कर दिए हैं? अब तो उम्मीद भी नहीं देते कि वापस आके लिखेंगे. हुजूर ये बहुत नाइंसाफी है.

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  15. अंदाजे चर्चा.......व्व्वाआअह्ह्ह लाजवाब !!!! बहुत बहुत आनंद आया...बड़ा ही सरस चर्चा किये हैं आप...जाते हैं लिंक सब पर...

    और "आपकी पसंद" to bas ...वाह !!!

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    1. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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  16. कुछ लिंकों के लिये धन्यवाद कि अमूमन उधर का रुख हो नहीं पाता है...

    पसंद वाली पसंद हमें भी बहुत पसंद आयी...

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  17. पाखी की फोटो के साथ,पंकज जी की कविता "स्टेच्यू
    " बहुत ही पसन्द आई.आभार.

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  18. curiosity got better of me and i searched for first indian blogger and found this link those intersted might see it as well

    http://74.125.153.132/search?q=cache:KQNwRIa-sXgJ:zigzackly.blogspot.com/2006/08/who-was-on-first.html+%22first+indian+blogger%22&cd=3&hl=en&ct=clnk&gl=in

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  19. नवोत्पल की कविताओं के चयन के लिए...!

    आभार..!

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  20. सारगर्भित । कम समय में बेहतरीन पोस्‍टों की सूचना मिलती है और मेरी पसंद में एक ब‍हुत बढिया कविता पढने को मिलती है ।

    धन्‍यवाद ।

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  21. अरे बाप रे... लगातार दो चर्चाओं में स्थान मिला हमें..

    घंटा भर से फूल पिचक रहे हैं..

    धन्यवाद अनूप जी..

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  22. क्या बात है अनूपजी। बहुत बहुत ख़ूबसूरती से चर्चा भी की और बात की बात में बात को बात तक पहुँचा भी आए। आपका जवाब नहीं।

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  23. रचना जी यहाँ तो छोड़ दीजिये महफूज़ मियाँ को
    चर्चा के लिए आभार

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  24. अच्छे पोस्ट्स की अच्छी चर्चा....
    आपका आभार..

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  25. इन इनामों की दुनिया से बस इनाम बंटने की ही खबर नहीं आती...बाक़ी सब तो ठीक है. कब बंटेंगे इनाम :)

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  26. उम्‍दा चर्चा। लगे रहिए और हम भी फोकट में पढ़े जा रहे हैं। बढिया।

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  27. बहुत खूब...लाजवाब चर्चा ..बधाई.
    पाखी की फोटो भी यहाँ खींच लाई.

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  28. @अनूप जी
    धन्यवाद!! हमेशा की तरह लेट हू :) और जैसा पूजा ने कहा, हा थोडा काम बढा है..

    सबको धन्यवाद और पीडी से बोलिये की ऎसे मौको पर ’नताशा’ के बारे मे सोच लिया करे :)

    सारे लिन्क्स बहुत प्यारे है स्पेशली आपकी पसन्द...

    आभार!!

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  29. ye comment maine 'Mahfuj Ali' ji wale kisse par kiya hai..

    "achha...ye rajesh jain ji ka blog hai..archive mein 2001 tak ki posts dikh rahi hain..

    http://archives.emergic.org/

    baaki ye humari yahoo profile hai.. jahan likha hai Member Since: 21/12/2001

    http://profiles.yahoo.com/rdx_guy2002

    us waqt humne geocities par site host ki thi aur 'Xanga' se free domain name liya tha.. baad mein 'co.cc' domain name free milte the to unhe liya.. lekin humein to kabhi ahsaas nahi hua ki hum bhi purane bloggers mein se hain. kyunki tab sirf apni kavitayon ke 'copyright' ke liye likhte the.. baki geocities ahi band ho chuki hai aur profiles se hi merged hai..

    Baki amit agrawal ji jo 'labnol' par likhte hain aur CNN unka interview tak le chuki hai..unhone 2004 se start kiya tha aur sach mein ek mahaan blogger hain.. ho sake to kabhi unhe 'hindi' blogs par layen..

    Baki Mahfuj ji ko aur jaankar bahut achha laga.... lekin @anup ji ki baat se bhi agree keroonga..."

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  30. देखिये देर से ही सही मगर पढ़े हैं इस पोस्ट को.. बस यही बताने के लिए कमेंटिया रहे हैं.. :)

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