बुधवार, फ़रवरी 17, 2010

हिंदी में स्टार, टिप्पणी/प्रतिटिप्पणी और बेटे का स्कूल



आज फ़िलहाल एक ही पोस्ट की चर्चा! अभय तिवारी निर्मलानंद गये थे पुस्तक मेले तो वहां पुस्तक विमर्श किये राजकमल प्रकाशन के अशोक माहेश्वरी जी से। उसके किस्से और दूसरे किस्से उन्होंने अपनी पोस्टहिन्दी में कौन स्टार है? में बयान किये।
इस पोस्ट से कुछ सूत्र वाक्य देखे जायें:
  • मेले में ख़ूब भीड़ थी। हिन्दी किताबों के हॉल नम्बर १२ में तो गज़ब की भीड़ थी। सभी प्रकाशकों के बड़े-बड़े स्टॉल्स थे। राजकमल प्रकाशन और वाणी प्रकाशन के तो इतने बड़े स्टॉल थे कि विमोचन करने और गपियाने के लिए एक अलग जगह निकाली गई थी। ये जगहें हिन्दी के लेखकों और विचारकों के आपस में टकराने का अड्डा भी थीं। मैं भी वहीं-कहीं उस संघर्षण के आस-पास बना हुआ था। तमाम दोस्त -ब्लॉगर और ग़ैर-ब्लॉगर- मिल रहे थे। दोस्तों और किताबों से भरी-भरी ये दुनिया बड़ी भली लग रही थी।

  • मैंने अशोक जी से सवाल किया कि हिन्दी लेखक का हाल अंग्रेज़ी के लेखक की तुलना में इतना मरियल क्यों है? क्या वह इसलिए है कि वह घटिया लेखक है या इसके कुछ और कारण है? भारत का मध्यवर्ग हिन्दी की किताबें नहीं पढ़ता लेकिन अंग्रेज़ी की किताबें ख़रीदता रहता है। हिन्दी साहित्य की दुनिया में कोई स्टार लेखक क्यों नहीं है?

  • अभी हाल के बुकर पुरुस्कार विजेता लेखक अरविन्द अडिगा की मिसाल लीजिये। किताब उनकी दो कौड़ी की गिनता हूँ मैं और दूसरे पढ़ने वाले भी। मगर सच्चाई ये है कि ये राय हमने किताब ख़रीदने कर पढ़ने के बाद क़ायम की है। आज अंग्रेज़ी के परिदृश्य में हाल ऐसा है कि किताब बाद में आती है लेखक पहले ही स्टार हो जाते हैं।

  • मैं यह नहीं कहता कि प्रकाशन उद्योग मार्केटिंग की दूसरी हद पर जा कर कचरे को हमारे गले में ठेलने लगे। लेकिन ये भी क्या बात हुई कि बाज़ार की ताक़त का इस्तेमाल अ़च्छी चीज़ के प्रसार के लिए करने से भी क़तरा जायं।

  • विनोद कुमार शुक्ल एक अप्रतिम लेखक हैं, उनका लेखन हिन्दी में ही नही विश्व साहित्य में अनोखा है, अद्वितीय है। उदय प्रकाश भी बेहद मक़बूल कथाकार हैं। लेकिन हिन्दी साहित्य की दुनिया के बाहर कोई उनके नाम भी नहीं जानता? जबकि अरविन्द अडिगा के नाम से बच्चों की परीक्षा में सवाल बनाया जा सकता है, क्यों? क्यों नहीं विनोद जी या उनके जैसे दूसरे साहित्यकारों को एक स्टार की बतौर चढ़ाया जा सकता?

  • आलोचक की साहित्य में अपनी जगह है लेकिन वो लेखक के लिए पाठक के हृदय में जो मुहब्बत जो अपनापन होता है, उसका स्थानापन्न कतई नहीं हो सकता।

  • पुस्तकालयों में किताबों की सिफ़ारिश करने वाले ही सचमुच आज हिन्दी प्रकाशकों के लिए असली स्टार्स हैं| प्रकाशकों के लिए और लेखकों के लिए भी। क्योंकि उनकी राय से ही प्रकाशक तय करते हैं कि किताब छपने योग्य है कि नहीं। तो इस तरह से राजतंत्र में भीतर तक धँसे यही गणमान्य जन लेखकों के भी माई-बाप हो जाते हैं। जबकि वेदप्रकाश शर्मा बिना किसी आलोचक की परवाह किए सीना चौड़ा कर के अपना सस्ता साहित्य छापता जाता है क्योंकि वह पाठको से सीधे सम्पर्क में है।
  • इस पोस्ट पर टिप्पणियां भी रोचक और विचारोत्तेजक हैं।

    इसी में हिन्दी के कवि देवी प्रसाद मिश्र को उनकी डॉक्यूमेन्टरी ’फ़ीमेल न्यूड’ के लिए राष्ट्रीय पुरुस्कार मिलने और उस पर हिन्दी मीडिया तक में उदासीनता की भी सूचना है।

    देवीप्रसाद मिश्र जी को मेरी शुभकामनायें!

    टिप्पणी/प्रतिटिप्पणी


    पिछली पोस्टों में कई साथियों की टिप्पणियां आईं! उन पर प्रतिटिप्पणी कायदे से उसी समय होनी चाहिये थी। लेकिन बहुत कुछ छूट जाता है। आज प्रयास कर रहा हूं कि कुछ प्रतिटिप्पणियां कर सकूं। देखिये:
    टिप्पणी:धरती तो बंट जायेगी
    पर नीलगगन का क्या होगा?
    हम तुम ऐसे बिछड़ेंगे
    तो महामिलन का क्या होगा?


    ये पन्क्तिया तो गीतकार गोपाल दास नीरज जी की है. हरि शर्मा

    प्रतिटिप्पणी:संभव है कि आप की जानकारी सही हो शर्माजी लेकिन मैंने स्व.रमानाथ अवस्थीजी के कविता संग्रह आखिर यह मौसम भी आया की भूमिका में इसे पढ़ा है जिसमें डा.कन्हैयालाल नंदन ने लिखा (पृष्ठ 25-26 )है:सन 1947 में जब देश की धरती का बंटवारा हो गया तो भी उनका स्वर सार्वभौम तत्व से अलग नहीं हुआ। उसी समय नयी दिल्ली में एक कवि सम्मेलन हुआ जिसमें इसी विषय पर कविता पढ़नी थी। उन्होंने इस अवसर के लिये कविता लिखी:धरती तो बंट जायेगी
    पर नीलगगन का क्या होगा?
    हम तुम ऐसे बिछड़ेंगे
    तो महामिलन का क्या होगा?
    कविता सुनकर कहते हैं मंच पर अनेक लोगों की आंखें भर आईं थीं खासकर पाकिस्तान से आये शायरों की। यह है रमानाथजी के शब्दों की शक्ति।

    तो हो सकता है आपकी बात सही हो लेकिन किताब की जानकारी के अनुसार यह कविता स्व.रमानाथ अवस्थी की ही है। ऐसा भी होता है कि एक ही भाव भूमि पर अलग-अलग कवि कवितायें लिखते हैं। आप नीरज जी की कविता पोस्ट करिये तो अच्छा लगेगा। देखें उन्होंने क्या लिखा इस कविता में और! :)

    टिप्पणी:यह माकूल तो नहीं,
    पर अन्य पाठकों के सम्मुख
    इस चर्चा से अलग हट कर एक जिज्ञासा है ?
    चिट्ठाचर्चा के एक नियमित टिप्पणीकार व विनोदी पाठक
    श्री चन्द्र मौलेश्वर पेरशाद जी के विषय में कोई जानकारी हो तो,
    उसे यहाँ साझा करें । अँतिम सूचनानुसार वह आँतों की परेशानी से जूझ रहे थे ! डा.अमर कुमार

    प्रतिटिप्पणी:डा.साहब चंद्रमौलिश्वर प्रसाद जी को मलद्वार कैंसर था। आपरेशन हुआ है। अभी घर पर स्वास्थ्य लाभ कर रहे हैं। दो-तीन माह बाद शायद पूरी तरह सही हों। अभी तो ये मत करो-वो मत करो वाले बंधन में हैं। ब्लॉग जगत के साथियों की संवेदनायें और शुभकामनायें मैंने व्यक्त कीं। सबके लगाव-जुड़ाव और शुभकामनाओं के प्रति उन्होंगे आभार व्यक्त किया है और अपनी शुभकामनायें दी हैं। जल्दी ही वे शायद बिस्तर के पास ही नेट की व्यवस्था करके ब्लॉग जगत से जुड़ेंगे।


    टिप्पणी:लो कल्लो बात हम तो भागते भूगते , ईनाम शिनाम पर कुछ राय विचार जानने के लिए मन का बतवा ठेल दिए , आप कह रहे हैं हमेशा की तरह एक्सपर्ट कमेंट , लगता है जल्दीए , हमको भी आपके साथ फ़ुर्सत में बैठ के ई एक्सपर्टियाना सीखना ही पडेगा ,
    बहरहाल चर्चा टनाटन है अजय कुमार झा

    प्रतिटिप्पणी:अरे भाई जब बिना सीखे इतना एक्सपर्टई कर लेते हैं तो सीख लेने पर तो न जाने का जुलुम काटेंगे।


    टिप्पणी:ई डॉक्टर पूजा कौन है अनूप जी, कौनो लिंक पकड़ा देते :)
    पंकज की कविता पढ़ी, आजकल नए ऑफिस में लगता है बिजी हैं तो लिखना कम हो गया है.
    पाखी की तस्वीर बेहद प्यारी है, ऐसा बचपना काश वापस आ पाता...यहाँ देख कर मन खुश हो गया...आपको धन्यवाद :)
    बाकी लिंक्स देख कर आते हैं. आजकल एक लाईना लिखना काहे बंद कर दिए हैं? अब तो उम्मीद भी नहीं देते कि वापस आके लिखेंगे. हुजूर ये बहुत नाइंसाफी है.पूजा उपाध्याय

    प्रतिटिप्पणी: ई डॉक्टर पूजा ब्लॉग जगत की डॉक्टर हैं। उनको यह उपाधि मानद रूप में फ़ुरसतिया जी ने प्रदान की है। उस उपाधि समारोह का लिंक तो फ़िर कभी दिया जायेगा लेकिन डा.पूजा के ब्लॉग का लिंक ये है। इसके हेडर पर पहली एक चश्मेबद्दूर फोटू लगी थी लेकिन अब लगता है शौके गिटार ने उसे किनारे कर दिया। एक लाईना बंद नहीं किये बस ऐसे ही लिखे नहीं। वैसे भी अब जब मजाक भी स्माइली लगाकर करना पड़े तो एक लाईना बेचारा कैसे निकलेगा। आज वायदा करते हैं कि अभी नहीं शाम को एक लाईना ठेलेंगे। :)

    टिप्पणी:रचना जी यहाँ तो छोड़ दीजिये महफूज़ मियाँ को
    चर्चा के लिए आभार! गिरीश बिल्लौरे!

    प्रतिटिप्पणी:गिरीश भाई! यहां बात महफ़ूज मियां की नहीं है। बात आपकी रिपोर्टिंग की भी है। कोई बता रहा है कि वह भारत का सबसे पहला ब्लॉगर है और आप उसे शीर्षक बना रहे हैं जस का तस। उसमें प्रश्नचिन्ह भी नहीं जिससे लगे कि आप सच्चाई चाहते हैं ! अंग्रेजी में कई ब्लॉगर सन 2002 से पहले लिख रहे हैं और आप 2002 में लिखना शुरू करने की बात करने वाले को पहला ब्लॉगर बता रहे हैं शीर्षक में। इस तरह की तथ्यात्मक बातें पुष्ट कर लेनी चाहिये। तीन मिनट लगा यह जानने में कि कोई सन 2001 से लिख रहा है और कोई 1998 से! कोई हिन्दी जानने वाला अंग्रेजी ब्लॉगर इसे बांचेगा तो क्या कहेगा? यही न कि हिन्दी के ब्लॉगर अंट-शंट तथ्य लिखते हैं। बाकी आपकी मर्जी आप कुछ भी लिखिये अपने ब्लॉग में। लेकिन अब जब आप कुछ लिखेंगे तो हमें लगेगा पता नहीं जो लिखा है उसमें से कितना वेरीफ़ाई करके लिखा है।

    टिप्पणी:jitta samajh paaye samajh lie baaki doosaron ke lie chhod diye. jitta samjhe hain uska saar yah hai ki ek laina me maja nahi aayi aur meri pasand shaandaar rahi . pyaar ka virus sarvshreshth! रौशन

    प्रतिटिप्पणी:रौशन, एक लाईना में हमको भी मजा नहीं आया। इसका मतलब लेखक और पाठक एक मत हैं इस बार पर। आगे कोशिश करते हैं फ़िर से।


    टिप्पणी:आपने वेलेन्टाइन में मुझे भुला दिया। रोऊँ या हसूँ? कोई बात नही... :( सिद्धार्थ

    प्रतिटिप्पणी: सिद्धार्थ, जिक्र करना याद करने के समानुपाती नहीं होता। यहां तुम्हारा जिक्र नहीं हुआ तो क्या ? रचना त्रिपाठी और कार्तिकेय मिश्र का जिक्र मिलाकर दो सिद्धार्थ जिक्र हो गये कि नहीं? और फ़िर वेलेंटाइन पर याद करने के तुम्ही अकेले बचे हो! गज्जब! क्या अदा है। बुद्धु से खड़े होने पर जित्ते कमेंट पाये (16 दिखे अभी) उसी उमर की सी बातें! जय हो!


    टिप्पणी:अनूप जी, घुघूती को अपना वेलेंटाइन मिले ३७ वर्ष हो गए। यह १० वर्ष पुरानी कहानी किसी और की है।
    घुघूती बासूती

    प्रतिटिप्पणी:घुघुतीजी,मैंने लिखा था-घुघुतीजी तो आज भी वेलेंटाइन दिवस मना रही हैं विस्तार से देखिये। आपका वेलेंटाइन मिले भले ३७ साल हो गये लेकिन वेलेंटाइन दिवस तो आज भी मना ही सकती हैं न! उसी मौके पर यह पोस्ट भी लिखी आपने! हमने क्या ये लिखा कि आप दस साल पहले मिले वेलेंटाइन की कथा सुना रही हैं! हम तो कामना करते हैं कि पचास साल बाद भी हमारी किसी चर्चा में आप हमें टोंके -अनूपजी, घुघुतीजी को अपना वेलेंटाइन मिले ८७ साल हो गये! :)


    टिप्पणी:शीर्षक से तो लगा कि डॉ० अनुराग की समीक्षा है....!! :) कंचन

    प्रतिटिप्पणी: अरे कंचन, क्या सारी खुराफ़ातों पर डा.अनुराग का कापीराइट है जी? अजब बात है! हम भरे बैठे हैं!अब हमारा मुंह न खुलवाओ! :)


    मेरी पसंद


    बेटे का स्कूल

    रास्ते में पड़ता है
    बेटे का स्कूल
    दूर से दिखती है इमारत
    पर, पढने का कलरव
    नहीं सुनाई पड़ता।

    मुझ तक आती नहीं उसकी आवाज तो क्या हुआ
    पढ़ तो रहा ही होगा।
    चुपचाप दिख रही इमारत के भीतर
    बढ़ तो रहा ही होगा।
    वह ओझल है मुझसे तो क्या हुआ
    ऊटपटांग कुछ
    गढ़ तो रहा ही होगा।
    मैं सिखा पाया नहीं ठीक से तो क्या हुआ
    सम्हल सम्हल कर
    सीढियां चढ़ तो रहा ही होगा।

    (बोधिसत्व के कविता संग्रह खत्म नहीं होती बात से )

    और अंत में

    फ़िलहाल इत्ता ही। बाकी की चर्चा च एक लाईना इंशाअल्लाह शाम को! तब तक आप मौज करिये! इधर-उधर घूमिये, टिपियाइये मौज मनाइये!

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    22 टिप्‍पणियां:

    1. चंद्रमौलिश्वर प्रसाद जी को शीघ्र स्‍वास्‍थ्‍य लाभ कर पाने की शुभकामनाएं !!

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    2. चर्चा के बहाने खूब टिप्पणी-टिप्पणी हुई है।

      चंद्र मौलिश्र्वर जी को शीघ्र स्वास्थ्य-लाभ की शुभकामनायें। अब जाबत हैं "हिंदी में कौन स्टार" देखने।

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    3. अरे वाह, ये तो टिप्पणी-चर्चा हो गई!! :)

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    4. टिप्पणी चर्चा ... क्या बात .. मज़ा आ गया ...

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    5. बहुत अच्छे अनूप जी यह टिप्पणी- प्रतिटिप्पणी का खेल अच्छा लगा ।

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    6. वाह वाह एक दम धांसू, एक दम झक्कास

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    7. एक लिस्ट बतायें कौन कौन किताब खरीदेबल है हिन्दी में!

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    8. ज्ञान जी जो लिस्ट मांग रहे हैं, पब्लिकली लगियेगा...हम जैसे और लोग भी फ्री में फायदा उठा लेंगे :) धन्यवाद और साधुवाद दोनों पार्टियों को दिया जाएगा.
      शाम हो गयी...हम आ धमके हैं एक लाईना के लिए...आज हमारे यहाँ सुबह से लाईन नहीं है...मरा हुआ वोल्तेज है, जैसे कह रहा हो कि इत्ती सी ही बिजली है, थोड़ा में अधिक समझना.
      देर हुयी आने में...अब बाकी लिंक पकड़ते हैं जाकर.
      अभय जी के कारण ही हम घर पर हिंदी किताबें पढ़ने का उपाय पाए हैं, उनके पोस्ट का लिंक पिछली बार यहीं से पकड़ कर गए थे...इस बार एकदम सही सवाल उठाये हैं परफेक्ट टाइम पर.
      बोधिसत्व की पोस्ट्स एकदम इंशाअल्ला ही होती हैं,आपकी पसंद को मेरे भी पांच स्टार.

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    9. टिप्पणी और प्रति-टिप्पणी का यह तरीका भाया ! बाकी पढ़ा ज्यादा टीपा कम !

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    10. कहिए न आपहु टीप के ऊपर टिप्पा धर दिए हैं आज , बहुते बढिया कम हमहुं एक पोस्ट बना के ठेलते हैं
      अजय कुमार झा

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    11. गंगा पर कोई किताब नहीं है शुक्ल जी क्या ?

      चर्चा बहुत झकास है नए इश्टाइल मे .....पर आज ढेर बहुत कुछ दिलचस्प था पढने मे ....गौरव सोलंकी की कविता ....ताहम पर निशांत की कविता .....प्रमोद जी भी आज कविता कह रहे थे ......ओर चोखेर बाली पर शीबा का लेख ......बोधिसत्व की
      कविता भी एक दम ढीकचिक है ..मोहल्ले की लडकियों पर पढ़ी थी नया ज्ञानोदय मे ....बहुत पहले ....एक दम झकास थी वो भी ....एक लेना का कापीराइट किसी ने करवा लिया है क्या ....जों आप कंजूसी कर रहे है ठेलने मे ......

      तो क्या कहते है कलकत्ता वाले कल बारिश होगी के नहीं.....

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    12. एक अलग तरह की चर्चा,अच्छी लगी.

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    13. टिपण्णी और प्रति.. मजेदार है..

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    14. तो ये हुई न बात...! शुक्रिया।
      वैसे लगता है कि समानुपाती का नियम लगाना आपने मेरी पोस्ट से ही कबाड़ा है। कहाँ सागर कहाँ तालाब...। :)

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    15. मज़ेदार ओज़ेदार तो हम नहीं जानते, भाई !
      प्रतिटिप्पणी एक परस्पर आस्था और सीधे सँवाद का रास्ता खोलती हैं,
      साथ ही अनासक्ति एवँ बहुत सारी गलत-फ़ेमिली बनने के मुहाने भी बँद करती हैं ।
      मेरे प्रश्न का आशय केवल इतना ही था कि एक ब्लॉगर परिवार होने का दम भरने वाले, एक दूसरे के सुख-दुःख के प्रति कितने गँभीर और सँवेदी हैं ? सिर्फ़ टोपियाँ उछालते रहने के लिये यहाँ मौज़ूद होना एक अलग बात है । मेरी जिज्ञासा पर कल मौन पसरा रहा, आज आपका निराकरण पढ़ कर आश्वस्ति हुई । भला लग रहा है कि उनके साथ सँप्रति सब ठीक-ठाक है ।
      बकिया अपनी चर्चा में आपने मुखिया चर्चाकार का दायित्व बखूबी निभाया है, कुछ तो छोड़ देते जिस पर ऊँगली उठायी जा सके । चाहे वह उर्ध्वगामी हो या अधोगामी , ऊँगलियों के होने की तक़लीफ़ भी आजकल चर्चा में हैं ।

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    16. बढ़िया चर्चा.
      टिप्पणी/प्रति टिप्पणी में इतने सारे लोगों की टिप्पणियों का जवाब दिया आपने. परन्तु सुमन जी की टिप्पणी का जवाब कहाँ है?

      जवाब देंहटाएं

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