रविवार, फ़रवरी 21, 2010

रोज की रोटी बनाम गीता ज्ञान

बहुत से तथाकथित लोकप्रिय चिट्ठे जो धार्मिक एजेंडे व एंगल लिए हुए होते हैं, उनकी तल्ख़ी व उनके विवादास्पद तेवरों से अंदाजा मत लगाइए कि सभी धार्मिक चिट्ठे ऐसे ही होते होंगे. नहीं.  धार्मिक चिट्ठे प्रेरणास्पद, पठनीय और मननीय भी हो सकते हैं. प्रस्तुत हैं दो उदाहरण.

पहला उदाहरण है - रोज की रोटी

 

रोज की रोटी से एक उद्धरण:

गीत गाता चल

एक पुराना परिहास है - भौंवरे इसलिये सिर्फ गुन्गुनाते हैं, क्योंकि उन्हें गाने के बोल याद नहीं होते!
यह पुराना विनोद मुझे एक गंभीर घटना की स्मरण कराता है। मैंने पढ़ा एक आदमी के बारे में जो अपने दिल के ऑपरेशन होने का इन्तज़ार कर रहा था। उसे मालूम था कि वह ऑपरेशन खतरनाक है, लोग मर भी सकते हैं। अपनी बिमारी और ऑपरेशन के कहतरों के बरे में सोचकर सोचकर वह अपने आप को बहुत अकेला महसुस करने लगा।
तभी एक अर्दली उसे ऑपरेशन के कमरे में ले जाने के लिये आया। वह उस बीमार आदमी को पहिये वाले स्ट्रेचर पा लेटा कर ले जा रहा था, और आयरलैंड का एक पुराना भजन - तू मेरा दर्शन हो (Be thou my vision) गुनगुना रहा था। इस गीत को सुनकर रोगी के मन में अपनी जन्म भूमि आयरलैंड के हरे खेत, प्राचीन खंडहर आदि की यादें ताज़ा हो उठीं और उसका हृदय शांति से भर गया। उस गीत के बाद फिर अर्दली एक दूसरा भजन - मेरी आत्मा ठीक है (It is well with my soul) गुनगुनाने लगा।
जब वह ऑपरेशन के कमरे के सामने रुका तो उस आदमी ने उस अर्दली का धन्यवाद किया। उसने कहा, "परमेश्वर ने मेरा भय दूर करने और मेरी आत्मा को शांति देने के लिये आज तुम्हारा उपयोग किया।" अर्दली ने विसिमित होकर पूछा, "कैसे" रोगी ने कहा "तुम्हारा गीत गुनगुनाना परमेश्वर को मेरे पास ले आया।"
"यहोवा ने हमारे साथ बड़े बड़े काम किये हैं"(भजन १२६:३)। उसने हमारे हृदय अपने भजनों से भरे हैं। वह हमारी गुनगुनुहट को भी किसी की आत्मा को बहाल करने के लिये प्रयोग कर सकता है। - David Roper

गीता के ज्ञान को आमतौर पर सभी धर्मों के ज्ञानी मानते हैं. गीता के कुछ सीक्रेट यहाँ गीता के मोती पर पाएँ.

 

गीता के मोती का एक प्रसंग:

गीता ज्ञान - 83

तामस कर्म क्या हैं ?
गीता गुणों के आधार पर तीन प्रकार के कर्मों की बात गीता सूत्र - 18.19 में करता है और गीता सूत्र - 8.3 में
कहता है ....जिसके करनें से भावातीत की स्थिति मिले , वह कर्म है ---इस बात को समझना ही कर्म - योग है ।
तामस कर्म वे कर्म हैं जिनको मोह , भय या आलस्य के कारण किया जाता है ।
साधना के दो मार्ग हैं -- सब को स्वीकारना या सब को नक्कारना ; अष्टबक्र एवं उपनिषद् सब को नकारते हैं और अंत में जो मिलता है वह सत होता है लेकीन गीता समभाव का विज्ञान देते हुए कहता है ----
जो है उसे स्वीकारो , उससे मित्रता स्थापित करो , उसके विज्ञान को समझो , उसकी समझ तेरे को सत में पहुंचाएगी । सत भावातीत है - गीता सूत्र - 2.16, और गुण आधारित कर्म भावों के अधीन हैं अतः गुण आधारित कर्मों की समझ ही भोग कर्म को कर्म - योग में बदल सकती है ।
तामस गुण को यदि आप समझना चाहते हैं तो देखिये गीता सूत्र - 2.52, 14.8, 14.17, 18.25, 18.28,18.72 - 18.73 को ।
गीता कहता है ---भय से मुक्त होनें के लिए कुछ लोग भूतों को पूजते है [ गीता - 17.41 ] , कुछ लोग देवताओं को पूजते हैं [गीता -3.12, 4.12, 7.16 ] और यह भी कहता है - मोह के साथ बैराग्य नहीं मिलता , बिना बैराग्य संसार का बोध नहीं होता [ गीता - 15.3 ], बिना संसार के बोध के परमात्मा का बोध होना संभव नहीं ।
गीता कहता है - राजस एवं तामस गुणों के प्रभाव में जो कर्म तुम कर रहे हो वे तेरे पाठशाला हैं , उनको तुम पढो और आगे दूसरी पाठशाला तेरा इंतज़ार कर रही है - बश कही उनमें रुक न जाना ।
जो कुछ भी है सब प्रभु से प्रभु में ही तो है बश हमको अपना रुख बदलना है जो किसी भी समय बदलेगा ही - आज नहीं तो कल , इस जन्म में नहीं तो अगले जन्म में सही ।
जो करो पूरी श्रद्धा से करो , प्रभु को केंद्र में रख कर करो , प्रभु को अर्पित हो कर करो , यह करता भाव
तेरे को एक दिन द्रष्टा बना देगा ।
चाह एवं अहंकार रहित पूर्ण समर्पण से किया गया कर्म , प्रभु से जोड़ता है ।

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16 टिप्‍पणियां:

  1. सुबह सुबह धर्म चर्चा हो गयी! वाह!

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  2. रवि जी, यहाँ आपने दो चिट्ठों की चर्चा की है जिसमें पहला है रोज की रोटी..Daily Bread ये न केवल यीशु की गाथा गाता हुआ ब्लॉग है बल्कि कैथोलिक मिशनों का चलाया हुआ अभियान लगता है, इस तरह के कई भाषण आप झाबुआ जैसे पिछड़े इलाके में पादरियों द्वारा सुन सकते हैं, जो कि शहरों में नहीं सुनाई देते हैं।

    गीता के मोती संग्रहणीय है।

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  3. हमेशा की तरह शार्ट एण्‍ड स्‍वीट !

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  4. हो सकता है कि शायद ये चिट्ठा "धर्म यात्रा" भी प्रेरणास्पद, पठनीय और मननीय अथवा आपकी अन्य किसी कसौटी पर खरा उतरने में सक्षम हो......

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  5. बहुत सुन्दर और प्रभावी लगी आपकी चर्चा।

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  6. धार्मिक चिठ्ठे..? ऐसे भी चिठ्ठे हैं क्या ?

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  7. या इलाहीलिलिल्लाह
    इस चर्चा में स्वच्छ हिन्दुस्तान के एक मज़हब की अनजाने अनदेखी तो न हुई होगी, रसूल के बँदे निराश हुये होंगे । हरि ॐ हरि ॐ हरि ॐ ख़ुदा रवि-भाई को मुआफ़ करे ।

    ब्लॉगिंग के अनछुये पहलुओं को हम तक पहुँचाने में आप सिद्ध-हस्त हैं । सादर साधुवाद

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  8. ऍग्रीगेटर जी, मेरी टिप्पणी वापस करो ।
    मुझे ऍप्रूवल न चाहिये ।

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  9. चर्चा छोटी अवश्य है पर इतने पोस्ट सामग्रियों को ही आत्मसात कर यदि आगे बढ़ा जाय,तो यह जीवन के लिए अति महत और उपयोगी होगी....
    आपके आरंभिक पंक्तियों से मैं पूर्णतः सहमत हूँ...

    जवाब देंहटाएं
  10. चर्चा छोटी अवश्य है पर इतने पोस्ट सामग्रियों को ही आत्मसात कर यदि आगे बढ़ा जाय,तो यह जीवन के लिए अति महत और उपयोगी होगी....
    आपके आरंभिक पंक्तियों से मैं पूर्णतः सहमत हूँ...

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