शुक्रवार, अक्तूबर 02, 2009

काठ के उल्‍लुओं की स्‍वीकारोक्तियॉं

जब आत्मस्वीकृतियॉं आर्डर आफ डे बन ही गई हैं तो हम भी स्‍वीकार कर लें कि कि हम अहमक हैं, मूर्ख हैं, चुगद हैं, आलसी हैं, नकारा हैं.... लुब्‍बो लुआब ये कि जो अब तक आप हमारे बारे में सोचते रहे उसमें जो कुछ बुरा है वो सच है... जो अच्‍छा सोचा वो गलतफहमी थी।... आ‍ह... वाह अब हम भी हल्‍का महसूस कर रहे हैं... आत्‍मस्‍वीकारोक्ति बढि़या ईसबगोल है... रोज सुबह दो आत्‍मस्‍वीकारोक्ति झाड़ो और मजे से हल्‍के हो जाओ..।

लेकिन इतना साहस हमने कहॉं से पाया...भई हम तो मनीषा को पढ़कर ही हिम्‍मत जुटा सके।

मैं उत्‍तर प्रदेश के एक निम्‍न मध्‍यवर्गीय परिवार में पैदा हुई, पली और एक हिंदी अखबार के घनघोर सामंती परिवेश में अपनी रोजी के लिए चाकरी करने वाली एक लड़की सारी दुनिया से छिपाकर अपने घर के एकांत में सिगरेट के साथ अपना मन और जीवन साझा करती थी। मेरे बहुत नजदीकी और जिनकी सोच में औरत और आदमी के लिए अलग-अलग खांचे नहीं हैं, वही मेरे इस राज के साझेदार थे। हालांकि जिस अखबार में मैं नौकरी करती हूं, उसी के अंग्रेजी अखबार डीएनए में काम करने वाली कई लड़कियां सार्वजनिक रूप से ऑफिस के गेट पर खड़े होकर भी इस हरकत को अंजाम देने का साहस रखती थीं, लेकिन मैं नहीं

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लगता तो नहीं कि मैं कभी इतनी झंडूबाम रही होऊंगी, लक्‍स साबुन के दस रुपए में ले गए उनका दिल टाइप काठ की उल्‍लू

अब हिन्‍दी ब्लॉगिंग जहॉं टुच्‍चई को टुच्‍चई, चिरकुटई को चिरकुटई कहने भर का साहस जुटाने में ऐसी तैसी हो जाती है। ऐसे में मनीषा की स्‍वीकारोक्‍ित एक बड़ा साहस है सलाम करने को जी चाहता है...पर ईर्ष्‍यालु मन करने दे तब न।  जो चीज हमने शुरू करने की हिम्‍मत न जुटा सके उसे कोई छोड़ बैठे शायद ये ही हमें बरदाश्‍त नहीं हो रहा।

एक और स्‍वीकारोक्ति खुशदीप ने पेश की है जो इस पसंद-नापसंद के माहौल में कुछ को अहम लग सकती है-

..मैं भी कबूल करता हूं कि शुरू-शुरू में मैंने भी अपने लैपटॉप को तीन-चार बंद करके पसंद को तीन-चार बार बढ़ाया था...कोशिश यही होती थी कि जल्दी से जल्दी पसंद वाले कॉलम में पोस्ट को जगह मिल जाए...इससे ज़्यादा कुछ नहीं.........लेकिन में ये भी देखता था कि कुछ पोस्ट को 30-40 तक पसंद मिल जाती हैं...अब ये सारी पसंद असली ही होती हैं, यकीन के साथ कैसे कहा जा सकता है...

गॉंधी-शास्‍त्री जयन्‍ती पर की गई इस खास स्‍वीकारोक्ति ने खुशदीप को काफी 'हल्‍का' कर दिया होगा इसकी हमें उम्‍मीद है।

पल्‍लवी ने एक शानदार पोस्‍ट में अपने मन के दरवाजे खोले हैं... यादों की किताबों में दबे खूबसूरत फूलों  से हमें परिचित करवाया है। तो भैया कोई ब्‍लॉगर इन जीतू, ऋचा, माधवी को जानता हो तो उन्‍हें याद दिलाओ की दोस्‍त याद कर रहे हैं, खींच लाओ इस ब्‍लॉग की दुनिया में -

तुम सब दोस्तों को मैंने कितना ढूँढा.....ऑरकुट पर तलाशा इस उम्मीद के साथ की यहाँ तो तुम हंड्रेड परसेंट मिल ही जाओगे! मगर कितने आउट डेटेड हो यार! यहाँ भी नहीं हो! अब ब्लॉग तो क्या ही पढ़ते होगे तुम लोग! पर मैं भी उम्मीद कहाँ छोड़ने वाली हूँ! पता है...जब कभी रेलवे स्टेशन पर जाती हूँ चैकिंग करने तो आँखें भीड़ में इधर उधर कुछ खोजती रहती हैं! शायद कभी अचानक तुममे से कोई मिल जाए....और " अरे तू..." कहते हुए हम गले लग जाएँ!

डा. अनुराग ने खूब कायदे से लिखा जस्‍र पढें, फिर लिखकर लिखा कि कायदे से लिखता तो-

कायदे में  तो इसे यूं लिखा जाना चाहिए था ..जिंदगी तेरे कुछ दिनों की रिवाइंड करना है ताकि मै उन्हें तरतीब से लगा सकूं.आपके तो मालूम  नहीं  पर वाकई मेरे पास कई ऐसे दिन पड़े है जिन्हें रिपेयर की जरुरत है !

अविनाश कल्‍पना करते हैं गांधीजी के हिन्‍दी ब्‍लॉगर हो जाने की। जिस पर राज भाटियाजी की धमकी है कि गांधी उनसे कोई उम्‍मीद न रखें-

गांधी जी अपने ब्लांग पर नेहरू का एक नही दसॊ चित्र लगाते, मेरी टिपण्णी उन्हे कभी नही मिलती, क्यो कि मै सुभाष चन्द्र, भगत सिंह , ओर मै लाल बहादुर शास्त्री जी को टिपण्णी देता,इन्हे नमन करता,सरदार पटेल के पद चिन्हो पर चलता 

और जाते जाते गूगल की अभिव्‍यक्ति जाने उन अमरीकियों और हम भारतीयों के बारे में।

CHINA

कार्टून इरफान के ब्‍लॉग से।

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12 टिप्‍पणियां:

  1. नया टेम्पलैट !
    मैं तो समझा था कि किसी ने ब्लाग का नाम तो हैक नहीं कर लिया..

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  2. काठ के नहीं
    ब्‍लॉग के हैं
    उल्‍लू नहीं
    लल्‍लू।

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  3. मनीषा पाण्डेय .....जी सच्चे अर्थो में असल ब्लोगिंग कर रही है .... हिंदी ब्लोगिंग को ऐसी कई ही निर्मम स्वीकारोक्ति की जरुरत है ......मनीषा जी को पढना जारी रहेगा ....इस उम्मीद के साथ के वे भी कलम को रोकेगी नहीं.....

    नया कलेवर अच्छा है .

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  4. बेहद खूबसूरत टॆम्पलेट है यह । बेहतर चिट्ठों का उल्लेख । आभार ।

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  5. naya templt! churaa lene ka dil karta hai
    shayad kush ki mehnat hogi ye unhe badhai.
    manisha ji ko padhna waakai achchha laga

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  6. "शायद कभी अचानक तुममे से कोई मिल जाए....और " अरे तू..." कहते हुए हम गले लग..."

    नज़र बचा कर चले गए वो
    वर्ना घायल कर देता
    दिल से दिल टकरा जाता तो
    दिल में अग्नि भर देता:)

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  7. अच्छी चर्चा नया कलेवर चर्चा मंच की रौनक बढा रहा है।

    सादर,

    मुकेश कुमार तिवारी

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  8. भई आजकल बहुत कन्फ्यूजन हो रही है । हम तो ये नहीं समझ पा रहे हैं कि असली वाली चिट्ठा चर्चा कौन सी है ओर नकली वाली कौन सी......

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