बुधवार, मार्च 21, 2007

मिलन, मुखौटे और आचार संहिता

आज आईना पर जगदीश भाटिया जी हमें दिखाये गुरु फिल्म के कुछ अनदेखे सीन . हम तो यह फिल्म देखे नहीं हैं तो कह दिये कि भाई , पूरी फिल्म भी दिखा डालते तो भी हमारे लिये तो अनदेखे ही सीन रहते. उसमें भाग ३ देखकर बड़ा खराब लगा. गुरु देसाई चुप्पे बैठे है और अपनी पत्नी के तमाम उलाह्नों के बाद वो रोने लगता है कि मुझे लड़ाई खत्म नहीं करना आता सिर्फ लड़ना आता है और अपनी पत्नी की बांहों में अपना अकेलापन छिपा लेता है. मुझे बहुत दुख हुआ. काश, गुरु देसाई का हिन्दी ब्लाग होता तो बेचारा अलग थलग और अकेला न महसूस करता. यहाँ तो वो मेजारिटी में होता. बहुत से साथी मिल जाते जिन्हें नहीं आता झगड़ा खतम करना.खैर, उसकी बदकिस्मती कि उसने चिट्ठा नहीं खोला, और फालतू के बिजनेस में पड़ा रहा, हम क्या कहें. वो जानें और उनकी पत्नी.

हम तो हमारे सागर भाई से टंकी पर चढ़ना सीखे ( अरे भाई, छोटों से भी तो सीख सकते हैं) , चढ़े भी. कोई उतारने ही नहीं आया. बल्कि शुभचिंतक पंकज ऐसे कि कहने लगे हम तो चाहते हैं कि लालाजी टंकी से छंलाग लगा दें. हालात बिगड़ते देख हम खुद ही उतर आये टंकी से. विवाद शांत मान चुपचाप सोचे लिखते रहेंगे, अगर न लिखेंगे तो बाहर का रस्ता तो सबहिं दिखा ही दिये हैं.

सागर भाई की चर्चा पर हुये थोड़े उल्लम-चुल्ल्म को शांत देख, वहाँ मकबरा बनवा दिया गया और समझे कि सब शांत. अब उस मजार पर कल फिर कोई फूल चढ़ा गया रात के अंधेरे में. आप लोगों को तो मालूम भी न चलता अगर हमारे जैसा आदिम और पुरातन चीजों को तलाशने वाला आपके बीच न होता.

आपको तो हिन्द-युग्म पर हुये जलसे की भी याद होगी. मगर अब तो भूल गये न उसे. जैसे ही भूले तो वहाँ तो मजार पर दो दो फूल चढ़े हैं. एक तो हमारे शिष्य गिरिराज खुद ही चढ़ाये हैं. खैर वो तो हमारा स्वभाव जानता है, बुरा नहीं मानता हमारी बात का. है तो काबिल.

अब हम जो कहना चाहते हैं कि बाकि कि आचार संहिता छोड़ो भाई लोगों. सबसे पहले अहम आवश्यकता है विवादों के लिये संहिता बनाने की. पोस्ट तो अगली पोस्ट आते ही हाशिये में चली जाती है. फिर वहाँ वो ही आता है जो अटका हो वरना सब भूल जाते हैं. तो चलते विवाद को हवा देना हो तो पोस्ट के माध्यम से दो, तब असरकारक हो, वहीं टिप्पणी करते रहोगे तो मजार में से उठकर भूत तो फूल देखने से रहा. कहीं तुम्हारी टिप्पणी बेकार न चली जाये और भविष्य मे जब कोई चिट्ठों का इतिहास देखे तो तुम्हें झूठमूठ वीर न मान बैठे कि तुम आखिरी टिप्पणी किये थे जिससे विवाद शांत हो गया जबकि तुम्हारा उद्देश्य तो उसे और भड़काना था जो नजर के आभाव में शांत हो गया. तो ऐसा न करो , मित्रों.

मेरी सलाह है कि एक ऐसा ब्लाग शुरु किया जाये जहाँ चिट्ठा जगत में हुये विवादों को कालजिवी बनाने के लिये दर्ज किया जाये. सारे लिंक और संबंधित टेकस्ट के साथ. ताकि सब एक जगह उपलब्ध रहे, लोग उसे पढ़ें और भविष्य में कुछ सीखें और पूर्व में उठ चुके विवाद फिर न उठायें और दर्ज को ही आगे बढ़ायें.

अब यह देखें, सीधे सादे हमारे राकेश भाई. कविता करते हैं, गीत रचते हैं और यहाँ तक की चिट्ठा चर्चा भी गीत में ही करते हैं. हड़म बड़म ने उन्हें भी विचलीत कर दिया. हिल गये साहब वो अंदर तक. बर्दाश्त न कर पाये और हुंकार सुन कविता और गज़लों की समीक्षा कर बैठे. हम तो पढ़ते ही कह दिये कि यह पोस्ट विवादित होने की संपूर्ण काबिलियत रखती है. मगर हद तो तब हो गई जब हमारे जैसे ज्ञानियों के अनुमान के विपरीत यह पोस्ट सराही गई. हम अकेले थोड़े आश्चर्य में थे, इसके रचयिता खुद आश्चर्य मे पड़ गये कि विवाद काहे नहीं हुआ, तब वो फिर से लिखे..चुप न रहो-कुछ तो बोलो देखो मेरे कितने प्रश्न अनुत्तरित रह गये हैं.

अनिल रघुराज कह्ते हैं कि न उदास हो मेरे हमसफर मगर कैसे न हों जब एक तरफ तो काम न होने का मानसिक तनाव हो और तिस पर से एक तरफ चक्कर फंसा हो मिलन, मुखौटे और आचार संहिता का:


अब तक की राम -कहानी मैंने आपको ज्यों-की-त्यों सुना दी। सारे तथ्य सिलसिलेवार ढंग से रख दिए। लेकिन मैं पूछना चाहता हूं कि हे मुखौटाधिपति महोदय, आप मेरी ऊर्जा को रचनात्मक कार्यों के लिए बचने दें, तब न मैं जासूसी छोड़कर कुछ सार्थक किस्म का काम कर सकूं। अब देखो न , आपके कारण मुझे इतनी लंबी पोस्ट लिखने में कितनी ऊर्जा व्यर्थ गँवानी पड़ी। इतने समय में तो मैं नेताजी पर लेख -शृंखला की अगली पोस्ट लिख सकता था। वैसे, मुझे मालूम है कि हिन्दी चिट्ठाकारी के भरतमुनि, भामह बनने चले इस ….. किस्म के मुखौटे के समर्थन में तमाम बुजुर्ग चिट्ठाकार उमड़े चले आएंगे और यदि कोई दूसरा नहीं आएगा तो एक ही परिवार में कई मुखौटे तो हैं ही पहले से, साथ देने के लिए।


खैर, बात अभी और होगी. तब फिर आपको खबर देंगे. हम तो बस चर्चा कर रहे हैं, कोई समीक्षा नहीं.

जिसका जो मन किया उसने वो लिखा. होना भी ऐसा ही चाहिये. हमने भी गाँधी जी अपनी जुआघर में हुई मुलाकात के बारे में लिखा, मिले है तो लिखेंगे:


लुक, हाऊ क्यूट इज दिस गाँधी!! कोई कहता-पुअर गाँधी, लुकिंग सो स्वीट!! वेरी सेक्सी! इन बातों को सुनकर भी बिना हिले डुले खड़ा लाचार गाँधी-सेक्सी गाँधी -क्यूट गाँधी. मैने यह नायाब नजारा देखा . जिस गाँधी की पाँच सौ रुपये के नोट पर तस्वीर अंकित है. लगभग उतने रुपये घंटा अर्जित करने के लिये खड़ा मजबूर गाँधी.


उसी तर्ज पर भाई प्रमेद्र प्रताप सिंग लाये भगवान झूलेलाल जयंती पर विशेष और फुरसतिया जी ने बताया आयुध निर्माणियां-विनाशाय च दुष्कृताम:


भारतीय आयुध निर्माणियाँ सबसे पुरानी एवं सबसे बड़ा औद्योगिक ढांचा हैं जो रक्षा मंत्रालय के रक्षा उत्पादन विभाग के अंतर्गत कार्य करती हैं। आयुध निर्माणियां रक्षा हार्डवेयर ( यंत्र सामग्री ) सामान एवं उपस्कर के स्वदेशी उत्पादन के लिए सशस्त्र सेनाओं को आधुनिकतम युध्दभूमि उपस्करों से सज्जित करने के प्रारंभिक उद्वेश्यों के साथ एकनिष्ठ आधार की संरचना करती हैं।


फिर हमारे अमित भाई से सुनिये कि कैसे हुआ टेक्नॉलोजी का उत्तम प्रयोग ब्लॉगर भेंटवार्ता में और भाई अभय तिवारी कैसे पहुँचे भाग कर ४० से १४ पर -बस सिगरेट छोड़ी और पहुँच गये.एक अच्छा संदेश लिये उनका संस्मरण.

क्रिकेट का वृतांत सुनें: सागर से आह क्रिकेट वाह क्रिकेट और शुएब तो खुदा को ही मैदान में उतार बैठे

प्रियंकर बाबू प्रयाग शुक्ल की कविता सुनवा रहे हैं तो मनीष बाबू महादेवी वर्मा की.

रचना बजाज जी अपनी विचारधारा बयान कर रही हैं कि उनके लिये

--- अब काफी रात हो गई, बहुत छूट गये संजय भाई की चर्चा के आभाव में, शायद कॉफी का कप न मिल पाया होगा. कल करेंगे मगर चर्चा वो तब बाकि को कवर कर लेंगे, बहुत ही सक्षम हैं.. :) हम चलते हैं.

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6 टिप्‍पणियां:

  1. एकदम झकास! मस्त चर्चा.

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  2. सही है, लेकिन ऊपर एक चूक कर गए जी। मेरे चिट्ठे के बारे में लिखते हुए "टेक्नॉलोजी" को " टेक्नॉजाजी" लिख गए। कृपया सुधार कर लें। :) बाकी सब तो ठीक दिखे है। ;)

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  3. लो जी हद हो गई..

    नेकी कर कुँए में डाल.. हा हा हा हा..

    अरे लालाजी आपको पेराशुट दे देते कोई कुदकी मारके मरने थोडे ही छोड देते.. वैसे भी खतरा तो उसको होता जो नीचे खडा होता.. आप तो मजे से बच जाते पर उसका तो हेप्पी बड्डे हो जाता फोगट में... हा हा...

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  4. अमित भाई

    भूल सुधार कर लिया है, धन्यवाद. :)

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