चिट्ठाचर्चा सूनसान पड़ा, चर्चा कहाँ गायब
अनुपजी से बतलाया यूँ, तुम ही करो अब
जीतू का टर्न था, वे गये छूट्टियाँ मनाने
फ्री तो हूँ ‘कविराज’, पर नहीं मेरा मन
तुम्ही हो कर्णधार इसके, कहकर फुसलाया
ख़बर लेने का मौका है, धिरे से समझाया
उनकी यह चाल अनोखी मैं समझ न पाया
ऐसे वक्त में नारद ने भी मुझे अंगुठा दिखलाया
अनुपजी से बतलाया यूँ, तुम ही करो अब
जीतू का टर्न था, वे गये छूट्टियाँ मनाने
फ्री तो हूँ ‘कविराज’, पर नहीं मेरा मन
तुम्ही हो कर्णधार इसके, कहकर फुसलाया
ख़बर लेने का मौका है, धिरे से समझाया
उनकी यह चाल अनोखी मैं समझ न पाया
ऐसे वक्त में नारद ने भी मुझे अंगुठा दिखलाया
इस बुरे वक्त में गुरूदेव ने धैर्य न खोने का संदेश भेजा, जिसमें लिखा था कि वे मेरे साथ हैं। मैने अपने आपको हल्का महसूस किया और सोचा गुरूदेव निश्चय ही 70 फिसदी चर्चा लिखकर भेज देंगे। मगर उन्होने जो मेल भेजा, उसमें यह निकला :(
नारद को फिर देखिये, नज़र लगी है आज
चिट्ठाचर्चा किस तरह, होगी अब कविराज
होगी अब कविराज कि कुछ तो रस्ता होगा
हिन्दी-ब्लॉग का आज ही पूरा सुख भोगा
हिन्द-युग्म पर सामूहिक कविता लेखन का प्रयास हुआ है। एक ही विषय पर दस रचनाकारों द्वार लिखी रचनाएँ कहीं ना कहीं एक दूसरे से गुंथी हुई नज़र आ रही है। शैलेशजी जरूर थोड़े अलग-थलग दिखाई दे रहे हैं। काव्य-पल्लवन नाम से शुरू किया गया यह प्रयास कितना सफल हुआ है यह तो पाठक तय करेगा मगर प्रयास अच्छा है। गुरूदेव के शब्दों में कहूँ तो प्रयास हमेशा ही अच्छा होता है, कैसा भी हो, प्रयास होना चाहिये।
अब तू ही बता ,तेरे कृष्ण की बंसीजैक्सन की चिल्ल-पों के आगेक्या है ?गोकुल की सारी गोपियाँसंस्कृति के उबाऊ कपड़ेफाड़-फेंककर' बेब' हो गयींऔर तू,राधिका, गँवार हो गयी।
कमल शर्माजी तेल के खेल पर अच्छा लेख लिखे हैं और राजेश कुमारजी समुन्द्र तट के कुछ शानदार पोज लेकर लाये है। आशीष शर्मा जी प्रेम-प्रेरित-कविता लेकर आये हैं –
प्रेम में सबकुछ अच्छा लगता हैबेगाने भी अपने लगते हैंऔर प्रेम में सब दिवाने लगते हैंसब मर्ज की एक दवाकरो प्रेम सभी सेपड़ोसी से लेकर पड़ोसी मुल्क तकबातें हो सिर्फ प्रेम
कविराज हेल्प-हेल्प करते दौड़ रहें है, समस्या भी अजीब दिखती है मगर उससे भी अजीब है ओसामा के हाथ में कमण्डल!, बच्चा है क्या करें? बड़ी-बड़ी दाढ़ी देखकर बाबा समझ बैठा और थमा दिया। बहुत ही रोचक काव्य-प्रस्तुति है दूबेजी की –
उसने आज भीचित्र बनाये हैं-बापू के हाथ में लाठी की जगह फरसासुभाष के हाथ मेंहथगोलाऔर लादेन के हाथ मेंकमन्डल और माला।शायद बडी हुई दाढी नेउसे भ्रमित किया है।
अन्य प्रविष्टियाँ -
टाईमपास में पाकिस्तानी क्रिकेटरों के कार्टून।
कॉफी हाऊस में दो दिन का रोमांच बिलकुल मुफ्त क्योंकि बसंत दस्तक दे रहा है।
गीतकार अपने अनुठे अंदाज में परिवार की बातें कर रहे हैं।
मनिषाजी बता रही हैं कि सरकारी नौकरियों का रूतबा घटने लगा है।
पत्रकार बनाम चिट्ठाकार अभी तक सिरियल चालू है अब इसे छुट-पुट पर देखा जा सकता है।
आइना पर झा साहब के साहब के माध्यम से कहीं भाटियाजी हमारे अंदर तो नहीं झांक रहे? यह सवाल आपके मन में भी आयेगा, पढ़े, झा साहब लेपटॉप खरीद रहे हैं।
पियूष 1991 का एक किस्सा बता रहें है अपनी मजेदार पोस्ट “टिड्डे की भैंस ही बड़ी थी” में।
अंतर्मन में मनमोहक तस्वीरों के साथ-साथ सुन्दर कविता भी चहक रही है।
महावीरजी एक मार्मिक कहानी लेकर आये हैं, “मेरा बेटा लौटा दो”
गीतकार पर परिवार को इक्ट्ठा कर मुक्तक महोत्सव फिर से शुरू कर दिया गया है।
आशीष बतला रहें है कि दर्द होता है जब कोई अपना छोड़कर जाता है।
बीस बरस बाद ब्लॉग की अट्ठारवीं और उन्नीसवीं कड़ी भी आ चुकी है।
सेठ होसंगाबादी की पारंपरिक दुकान तेल उबल रहा है शायद खाद्य तेलों का मूल्य क्रूड तेलों पर भी निर्भर करता है।
अनामदासजी पत्रकारिता के धर्म, मर्म और शर्म को समझने का प्रयास कर रहे हैं।
टिप्पणियाँ कितनी कारगर होती है यह ज्ञानदत्त जी के चिट्ठे पर जाकर पता चला, जहाँ वे एक टिप्पणी के प्रतियूत्तर में बतला रहें है कि निरालाजी ने इलाहाबाद में कैसे समय बिताया, अच्छी जानकारी है।
जोगलिखी पर भारत सरकार की शर्मनाक हरकत।
अनुवाद में संदीप खरे की कविता – “पल भर को सांसो का भर आना”
प्रेम में डूबी देवेशजी की कविता – “होली वाटर”
असग़र वजाहत का यात्रा संस्मरण – भाग तीन
सन्यास का सही समय कौनसा है? देखें क्रिकेट पर कटाक्ष – सन्यास का समय
ई-स्वामी के ब्लॉग पर नटखट तस्वीरें।
दस्तक पर सागरजी की बचपन की यादें शुरू होती है जो यहाँ तक फैली है :)
सुरेश चिपलूनकर का क्रिकेट स्वप्न।
कमल शर्मा बता रहे हैं राजस्थान पुलिस की संवेदनहीनता।
आशीष और रतलामीजी के रिस्ते का सम्पूर्ण खुलासा – ब्लॉगिंग में भी रिस्ते बनते हैं।
अनहद नाद में मंगलेश डबराल की एक खूबसूरत कविता।
मुफ़्ती मोहम्मद को सबक सिखाते नितिन भाई।
मटरगशती में तरह-तरह की पेन ड्राइव।
दस्तक पर सागरजी की बचपन की यादें शुरू होती है जो यहाँ तक फैली है :)
सुरेश चिपलूनकर का क्रिकेट स्वप्न।
कमल शर्मा बता रहे हैं राजस्थान पुलिस की संवेदनहीनता।
आशीष और रतलामीजी के रिस्ते का सम्पूर्ण खुलासा – ब्लॉगिंग में भी रिस्ते बनते हैं।
अनहद नाद में मंगलेश डबराल की एक खूबसूरत कविता।
मुफ़्ती मोहम्मद को सबक सिखाते नितिन भाई।
मटरगशती में तरह-तरह की पेन ड्राइव।
नारद की अनुपस्थिति में जितने चिट्ठे दिखे उनकी चर्चा का प्रयास मैने किया है मगर मैं जानता हूँ कि बहुत से चिट्ठे छूट गये हैं, इन चिट्ठों को कल सवेरे सागर भाई कवर करने का प्रयास करेंगे, क्यों! सागर भाई करेंगे ना?
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जवाब देंहटाएंhow can i write in hindi in this blog? plese mail me at contact@abhisheksinha.com
जवाब देंहटाएंमाफ़ कीजिएगा, चिट्ठा चर्चा का मतलब कुछ चिट्ठों की सूची देना तो नहीं है. ऐसा लग रहा है कि गिरिराज जी ने या तो चिट्ठे पढ़े नहीं हैं या वे किसी तरह की प्रतिक्रिया करने से बचना चाहते हैं. यह चिट्ठा चर्चा नहीं चिट्ठा सूची है.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब गिरिराज जी,
जवाब देंहटाएंआपने नारद जी की याद में सबको कवर कर लिया।
और अनाम व्यक्ति जी, चाहे चिठ्ठा चर्चा हो या चिठ्ठा सूची। जो जिनका कर सकता है वह करता है। आपमे तो अपना नाम प्रकट करने की क्षमता भी नही है। तो आप दूसरे से क्यो किसी प्रकार की अपेक्षा करते है। अगर आप को लगता है कि आप चिठ्ठों का विश्लेषण कर सकते है। तो आप का इस मंच पर हार्दिक स्वागत है। कि आपके कर कमलों से कुछ चिठ्ठों का विश्लेषण पढ़ने को मिलेगा।
चिठ्ठा चर्चा के नियत्रको से अनुरोध है कि अमुक व्यक्ति अगर अपने आप को चर्चा के लिये प्रस्तुत करते है तो इन्हे अपनी मंडली मे स्थान देने का कष्ट करे।
@ अभिषेक,
जवाब देंहटाएंआपको जानकारी युक्त मेल भेज दिया है।
@ अनाम,
मैं जानता हूँ और आपकी बात से सहमत हूँ मगर चिट्ठों की बढ़ती संख्या को देखते हुए यह संभव नहीं है कि एक दिन में प्रकाशित सभी चिट्ठों के बारें में विस्तृत से लिखा जा सके। बुधवार को प्रकाशित चिट्ठों की चर्चा जीतूजी कर नहीं पाये थे। इस कारण बुधवार और गुरूवार के शाम 7 बजे तक प्रकाशित चिट्ठों को कवर करने का प्रयास था।
चिट्ठे बहुत ज्यादा होने के कारण मै संक्षिप्त चर्चा ही कर सका जो मुझे स्वयं अच्छा नहीं लगता, मैं चर्चा विस्तार से करना पसंद करता हूँ।
आप यह नहीं कह सकते कि मैने चिट्ठे पढ़े नहीं है या मैं किसी प्रकार की प्रतिक्रिया से बचना चाहता था, आप ध्यान से देखे.. मैने संक्षिप्त चर्चा करने के बावजूद सभी पोस्टों में क्या है? यह संक्षेप में बताने का प्रयास किया है।
चिट्ठे अधिक हो रहे हैं, इसका चर्चा पर कोई असर ना हो इसके लिये मेरा बाकि चर्चाकार साथियों से अनुरोध है कि एक दिन में दो या तीन बार चर्चा की जाये, ताकि सभी चिट्ठों की सम्पूर्ण चर्चा हो सके।
- गिरिराज जोशी "कविराज"
महशक्ति जी ठीक कह रहे हैं। जोशी जी आपकी चर्चा अच्छी लगी और उससे भी अधिल आपका अनाम को दिया विनम्र उत्तर ।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
शुद्धि : अधिक
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
आज भी चिट्ठा चर्चा नहीं हुई ..आज घर पर खाली बैठा था..मुझ अनुमति होती तो मैं ही कर देता.
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