आज कविराज की अनुपस्थिती में चर्चा करने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ है और मेरा यह पहला प्रयास है। दिनांक १५-३-२००७ गुरुवार को नारद पर दिखे सारे चिट्ठों की सूचि यहाँ मौजूद है। आज की चर्चा में कुछ गलतियाँ हो सकती है जिनके लिये में आपसे अनुरोध करता हूँ कि आप उन्हें यहाँ टिप्पणी के रूप में बतायें।
सबसे पहले हम स्वागत करते हैं अभिसार का जो NDTV में पत्रकार हैं और मोहल्ला में लिखे अपने पहले और सुन्दर लेख आलमपनाह पर भारी शहंशाह में अभिसार; अमिताभ और दिलीप कुमार के व्यक्तित्व पर रोशनी डालते हुए कह रहे हैं
इसके अलावा, यूसुफ साहब अभिनय के एक ख़ास अंदाज़ और दायरे में क़ैद रहे। उनके बोलने का अंदाज़, उनकी आवाज़, उनकी अदायगी जिसके हम सब कायल हैं, दरअसल उन्हें लगातार कुछ पात्रों में बांधती आयी। दिलीप कुमार अगर किसी पीड़ित का किरदार भी निभाते तो उनकी अपनी शख्सीयत उनके रोल पर भारी पड़ती दिखाई देती है। जब दिलीप कुमार बोलते हैं, तो साफ लगता है कि एक ऐसा शख्स बोल रहा है जिसकी पहली जुबान उर्दू है। मगर ये समस्या अमिताभ के साथ नहीं। अमिताभ भी यूपी के हैं, मगर उत्तरप्रदेश का लहजा तभी सुनाई देता है, जब वो चाहते हैं...(हां, और तब भी- जब वो समाजवादी पार्टी की डुगडुगी पर नाचते हुए यूपी में जुर्म कम होने की बात करते हैं!)
नोटपैड में आज नोटपैडजी भावनगर के अक्षधाम मंदिर में साधूओं के बीच हुई पत्थरबाजी और मारपीट से ज्यादा हैरान ना होती हुई कहती है
इस लेख का उद्देश्य किसी की भावनाओ को आहत करना नही है, केवल एक आलोचनात्मक सोच पैदा करना है जो मन्दिर के अन्दर ""साबुन"" बेचने वाले व्यापारीको पहचान सके।
जीतू भाई, जुगाड़ लिंक की १२४वीं किस्त में कुछ और मजेदार जुगाड़ ले कर आये हैं एक बार इन को जरूर आजमायें।
प्रत्यक्षा जी कल कुछ मीठा खिला रही थीं और आज लेकर आई है इटैलियन गरम भाप उडाता हुआ गोर्गोंज़ोला पास्ता और तरावट वाली ठंडक और लेटस के पत्तों का करारापन लिये सीज़र्स सलाद यानि प्रत्यक्षा जी ने अमित जी और श्रीश को चिढ़ाने का पूरा पूरा बन्दोबस्त कर रखा है।
ईपण्डित श्रीश बता रहे हैं कि क्रिकेट महाकुंभ में गोता कैसे लगाएं नारदमुनि तथा टैक्नोराती के साथ। अगर आप क्रिकेट पर कोई लेख लिख रहे हैं तो पण्डित के बताये कोड को अपने लेख के साथ जोड़ देवें ताकि नारद पर आप का लेख अलग से दिख सके।
Cinema- सिलेमा वाले प्रमोद सिंह जी दुनियाँ और दोस्त के घर की पहचान कराने वाले सिनेमा बारे में बता रहे हैं।लगता है आजकल विवाद नारद का पीछा ही नहीं छोड़ रहे। हिन्द युग्म पर शैलेष भारतवासी फिर से उस प्रश्न को उठा रहे हैं कि हरेक चिट्ठे की चर्चा करना चिट्ठाकार का दायित्व है। हिन्द युग्म पर कॉपी ना कर पाने की मुश्किल की वजह से परेशान हो कर समीर लाल जी ने यह बात अपनी चिट्ठा चर्चा में कही थी कि ;
हम कॉपी न कर पाये और फिर से टाईप करने का माद्दा जुटाना थोड़ा मुशकिल है।
शैलेष जी को मैं कहना बताना चाहूंगा कि राजस्थान में कहावत है कि ताले सिर्फ साहूकारों के लिये होते हैं चोरों के लिये नहीं। देखिये मैने आपकी पोस्ट से ये पंक्तियाँ कॉपी की है और वो भी आपके तालों के रहते हुए, जब तकनीकी मामलों में मेरे जैसा अनाड़ी आपके तालों को तोड़ कर कॉपी कर सकता है तो कुशल चोर क्या नहीं कर सकते? शैलेष जी कहते हैं
अरे भैया! जब टाइप करने से बचना चाहते थे तो चिट्ठाचर्चाकार क्यों बने थे? समयाभाव की डफली बजाकर मात्र लिंक देकर काम चलाओगे तो उभरते चिट्ठाकार तो अंकुरण से पूर्व ही झुलस जायेंगे। कोई बहाना नहीं चलेगा।
वैसे भी आगे कई बार इस बात पर बहस हो चुकी है कि कि क्या चिट्ठाकार को हर चिट्ठों की चर्चा करनी ही चाहिये? व्यक्तिगत रूप से मुझे तो शैलेष जी की यह बात ठीक नहीं लगी कि अगर चिट्ठों की चर्चा करनी हो तो चर्चाकार उसे टाईप करने बैठे।
आगे पंकज अक्षरग्राम पर एक खुश खबरी बता रहे हैं कि सर्वज्ञ का संचालन ईपण्डित श्रीश करेंगे। स्वागत है श्रीश का। जो नये चिट्ठाकार सर्वज्ञ के बारे में नहीं जानते उन्हें यह बता दूँ कि सर्वज्ञ एक ऐसा जाल स्थल है जहाँ से आप हिन्दी में टाईपिंग से लेकर एक नया चिट्ठा बनाने संबंधी सारी जानकारी एक ही स्थल पर पा सकते हैं।
पूर्वी मिदनापुर के नंदीग्राम में सेज़ की खातिर ज़मीनों के अधिग्रहण के विरुद्ध गांववालों के विरोध पर पं बंगाल की पुलिस ने जो नरसंहार किया है उसके विरोध में धुरविरोधी जी मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य यानि ताऊ को लिखे अपने पत्र में कह रहे हैं
हमें मालूम है कि कित्ते भी मरें पर तुम पर कोई असर न होगा. आपकी तौ संवेदना की नसें बेकार हो चुकी है. गुसांई जी कह गये हैं कि “सत्ता पाय काय मद नाहीं“. अबई आप मद में चूर हो तो कुछ भी न सुन पाओगे. मगर ताऊ, कल्ल को जब जे कुरसी न बचैगी तब का होयगो? कौन से मुंह से बाहर निकरौगे
धूआंधार लिख रहे कमल शर्मा वाह मनी पर माचिस की डिबिया यानि मारूति800 के बारे में बताते हुए अच्छी सलाह दे रहे हैं कि
मारुति के शेयरों में हर गिरावट असल में निवेशकों के लिए खरीद का मौका कहा जा सकता है। अब तक इसके शेयर में 17.8 फीसदी का करेक्शन आ चुका है और यह अवसर है, जब कहा जा सकता है कि यदि आप मारुति के शेयर लेना चाहते हैं तो थोड़े थोड़े शेयर लेकर जमा करते जाएं।
अपने दूसरे लेख में कमल कह रहे हैं कि छोड़ो एल्यूमीनियम का कटोरा क्यूं यह आप उनसे ही जानिये। अपने तीसरे लेख में आप बता रहे हैं कि दम मारो दम यानि सिगरेट कंपनियों में निवेश फायदे का सौदा हो सकता है।
बच्चियों के जन्म लेने से पहले ही उनकी हत्या कर देने के दुख से व्यथित रंजना भाटिया बाजार में अपना दुख: कुछ यूं व्यक्त कर रही है।
माँ का हृदय कठोर हुआ कैसे,
एक पिता ये फ़ैसला कैसे कर पाया,
"लड़की "हूँ ना इस लिए जन्म लेने से पहले ही
नन्हा फूल मुरझाया
अंतरिक्ष पर आशीष बता रहे हैं वायेजर १ के बारे में तो गिरिश सिंह बिष्ट ट्रेफिक की समस्या पर चिंतित दिखाई दे रहे हैं।
प्रमेन्द्र हिन्द युग्म पर गीता का संदेश सुना रहे हैं । योगेश समदर्शी ने अपनी लाईफ को जिंगालाला बनाने के चक्कर में 'टाटा स्काई भी लगा डाला परन्तु विज्ञापनों में बढ़ती अश्लीलता से दुखी हो गये ।
अनामदास प्रार्थना मत मत कर कहते हुए पूछ रहे हैं कि
कलावती कन्या के प्रसाद न लेने पर नाव डुबो देने वाला भगवान पूजने योग्य है? क्या लाखों लोगों को भूख-महामारी से मारने वाला भगवान पूजने के योग्य है? क्या दुनिया भर के करोड़ों बच्चों, औरतों ने ऐसा पाप किया है कि उन्हें ऐसा जीवन और ऐसी मौत देना परमपिता, परमदयालु, पालनहारा कहलाने वाले भगवान की मजबूरी है?
पूनम मिश्रा पर अजब सा खुमार छाय़ा है तो नन्दीग्राम पर दुखी संजय बैंगाणी कह रहे हैं कि
एक दिन टाटा को आपने बाहर का रास्ता दिखाया था, और अब लगता है टाटा आपको बाहर का रास्ता दिखाएगा
गणेश यादव आज अपनी कक्षा में लोहे की दीवार बनाना सिखा रहे हैं। और अखिल भारतीय कुँवारा मंच के स्वयंभू अध्यक्ष आशीष श्रीवास्तव जबरन एक लम्बे समय तक अध्यक्ष बने रहने के बाद अपना इस्तीफा दे रहे हैं;यानि आशीष भाई की सगाई हो चुकी है। और शायद दुल्हन भी किसी चिट्ठाकार की भांजी है। जिनका नाम आशीष जी बता नहीं रहे। उम्मीद करते हैं कि इस वर्ष के अन्त तक दोनो साथ में चिट्ठा लिखा करेंगे।
अपना नाम छुपा कर चिठाकारी करने से सहमत मसिजीवी कह रहे हैं कि मुझे मुखौटा आजाद करता है।
आलोचक, धुरविरोधी, मसिजीवी ही नहीं वे भी जो अपने नामों से चिट्ठाकारी करते हैं एक झीना मुखौटा पहनते हैं जो चिट्ठाकारी की जान है। उसे मत नोचो---ये हमें मुक्त करता है।
और आलोचक नारद पर किसी भी तरह की आचार सहिंता के खिलाफ हैं।
रीतेश गुप्ता अपने मन के खयाल सुना रहे हैं रचनाकार पर रवि जी अंतरा करवड़े की 53 लघुकथाएं का अगला भाग यानि २१ से ३० वीं कथाएं पढ़ा रहे हैं। । मुंबई चौपाल बता रहे हैं १८५७ के विप्लव की १५०वीं ज्यंति के अवसर पर जाने माने अभिनेता राजेन्द्र गुप्ता के घर पर आयोजित चौपाल के बारे में।
भुवनेश बता रहे हैं मायावती और बाजार में खड़ा दलित वोट-बैंक
के बारे में। और सुरेश चिपनूलकर बता रहे हैं कि कैसे मुंबई में भिखारी अपना व्यवसाय चला रहे हैं और कईयों के ब्बैंक खाते में हजारों रुपये जमा रहते हैं।
आज की चर्चा बहुत लम्बी हो गई है, एक नये चर्चाकार को सीधे ही फाईनल परीक्षा में बिठा दिया गया होऐसा लगता है क्यों कि मेरे पहले ही प्रयास में इतने सारे चिट्ठे आ गये है। कुछ चिट्ठे बाकी रह गये हैं। मैं संजय भाई से अनुरोध करता हूँ कि दोपहर की चर्चा में उन्हें देख लेवें।
आज की टिप्पणी
महाशक्ति हिन्द युग्म पर
मैने कभी नही माना कि चिठ्ठाचर्चा चिठ्ठों की समीक्षा करता है। चिठ्ठाचर्चा का काम केवल चिठ्ठों को एक कहानी या कविता के माध्यम से प्रस्तुतिकरण करना होता है।
जहॉं तक ताला लगाने की बात है, तो मै भी सहमत नही हूँ। किसी भरे समाज मे कोई वस्तु रख कर चोर से बचाने की बात समझ मे नही आती है। अगर हम इन्टर नेट पर अपनी रचना डाल रहे है तो कहॉं तक इसे छिपाते घूमेगें।
इन्टरनेट काजल की कोठरी है, इसमे हम बैठे है तो काले होने के डर से बचना होगा।
यही मै सभी से कहूँगा कि चोरी चोरी हल्ला मचाना बन्द करें। अगर अपने लेख और कविता की इतनी सुरक्षा की आवश्यकता है तो इसे इन्टरनेट पर न डाल कर किताब के रूप मे प्रस्तुतिकरण करे। मात्र आपने ब्लाग पर कापी राईट लिख देने से कापी राइट नही हो जाता है। कापी राईट प्राप्त करने के लिये वकायदा शुल्क जमा करना होता है।
शैलेश जी मै आपसे ही नही सभी लेखको से कह रहा हूँ, जो लिखते है। और जिन्हे चोरी का डर हो वे न ही लिखे तो बेहतर होगा। लिखे तो बे खौफ हो कर
आपकी पहली चर्चा? अरे आप तो मंजे हुए लग रहे हो सागर भाई.
जवाब देंहटाएंमस्त चर्चा रही. बधाई.
अरे वाह! सागर भाई, आपने तो मैदान मार लिया। पहले ही मैच मे सेन्चुरी ठोक दी। बहुत अच्छी चर्चा।
जवाब देंहटाएंसागर भाई,
जवाब देंहटाएंये बताओ चिठ्ठाचर्चा की प्रेक्टीश कब की थी ?
ये चिठ्ठाचर्चा पहली चर्चा नही लग रही है। सुंदर चर्चा के लिये बधाई !
आशीष
बधाई भाईसा, बाकायदा झकास चर्चा की आपने। पहली चर्चा में ही एक भावीचर्चाकार का विकल्प मिल गया।
जवाब देंहटाएंपूरी चर्चा में आपने पूरी सावधानी बरती कि किसी के भी बारे में अपनी व्यक्तिगत राय नहीं जाहिर की। :)
आप कह रहे हैं कि आप ने पहली बार चर्चा की है हमें ऐसा तो नहीं लग रहा है आप की लेखनी मँजी हुई है सशक्त है बधाई स्वीकारे
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंअब नियमित चर्चा करने के लिए भी अपना कमर कस लें. सोमवारी नियमित चर्चा कैसी रहेगी? :)
सागर भाई!
जवाब देंहटाएंमस्त चर्चा रही... लग नहीं रहा हैं मुझे की आपने पहली बार चर्चा की हैं।
सुंदर चर्चा के लिये बधाई स्वीकार करें और अब आपको नियमित चर्चा करने के लिए भी तैयार रहना पडेगा ।
अभी एक-दो दिन पहले यही बात तो मैंने शैलेश की पोस्ट पर कही थी कि बहुत से बेहतरीन चर्चाकार आने वाले समय में इस टीम से जुड़ेंगे। और आपने इसका तुरंत सबूत दे दिया। चिट्ठाकारी चूंकि नई विधा है, इसलिए इसकी चर्चा की शैली और प्रविधि का निरंतर विकास होता रहेगा। धीरे-धीरे स्तरीय समीक्षा भी होने लगेगी।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया, सागर भाई।
आज दफ्तर देर से आ आ पाया और आते ही अपकी चर्चा देखी. सबसे पहले मैं बताना चाहूँगा कि इसे देखकर कोई भी नहीं मानेगा कि यह आपकी पहली चर्चा है और साथ ही अब कोई यह भी नहीं मानेगा कि अब आप हर हफ्ते न लिखें. अब आप पूरी तरह फंस चुके हैं. :)
जवाब देंहटाएंसोमवार उचित दिन नहीं रहेगा आपके लिये, जो रवि भाई पूछ रहें हैं. मैं आपकी व्यवसायिक व्यस्तताओं को समझता हूँ, रवि भाई को ज्ञात नहीं है. :)
आप एक काम करें, बुधवार ले लें. उस दिन आप पर काम का वजन भी कम रहता है. :)
वैसे भी शैलेश भाई के सुझावों के बाद कि अरे भैया! जब टाइप करने से बचना चाहते थे तो चिट्ठाचर्चाकार क्यों बने थे? समयाभाव की डफली बजाकर मात्र लिंक देकर काम चलाओगे तो उभरते चिट्ठाकार तो अंकुरण से पूर्व ही झुलस जायेंगे। कोई बहाना नहीं चलेगा।
मैं कोई बहाना नहीं बनाना चाहता और मैं जानता हूँ कि जिस समर्पण की इस कार्य को जरुरत है और जिस उत्तरदायित्व के साथ मुझे यह कार्य करना चाहिये, वो मैं नहीं कर पा रहा हूँ.
मैं इस विषय पर न तो शैलेश जी की पोस्ट को गलत मानता हूँ और न ही मैने अपनी स्थिती स्पष्ट करने हेतु टिप्पणी या पोस्ट की है. मैं आभारी हूँ कि उन्होंने मेरे द्वारा कार्य समूचित रुप से न किये जाने पर ध्यान दिलाया. उनके इस प्र्श्न चिट्ठाचर्चाकार क्यों बने थे? का जबाब बहुत तलाशने के बाद, जबाब के आभाव में –मैं चाहूँगा कि आप इस दायित्व का निर्वहन कर मुझे मुक्त करें. यह हम सब के हित में होगा.
मुझे यह भी ज्ञात है कि इस तरह की बातचीत का यह मंच नहीं है मगर चूँकि इस विषय पर इसी चर्चा में चर्चा हुई है तो मैने अपवाद स्वरुप यहीं कहना उचित माना.
एक बार पुनः शैलेश जी आभार और आपसे सादर निवेदन कि मेरी भावनाओं को समझें और बुधवारिय चर्चा की बागडोर अपने हाथ में लें.
बढ़िया है। बहुत अच्छा लगा पढ़कर। मन खुश हो गया।
जवाब देंहटाएंसागर जी, बहुत अच्छी चर्चा की है आपने। मेरी बधाई स्वीकार करें।
जवाब देंहटाएंसमीर भाई.
जवाब देंहटाएंआपसे सहमत होते हुए मैं भी निवेदन करूँगा श्रीमान शैलएशजी से कि वह यह भार अपने कांधों पर उठायें और चर्चा को अंजाम दें. वैसे कई बार लोग अपनी क्षमताओं के बारे में अनभिज्ञ रह कर दूसरों की क्षमताओं पर उंगली उठाते हैं. उन्हें आवश्यक है कि अपने को जांचें परखें.
रही बात उभरते हुए चिट्ठाकारों की- मैं नहीं समझता कि कोई चिट्ठा चर्चा का मोहताज होता है. सिर्फ़ लिन्क देने की बात है तो वह नारद पर उप्लब्ध है ही.
अगर समीक्षा के पिटारे को खोला जायेगा तो संभवत: नव्वे फ़ीसदी चिट्ठे समीक्षक की नजरों से ओझल रहेंगें
बाकी सागर भाई आपने कुशलताअपूर्वक यह कार्य निभाया. बधाई स्वीकारें
मैं स्वयं चाहता हुँ लालाजी कुछ समय के लिए चिट्ठाचर्चा से अवकाश लें...
जवाब देंहटाएंशैलेषजी काबिल व्यक्ति हैं. शायद हम सब ध्वनिमत से यह चाहते हैं कि श्रीमान शैलेषजी चिट्ठाचर्चा करके इस अतुलनीय कार्य को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाए.
उम्मीद है शैलेषजी हमे निराश नही करेंगे. काबिल व्यक्ति फ्रंट फुट पर खेलता है.
अभी तक आप सभी विद्वानों की 'हिन्द-युग्म' व 'चिट्ठाचर्चा' पर टिप्पणियाँ पढ़कर मुझे यही आभास हुआ है कि आपलोगों ने मेरी बातों से वो बातें निकाल ली है जो कम महत्वपूर्ण हैं।
जवाब देंहटाएंमैंने उसमें यह कहीं नहीं लिखा है कि मैं काबिल हूँ, या समीर भाई काबिल नहीं हैं। मैंने मात्र इतना लिखा था कि अभी और परिमार्जन की आवश्यकता है।
राकेश खंडेलवाल जी! लगता है आपने पोस्ट को भलीभाँति नहीं पढ़ा हैं, मैंने नये चिट्ठों के प्रज्वलन की बात मात्र इसलिए की थी क्योंकि मैं इस चर्चा को चिट्ठा-समीक्षकों के मंच के रूप में देख रहा था।
जैसा कि हिन्दी-लेखन की कई शैलियाँ हैं। कोई व्यंग्यात्मक शैली में लिखता है (समीर भाई इसके उदाहरण है)। जीतू की लाड़-प्यार की शैली है। सम्भवतः मेरी शैली आलोचना या तीखे-प्रहार की शैली है। मैं यह नहीं समझ पा रहा हूँ कि किसी का बुरा मानकर समीर भाई का चिट्ठाचर्चा को छोड़ना किस तरह प्रासंगिक हूँ।
अगर मैं सक्षम होता तो चिट्ठाचर्चा का दायित्व अवश्य सम्भालता।
सागर भाई को बधाई
जवाब देंहटाएंसबसे पहले तो आपका स्वागत है।
जवाब देंहटाएंअच्छा मैने आप की यह चर्चा भी पढ़ी है, कुछ और भी, कुछ अन्य ब्लौग्स पर जिन पर जा कर आप लोगों ने अपनी प्रतिक्रियायें दी हैं। संदर्भ स्पष्ट कर दूँ : नोटपैड़, नीलिमा ना लिंकित मन, मसीजीवी, शैलेश का हिन्द युगम और भी कई :
मुझे बेहद खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि आप में से कुछ लोग जैसे संजय, जितेन्द्र चौधरी और कुछ अन्य लोग मुझे लगता है जाने किसी भ्रम में जी रहे हैं जैसे की समसे बड़े ग्यानी वही हैं। लगभग सभी विवादास्त्मक लेखों में इन लोगों के प्रतिकारात्मक स्वर हैं। सो भाई सबसे पहले, बात करने से पहले आप अपने आपको और अपनी लेखनी को जाँच लें/ बाँच लें। और किसी भ्रम में ना रहें की नारद और चिट्ठा चर्चा के बिना हिन्दी ब्लौगिंग करने वाले ब्लौगर का भविष्य अंधकार में है।
निशपक्ष हो कर लिखे, अपनी गलतीयों को खोजें और उन पर विचार कर सुधरने का प्रयास करें। जान पड़ता है, कि आप महज़ बलौग पर कुछ अधिक समय बिताने वाले लोग हैं पर इस बात का मुझे पूरे तरह से ग्यान है, कि आप जिन पर कटाक्ष करते है, आप उन लोगों से लेखन/ साहित्य और बहुत से अन्य गुणों में बहुत पीछे हैं। सो आगे की अपनी प्रतिक्रियाओं में अपने स्वर का ध्यान रखें और नपी-तुली बात करें।
बहुत से लोग, राजनीतीक जैसे लगते हैं जो की कुछ अलग ढंग से बात केर रहे हैं। पर मैं एक स्पष्ट बात करने में विश्वास रखता हूँ। सो कह रहा हूँ। आप भी सुन लें और समझ लें।
अरिसूदन शर्मा