उन्मुक्त जो बोले कि बचो अब खैर नहीं
छद्म नाम से जो चिट्ठा बनाईये
पी एच पी भी भले ही हो गया है यूनिकोडित
चाहे जैव-ईंधन का मंच गठ जाईये.
मखमली नशे में आखिर डूबे रहे कब तक
अब ऑपरेटिंग सिस्टम भी धार्मिक चलाईये.
कई दिन हो गये हैं तुमने न बात की
सुनते ही कहने लगे आ गया हूँ, आता हूँ
गुलाम मानसिकता का अफीमी में नशा कर
होली का शहरी रंग तुझको लगाता हूँ
टीआरपी का ट्रेंड और टेरर भी तो कम नहीं
याहू! का विरोध मत करो ये तुम्हें बताता हूँ.
गज़ल को लेके चले एक नई दिशा ओर
मीरा तो फिर भी बिरहन में बैठी है
१८५७ का विरोध तो एक जागरण था मेरे दोस्त
याहू! की खिलाफत करना कोई हैठी है?
भरमाते चित्रों से भरमाओगे कब तक
मैं तो तेरे प्यार को सच तब ही मानूँगी
हनीमून ट्रेवल से जो लेकर आये साथ में
बुकिंग की कन्फर्मेशन जब मैं पाऊँगी.
हकीकत जानते हो फिर भी धोखे खा रहे हो,
कि चिट्ठों को चोरों से किस तरह बचाईये
देशी टून्ज पर कार्टून जरा देखिये और
रचनाकार पे कविता पढ़्ते जाईये.
बेबसी का आलम अब आप जरा देखिये
मुन्नवर राना की गज़ल गाते जाईये.
आज की यह चर्चा अब यहीं पर है पूरी हुई
आप अपनी टिप्पणी अब करते जाईये!!
Aap ne bhi kamal kar diya...pure ke pure number lekar avaal aa gaye
जवाब देंहटाएंक्या बात है समीर जी आज ये बदला रंग, पर बहुत खूबसूरत रंग है आप तो छा गये।
जवाब देंहटाएंअरे आपका प्रयास हमेशा उत्तम होता है… इस नये ढंग से आपके कलम की नई लहर का पता भी तो चला… राकेश जी की कमी नहीं खलने दी बस यही विशेषता है…।
जवाब देंहटाएंबढ़िया है। दुनिया मल्टी स्किलिंग की तरफ़ भाग रही है तो चर्चाकार समीरलाल जी काहे पीछे रहें। अच्छा लगा यह पढ़कर!
जवाब देंहटाएंचिट्ठाचर्चा पर आपका नाम देख, उलझन में पड़ गया, क्या मैं एक दिन पीछे चल रहा हूँ?.
जवाब देंहटाएंखुलाशा जान, राहत हुई.
मस्त चर्चा.
अच्छी चर्चा मेरे चन्द्र शेखर आजाद को आप भूल गये। उनकी चर्चा नही हुई, सही है स्वतन्त्रता संग्रम सेनानियों को तो सब भूल रहे है। और आप भी :)
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