अपने ब्रेक को ब्रेक करके हम फिर से आपके सामने हाजिर हैं। पहले आज प्रकाशित हुये सारे चिट्ठे देख लें यहां!
इसके बाद कुछ कविता-सविता हो जाये।
तो भैया कविता तो एक बड़ी धांसू लिखी है तन्हा कवि ने-
अश्कों से इश्क की है यारी , क्या कहें,
यही शौक , है यही दुश्वारी , क्या कहें।
कीमत खुदा की बेखुदी में भूलता रहा,
उसने भी की रखी थी तैयारी , क्या कहें।
भैये तन्हाई का ये रोना तो होगा ही। इससे अच्छा तो उड़ने की कोशिश करो तुषार जोशी की तरह फिर चाहे गिर ही पड़ो। मान्या ने अपने दोस्त को शुक्रिया अदा करते हुये बहुत अच्छी कविता लिखी। उस पर जीतू ने किसी की कविता सुना दी यह कहते हुये कि दोस्तों को शुक्रिया नहीं दिया जाता।
कविवर गिरिराज जोशी ने हिंद युग्म की लोकप्रिय कवियत्री अनुपमा चौहान के जन्मदिन पर शुभकामनायें देते हुये एक कविता पेश की। आप भी अनुपमाजी को हैप्पी जन्मदिन करिये न!
तुषार,गिरिराज,तान्या की कवितायें कापी नहीं हो पायीं लिहाजा नमूने के लिये इनकी साइट ही देखें।
गीतकार राकेश खंडेलवालजी आजकल मुक्तक वर्षा कर रहे हैं जनता की बेहद मांग पर। आज के मुक्तकों में से एक है-
भोर की पालकी बैठ कर जिस तरह, इक सुनहरी किरण पूर्व में आ गई
सुन के आवाज़ इक मोर की पेड़ से, श्यामवर्णी घटा नभ में लहरा गई
जिस तरह सुरमई ओढ़नी ओढ़ कर साँझ आई प्रतीची की देहरी सजी,
चाँदनी रात को पाँव में बाँध कर, याद तेरी मुझे आज फिर आ गई
और मुक्तकों का आनंद उठाने के गीतकार के पास आइये न!
बेजीजी ने सवाल उठाया था पत्रकार क्यों बने ब्लाकर ! आज वे अपने सवाल के निष्कर्ष बताती हैं। इसी क्रम में फुरसतिया पर पोस्ट के मजे से पढ़ती हुयी योगिता बाली प्रमोद सिंह को भी जबरियापढ़वा देती हैं फुरसतिया का लेख।
अनिल रघुराज सुनवाते हैं प्यार के दो बेहतरीन गाने और उठाते हैं भारतीय टीम की हार से जुड़ा एक अहम सवाल।
आपका लिखने में मन करता है लेकिन सूत्र वाक्य में लिखना चाहते हैं तो देबाशीष बताते हैं उपाय-टंबललाग। उधर रवि रतलामी बता रहे हैं मोबाइल ब्लागिंग के गुर और पेश कर रहे हैं देबाशीष के साक्षात्कार काहिंदी अनुवाद! रचनाकार में आज रवि रतलामीजी पेश करते हैं मनोज सिंह की रचना जिसमें सफलता के शिखर पर चढ़ते लोगों के अकेले पन के बारे में विचार व्यक्त किये गये हैं-
ऐसा कम ही होता कि जब आपको घेरे हुए लोग आपकी उंचाइयों को नि:स्वार्थ स्वीकार करें, आपकी प्रशंसा करें, आपसे प्रभावित हों, आपसे प्रेरित हों, आपको दिल से चाहें। और इसीलिए आपके शीर्ष से उतरते ही वे दूर हो जाते हैं। यह एक नग्न सत्य है। और इससे बड़ा सच है कि दोस्त तो कोई होता नहीं ऊपर से दुश्मनों की संख्या बेवजह असंख्य हो जाती है।
नंदीग्राम पर आजकल काफ़ी कुछ लिखा गया। आज ज्ञानचन्द पाण्डेयजी और रियाजुल हक़ इस पर कुछ जानकारी दे रहे हैं।
मसिजीवी २३ मार्च के बाद अपने बालकों को अंक प्रसाद बांट के खचेढू़ चाचा के पास टाइम पास करने चले गये इससे नीलिमाजी चिंतन करने लगीं-
व्यवस्था से संवेदना की उम्मीद नहीं की जा सकती बल्कि व्यवस्था हमें सिखाती है स्वयं की तरह ही संवेदनहीन होना। व्यवस्था के लिए व्यक्ति मात्र उपकरण होता है--व्यवस्था रुपी मशीन का यंत्र मात्र ।यंत्र के लिए जरुरी है --यांत्रिकता। संवेदनाओं का यहां काम ही क्या?व्यवस्था के लिए व्यक्ति नामहीन है या यों कहें कि उसके लिए व्यक्ति एक नंबर भर है ।इस बीच सुरेश चिपलूनकर ने हारी हुयी भारतीय टीम को नोबेल पुरस्कार के लिये नामांकित कर दिया।
टेलीग्राम आज भले अप्रासंगिक हो गये हैं लेकिन कभी ये सूचना का सबसे तेज माध्यम रहे हैं। कमल शर्मालिखते हैं-
अब एसएमएस, ईमेल, मोबाइल, फोन सेवाओं के हुए तगड़े विस्तार ने टेलीग्राम को हमसे दूर कर दिया या लोग भूल से गए हैं। मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई जैसे बड़े एवं मध्यम शहरों में जहां पहले तार घरों में लंबी लंबी लाइनें दिखाई देती थी, वहां अब दिन भर में मुशिकल से कोई आ पाता है। अमरीका के सैम्युल मोर्स ने 1844 में मोर्स कोड की खोज की थी तो संचार जगत में बड़ी क्रांति आ गई थी लेकिन ईमेल और एसएमएस ने तो समूची दुनिया ही बदल दी।
औरतों की पत्थर मार मार कर हत्या करने की प्रथा और उसके खिलाफ़ बनती हवा के बारे में जानकारी दे रहे हैं पंकज पारासर!
तरुण का नारद के बारे में सुझाव है कि इसकी फ़ीड को दो ग्रुपों में बांट दिया जाये उधर धुरविरोधी बता रहे हैं एक हिन्दी ब्लाग फीड एग्रिगटर!के बारे में।
आज प्रतीक टाइमपास में पढ़ा रहे हैं एक महिला का खत!
हिंदी ब्लागिंग में पहले से ही तमाम पंगेबाज हैं अब एक और पंगेबाज आ गये। स्वागत करें।
प्रमोद सिंह अपनी सिनेमा साइट में आज ईरान की फिल्मों के बारे में सच की अनगिन परते गिन रहे हैं।
भगतसिंह पर राजकिशोर के लेख का विरोध कर रहे हैं शब्दसंघर्ष!
कल के देबाशीष के आवाहन पर कुछ और चर्चाकार साथी जुड़े हैं!
मसिजीवी, नीलिमाजी और सृजन शिल्पी।
मसिजीवा और नीलिमाजी के लिये इतवार का दिन तय है। यह इन साथियों की जिम्मेदारी है कि ये आपस में बातचीत करके इतवार के चर्चा करें। कल के दिन रवि रतलामी बाहर रहेंगे इसालिये मसिजीवी अपनी पारी शुरू करेंगे।
नीलिमाजी पहली महिला चिट्ठाचर्चाकार हैं।
सृजन शिल्पी अनियमित समीक्षा करेंगे। जब उनकी मर्जी आयेगी तब। आज उन्होंने एक समीक्षा करके शुरुआत कर दी है।
अपने साथियों का स्वागत करते हुये हमें आशा है कि इन साथियों के जुड़ने से चिट्ठाचर्चा में गुणात्मक सुधार होगा।
अब हुई न बात!!
जवाब देंहटाएंसमस्त नये चिट्ठाचर्चाकारों का स्वागत है.
आपकी बात पर कुछ्क कहें ? न कहें
जवाब देंहटाएंसोच में लेखनी सकपकाने लगी
हाशिये पे फिसलती हुई याद थी
देखिये लौट कर फिर से आने लगी
आपका एक अंदाज़ है, जो नया
नित्य आयाम वह कुछ नये छू रहा
जो किरन भोर की आस लेकर उठी
सांझ आंखों में अब वो बसाने लगी
शुभकामनाओं के लिये शुक्रिया!!!
जवाब देंहटाएंखुदा आपको मह्फूज़ रखे,खुश रखे...
स्नेह
अनुपमा चौहान