सोमवार, मार्च 12, 2007

चिट्ठाकार मिलन : कनफ़्यूज़न, कॉफ़ी और $#@&^ गर्रर...



सबसे पहले आपको एक जोक सुनाता हूँ. जोक इसलिए कि जोक की जोंक से तुक मिलती है और चुटकुले में सोफ़िस्टिकेशन नहीं आता.

जोक यह है

दिल्ली में कोई दर्जन भर चिट्ठाकार आधा-दर्जन घंटे भर गपियाते रहे और चिट्ठाकारों में कोई सिरफुटौवल नहीं हुआ. (कुछ उस किस्म का जैसा कि आमतौर पर चिट्ठाकार अपने चिट्ठों में करते हैं.)

जोक खतम. आपको हँसी नहीं आई? तो यकीन मानिए, इसमें जोक का कोई दोष नहीं है.

जैसी कि उम्मीदें थीं, चिट्ठाकार मिलन की रपट हर चिट्ठाकार ने अपने-अपने अंदाज में दी हैं. वैसे, कुछ रपटें आना बाकी हैं. अमित सही जगह, सही समय बैठे हुए इंतजार करते हुए $%#&^ रहे

मैंने अपनी खीज व्यक्त की कि एक घंटा होने को आया और कोई भी नहीं आया अभी तक, स्वयं आयोजक सृजनशिल्पी जी तक नदारद थे।

उनका *&$#@ जारी रहा

अब यह देख मेरे मन में पहला विचार यही आया कि जब सही दिशानिर्देश देने पर यह हाल है तो …..। बहरहाल, अब क्या करते, हमने तो इन लोगों को वेन्गर के बाद मुड़कर उपस्थित कैफ़े में आने को बोला था, ये लोग बिना मुड़े सीधे चलकर पहले पड़ने वाले कैफ़े में पहुँच गए। खैर...

परंतु अंततः उनका गुस्सा छः घंटे बाद, केवेन्टर्स के फ़्लेवर युक्त स्वादिष्ट ठंडे दूध से ठंडा हो ही गया. चिट्ठाकार मिलन के कुछ और मजेदार ब्यौरे जैसे कि कैफ़े कॉफ़ी डे के टॉयलेट में पानी नहीं था... इत्यादि इत्यादि... नोटपैड, आईना, मोहल्ला, मसिजीवी, पर पढ़ना न भूलें.

अब जरा गंभीर होते हैं. क्या आपको पता है कि आप भी बकरी की तरह मैं मैं करते रहते हैं? यहाँ पर वैसे तो ये बातें पत्रकार नाम के प्रतीक को लेकर की गई है, परंतु ये क्षेत्र में, हर प्रोफ़ेशन पर लागू होती हैं.

बीस साल बाद हिन्दी ब्लॉग का भविष्य उसका रूपाकार क्या होगा? श्रेणीबद्ध तरीके से यहाँ बताया जा रहा है. भाग चार की कल्पना है-

प्रत्‍यक्षा ने उंगलियों से अपने बाल पीछे करते हुए कहा प्रियकंर जी, मैंने लैंग्‍वेज ठीक से अभी पिक नहीं किया है मगर इतना समझ सकती हूं कि आप बहुत जटिल शब्‍दों में जा रहे हैं. जवाब में प्रियंकर ने हंसते हुए कहा आप जिसे जटिल कहेंगी मैं उसे प्रगाढ कहूंगा. इंटेंस एक्‍सपीरियेंस. ऐसे सघन काव्‍यानुभवों को हम विष्णु नागर वाली चीनी में नहीं आंक सकते. इसके लिए हमें क्‍लासिकी मंडारिन की ही शरण में जाना होगा. मान्‍या क्षुब्‍ध होकर पेंसिल से घास पर (हरी, हवादार) आकार खींच रही थी. बुदबुदाकर उसने कंप्‍लेन किया मालूम नहीं, दीदी, हिंदी में इतनी आसानी से हो जाती थी वही सब चायनीज़ में कहने पर उन्‍हें ही नहीं, मुझे भी एकदम पराया-पराया-सा लगता है.....

अब अगर हिन्दी चिट्ठाकार को मंदारिन में लिखना पड़े तो वह तो भाग ही खड़ा होगा चिट्ठाकारी से. परंतु नहीं, वहाँ तो पुलिसिया साम्राज्य है और आपको जबरन लिखना होगा अपना चिट्ठा वह भी सरकारी प्रशंसाओं में!

आज जब हर तरफ मिलावटों का साम्राज्य है, हमारी संस्कृति, रस्म और यहाँ तक कि रेस (जेनेटिक गुण) में भी मिलावट होने लगी है तो हिन्दी कितनी सुद्ध बनी रह सकती है? पहले भी भासा की सुद्धता पर कुछ आड़ी खड़ी बातें हुई थीं, जिनका सिर पैर कुछ ज्यादा हासिल नहीं हुआ. भासा सुद्ध तो होनी चाहिए, इसमें किसी की कोई दो राय नहीं, पर चिट्ठाकारी में तो चलने दो बंधु. चिट्ठाकारी की भासा इतनी भी सुद्ध मत करो कि बेचारा हिन्दी चिट्ठाकार मैदान छोड़कर ही भाग खड़ा हो. और, इस्तेमाल करते-करते भासा सुद्ध हो ही जाएगी.

बातों बातों में पूछा जा रहा है किस पर लिखूं कविता? कविता लिखने के लिए विषय की दरकार होती भी है? पर रुकिए, मेरा फंडा कुछ किलियर हो गया इन पंक्तियों को पढ़ कर

मैं कुछ चीजों पर कविता नहीं लिख सकता

फुदकती गिलहरियों

कूकती कोयल

आंगन में रखे धान का गट्ठर,पुआल

जलावन की लकड़ियां

भैंस का गोबर

चावल की रोटी

आम का बगीचा

तालाब-पगडंडी

लहलहाते खेत

खेतों में मजदूर

पेड़ों की छाया

ढंडी हवा में सूखता पसीना

कबड्डी....

.....

....

....

इत्यादि, इत्यादि.

धन्य है. संसार की सारी वस्तुएँ इन्होंने गिन लीं. अब संसार को कविताओं से कुछ राहत तो मिलेगी!

चलते चलते शुकुल छा गए कैसे? खुशी के मारे. जीतू ब्लॉग संबंधी कुछ फोकटिया सवाल कर रहे हैं आपसे गुजारिश है फल प्रतिफल की चिंता किए बगैर जवाब अवश्य दें. और लोकमंच में धमाकेदार खबर है कि कोई महिला राष्ट्रपति बनने वाली है अमरीका के बाद अब भारत में भी.

और अंत में, हिन्दी पर श्रीश के लिखे इस लाजवाब, संपूर्ण लेख को बुकमार्क कर लें भई, अपने लिए नहीं, अपने नौसिखिए दोस्तों को फट से पकड़ाने के लिए. अब कोई आपसे कभी पूछे कि हिन्दी कैसे पढ़े लिखें तो उसे दन्न से गरियाएं अबे चू** तूने यह लेख पढ़ा कि नहीं? पहले इसे पढ़ फिर बात कर!

चित्र हिन्दी चिट्ठाकार मिलन समारोह का जहाँ छः घंटे चली चर्चाओं से बोर होकर शायद आसमाँ भी अंधिया गया और अंततः चील-कव्वे भी उड़ने लगे. क्या हिन्दी चिट्ठाकारी का भविष्य इतना अंधकारमय है?

व्यंज़ल? किस पर लिखूं व्यंज़ल? मैंने भी ऊपर दर्शाए विषय छोड़ दिए हैं तो बाकी बचा क्या?

**-**

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1 टिप्पणी:

  1. चिट्ठाकार सम्मेलन सुखद और सार्थक रहा और ऊपर वाला जोक एकदम फिट बैठा।

    मसिजीवी की रिपोर्ट की अंतिम बातें मजेदार रहीं।

    जवाब देंहटाएं

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