कार्टून टुडे से
साध्वी रितु को शिकायत है कि वे जिनके लिये लिखती हैं वे उन पर वक्त बरबाद नहीं करते। टिपियाते नहीं। उनके पाठकों ने भी उनकी शिकायत को बाजिब माना और दूर करने की कोशिश की। बल भर टिपियाये। साध्वी रितु का यह लेख पढ़कर लगा कि वे नियमित क्यों नहीं लिखतीं।
टिप्पणियां भी क्या-क्या गुल खिलाती हैं। वे किसी भी अच्छे खासे मुद्दे की हवा निकाल कर उसे पंचर कर सकने की असीम क्षमता रखती हैं। अपनी दोस्त मंजू पर आर.अनुराधा की पोस्ट पर टिप्पणियों के चलते मूल मुद्दा चिंदी-चिंदी हो गया। इसके बाद आर.अनुराधा ने चर्चा करने के लिये दूसरी पोस्ट लिखी। जिसका मर्म शायद कोई समझ नहीं पाया। अनूप भार्गव ने भी अपनी बात रखी। जो शायद अनुराधा जी को नागवार गुजरी और उन्होंने कहा -
और अनूप जी जैसे लोगों से कहना है कि कुतर्कों से माहौल को गंदा न केरं तो बेहतर। रेलगाड़ी दुर्घटना और नैनादेवी मंदिर की भगदड़ काफर्क अगर आप विदेश में बैठ कर नहीं समझ पाते तो पहले देस आइए, देखिए, समझिए फिर बात आगे बढ़ाइए।
इस पर अनूप भार्गव ने सख्त आपत्ति दर्ज करायी-
सख्त आपत्ति है मुझे विदेश में रहने के कारण देस को न समझने के कटाक्ष से । देस को समझने के लिये जितने साल ज़रूरी थे , देस मे गुज़ारे हैं और अपना कर्ज़ अदा किया है । आज भी उस से लगाव है इसलिये आप का ब्लौग पढ रहा हूँ ।
लगता है कि आलोक पुराणिक ने इसी लफ़ड़े से घबरा कर अपने ब्लाग पर कमेंट बन्द कर दिये। ( अब खुल गया। ये होता है ब्लागिंग का जलवा! लेकिन क्या फ़ायदा ? टिप्पणी सम्राट समीरलाल तो सोने चले गये :)
पता चला है कि ज्ञानजी कुछ एलर्जी हो जाने के कारण चिंतन विरत हैं। हमने सुझाव दिया कि फोटो खिंचवा के एक पोस्ट ठेल दीजिये। ज्ञानजी ने दुखी मन से बताया कि यही तो दुख है कि एलर्जी को उतनी अच्छी तरह ब्लाग पर पोस्ट नहीं किया जा सकता जित्ती अच्छी तरह स्पांडलाइटिस को किया जा सकती है। काश तकलीफ़ें भी ठोक बजा के चुनने की इजाजत होती। खैर हम क्या कर सकते हैं सिवाय उनके जल्दी ठीक होने की दुआ करने के।
जब भी मैं ज्ञानजी के बारे में कुछ लिखता हूं सबसे ज्यादा एलर्जी डा.अमर कुमार जी को होती है। वे अभी आयेंगे और हड़काते हुये इस पर ऐसा लिखें कि हमारी सिट्टी-पिट्टी गुम होने के लिये मचलने लगेगी। उनकी मिजाज पुर्सी के लिये मैं उनकी भी हर तरह की एलर्जी दूर होने की दुआ करता हूं।
डा. अमर कुमार जैसी सहज चुटीली बातें कहने वाले ब्लाग जगत में बहुत कम हैं। उनसे इस पोस्ट के माध्यम से अनुरोध है के वे अपने एक ब्लाग पर ध्यान केंद्रित करें और नियमित लिखें। ये सलाह है वे इसके भी धुर्रे बिखेर दें तब भी हमें कोई कष्ट न होगा लेकिन मानेंगे तो बहुत अच्छा लगेगा।
टिप्पणियों पर लोगों के अपने-अपने विचार होते हैं। कुछ लोग मुंह तोड़ टिप्पणियां देने में भरोसा रखते हैं और बहुत लोग मुंह देखी। आज अनायास कुछ टिप्पणियां देखीं तो लगा कि दिनेशजी और घुघुती बासुती जी टिप्पणियां आमतौर पर संतुलित और सार्थक टाइप की होती हैं। इससे और शानदार च जानदार टिप्पणीकार नाराज न हों वे भी बहुत अच्छे होंगे लेकिन हमें आज इत्ता ही दिखा और कहने का मन हुआ। -इस खिड़की से जितना दिखता है बस उतना सावन मेरा है।
मनविन्दरजी लिखती हैं:
अक्षर मेरी सोच से भी आगे हैं
कभी कलम को छूते हैं
कभी कागज पर बैठते हैं
कभी गीत बनते हैं
कभी नज्म बनते हैं
और कभी अफसाना भी
बड़े नटखट हैं
चांद को छूते हैं
तारों से बातें करते हैं
पहाड़ी के मंदिर पर चढ़ जाते हैं
मंदिर की घंटियां बजाते हैं
अब चंद हड़बडिया एक लाइना:
मैं जिनके लिये लिखती हूं वे मुझ अपना थोड़ा तो वक्त बरबाद करें: वक्त कोई जिन्दगी तो होता नहीं।
कुछ चर्चा हो जाए : कर तो रहे हैं जी। रोजै करते हैं।
इसे क्या हादसा कहेगे ??: कोई टिप्पणी नहीं।
संकोच मित्रों से, मित्रता दिवस पर : एक दिन में कोई पहाड़ तो टूट न जायेगा। साल भर तो संकोचहीन रहते हैं।
हव्वा का चशमा : आलोक पुराणिक की आंखों पर।
ब्लागिंग शुरू करने के पहले : अपनी आखिरी पोस्ट लिखकर रख लें- कभी भी जरूरत पड़ सकती है।
लड़ाते हैं हमें और अपने-अपने घर बनाते हैं: का करें उनको घर बनाने का यही तरीका पता है।
आपके मुंह में धी शक्कर : कहीं आपको डायबिटीज तो नहीं।
भगवान भगवान ट्याँऽऽऊँ.. ऊँऽऽ …ओ दुनियाँ के रखवाले: कुछ तो बंगले खाली करवा ले।
हम कब बनाएंगे एक 'असली` नोट? : जब सब नकली खप जायेंगे।
पहला सबक : तो मजेदार है जी। अगला कब?
बारिश ने खत भेजा है: सब भीग गया है।
दुनिया में सबसे अच्छी मां : मेरी है।
एक रचना का कविता होना:बड़ा तकलीफ़ देह होता है।
थोडी चिरकुटई स्टिंग आपरेशन पर : बाकी फ़िर कभी। हम तो चिर-चिरकुट हैं।
फिर से आ रहा है पंद्रह अगस्त : आय है सो जायेगा -राजा, रंक ,फ़कीर।
किसान महाकवि घाघ और उनकी कविताएं : आज भी प्रासंगिक हैं।
डाक्टर के मन में क्या क्या चल रहा होता है ? : ये मरीज फ़ीस दे पायेगा क्या?
मेरी पसंद
नारियों के,
भारतीय नारियों के जलने पर
क्यों अफसोस है
वे तो सदा से ज्वलनशील रही हैं
उसमें न हमारा कोई दोष है,
नहीं तो कोई
उसके जीवित जलने की कल्पना
भी कैसे करता?
तब, जब हम चला रहे थे
अग्नि बाण
जब उत्कर्ष के चरम पर था
हमारा इतिहास
तब भी माद्री बन रही थी
जीवित मशाल।
तब जब हम थे भाग रहे
मुगलों से मुँह छिपा
जब पतन की गर्त में था
हमारा इतिहास
तब भी हम गौरान्वित थे,
क्या हुआ जो हम
न बचा सके अपनी
बेटियों की लाज,
ब्याह रहे थे उन्हें मुगलों से
पाने को कुछ स्वर्ण ग्रास
तब भी पत्नियाँ तो थीं हमारी
सीता, सती व सावित्री
कूद रहीं थीं पद्मिनियाँ
जलने को जौहर की आग में।
फिर जब बन रहे थे
पढ़ अंग्रेजी
जैन्टलमैन बाबू हम
तब भी इन ज्वलनशील नारियों
ने डुबाया था नाम देश का
आना पड़ा था इक
राजा राममोहन रॉय को,
जब भी कोई भद्र
मरणासन्न बूढ़ा खोलता था
करवा कन्यादान
किन्हीं नन्हीं बालाओं के
माता पिता के स्वर्गद्वार
तब उसके मरने पर
बैठ जातीं थीं चिता पर
ये नन्हीं बालाएँ
प्यार में उस वृद्ध के।
आज जब हम
दौड़ में बहुत आगे हैं
हमने आइ टी में रचा है
इक नया इतिहास
तब भी क्या करें
ये ज्वलनशील नारियाँ हमारी
कभी भी
इक माचिस की तीली की
छुअन से जल जाती हैं,
हम नहीं चाहते परन्तु ये
न जाने क्यों भस्म हो
जल मर जाती हैं?
हम भी तो हैं फूँकते
न जाने कितने अरब
सिगरेट और बीड़ियाँ
क्या जली है मूँछ भी
कभी गलती से हमारी आज तक?
फिर न जाने क्या गलत है
डी एन ए में
भारतीय ही नारी के
क्यों ज्वलनशील है वह
हम नहीं हैं जानते।
घुघुती बासूती
कमाल की चर्चा हो रही है.. एक लाइना धमाल मचा रही है
जवाब देंहटाएंहमारा कहना है, जमाए रहो.
जवाब देंहटाएंकमाल है जी कमाल है.
जवाब देंहटाएंक्या धांसू च फांशु चिटठा चर्चा है.
जवाब नही सर आपका.
धमाल ही धमाल....
जवाब देंहटाएंक्या कमाल का धमाल है। एक लाइन कमाल और धमाल दोनों मचा रही है।
जवाब देंहटाएंअनूप जी, 'ज्वलनशील नारियाँ' को 'चिट्ठा चर्चा' में स्थान ही नहीं देने, अपितु अपनी पसन्द कह पूरा का पूरा छापने के लिए, मेरा ही नहीं, लगभग सभी स्त्रियों का आभार स्वीकारें।
जवाब देंहटाएंमेरी टिप्पणियों को संतुलित व सार्थक कहने के लिए मेरा आभार। परन्तु कभी कभी क्षणिक आवेश में गलती हो भी जाती है और कोई अम्लीय/तेजाबी टिप्पणी भी हो जाती है और ऐसी ही एक गलती के लिए क्षमा माँगने के बाद भी सदा लज्जित रहूँगी।
घुघूती बासूती
मनविन्दर और घुघुती जी की कविताएं हमें भी बहुत भायीं। बाकी चिठ्ठाचर्चा की वन लाइना तो है ही कमा……:)
जवाब देंहटाएंसालिड चर्चा....आलोक जी के यहाँ पट खुल गये हैं, मथ्था टेक आये. :)
जवाब देंहटाएंनियमित चर्चा करते रहें. शुभकामनाऐं.
क्या बात है "..इस खिड़की से जितना दिखता है बस उतना सावन मेरा है।.." खूब बरसे ऐसे ही [:-)] - मनीष
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंअनूप भाई, आपके दिये अंक तो बाद की बात है,
मैं तो यहाँ बैठा तक रहा हूँ कि कोई आगे आये, फिर मैं
टिप्पणी दूँ । भरोसा नहीं, आपकी मौज़ का...कल को
यही चर्चा उड़ा दें कि डाक्टर अमर कुमार दस नम्बरी
टिप्पणीकार हैं, तो मैं तो गया चवन्नी के भाव..
वह चवन्नी, जो अब मेरी न रही !
आपका ध्यानाकर्षण शिरोधार्य ! मैं लिखूँगा.. क्यों नहीं
लिखूँ ? बस ब्लागर पर आजकल चल रहा रोना धोना
जरा थमे तो सही । लोग अपने अपने यहाँ न्यौत कर
स्यापा करने-करवाने में व्यस्त हैं , तब तक मैं अपनी
नयी वाली बीबी के साथ कुछ रातें बिता रहा हूँ...यानि
कि एच.टी.एम.ऎल. के करिश्में टटोल रहा हूँ । सादर !
एक खास शख्शियत हो आप जिसकी पैनी नज़र को सलाम !
जवाब देंहटाएंहमारे "पहले सबक " को नज़रेँ इनायत करने के लिये !
-- लावण्या
अरे ! ये हमारी लड़ाई-वड़ाई की खबर भी सरे आम छाप दी आप ने तो ?
जवाब देंहटाएंचिट्ठा चर्चा ब्लागरों मे फेवीकोल का जोड़ लगा कर बंधन पक्के करता जा रहा है।
जवाब देंहटाएं