अब एक और ब्लाग बार
ब्लागिंग में लंबे लेख लिखने वाले आम तौर पर दुरदुराये जाते हैं। हमें भी लोग काम भर का कोसते रहे। हम भी झांसे में आकर शार्ट एंड स्वीट बनने की छलावे का शिकार हुये। इस चक्कर में न शार्ट हुये न स्वीट। लिखना कम हो गया और फ़कत चर्चाकार बनकर रह गये।
लेकिन आज डा.अमर कुमार का रवानी भरा गद्य पढ़कर मन पुलकित च किलकित हो गया। एक बार फ़िर लगा कि लगा कि अफ़वाह फ़ैलाने वाले देश के दुश्मन हैं। लिखना ऐसा चाहिये जैसा मन का भाव। उनके यहां कापी पेस्ट की सुविधा नहीं है इस लिये यहां कई अंश पढ़ा नहीं पा रहा हूं आप उधरिच देख लीजिये। टाइम खोटी न होगा। कुछ लाइनें टाइप करके पढ़ा देते हैं:
१. मुर्गा बने हुये साप्ताहिक हिंदुस्तान पढ़ना।
२. ज्ञानदत्त जी को न सताइये जाकी छूंछी हास।
३.हिंदी में कविता लिखने से आसान मुझे बरतन साफ़ करना लगता है।
ज्ञानदत्त जी को न सताने की डाक्टरी सलाह बड़ी गम्भीर है। निर्णय लेना बहुत भारी लग रहा है। लग रहा है ज्ञानजी से भी न मौज लेंगे तो किससे लेंगे? जीतेंन्द्र अपनी दुकान बन्द सी कर चुके हैं। समीरलाल बिटिया बनने के लिये अप्लाई कर चुके हैं। कहां जायें किसको सतायें कुछ समझ में नहीं आता।
निठल्ले तरुण सच्ची में निठल्ले हैं। ठनठन गोपालों को समझाते हैं अपने खर्चे का हिसाब रखो।
पुण्य प्रसून बाजपेयी टीवी के मीडिया से जुड़े हैं। ब्लागिंग शुरु की है। पहला लेख है: स्टिंग ऑपरेशन देखने से पहले आँखे खोलिये, सच सामने है| अनुनाद सिंह ने टिपियाया है:
आपका लेख पढ़ते-पढ़ते मैं बीच में ही छोड़ दिया क्योंकि मजा नहीं आ रहा था और मुझे लग रहा था कि इसे आप और अधिक संक्षेप में कह सकते थे। आपके इस लेख के शुरुवाती विचारों से मैं सहमत नहीं हो सकता। आपके लेख से शायद यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि इस देश में कुछ भी सकारात्मक किया ही नहीं जाना चाहिये क्योंकि इसके पहले ऐसे कार्यों से कुछ भी हासिल नहीं हुआ है। आप भी स्टिंग ऑपरेशन को न दिखाये जाने के समर्थन में कुतर्क गढ़ने में लगे हुए दिख रहे हैं।
जो बात अनुनाद सिंह ने कही है वही मैं भी दोहराना चाहता हूं:
लेकिन यह सब होते हुए भी जनता को निराश हो जाने की शिक्षा देने के बजाय सदा जागरूक करते रहने की जिम्मेदारी मिडिया की है।
बोलो बोलो टिप्पणी करोगे या नहीं?
बालकिशन खुराफ़ाती कम धांसू सेंस आफ़ ह्यूमर वाले ब्लागर ज्यादा हैं। कल समीरलाल जी के बचपन की ऐसी तस्वीरें पेश की मजा आ गया। इस पर समीरलाल का कहना था-खूब इत्मिनान से जारी रहें, बहुत शुभकामनाऐं-हम तो नप ही गये हैं, बाकियों को क्यूँ बचवायें।
शीतल राजपूत भी एन डी टी वी की पत्रकार हैं। उन्होंने भी अपनी ब्लागिंग का श्री गणेश किया। :
अच्छा-बुरा, खट्टा-मीठा कुछ भी हो; बारिश की हर बूँद ख़ुद में एक कहानी है। बस, यहीं मुझे अपने सवाल का जवाब भी मिल गया है। दरअसल बारिश की तरह, मैं महसूस करती हूँ कि मेरे पास भी कहने के लिए एक कहानी है।
ब्लागजगत में तमाम तरह के लफ़ड़े भी चलते हैं। है ब्लाग जहां वहां लफ़ड़ा सहज संभाव्य है टाइप। मनविन्दर जी ने अपने अखबार में लेख लिखा -मर्द औरत के बारे में किस प्रकार से मौका मिलते ही कुछ भी लिख डालते हैं, औरतें उस पर कैसे रियेक्ट करती हैं, यह मानती हूं कि किसी का किसी को अपमानित करने का कोई इरादा नहीं होता है लेकिन एक बहस सी छिड़ जाती है जिस में कुछ अच्छी और कुछ तीखी बातें हो जाती हैं।
रचनाजी ने तस्वीर पर आपत्ति जताई लेकिन उसे मीनाक्षीजी बताया कि यह सोच मनविन्दर जी की नहीं हो सकती। अगर यही तस्वीर अनूप भार्गव ने लगाई होती तो क्या इत्ती आसानी से मान ली जाती? :)
अब चंद एक लाइना:
नारी नितम्बो तक की अंतर्यात्रा : द्वारा उचित माध्यम बोले तो थ्रू प्रापर चैनेल।
इम्तिहान है - मुशर्रफ़ साहब के आईडिया का और शरीफ बाबू के बालों का : शुक्र है हमरे लिये दोनों आउट आफ़ कोर्स हैं।
शर्मनाक है मुसलमानों के नाम पर राजनीति : शर्म करें तो हो चुकी राजनीति।
सुदामा कहा है ?: शक पंगेबाज पर है। नार्को टेस्ट करवाया जाये।
फ़िर क्यों दिखती प्रीत की छाया..!!! :खोयी हुयी चीजों के साथ ऐसाइच होता है।
गाय दूध देती है: लेकिन पैसा ग्वाले को मिलता है।
जब हमने रिश्वत दी : तभी वो ले पाया।
मेरे वतन के लोगों : मेरा ब्लाग पढो जरा भाई।
और भी गम हैं ज़माने में... : मोटर बाइक चलाने के सिवा।
एक नई उम्मीद के साथ : कविता पढ़वाने का शुक्रिया।
बिग्यान का दूसरा सबक और टेस्टूप: दारू पीने से आदमी का बिग्यान बिगड़ जाता है!
बरसात के दिन आये त्रुटि हो गयी हो तो माफ़ करे।
यह कौन है? : कहीं यह वही तो नहीं।
अरे रे मेरी जान राधा: तेरे वियोग में हो गया मैं आधा।
प्री ओन्ड नेता, नो गारंटी: ट्रक ने नेता के नीचे आकर आकर आत्महत्या की।
ऊंघते-ऊंघते आक्रामक होंगे: इसके बाद लंबी तान के सो जायेंगे।
इस पोस्ट को मत पढिए: फ़िर पोस्ट काहे के लिये की? सिर्फ़ मुई टी आर पी के लिये।
मेरी पसन्द
मुंहफ़ट
मैं ब्लॉगर हूं
भट-नागर हूं
कलमकार हूं
कथाकार हूं
हीहीहीही
अगड़म-बगड़म मैं लिखता हूं
अखबारों में भी दिखता हूं
अहा-अहा मैं हुआ महान
नाचूं-गाऊं तोड़ूं तान
हीहीहीही
इसका चिट्ठा, उसका चिट्ठा
पढ़ते-पढ़ते हुआ पनिट्ठा
गीत-गौनई, कबाड़खाना
हुआ चवन्नी छाप जमाना
हीहीहीही
क्या करता लेखक बेचारा
जो मन आया, सो लिख मारा
कोई सिर मत चढ़े ठेंग से
पढ़े-पढ़े, मत पढ़े ठेंग से
हीहीहीही
जो मैं लिखूं, वही सुस्वाद
बाकी का लिक्खा बकवाद
कितना अच्छा लगता हूं मैं
अखबारों में छपता हूं मैं
हीहीहीही
मुंहफ़ट
हा हा हा
जवाब देंहटाएंधांसू च फांसू.
जमाये रहिये जी.
"अगर यही तस्वीर अनूप भार्गव ने लगाई होती तो क्या इत्ती आसानी से मान ली जाती? :)
जवाब देंहटाएं"
अनूप भार्गव ji ko yahan kyon ghasita aapney .
जमाये रहिये जी।
जवाब देंहटाएंमेरी आपति चित्र से बस इतनी हैं की जिस बात का विरोध हम कर रहे हैं ऐसे चित्र हमारे विरोध को हल्का करते हैं . मेने अरविन्द के ब्लॉग पर भी यही कहा हैं
जवाब देंहटाएं"बड़ी अजीब बात हैं "चोखेर बाली" , "नारी" और वह कोई भी ब्लॉग जहाँ स्त्री स्वतंत्रता और बराबरी पर विचार होता हैं हमारी संस्कृति का पतन होने लगता हैं और यहाँ खुले आम विज्ञान के नाम पर बिना कोई " टैग " लगाए स्त्री के अंगो के ऊपर लिखा जा रहा हैं और वह कोई भी ब्लॉगर जो चोखेर बाली और नारी पर आकर अपशब्द लिखता हैं कमेंट्स मे , या अपनी नाराजगी दीखता हैं यहाँ बिल्कुल चुप हैं . जो बोल रहे हैं वह भी कामसूत्र का हवाला दे रहे हैं . और लवली की बात पर जरुर गौर करे अगर विज्ञान की ही बात है . स्वतंत्रता हैं अभिव्यक्ति की , अपना निज का ब्लॉग हैं सब सही हैं पर फी बाकि सब पर भी टिका तिपानी बंद करे"
.पिछले एक सल् से हिन्दी ब्लोगिंग कर रही हूँ और देख रही हूँ किस प्रकार से महिला ब्लोग्गेर्स के ऊपर व्यंग किये जाते हैं उनको http://halchal.gyandutt.com/2008/01/blog-post_31.html से लेकर न जाने कितनी उपाधियों से नवाजा जाता हैं . और वही ब्लॉगर इस तरह के लेखन पर साइंस का परदा डालते हैं . अरविन्द को पूरा अधिकार हैं ओह अपनी ब्लोग्पर कुछ भी लिखे पर
http://indianscifiarvind.blogspot.com/2008/07/blog-post_26.html
पर आए कमेन्ट को भी देखे
Anonymous said...
लो जी लो, नारियो की ठेकेदारनियाँ आ ही गयी। इनमे से एक तो अविवाहित है पर दूसरो के बसे-बसाये घर उजाड रही है। शादी का लड्डू खाया ही नही तो भला क्या बात करेंगी परिवार के बारे मे। --- और दूसरी, वो तो आप मसिजीवी का चेहरा देख के जान लेंगे। आइये , सताये हुये मसि के दुख के लिये कुछ पलो का मौन रखे। विज्ञान को न समझने वाली ये नारियाँ खूब उछल रही है। पर आप लिखते रहे ब्लागर भाई।
राज भाटिय़ा said...
अजी एक तरफ़ तो यह अपने आप को हमारे से ऊचा उठा रही हे, हम से मुकाबला कर रही हे एक तरफ़ एक अच्छे लेख पर भडक रही हे , वाह री नारी,जनाब आप किसी एक नारी को निशाना बना कर तो नही लिख रहे फ़िर यह बबाल क्यो? लिखो जी लिखो,
ब्लॉगर को महिला और पुरूष मे हिन्दी ब्लोगिंग के ठेके दारो ने बांटा हैं एक न्यूट्रल शब्द को लिंग भेद मे बांटना ग़लत था . उसका विरोध किया तो भी हम ग़लत थे , नारी या चोखेर बाली बनाया तो भी हम ग़लत हैं .
आज लोगो को नारियल शब्द लिखने से भी डर लगता हैं तो मुझे " भय बिन होये ना प्रीती " याद आता हैं
असली मुद्दे को भूल कर कुछ और बात को लाया जा रहा हैं . मुद्दा था की जो ब्लॉगर नारी स्वतंत्रता . नारी लेखन से समाजिक पतन को जोड़ते हैं वही मुस्करा मुस्करा कर साइंस पढ़ते हैं .
और अनूप जी मौजा ही मौजा आपने ही लिखा था लिंक याद नहीं सो नही दे पा रही हूँ .
हमारा कहना है... बाबा आइंस्टाइन को समझो। गलत जगह खड़े हो कर फुटबाल मैच मत देखो। वरना आप की पसंदीदा टीम गोल करेगी और लगेगा कि आप पर गोल हो रहा है।
जवाब देंहटाएंशुक्लजी, नमस्कार...अगर यह सवाल मुझसे पूछा गया है तो भी वही कहती जो मनविन्दरजी के लिए कहा...भार्गवजी मनविन्दरजी की पोस्ट पर काम कर रहे होते तो और भी पक्की बात होती क्योंकि तस्वीर लगाने वाला सहकर्मी ज़रूर उनसे राय लेता...
जवाब देंहटाएंअगर आप सोच रहे हैं कि स्वतंत्र रूप से भार्गवजी ने ऐसा किया होता तो.... मतलब यह कि आप उनकी सोच को परिपक्व नहीं मानते.
मुझे यकीन है कि आप भी लेख के मज़मून और तस्वीर पर नज़र डाल कर ऐसा नहीं सोचेगे.. इतना लिखने की गुस्ताख़ी कर गए, क्षमा करिएगा..आपका दिल दुखाने का बिल्कुल इरादा नही है...
सूत्रधारजी हमने अनूप भार्गवजी को यहां इसलिये घसीटा क्योंकि वे दूसरी जगह और भी बुरी तरह घसीटा जा रहे हैं। कम से कम एक से भले दो। नामराशि का कुछ तो ख्याल रखना पड़ेगा।
जवाब देंहटाएंरचनाजी, आपकी सोच, समझ और राय से हमें कोई आपत्ति नहीं है। मनविन्दरजी की ब्लाग पोस्ट पर आपकी टिप्पणी स्वत:स्फ़ूर्त और सहज थी। उस पर मीनाक्षी जी ने भी लिखा था।
मीनाक्षीजी, अनूप भार्गव जी सोच को हम कैसे परिपक्व नहीं मानते ? वे हमारे नामाराशि हैं जी उनके सोच कैसे अपरिपक्व कैसे हो सकती है?और आपने भी कोई गलत बात तो कही नहीं।
हमारा दिल बात से बहुत दुखी है कि आपने हमसे क्षमा मांग ली। अब बताइये इस दुख का क्या इलाज है ?
आज लोगो को नारियल शब्द लिखने से भी डर लगता हैं तो मुझे " भय बिन होये ना प्रीती " याद आता हैं
जवाब देंहटाएं---रचना दी-ये लोगो कौन है?? :) कोई बहुत ही निहायत नालायक मालूम पड़ता है जो नारियल लिखने में डरता है, हा हा!!
--अनूप भाई, (दोनों)-चर्चा बेहतरीन रही दोनों की.. :)
जारी रहिये नियमित.
नारायण नारायण...
जवाब देंहटाएंराधेकृष्ण, हे राधे.. हे राधे..
क्या त्रुटि होती भयी, इन कुंजरों से कि रचनाजी इनको नरोः वा.. नरोः वा
कह कह कर हाँफ़ी जा रही हैं ? सबेरे एक फेरा घूम गये थे, रोज़ ही घूमते
हैं । अभी सोच कर आये कि चलो अनूप जी को धन्यवाद दे आयें, लेकिन
ईहाँ तो घसीटाचर्चा चल रही है, लौट कर आयें ?
मरीज़ अउर मौत का कउनो भरोसा नहीं, सो अबहिन निबट लेते हैं,
@ अनूप जी भाई, हम तो आपके और बाकी सुधीजनों से मंतर चुरा चुरा कर
कुछ लिख-ऊख लेते हैं । आपने आदेश किया औ ' हम लिख दिये, ईहाँ काहे
चर्चा में आज फिर अमर कुमार दिख रहे हैं, सो गुरुजी.. बस आपका टीपा
हुआ लिखते हैं, कुछ तो है..तो क्या सबकुछ आपका ही है । लेकिन हज़ूर दूसरन
को भी मौका दिया जाय। वहू चर्चित होय लें ! काहे पक्षपात का कलंक न्यौत रहे
हो ? कल को कउनो स्टिंग कर देगा तो बस टिरिंग हो जाओगे । बतर्ज़ ' जल्द आरहा है '
की बानगी दिख रही है, अनूप भाई ! और आप तो सेवक के एक टिकिया पैरासिटामाल
के भी गुनाहगार नहीं हो ..
जाते जाते बस इतना चेताय देते हैं कि अगर बहकते देखना, तो थाम लेना । यहाँ तो
लोग नाली में घुसेड़ने कि फ़िराक में रहा करते हैं, बोलो ब्लागर एकता ज़िन्दाबाद !
@ सूत्रधार जी ज़वाब हम दें ? ऊई..' ऊई ' कर दें तो अदा, सदके जावाँ,
अय हय । और इहाँ हम ' ऊई ' कर दें, तो सज़ा । बऽहूत नाइंसाफ़ी है.. सूत्रधार, अरै
सुना ब्लागजगत वासियों.. बऽहूत नाइंसाफ़ी है ।
@ रचना जी यूँ तो हमें ज़्यादा बोलने.. ऒह्हो ! हाँ तो लिखने की आदत तो है
नहीं, लेकिन रचना जी जिस बात पर भी बिफ़री हों, वह गौर फ़रमायें कि अरविन्द जी
के नितम्बों पर सबसे ज़्यादा कूदफाँद मैंने ही मचायी थी । कुछ तो क्रेडिट दो हम गरीब मर्दों को ..
देखिये कि हमरे जियरा की आग अब तक सुलग रही थी, और हमने एक अदद अंतर्यात्रा भी
कर डाली । कुछ तो क्रेडिट दो हम गरीब मर्दों को .. सिरिफ़ क्रेडिट ही दे दो, भाई..हत्तेरे की,
बहन ( देखा पुरुषों का प्रभुत्व.. बोलना बहन है, निकल भाई साहब रहे हैं ! राधे.. राधे )
लावण्या बहन लिखती हैं कि स्त्री ज्वलनशील तत्व है, इससे कोई मना कर ही नहीं सकता ।
केवल आप..मतलब केवल आप लोगों की वज़ह से अरविन्द मेरे ब्लाग पर आकर, और
टिप्पणी बक्से में घुस कर कह गये कि फ़ैसला वक़्त करेगा । काहे कि डार्विन का मानुष
वापस बंदर बन कर सब-कुछ सार्वजनिक तरीके से करके सब सार्वजनिक कर देगा ।
जय हो भोलेनाथ..वइसे भी यह कातिक नहीं सावन है, भोलेनाथ !
@ समीर भाई मार्फ़त चिट्ठाचर्चा माननीय ब्लागप्रवरनिवेदन हो
कि प्रार्थी ने कमर लचकाने के अभ्यास करने में रही सही लोच भी गँवा दी । तबसे हम
नित्य नर-टू-नारी परिर्वतक जाप किया करते हैं, लेकिन आपकी करुण गुहार पढ़ कर, आज से बंद !
बट, देयर सीम्स टू बी ए लैकुना इन योर केस.. बिकाज़ यू हैव ए बैड हिस्ट्री आफ़ बीइंग ब्लागर,
अरे समीर भाई, देख-भाल लेना.. कहीं आपके मेटामार्फ़ोसिस फ़ेज़ में ही चोखेरवालियाँ कोई स्टे-आर्डर
वार्डर ले आयीं, तो बीच में ही लटक जाओगे, नर-टू-नारी का टू ! हम तो मारे शरम के उस जीव का
नाम भी नहीं ले सकते, धत्त ! समधियों को क्या मुँह दिखाओगे, दुर धत्त ! हम्मैं सरम आती है !
दस ठईं दिनेशराय शीर्षासन कर लें, पर इनका स्टे वैकेट ना करा पावेंगे
आये तो ज़ल्दबाज़ी में थे, खो गये यहाँ !
पंडिताइन कलफ़ लगी साड़ी में से हमको
कोस रही हैं, संझा बरबाद हुई गयी, उनकी ।
हम भी एक पोस्ट की क्षति उठाते भये ।
लोग भी जोकरई समझ आगे बढ़ लेंगे,
सो इसकी क्षतिपूर्ति कउन दफ़्तर से होगी,
यह कल के चर्चा में अवश्य बताया जाय ।
एक सुधार..दस नम्बरी टिप्पणी से
जवाब देंहटाएंलावण्या बहन नहीं..
घुघूती बासूती जी पढ़ें
udan tashtri
जवाब देंहटाएंअब अनुज लायक हो या नालायक हैं तो अपना सो नाम देने से क्या लाभ और अनुज ऐसा हो जो हवा की तरह आता जा ता हो तो भी नाम का क्या महातम
dr amar
आप ने वहाँ बहुत कुछ लिखा मेने पढ़ा लेकिन सही के लिये धन्यवाद भी कहना होगा नहीं जानती थी सो अब देती हूँ . आशा हैं स्वीकार करे के कृतार्थ करेगे
anup ji
manvinder के बहाने आप नारी ब्लॉग पर भी लिखने लगे इस चर्चा मे धन्यवाद . यादाश्त अच्छी हैं सो जो पढ़ती हूँ याद रह जाता हैं . बाकि ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं हूँ सो "सही हैं " नहीं लिख पाती हूँ सब जगह
अब आप घसीटेंगे भी तो हम मौज ही लेंगे ना ? धन्यवाद ’मोरल सपोर्ट’ के लिये । आजकल बड़े ’डाउन’ चल रहे हैं । हर बात बहुत सोच समझ के कहने लगे हैं और इसी में ज़्यादा खतरा महसूस करते हैं ।
जवाब देंहटाएंजहां तक परिपक्वता की बात है , उस पर कोशिश चल रही है , आशा है ’बालिग’ होने तक आ ही जायेगी । :-)