इतवार की खुशनुमा सुबह है। चाय की चुस्की के बीच हम आपसे रूबरू हो रहे हैं। जन्माष्टमी है आज। शुरुआत पारुल के सौजन्य से पंडित जसराज के भजन सुनते हुये करिये। इसके बाद आप पूरी झांकी बालकिशन के ब्लाग पर देख सकते हैं। सभी कृष्ण भक्त बालगोपालों, गोप-गोपियों को जन्माष्टमीं मुबारक।
निठल्ले तरुण ने कल शनिवार को चर्चा की। अब वे शनिवार को नियमित चर्चा करेंगे। कुश का दिन अभी तय नहीं हुआ है। बाकी चर्चाकार भी अपना चर्चा करने का दिन तय करें भाई! लोग हमी को झेलते-झेलते झींकने लगेंगे।
कल अनिल रघुराज ने पोस्ट पर टैग लगाने की बात पर सवाल उठाया-कि कुछ ब्लॉगर छटांक भर की पोस्ट पर किलो भर के टैग लगा देते हैं। दीपक भारतदीप ने इस पर अपनी पूंछ फ़टकार दी।
कुछ साथियों ने टैग और लेबेल के बारे में जानकारी चाही है। देबाशीष ने आज से तीन साल पहले टैगिंग के बारे में निरंतर के लिये लेख लिखा था। क्या आप टैगिंग करते हैं? आप इसे पढ़ेंगे तो टैंगिंग के बारे में काम भर की जानकारी मिल जायेगी। लेबेल के बारे में भी परिचर्चा हुयी थी।
ज्ञानजी कोलकता से प्रियंकर की संगति करके लौटे हैं। कवि हो गये हैं। कविता ठेलने भी लगे। ये होता है संगति का असर| काजल की कोठरी में कैसो हू सयानो जाये! एक लीक काजल की लागिहै पै लागिहै! ज्ञानजी लिखते हैं:
कितने सारे लोग कविता ठेलते हैं।
ब्लॉग के सफे पर सरका देते हैं
असम्बद्ध पंक्तियां।
मेरा भी मन होता है;
जमा दूं पंक्तियां - वैसे ही
जैसे जमाती हैं मेरी पत्नी दही।
आलोक पुराणिक आज काम की बात करते हैं:
व्यक्तिगत हितों के लिए काम करना हो, तो भारतीय श्रेष्ठ काम करते हैं, पर सामूहिक, राष्ट्रीय हित में काम करने का भारतीय रिकार्ड बहुत अच्छा नहीं है।
पुराने रिकार्ड बदलें, इस समय तो सिवाय इस शुभेच्छा के कुछ नहीं किया जा सकता है।
सामूहिक रूप में राष्ट्रीय हित में काम करने और सफ़ल होने का हम लोगों का रिकार्ड चौपट रहा है। हमें नंदलाल पाठक की कविता याद आती है:
आपत्ति फ़ूल को है माला में गुथने में,
भारत मां तेरा वंदन कैसे होगा?
सम्मिलित स्वरों में हमें नहीं आता गाना,
बिखरे स्वर में ध्वज का वंदन कैसे होगा?
आपमें से बहुतों ने इंद्रजाल कामिक्स पढें होंने और खूब पढ़े होंगे। अब इसे फ़िर से पढ़ने का मन हो देखिये यहां।
आभा ने दो दिन पहले कविता लिखी थी। उनकी साध देखिये:
तुम रहो मेरी आँखो में
मेरी छोटी-छोटी असुंदर आँखों में...
मेरी धुँधली मटमैली आँखों में रहो...
ऐसी है मेरी पुरातन इच्छा.
अजर अमर इच्छा।
दो माह पहले मैं जब डा.प्रभात टण्डन से मिला था तो उन्होंने बताया था कि वे एक पत्र का अनुवाद पोस्ट करेंगे। होम्योपैथिक डाक्टर की गति सेआज कर पाये। बधाई ! किया तो सही।
लक्ष्मी नारायण गुप्त जी हमारे सबसे बुजुर्ग ब्लागर हैं शायद। अमेरिका में गणित पढ़ाते हैं। पहले वे नियमित लिखते थे। आज काफ़ी दिन बाद कविता लिखे। :
आज उनसे मिलन की घड़ी आगई
नज़र झुकने लगी आँख शरमा गई
मन में शंसय के बादल उमड़ने लगे
मेरे सुख चैन को वो फिर हरने लगे
लक्ष्मीजी हमारे शहर के हैं, हमारे स्कूल बी.एन.एस.डी. इंटर कालेज में ही पढ़े हैं। इस लिहाज वे हर तरह से हमारे काबिल बुजुर्ग हैं। जिन लोगों को इस बात पर ताज्जुब है कि हम ज्ञानजी जैसे बुजुर्ग से कैसे मौज ले लेते हैं वे देखें कि हम उनसे भी ज्यादा बुजुर्ग लक्ष्मी भैया से भी मौज ले चुके हैं। उनका प्रेम आख्यान लिख चुके हैं। कल इसे देखा तो मौज आ गयी। आपको भी शायद आये। देखिये नमूना
बातन बातन बतझड़ हुइगै औ बातन मां बाढ़ि गय रार
बहुतै बातैं तुम मारत हो कहिके आज दिखाओ प्यार।
उचकि के बैठे लैपटाप पर बत्ती सारी लिहिन बुझाय,
मैसेंजर पर ‘बिजी’ लगाया,आंखिन ऐनक लीन लगाय।
इनकी बातैं इनपै छ्वाड़व अब कमरौ का सुनौ हवाल,
कोना-कोना चहकन लागा,सबके हाल भये बेहाल।
सर-सर,सर-सर पंखा चलता परदा फहर-फहर फहराय,
चदरा गुंथिगे चदरन के संग,तकिया तकियन का लिहिन दबाय।
चुरमुर, चुरमुर खटिया ब्वालै मच्छर ब्लागरन अस भन्नाय
दिव्य कहानी दिव्य प्रेम की जो कोई सुनै इसे तर जाय ।
आंक मूंद कै कान बंद कइ द्याखब सारा कारोबार
जहां पसीना गिरिहै इनका तंह दै देब रक्त की धार।
सुनिकै भनभन मच्छरजी की चूहन के भी लगि गय आग
तुरतै चुहियन का बुलवाइन अउर कबड्डी ख्यालन लाग।
ऊपर का कार्टून अभिषेक की पोस्ट से।
उनके कुंजी पटल से:
1." आग लगे, धुंआ लगे, तेरी ठठरी बंधे....मुझे सीट दे, नहीं तो पैसे वापस कर दे मेरे" :पल्लवी
2.कुछ ब्लॉगर छटांक भर की पोस्ट पर किलो भर के टैग लगा देते हैं।: अनिल रघुराज
3.'पन्द्रह दुनी तीस तियां पैंतालिस चौका साठ पांचे पचहत्तर छक्का नब्बे सात पिचोत्तर आठे बिस्सा नौ पैन्तिसा झमक-झमक्का डेढ़ सौ !': अभिषेक ओझा
4.तीन दिनों का सम्मेलन और मानदेय सिर्फ हजार रुपल्ली! ऐसे कहीं हिन्दी बचेगी! राजकिशोर
5.एक शब्द के सहारे अगर तुम पूरा जीवन आंनदमय होकर निकाल सकते हो तो वह शब्द प्यार है । लियो बाबूटा
आगे बढ़ने से पहले:
आप बस्तर की यात्रा कर लें। गाइड हैं। संजीत। साथ में बेजी का खाली जगह भरोअभियान भी देख लें:
कुछ जगह
खाली रहती है
उनका खाली रहना ही...
उनका अधूरापन ....
और
.....
उनके भरे होने का सबूत भी..
और देखिये जीतेंन्द्र कौन जुगाड़ में लगे हैं आजकल। अपने भावी बच्चे का नक्शा देख रहे हैं। देखिये शायद आपका भी मन करे।
अब एक लाइना
दूसरे का धर्म दुख देने वाला होता है : इसलिये अपने दुख का खुद जुगाड़ करो।
घमंड : को लिफ़्ट करा दे।
पन्द्रह पंचे पचहत्तर, छक्का नब्बे... ! : आगे का पहाड़ा भी याद करके सुनाओ।
कुछ कचोटते प्रश्न…??? : ससुरे ब्लाग पर कब्जा कर लिये।
कितना आसान है कविता लिखना? : उसी को बांचने में आदमी के दिमाग का दही बन जाता है।
महिला होने के फायदे : नुकसान कौन गिनायेगा?
तेरी खुशबू में बसी ई-मेल्स: बदबू मारने लगी है। मेल फ़्रेशनर भेजो।
देशभक्ति के खोखले नारे लगाने से नहीं मिलते पदक : इसके लिये पोस्ट लिखनी पड़ती है।
कुछ तो है ही : जिसने ये पोस्ट लिखवा ली।
इश्क की मुंडेर पर पहुंचे स्विटजरलैंड: जाना पड़ा भाई! यहां मुडेर पर कागा बोल रहा था।
अपना ख्याल रखियेगा : आप के और आपके अपनों के स्वास्थ्य के लिए शुभकामनाएँ!
लूट सको तो लूट :क्या लूटें, हम भी तो आपके भाई-बंधु हैं।
महिलाएँ कतई देवियाँ नहीं, वे तो अभी बराबर का हक मांग रही हैं: निकाल केदे दीजिये उनका हक जहां रखा हो!
मीडिया की भूमिका तय हो : करो भाई हमारे पास टाइम नहीं है।
कैलाश पर कुटिया का निर्माण : नंगे नवाब किले पर घर!
एक गोद सूनी कर भरी गई दूसरी गोद : बहुत झाम है।
एक बार फ़िर दुविधा : लेकिन हो गया लिखना।
अंत में लोग ही चुनेंगे रंग: हरेक का अपना अलग होगा।
...यही दुनिया है तो फिर ऐसी दुनिया क्यों है! : बदल के दूसरी ले आवैं भैया?
हम आपके साथ हैं : भगाओगे तो नहीं न!
भारत मां के यह मुस्लिम बच्चे आज अपनी उस सोच पर सचमुच शर्मिन्दा हूँ !
हत्या की राजनीति-लघु कथा : दीर्घ कथा में एक्शन होगा।
कानून का डंडा सिर्फ़ क्या सिर्फ़ गरीबों पर बरसाने के लिये है? : हां भाई, बहुमत का ख्याल तो रखना होगा!
आप कैसा इस्लाम या मुसलमान देखना चाहते हैं : जैसा उपलब्ध हो दिखा दो भाई!
अतिथि देवता होता है: उसकी धांस के पूजा करो।
मतलबी दुनिया की बातो में क्या रखा है :जब दिल नहीं मिलते, तो मुलाकातों में क्या रखा है।
कान्हा, चीन ते आए ओ! : एकाध मेडल चुराई लाते मक्खन की तरह।
दोस्ती फूलों की बरसात नहीं है भाई : जो छत से टपकती रहे।
जन्माष्टमी पर जुआ! महिलाएं भी पीछे नहीं : काहे को रहें जी?
और रेडियो में पिघल गए छ साल के अतीत : और पोस्ट की शक्ल अख्तियार कर ली।
विक्सित भाषा के बिना विक्सित राष्ट्र? हा हा हा : हे हे हे,हू हू हू, बू हू हू हू ओ माई गाड! डैम इट!!
आगे बढ़ने से पहले: आप बस्तर की यात्रा कर लें। गाइड हैं। संजीत। साथ में बेजी का खाली जगह भरो अभियान भी देख लें।
मेरी पसंद
मन को एक कागज पर उतारना
जैसे झील में नहा लेना
और फिर से तरोताजा हो जाना
मन की सारी बातें उसमें रल जाना
फिर उसे रोज रोज देखना
और उसमें से अपने को खोजना
यह सिलसिला चलता रहता है
ऐसे ही
एक दिन झील को बुदबुदाते सुना
´चलते चलते थक गई हूं
देखने गयी थी उस पौधे को
जिसका कद तो ज्यादा नहीं था
टहनियां भी कम थी
कोई फूल भी नहीं था
जैसे किसी ने उसे सींचा ही न हो
फिर देखा उसकी जड़ों को
देख के दंग रह गई
जड़ें थी कि जमीन के सीने पर लिपटी हुई थी
दूर तक फैली हुई थी
बिलकुल ताजा और तंदरूस्त
बरसों से जी रही थी एक कहानी को`
झील का बुदबुदाना सुन मैं हंस दी
सोचा तुम भी देखते
जमीन के सीने पर लिपटी जड़ें
जो दूर तक फैल चुकी हैं
तंदरूस्त हैं ताजा हैं
पर जमीन में दबी हैं।
मनविन्दर
पोस्टिग विवरण
शुरुआत की: सुबह सात पन्द्रह पर।
पोस्ट की: साढे नौ बजे।
चाय पी:दो बार।
डांट खायी: सीधी- एक बार, इशारे से पांच बार।
बच्चे को पढ़ने को कहा: तीन बार। बैठा एक्को बार नहीं। इरादे का पक्का है जी।
अपराध बोध:
टाइम बेस्ट करने का: कत्तई नहीं।
बोर करने का: काहे को हो जी।
मजा आया: आया लेकिन लिया नहीं आपके लिये छोड़ दिया।
इस दौरान तीन मित्रों से बतियाते भी रहे। क्या बतियाये? ऊ सब सीक्रेट है यार। हम न बतायेंगे।
शुक्ल जी जन्माष्टमी की आपको एवं आपके मार्फ़त समस्त मंडली को हार्दिक बधाईयाँ ! मग्गा बाबा के डायलोग को आज की पोस्ट का शीर्षक बनाने के लिए आपका परम धन्यवाद ! आप में परम गाह्यता है , यानी परम चक्षु रखते हैं ! जो आपने सही मौके ( जन्माष्टमी ) पर इस टाईटल के
जवाब देंहटाएंसाथ झांकी ( पोस्ट ) भक्तों के दर्शनार्थ सजा दी है ! जय बाल गोपाल नन्द के लाला की ! पुन: समस्त भक्त (ब्लॉगर) मंडली को जन्माष्टमी की बधाईयाँ !
कन्हैया लाल की जय! जन्माष्टमी की बधाई!
जवाब देंहटाएंपोस्टिंग विवरण ने चार चाँद लगा दिये.
जवाब देंहटाएंलो आज कान्हा का जन्मदिन है पार्टी-शार्टी होनी चाहिये... आप भी कहां बच्चे को पढने को बोल रहे हैं... पार्टी के दिन.. मौज लिजिये.. पार्टी की.. मै भी आती हूँ :)
जवाब देंहटाएंआप की पसंद के नीचे हमारी पसंद। 99 प्रतिशत पोस्टिंग विवरण एक जैसे ही होंगे।
जवाब देंहटाएंजन्माष्टमी पर आपको बधाई
जवाब देंहटाएंदीपक भारतदीप
आलोक जी ने एकदम सही कहा हम भारतीय व्यक्तिगत रूप से हीरो लेकिन सामुहिक रूप में जीरो हैं। सीधी डांट बस एक ही बार खायी बहुत कम है जी थोड़ी और डोस बढ़वा लीजीए…:)
जवाब देंहटाएंब्लॉग बढ़ते जा रहे है; टैग बढ़ते जा रहे हैं; एक लाइनां बढ़ती जा रही हैं।
जवाब देंहटाएंएक लाइना पढ़ीं मानो सारे ब्लॉग पढ़ लिये।
posting vivran....bahut khoob andaaj....
जवाब देंहटाएंवैसे तो आना लगा ही रहता था लेकिन आज पोस्टिंग विवरण तो गज़ब ढ़ा गए।
जवाब देंहटाएंसाथ ही आपको कृष्ण जन्मोतस्व पर बधाई अनूप जी।
पोस्टिंग विवरण पढ़कर मजा आगया। जन्माष्टमी की बधाई आपको।
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह बेहतरीन प्रस्तुति। पोस्टिंग विवरण हमें भी भा रहा है।
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंपोस्टिंग विवरण - किस माई के लाल ने माँगा, मेरे कन्ने भेजो
शुरुआत की - बिना मंजन कुल्ला किये ?
पोस्ट किया -या करना पड़ा होगा साढ़े नौ ही बजे, क्योंकि सुबह पेट साफ नहीं हुआ था ना ?
डाँट खायी - सो, खाते रहिये, शासित होने का भ्रम बना रहे, यही है अमन चैन का मंतर
चाय पी - खुद बनायी ? या बनी बनाई मिली ?
बच्चे को कहा - पहलौंठी का है, क्या ? या खड़े खड़े पढ़ता है ?
अपराध बोध - अब तक खाल मोटी न हुई, तो डा. अनुराग से मिलो
बोर करने का - चिन्ता न करो, इसके लिये बहुत बड़ी फौज तैयार हुई गयी है
मज़ा आया - वह तो ले गये अली रज़ा,
अब तो हम बीबी से भी ये ना पूछते...
बस अपनी ड्यूटी ईमानदारी से बजाते रहो
ओह, लगता है.. स्वामी-संहिता का उल्लघंन होय रहा है..
चलें ? आज की टिप्पणी तो रह ही गयी, देखा जायेगा..
* सुबह तो गुरुवंदना को गये, और ज्ञानजी की कविता पढ़ कर
अपने जीवित होने पर भी संदेह होने लगा,
सो नेटवे बंद कर दिहा रहा
* हिदायत-ए-समीर भी ना दिखी तो
ब्लागर पर जीने की सार्थकता ही क्या रही ?
जय कन्हैया लाल की !
जवाब देंहटाएंआपका बच्चा इरादे का पक्का है जानकर प्रसन्नता हुई. कानपुर का असर है मालिक :-)
पोस्टिंग विवरण कमाल का है, ईशारा हो या डायरेक्ट अब तक तो आप इस कान से सुनकर उस कान से निकालने में सिद्धहास्त हो गये होंगे।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनूप जी,
जवाब देंहटाएंअंतत: आप ने इस ब्लॉग पर पर अपनी कृपा दृष्टि डाल ही दी.
किसी ने नोटिस तो लिया
आभार स्वीकारें.
अरे भैय्या शुकल जी,
जवाब देंहटाएंजै हम सोचत रहे कि माखन चोर मैडल चुराय लावें तो मजो आ जावे। दम लगो भई बात में।.....पर उ सुसर तो कान्हा ए ई चुराय के ले गए। पहले अपनो कान्हा ता लौट आवे।