रविवार, अगस्त 10, 2008

ब्लागिंग बोले तो मुरव्वत का लेखन

8
शिवकुटी का मेला
 8<br />शिवकुटी का मेला

चिच बोले तो चिट्ठाचर्चा अपने अपने आप में एक चिरकुटई भरा काम है। सबके चिट्ठे बांचों उसमें से काम का मसाला निकालो (इससे आसान तो भूसे में से सुई ढंढना होता है) फ़िर उनको सजा के पेश करो। चूंकि इसमें अपना कुछ होता नहीं है जो साथी लोग लिखते हैं वही पेश करना होता है सो यह भ्रम भी नहीं पाला जा सकता है कि कुछ कर रहे हैं। एक लाइना जरूर लिखने में मजा आता है। बाई डिफ़ाल्ट खुराफ़ाती दिमाग किसी पोस्ट का शीर्षक देखते ही ऐसे उछल पड़ता है जैसे कभी हाकिमों के दिल नजराना देखते ही प्रमुदित च किलकित हो जाता होगा। कभी -कभी कनपुरिया कलर ऐसी खतरनाक जुगलबंदी पेश करना चाहता है कि उसको पठनीय च पोस्टनीय बनाने में ही बहुत ताकत लग जाती है। मन बाबरा अलग कोसता है - हमारी अभिव्यक्ति पर अंकुश लगाने वाले तुम कौन होते हो?

समीरलाल रोज-रोज लिखते हैं-अच्छा लगता है इसे नियमित जारी रखें। दायीं तरफ़ की चर्चा मंडली में भी शामिल हैं। लेकिन वे हमको यह कहने का मौका नहीं देना चाहते कि
अच्छा लिखा। उनको ताली बजाने में ही मजा आने लगा है। बहरहाल।

नारी ब्लाग पर रचनाजी ने कल प्रोटोकाल तोड़ने वाली और प्रोटोकाल मानने वाली अनीता कुमार का जिक्र किया। आप उधर देखिये और बहस में हिस्सा लीजिये। यह लंबी बहस का विषय है जी।

ज्ञानजी जरा सा ठीक हुये कि शिवकुटी के मेले में घूमने लगे। अपनी पोस्ट में उन्होंने श्रीलाल शुक्ल जी का जिक्र किया। मैं पोस्ट पढ़ने के बाद श्रीलालजी की किताब- जहालत के पचास साल पढ़ने लगा। अपने लिखने के कारणों का जिक्र करते हुये उन्होंने लिखा है-
लिखने का एक कारण मुरव्वत भी है। आपने गांव की सुन्दरी की कहानी सुनी होगी। उसकी बदचलनी के किस्सों से आजिज आकर उसकी सहेली ने जब उसे फ़टकार लगायी तो उसने धीरे से समझाया कि " क्या करूं बहन, लोग जब इतनी खुशामद करते हैं और हाथ पकड़ लेते हैं तो मुरव्वत के मुझसे ’नहीं’ नहीं करते बनती!" तो बहुत सा लेखन इसी मुरव्वत का नतीजा है- कम से कम यह टिप्पणी तो है ही! उनके सहयोगी और सम्पादक जब रचना का आग्रह करने लगते हैं तो कागज पर अच्छी रचना भले ही न उतरे, वहां मुरव्वत की स्याही तो फ़ैलती ही है।


ब्लागिंग में भी मुरव्वत की स्याही का काफ़ी योगदान है। सिर्फ़ अन्तर इतना है कि यहां खुशामद के लिये अक्सर आत्मनिर्भर होना पड़ता है। लोग हाथ पकड़ के लिखने के लिये आग्रह कम करते हैं- अपना लिखा पढ़वाने के लिये हलकान रहते हैं।

आलोक पुराणिक हफ़्ते के बाकी दिन भले अगड़म-बगड़म लिखें लेकिन इतवार के दिन समाज-हकीम बन जाते हैं। समय की नब्ज पर हाथ रखकर समाज-चर्चा करते हैं। आजमोबाइल चिंतन के बहाने उन्होंने लिखा:
हम सिर्फ इसलिए छोटे हो गये हैं कि कुछ लोग अनाप शनाप तरीके से बड़े हो गये हैं। बहुत बड़े हो गये हैं।
और उनका बड़ा होना विकट आक्रामक है। प्रत्यक्ष और परोक्ष तौर पर यह आक्रामकता छात्र के बयान में दिख रही है-कि आपका मोबाइल चिरकुट टाइप है।

मेरा काम जिस मोबाइल से चल सकता है, हो सकता है कि वह मोबाइल वर्णव्यवस्था में शूद्र की हैसियत का हो। मुझे क्या फर्क पड़ता है।



पूछ कर मेरा पता..: कहीं वो घर में न आ धमकें।

बच्चों के साथ हम शिक्षकों के सम्बन्ध : बचकाने नहीं होने चाहिये

क्या होगा रामा रे : वही होगा जो खुदा मंजूर करेगा।

उसकी गली मे फिर मुझे एक बार ले चलो-मुन्नी बेगम : मुन्नी बेगम तो पारुल के ब्लाग पर गाना गा रही हैं किसी और के साथ चलेंगी क्या?

एक ओर दिन खर्च हो गया जिंदगी का: इसका आडिट करवा लो किसी चार्टेड अकाउन्टेंट से।

सुदामा और गणराज्य के ग्रह मंत्री : दोनों पंगेबाज के झांसे में। फ़िर फ़ंसेंगे।

भविष्य अब भूत हुआ: मतलब इतिहास और जानलेवा होगा।

मुझे उससे प्यार हो गया : गये बेटा काम से।

कुछ अपने गिरेबां में झांको : और एकाध बटन लगा लो सब खुला दिखता है।
गन्दगी मे बचपन : जवानी और बुढ़ापा भी ऐसेइच बीतेगा क्या?

लेंगे दुसरा जनम हम : एक में एडजस्ट नहीं हो पा रहा मामला।

न इधर के, न उधर के : ज्यादा समझदारी में ऐसा ही होता है।

मैं भूत बोल रहा हूँ !! : सुनाई दी आवाज ? मतलब तू मेरा यार है।

क्या आपके यहां बेटी का पैर छुआ जाता है : जानते हुये अगर जबाब न दिया तो समझ लीजिये।

मेरी पसंद


खरीदा महंगा अर्पाटमैन्ट बहू बेटे ने
महानगर में,
प्रमुदित थे दोनों बहुत
मां को बुलाया दूसरे बेटे के पास से
गृह प्रवेश किया,हवन पाठ करवाया।
दिखाते हुए मां को अपना घर
बहू ने कहा, मांजी सब आपके
आशीर्वाद से संभव हुआ है यह सब
इनको पढ़ा लिखा कर इस लायक बनाया आपने
वरना हमारी कहां हैसियत होती इतना मंहगा घर लेने की
मां ने गहन निर्लिप्तता से किया फ्लैट का अवलोकन
आंखों में चमक नहीं / उदासी झलकी
याद आये पति संभवत: / याद आया कस्बे का
अपना दो कमरे, रशोई,एक अंधेरी कोठरी व स्टोर वाला मकान
जहां पाले पोसे बढ़े किये चार बच्चे रिश्तेदार मेहमान
बहू ने पूछा उत्साह से ,कैसा लगा मांजी मकान !
'अच्छा है, बहुत अच्छा है बहू !
इतनी बड़ी खुली रशोई,बैठक,कमरे ,गुसलखाने कमरों के बराबर
सब कुछ तो अच्छा है ,पर इसमें तो है ही नहीं कोई अंधेरी कोठरी
जब झिड़केगा तुम्हें मर्द, कल को बेटा
दुखी होगा जब मन,जी करेगा अकेले में रोने का
तब कहां जाओगी, कहां पोछोगी आंसू और कहां से
बाहर निकलोगी गम भुला कर, जुट जाओगी कैसे फिर हंसते हुए
रोजमर्रा के काम में ।'

दिनेश चन्द्र जोशी

Post Comment

Post Comment

8 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छा लिखा और आप की पसंद पसंद आई। लगता है पंगेबाज के सुदामा के अनेक संस्करण हो गए हैं, कम से कम दो तो हैं ही अंगूर की तरह।

    जवाब देंहटाएं
  2. चिच में तो छिच्छ (बेकार) को भी चमकाने का हुनर लगता है।
    इसे मस्कत्व न माना जाये; पर चिठ्ठाचर्चा है शानदार!:)

    जवाब देंहटाएं
  3. कनपुरिया म बौले तौ-अपन बिलाग इहा दीख केरी बड़ा नीक लागत है हमका ॥

    जवाब देंहटाएं
  4. धांसू च फांसू चिठ्ठा चर्चा है.
    जमाये रहिये जी.
    एक लाइना का तो जवाब नहीं.
    थोड़ा और बड़ा होना चाहिए.
    क्यों?

    जवाब देंहटाएं
  5. झूठ हमसे बोला नहीं जाता इसीलिए तो कहते हैं:

    आप इतना बढ़िया चर्चा करते हैं कि अच्छा लगता है इसे नियमित जारी रखें। :)

    जवाब देंहटाएं
  6. झूठ हमसे बोला नहीं जाता इसीलिए तो कहते हैं:-समीरलाल

    हर झूठ बोलने वाला यही कहता है -झूठ हमसे बोला नहीं जाता।

    जवाब देंहटाएं
  7. 'एक लाइना जरूर लिखने में मजा आता है। बाई डिफ़ाल्ट खुराफ़ाती दिमाग किसी पोस्ट का शीर्षक देखते ही ऐसे उछल पड़ता है जैसे कभी हाकिमों के दिल नजराना देखते ही प्रमुदित च किलकित हो जाता होगा। कभी -कभी कनपुरिया कलर ऐसी खतरनाक जुगलबंदी पेश करना चाहता है कि उसको पठनीय च पोस्टनीय बनाने में ही बहुत ताकत लग जाती है। मन बाबरा अलग कोसता है - हमारी अभिव्यक्ति पर अंकुश लगाने वाले तुम कौन होते हो?'

    अकुंश न लगाये जी। मन की बात सुने, आप के वन लाइनर तो इस चिठ्ठाचर्चा की जान हैं उन्हें और भी लंबा कर दें।
    इतने चिठ्ठे पढ़ने के लिए और फ़िर उन्हें यहां फ़िट करने के लिए आप की एनर्जी को सलाम तो करना ही पड़ेगा।

    जवाब देंहटाएं
  8. अजी आपकी एक लाईना ही तो कमाल है.. मज़ेदार.. आप तो बस जमाए रहिए..

    जवाब देंहटाएं

चिट्ठा चर्चा हिन्दी चिट्ठामंडल का अपना मंच है। कृपया अपनी प्रतिक्रिया देते समय इसका मान रखें। असभ्य भाषा व व्यक्तिगत आक्षेप करने वाली टिप्पणियाँ हटा दी जायेंगी।

नोट- चर्चा में अक्सर स्पैम टिप्पणियों की अधिकता से मोडरेशन लगाया जा सकता है और टिपण्णी प्रकशित होने में विलम्ब भी हो सकता है।

टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.

Google Analytics Alternative