ये लाल रंग
यह संयोग रहा पिछले कुछ चिट्ठाचर्चा के शीर्षक अनिल रघुराज की पोस्ट से प्रभावित रहे। अनिल रघुराज बेचैन ब्लागर हैं। समाज में होते हुये बदलाव पर नजर रखने का प्रयास करते हैं उनकी पड़ताल करने की कोशिश करते हैं। वे जो लिखते हैं, अपने को समझने के लिये लिखते हैं। उनके किसी लेख पर दिल्ली से किसी मित्र ने कुछ सवाल किये होंगे। जबाब में अपनी तकलीफ़ जाहिर करते हुये वे कहते हैं:तकलीफ होती है, इंसान हूं, सामाजिक प्राणी हूं। जिनके साथ कभी काम किया हो, देश-दुनिया बदलने के सपने देखे हों, उनकी दुत्कार से दिल को बहुत चोट लगती है, न जाने कितने खंडों में टूटकर सिसकने लगता है दिल। अरे, पूरी ज़िंदगी के ऊर्जावान दिनों को झोंककर यही तो पूंजी जुटाई थी हमने और ‘वही सूत तोड़े लिए जा रहे हो।
समय का सच बताते हुये वे लिखते हैं:
विकास में हिस्सेदारी की आवाज़ें ज्यादा मुखर हो गई हैं। एनजीओ की तादाद बढ़ गई है। क्रांतिकारियों की संख्या घट गई है। अवाम बंटता गया है। संगठन टूटकर बिखरते गए हैं। सभी संकरी गली से मंजिल तक पहुंचने की जुगत में हैं। सच्चे लोकतंत्र का एजेंडा पृष्ठभूमि में चला गया है। मजबूरी में कभी क्षेत्रीय ताकतों तो कभी मायावती में व्यापक अवाम का भविष्य देखना पड़ता है। विभ्रम पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गए हैं। हालात जटिल हो गए हैं। ऐसे में नहीं लिखूं तो क्या करूं?
एम.सी.मेहता
भारत में पर्यावरण की रक्षा के लिये सतत प्रयत्नशील वकील एम.सी.मेहता के बारे में लिखते हुये भुवनेश बताते हैं:
महान पर्यावरणवादी वकील एम.सी मेहता (महेश चंद्र मेहता) ने विगत वर्षों में कई ऐतिहासिक मुकदमों के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में मिसालें कायम की हैं जिस से पर्यावरण प्रेमियों को आगे बढ़ने और लगातार प्रयास करते रहने को प्रेरित किया है, और इस कहावत को गलत सिद्ध किया है कि ‘अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता’।
लेखन एक प्रभावी उपचार है। रंजना सिंह इस बात को अपनी पोस्ट में विस्तार से बताती हैं।
एक बेहतरीन शुरुआत:नेस्बी
जानकारी बढ़ायें: तारे, उनका वर्गीकरण, और वे क्यों चमकते हैं
अब चंद एक लाइना
प्रीती बङथ्वाल
मेरे आगोश में........ : किसकी बिलखती परछाईयां हैं।
विनय शर्मा की एक सस्ती ग़ज़ल : भाव तो बताओ जी कै पैसे किलो है?
विश्वास के बावजूद पढ़िए, यह मेरा ब्लॉग है : पढ़ तो रहे हैं। कुछ लिखेंगे भी कि कसमे वादे ही करते रहेंगे!
तारे, उनका वर्गीकरण, और वे क्यों चमकते हैं : जबकि उनको मिलना चवन्नी नहीं है।
सीना चौड़ा हो जाता होगा, है ना? : हां भाई, बनियाइन तक फ़टने लगती है।
कश्मीर को संभालो : मार बवाल मचाये है हफ़्तों से।
मैं पैर छूने के खिलाफ़ नहीं हूं: बदल गयी पार्टी!
मैं एक भारतीय : इसीलिये दफ़्तर के बाहर चाय पकौड़ा खा रहा था।
टेरर का मोबाइल सोल्यूशन : आतंकवाद के सफ़ाये की गारंटी।
हे भगवान! फिर दूध पी रहे हैं गणेशजी : और कह रहे हैं -ये दिल मांगे मोर।
ब्लॉग से कमाना है तो ब्लॉग को सजाना है : यही तो एक कहानी है , अजीब सा फ़साना है।
ईश्वर का एक खुला पत्र उड़न तश्तरी ( समीर लाल) के नाम : वाहियात, एक ब्लागर की मासूम चाहत नहीं पूरी कर सकते। जबकि उस पर १०० लोगों के दस्तखत हैं।
कौन कहता है की भारतीय नारी कमजोर है.. : हिम्मत है तो कह के देखे।
जो भी रास्ता पकड़ो, वह कहीं न कहीं जा कर बंद हो जाता है। : बड़ी आफ़त है।
अभिनव बिंद्रा से दुखी (?) लोग: इससे पता चलता है कि हिम्मत और लगन से हर जगह दुखी हुआ जा सकता है।
रायपुर प्रेस क्लब में पहुचे ब्लागर्स :और मीटिंग करके फ़ूट लिये।
भारत एक मीटिंग प्रधान देश है: हम इसे समस्या प्रधान बनाने में जुटे हैं।
लौटा सकोगे क्या : लौटा भी दोगे तो उस पर ब्याज तो नहीं ही दोगे।
चाहतें मेमने सी भोली हैं, जमाना बड़ा कसाई है: चाहतें शेर सी होती तब भी जमाना यही करता। समभाव से काटता।
मेरी पसन्द
चाहतें
प्यार की तान जब सुनाई है
भैरवी हर किसी ने गाई है
लाख चाहो मगर नहीं छुपता
इश्क में बस ये ही बुराई है
खवाब देखा है रात में तेरा
नींद में भी हुई कमाई है
बाँध रख्खा है याद ने हमको
आप से कब मिली रिहाई है
जीत का मोल जानिए उस से
हार जिसके नसीब आई है
चाहतें मेमने सी भोली हैं
पर जमाना बड़ा कसाई है
आस छोडो नहीं कभी "नीरज"
दर्दे दिल की यही दवाई है
नीरज गोस्वामी
वाह, क्या बेहतरीन चर्चा रही, आनन्द आ गया, नियमित जारी रहें, मुझे बहुत अच्छा लगता है. :)
जवाब देंहटाएंजरा भी देर होती है चर्चा आने में, मन खराब लगने लगता है. आभार आपका आप ख्याल रखते हैं . :)
चर्चा बड़ी ग़ज़ब की रही.. नेस्बी को इसमे शामिल करने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंशुक्ल जी आपका धन्यवाद ब्लॉग पर आने के लिए
जवाब देंहटाएंलिंक पर क्लिक करने पर दूसरे ब्लॉग का पता आरहा है अनूप जी, ये क्या गोलमाल है, क्या गड़बड़झाला है।
जवाब देंहटाएंPreeti ji, Galti ke liye afsos. Bhool shudhar kar diya. Photo bhee laga dee.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनूप जी,
जवाब देंहटाएंफोटो लगाकर भरपाई अच्छी की है आपने
लाइना पढ़ ली है सर जी.....
जवाब देंहटाएंआपकी चर्चा काफी अच्छी लगने लगी है और आगे भी ऐसे ही जारी रखिएगा।
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