आज इतवार है। चर्चा करने में टाल-मटोल कर रहा है मुआ मन। ई-स्वामी ने लगता है मेरी मन:स्थिति भांप कर ही ये लेख लिखा है। स्वामीजी बताते हैं कि भारतीय लोग आमतौर पर कामटालू होते हैं:
अधिकतर भारतीय न्यूनाधिक रूप से इस समस्या के शिकार हैं, कुछ जानते हैं और इसके पाश से मुक्त होना चाहते हैं और दूसरों के लिये तो जैसा की कहा, यह जीवनशैली ही है. स्वयं उसे अपनी इस जीवनशैली से मुक्त होने में बहुत ज़ोर और मेहनत लगी.
<- बगल की फोटो में देखिये लैपटाप का कैसे उपयोग किया जा सकता है।
नेस्बी के लिये अपनी पहली पोस्ट लिखते हुये पल्लवी त्रिवेदी ने अपने काम से जुड़े कुछ अनुभव बताये। पुलिस की नौकरी में होने के बावजूद उनकी संवेदनशीलता और ईमानदारी ने पाठकों को सबसे ज्यादा प्रभावित किया। श्रीमानव्यंगेश्वर कथा सुनाकर पल्लवी ने बताया कि कैसे समाज की विसंगतियां एक व्यंग्यकार के लिये बेहद जरूरी हैं।
प्रत्यक्षाजी आजकल यात्रा वृत्तान्त बता लिख रही हैं। औरत हैट और तैमूर में वे पत्तियों में कोई इमेज देखती हैं, लैंडस्केप देखती हैं, ठंडे फर्श पर पट लेटे गाल सटाये आँखें मून्दे मैं सिल्वियो को सुनती हैं, भरोसा करना चाहती हैं पता नहीं किस पर ? शायद खुद पर!
प्रत्यक्षाजी की खास मांग पर बेताल शिखर से ली फाक की कहानी "जादूगरनी का शाप" पेश होती है।
अमृताप्रीतम के जन्मदिन के खास मौके पर उनकी याद में ब्लाग शुरू करके उनको जन्मदिन की मुबारकबाद दी गयी।
जीतेंद्र चौधरी काफ़ी दिन बाद सक्रिय हुये। मछली पकड़ने वालोंझेलाये और अपने सिन्धी ब्लाग पर भी पोस्ट ठेल दिये।
एक हिन्दुस्तानी ने भगवान का अर्थ बताया -पति यानी शौहर! द्विवेदीजी ने सही अर्थ बताया। सुधीजनो ने द्विवेदीजी को साधु-साधु कहा और हिन्दुस्तानी को धत-धत!
अभय तिवारी वाल-ई में हॉलीवुडीय कचड़ा के बारे में मजेदार जानकारी देते हैं। वे फ़िल्म के माध्यम से बताते हैं:
एक्सिऑम पर मनुष्य हैं जो पृथ्वी के नष्ट हो जाने के बाद से हज़ारों साल से किसी ऐसे ग्रह की तलाश में हैं जिस पर रहा जा सके। इस यात्रा का उनकी बोन डेन्सिटी पर इतना अधिक दुष्प्रभाव पड़ा है कि वे खड़े तक नहीं हो सकते और अपने सभी कामों के लिए रोबोट पर निर्भर हैं। अमरीकी जीवन(और धीरे-धीरे शेष दुनिया) जिस बीमारी की चपेट में फूलता जा रहा है उस मैक्डॉनाल्ड संस्कृति की एक भयावह तस्वीर दिखती है यहाँ.. जो मशीनीकरण और बाज़ारीकरण की एक अच्छी टीप है।
मुकेश खन्ना की जबानी आप आगे की कहानी सुनिये।:
लेकिन भीष्म पितामह की आत्मा से अगर मुझे किसीने मिलाया तो वे पँडित नरेन्द्र शर्मा ही थे !उनके पास मैँ जितनी बार बैठा, कुछ ज्ञान अर्जित करके ही उठा ।
द्विवेदीजी की पोस्टों के शीर्षक जित्ते लम्बे होते हैं उत्ते में हमारे आदि चिट्ठाकार आलोक कुछ पोस्टें लिखते हैं/थे। द्विवेदीजी की आज की पोस्ट का शीर्षक है- 'तीसरा खंबा' का अभियान रंग लाया............... न्यायिक सुधार बनेंगे आगामी चुनावों का केन्द्रीय मुद्दा
फ़ुरसतिया ने खराब लिखने के फ़ायदे बताने की कोशिश की तो इस पर डा.अरविन्द मिश्र का कहना था:
आपके आज तक के लेखन का सबसे घटिया /खराब आलेख ..अब आप चुक रहे हैं शुक्ल जी !सच काहा आपने जो शीर्ष पर पहुंचे हुए होते हैं उन्हें दुश्चिंताएं घेरे रहती हैं -लुढ़क जानें की …..घबराएं नहीं मैं अब टीपता रहूंगा आप को जमींदोज होने से बचाने के लिए —त्रिशंकु तो बनही रहेंगे हमारे टिप्पणी बल से …..अब आपण तेज संभालो आपही -दूसरों को टिप्पणी बल देने का समय अब खत्म हुआ आपका -अपनी गद्दी बचाईये !अनूप शुक्ल अपनी गद्दी की चिंता करते इसके पहले ही उनको अपने समर्थन में खड़े ब्लागर हर्षित गुप्ता दिख गये। जो कहते हैं:
Actually, मैं ये सोच नहीं सकता था कि कोई इतने मजेदार तरीके से ख़राब लिखने के फायदे यानी benefits of writing bad, बता सकता है। ऊपर से इस subject पे एक blog भी बना सकता है।अनूप शुक्ल खुश हो गये। लेकिन खुशी के गुब्बारे में जी.विश्वनाथजी ने पिन चुभा दिया और ब्लाग न लिखने के २१ फ़ायदे गिना दिये। मतलब बुजुर्गाना सलाह दी कि बेट्टा, ब्लागिंग छोड़ो ,मौज से रहो।
आलोक पुराणिक कहते हैं- कमीशन वाले ’पे’ की चिंता नहीं करते और ’पे’ वालों को कमीशन मिलता नहीं। छ्ठा वेतन आयोग उनके सामने एक्सरे करवाने आया तो उन्होंने नतीजे निकाल दिये:
संभव है कि आने वाले कुछ सालों में वेतन आयोग की प्रासंगिकता ही खत्म हो जाये। सरकार में रोजगार इतने कम हो जायें, कि वेतन आयोग का रोल ही बहुत कम हो जाये। वेतन आयोग से बाहर के असंगठित श्रमिकों के मसले इतने बड़े और इतने उलझे हैं कि वह एकाध आयोग के नहीं, कई आयोगों के दायरे में समायेंगे। पर उनकी चिंता करने की जरुरत आम तौर पर समझी नहीं जाती, क्योंकि वे सब के सब भारत के बंगलादेश या युगांडा में रहते हैं।
एक लाइना
मेरी पसंद
वह फुटबॉल का खिलाड़ी है
गेंद को किक मारता है हर रोज़
एक रोज़
उसने किक मारकर प्यार को ऊपर आसमान में पहुंचा दिया
वह वहीं रह गया
चूंकि वह कभी नीचे नहीं आया
लोगों को लगा यह सूरज है
या चांद या फिर कोई नया सितारा
मेरे भीतर एक गेंद है
जो कभी नीचे नहीं आती
लटकी रहती है आसमान के बीचोबीच
आप देख सकते हैं उसे लपट बनते हुए
प्यार या सितारा बनते हुए
काजुको शिराइशी गीत चतुर्वेदी के सौजन्य से
.
जवाब देंहटाएंअरे ददू, आपने तो मरवा ही दिया,
मेरे दमदार पोस्ट का दम निकवा दिया, वह भी मेरे ही हाथों..
और आज की नामुराद सुबह ’ मैं ऎसा क्यूँ हूँ ... ’ पढ़ लिया
सो अपनी पोस्ट छोड़-छाड़ यहाँ विंडो पीपिंग में टाइम खोटी
कर रैया हूँ ।
बलिहारी गुरु आपनो...पोस्टिंग दियो छोड़ाय !
लिंक वाले ब्लॉग पर झांक लिया; नहीं तो चक्कर में थे कि जीर्ण शीर्ण कानपुरिया स्टेशन इतना चमकौआ कैसे हो गया; जैसा फोटो में है।
जवाब देंहटाएंचिठ्ठा चर्चा पर हर्ष और उस लैपटॉप पर तरस के भाव हैं!:)
अच्छी बात है आप सावधान हो गए ...विश्वनाथ जी की बात पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत नहीं है वे ब्लॉग विरोधी खेमें के हैं !
जवाब देंहटाएंआप की पसंद शानदार है, जी।
जवाब देंहटाएंशानदार आलोचना लगी। अब तो कई बार यहीं से आज के मुख्य ब्लॉग पढ लिया करता हूँ।
जवाब देंहटाएंBahut khub.
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंयहाँ दुबारा टिप्पणी करने की होती है ?
ज़ाहिर सी बात है, मामू की सुबह तो यहीं होती है, सो..
बासी माल फिर से पढ़ रहा था, अलाय बलाय पढ़ने से तो बेहतर ही है
और बेहतर रहा भी.. अब उस्ताद को भी बताना ज़रूरी है, सो..
एक ज्ञान की प्राप्ति हो गयी
यह ज़नाब, जो देखने में बेपेंदी के भले लगते हों
एक संदेश दे रहे हैं .. इस मशीनी गुलामी के दौर में भी..
कम्प्यूटरवा रखो पेंदे के नीचे..
किताब और किताबत मत भूलो
मानो या न मानो, भाई मैंने तो कह दिया !
bahut khoob....pasand bhi achchi hai...
जवाब देंहटाएंआपने चिठ्ठाचर्चा पर "मुकेश खन्ना की महाभारत " सीरीज़ से जुडी यादोँ की कडी को जगह दीँ हैँ
जवाब देंहटाएंउसके लिये आभार !
स स्नेह,
- लावण्या