कल बड़ा लफ़ड़ा होते-होते बचा। हुआ ये अनिल रघुराज कुछ बुराई भलाई कर रहे थे सेकुलरिज्म की। कहने लगे:
कहा जाता है कि ठहरे हुए को चलाने के लिए तो हर कोई उंगली करता है, लेकिन जो चलते हुए को उंगली करे, समझ लीजिए वो कनपुरिया है।हम तो कुछ नहीं बोले लेकिन तमाम कनपुरिया बमक गये बोले अनिल रघुराज का काम लगा दें का? हम बोले- रहन दो यार ब्लागर डिस्काउन्ट दे दिया जाये। बोले, नहीं! कुछ तो काम लगाना ही पड़ेगा इनका वर्ना ई तो कुच्छौ कहि के चले जायेंगे, अगली पोस्ट लिखेंगे। हम बोले- जाय द रजा, पान घुलावा
कनपुरिये तो चूंकि समझदार होते हैं, मान गये लेकिन तमाम लोग अभी तक फ़िरंट हैं। सुरेश चिपलूनकर कहते भये:
खुद की गिरेबान में झाँकने की बजाय, “सेकुलरिज़्म” का बाना ओढ़े हुए ये “देशद्रोही” हर घटना के लिये RSS को जिम्मेदार ठहराकर मुक्त होना चाहते हैं।आगे मामला और क्या हो सकता है देखिये जी:
जल्द ही वह दिन आयेगा जब “सेकुलर” शब्द सुनते ही व्यक्ति चप्पल उतारने को झुकेगा…
डा.अमर कुमार इत्ता झुल्ला गये अरविन्द मिश्र की टिप्पणी छुट्टी से कि टिप्पणियै बन्द कर दिहिन। लेकिन लोग न जाने कैसे टिपिया गये। उधर साध्वीजी ने बताया कि दो चिट्ठाकार की टिप्पणी हड़ताल से क्या अंतर पड़ जाने वाला है, सब वैसा ही चलता रहेगा!
अजित को न जाने क्या हुआ कानून का डंडा फ़टकारने लगे। इस पर गिरीश बिल्लौरे सवाल उठाने लगे:
नागफनी जिनके आँगन में
उनके घर तक जाए कौन ?
घर जिनके जले मकडी के
रेशम उनसे लाए कौन !
मनीषा कहती हैं:
एक कतरन सूरज की
हम मुट्ठी में छुपाये हैं।
फिर जब भी चाँद रात में
बादल से छाये हैं।
प्रीति बडथ्वाल कहती हैं:
ये हवाऐँ छेङती है,
क्यों मुझे कुछ इसतरहां
सिमटा हुआ आँचल मेरा,
मचल उठता है बादलों में।
अब बताओ प्रीति जी हवाओं से छेड़े जाने की शिकायत कर रही हैं और उधर कनाडा से समीरलाल कह रहे है- वाह! बहुत सुन्दर। बताइये भला ये भी कोई बात हुई। अभी कोई और प्राणी ऐसी हिमाकत करता तो द्विवेदीजी उसका हिसाब कर देते। लेकिन ये तो भाई ’टिप्पणी सम्राट’ कहलाते हैं। जो मन आये टिपियायें कोई बोलने-रोकने-टोंकने वाला नहीं है। समरथ को नहीं दोष ब्लागर भाई!
संजय बेंगाणी लोगों के दुबले होने के पागलपन के बारे में लिखते हैं:
मॉडलों को छोड़ ही दें, उनको रोल-मॉडल के रूप में देखने वाली महिलाएं जीरो फिगर (यह अमरीकी कपड़ो का नाप है. वैसे 5फूट 4 इंच या उससे लम्बी नारी के लिए 31.5-23-32 का प्रमाण जीरो फिगर माना जाता है.) पाने के जुनून में अपने आप पर अत्याचार कर रही है. औसत से कम वजन होते हुए भी वजन को और कम करते रखने की सनक यानी एनोरेक्सिया स्वास्थय सम्बन्धी खतरे पैदा कर रहा है. खून की कमी, सर दर्द, चिड़चिड़ापन, थकान जैसी शिकायतें छरहरी काया के साथ पैदा हो रहे है. शरीर को कंगाल बना देनी की वृति अब सरकारों को भी चिंता में डाल रही है.
संस्मरण: महाभारत के भीष्म -मुकेश खन्ना के
बेहतरीन पोस्ट: पापा आई लव यू !
बधाई: किरण देवी सराफ ट्रस्ट के सहयोग से कवि कुलवंत सिंह की काव्य पुस्तकों "चिरंतन" एवं "हवा नूँ गीत" (पूर्व काव्य संग्रह निकुंज का गुजराती अनुवाद - श्री स्पर्श देसाई द्वारा) का विमोचन समारोह कीर्तन केंद्र सभागृह, विले पार्ले, मुंबई में २१ अगस्त, २००८ को संपन्न हुआ। हमारी बधाई!
आज का कार्टून बामुलाहिजा से
राजेन्द्र राजन अफ़लातून की के पसंदीदा कवि हैं। हम लोगों के भी। आज उनकी दो कवितायें पोस्ट हुयीं। तीसरा आदमी और बहस में अपराजेय। केदारनाथ सिंह की कविता मातृभाषा पर दो मजेदार कमेंट दिखे।
केदारनाथजी जैसे वरिष्ट कवि को १९६७ में मातृभाषा नहीं दिखी । कम्युनिस्ट पार्टियों को तब
अफ़लातून उवाच:
भाषा का सवाल समझ में नहीं आ रहा था। एस.यू.सी जैसे समूह तो ऐलानिया अंग्रेजी के हक़ में थे।
प्रत्यक्षा उवाच:ओ मेरी भाषा … ये पंक्तियाँ हमेशा चमत्कृत करती हैं । अपनी एक कहानी में मैंने इन पंक्तियों को उद्धरित किया था और केदारनाथ जी के उस कहानी पर फोन ने उस कहानी की सार्थकता बढ़ा दी थी। इन्हें पढ़ना हमेशा अच्छा लगता है ।
आप भी कुछ कहना चाहते हैं क्या!
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वोट और सत्ता के चक्रव्यूह में फँसी हिंदी: कह रही है क्या मम्मी!! कहां फंसा दी??
हलवा-प्रेमी राजा : टिप्पणी खा रहा है।
चिट्ठाचर्चा आज शाम : करके ही मानोगे? एक दिन तो चैन लेने दो यार!
तुम्हारे बिना :कैसे इत्ता उदास हो सकते थे?
रिश्ते और 24 कविताएँ : पढो़गे? सोच लो ?
कोई गीत नहीं बन पाया : तो हम का करें? मना किया था ब्लागिंग मती करिये।
विधवा अपने नौकर के साथ विवाह करना चाहती है, आप की क्या राय है? :नौकर बेचारे से भी पूछ लें। बिना शादी के थाने ले आई, शादी के बाद क्या होगा?
जब नेपाल डुब रहा था तो प्रचण्ड चीन की बांसुरी बजा रहे थे: उसी को सुनते हुये लिखी गयी ये पोस्ट!
जापानी तरीका फोटो खींचने का : जैसे निपट-निपटा के उठे हैं। अनुसंधान का नतीजा बताओ जी।
जिस रोज मुझे भगवान मिले: हमने उनसे शिकायत की- आपने हमारे ब्लाग पर कमेंट क्यों नहीं किया। जाइये हम आपसे बात नहीं करते।
नाजुक सी नादानी : डा.चन्द्र कुमार जैन की जबानी।
नयी पीढ़ी नहीं जानती फैंटम और मैन्ड्रेक को : जान जायेगी यार, ये फ़ैंटम और मैन्डैक अभी-अभी तो आये हैं ब्लागिंग में।
पहली बार अच्छा लगा कोई पीली बत्ती वाला: और बत्ती हरी हो गई।
टीम इंडिया ने रच दिया इतिहास :अब बिगडेंगे इनके दिमाग के भूगोल।
पैगाम तुम्हें मैं भेजूंगी : लेकिन कहीं आ न धमकना।
जहां पेंग्युन भी उड़ सकती हैं: ऐसा है उन्मुक्त ब्लाग!
लौट आती है इधर को भी नजर क्या कीजै : करना क्या है देखना है, झेलना है।
दागी पुलिसकर्मियों की बहाली से इंकार किया उच्चतम न्यायालय ने : कहा होगा-ठीक से दाग के लाओ।
इश्क में कहीं के न रहे : बहुत बुरा हुआ,’बाई द वे’ इश्क के पहले कहीं के थे क्या?
माता पार्वती ने ख़ुद ही जलाई कुटिया : शंकरजी फ़ायर ब्रिगेड को फ़ोन मिला रहे हैं!
बिहार में प्रलय...लेकिन क्या है उपाय?: फ़गत ब्लाग लिखने के सिवाय!
शब्दों के फ़ूल कभी नहीं मरझाये : इसमें किलो भर टैग लगे हैं भाय!
अब नन भी दिखाएगी अपनी सुंदरता:बाद में ’कन्फ़ेश’ हो होगा ही रूटीन वे में।
विशेष जानकारी नवनिर्मित ब्लाग पर मिलेगी।
मौसमी बुखारी बयारों के बीच हाईकू..: को दबोच के पोस्ट पर चेंप दिहिन ठाकुर परमोद कुमार सिंह गांगुली। टें बोल गया होगा अब तक।
नहीं पता था कि ईसाई इतने फटेहाल भी होते हैं : ये हाल हैं एक हिंदुस्तानी के। उसको ये भी नहीं पता कि ईसाई कैसे होते/बनते हैं अपने यहां।
मेरी पसन्द
जैसे चींटियां लौटती हैं
बिलों में
कठफोड़वा लौटता है
काठ के पास
वायुयान लौटते हैं एक के बाद एक
लाल आसमान में डैने पसारे हुए
हवाई अड्डे की ओर|
ओ मेरी भाषा
मैं लौटता हूं तुम में
जब चुप रहते-रहते
अकड़ जाती है मेरी जीभ
दुखने लगती है
मेरी आत्मा ।
केदारनाथ सिंह
और अंत में
हम सबेरे कह तो दिये कि शाम को चर्चा करेंगे। लेकिन शाम को आसन संभालते-संभालते बज गये नौ। हमने कहा चर्चा किया जाये? लैपटाप बोला- हौ! हम कहा -हाऊ इस योर नेट? लैपटाप बोला- वेल सेट। हम बोले -यार कल करे? सुबह सबेरे। तब तक कहौ समीरलालजी भी अपनी किस कथा के आगे कुछ मिस कथा ले आयें। शिवकुमार मिसिर हो सकता हैहलवा के साथ पूड़ी भी ले आयें। लेकिन लैपटाप बोला- सोचि लेव आप! सबेरे कहा था शाम को करेंगे। शाम को कहोगे सुबह तो लोग कहेंगे कि ब्लागर है कि नेता। या कि प्रियंकर? जो साल भर से नियमित लिखने का वायदा कर रहे हैं और (नियमित )नहीं ही लिख नहीं रहे हैं। इस लिये हे ब्लागरों श्रेष्ट अपने वचन का निर्वाह करो और लिखो। मत सोचो कि दिनेशराय द्विवेदी सबेरे पेट गुड़गुड़ाते हुये क्या कहेंगे कि चर्चा मन लगा के करनी चाहिये। यह सोचो कि अगर चर्चा सबेरे डा.अमर कुमार को न दिखी तो उनके पेट के क्या हाल होंगे। इसलिये हे ब्लागरों में ब्लागर, चर्चाकारों में परम चिरकुट लेटो बिस्तर और तकिया पेट के नीचे दबाकर मुस्कराते हुये चर्चा करना शुरू कर। इससे बचने का कोई उपाय नहीं है।
हम अपने लैपटाप का कहना मान के अपने दिये वचन का निर्वाह करके चर्चा को रात 1155 पर ठेल दिये। एक सबेरे की नहीं की तो दिन में तीन करनी पड़ीं। इसे कहते हैं- सब पापों की सजा यहीं मिल जाती हैं।
इति श्री चर्चा पुराण समाप्त:
हवा = समीर
जवाब देंहटाएंहम तो हवाओं को कह रहे थे : वाह! बहुत सुन्दर।
:)
बहुत बेहतरीन चर्चा. आनन्द आ गया.
वन लाइनर में- ठाकुर प्रमोद सिंग गांगुली--हा हा!! गजब!
बताओ भला आज तो सरे शाम इहां भी एक लोकल कनपुरिए जो झेले फिर अभी फिर से, हमसे बड़ा जिगर वाला है का कोई?
जवाब देंहटाएंआपकी लेखन ऊर्जा, ब्लाग यायावरी और लगन को शत् शत् नमन् है अनूप जी....
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंछोड़ो जी, दिन भर भटकते रहे.. सबको पकड़ पकड़ पूछते रहे, ’ हे खग मृग, हे लघुकर...
जायें तो जायें कहाँ, कोई बताने वाला नहीं..
अउर..पादत पादत जियु निकरा ऊई अलग
अबहिन झाँके आये कि गुरु आज चुप्पे-चर्चा तो नहीं ठोंकि गये,
सो देख लिया.. कुछ पढ़ लिया.. अब कुछ टीप के, जाय रहें सोने
अनूप जी फिर से वन लाइनर और अंत में दोनों पढ़कर अच्छा लगा। और आपकी शिक्षा रूप में हमने भी एक ठेल दी।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनूप भाई -
जवाब देंहटाएंमुकेश खन्ना के सँस्मरण की कडी देने के लिये -
आशा है, आपको और अन्य सभीको ये पसँद आई --
- लावण्या
मजेदार वन लाइना... !
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया रही आज भी..
जवाब देंहटाएंवाकई मौजदार रही चर्चा।
जवाब देंहटाएंधमाकेदार चर्चा...
जवाब देंहटाएंऔर ये तो लाजवाब है..
जिस रोज मुझे भगवान मिले: हमने उनसे शिकायत की- आपने हमारे ब्लाग पर कमेंट क्यों नहीं किया।
apni batti hari ho gayi,badhiya bahut badhiya
जवाब देंहटाएंआज त घणे मजे आ गे आडै शुक्ल जी !
जवाब देंहटाएंलत पड़ ज्यागी यो चिठ्ठा चर्चा पढण ,
की त रोज टाइम त लिखना पड़ेगा ! इब
छुट्टी नही चलेगी ! राम राम ! म्हारै दोनूं
गुरुआ न साष्टांग दंडवत परनाम !
कड़ी अलग बिण्डो में खुले तो सही रहे. कोई जूगाड़ बिठाओ जी.
जवाब देंहटाएंआज की लाइन
जवाब देंहटाएंरिश्ते ओर २४ कविताएं ....पढो़गे? सोच लो ?
हा....हा.......हा.......
जब उड़नतश्तरी को खुद मजा आ रहा है, तो हमें तो उसकी उड़ान देखकर मजा आ रहा है। आैर सच तो ये है कि अनूप जी के अखाड़े में हिंदी के पहलवानों को मजा आ रहा है।
जवाब देंहटाएंब्लागर्स के लिए इतना कम है क्या कि उनके ब्लाग्स पर कोई
जवाब देंहटाएंतप्सरा किया जावे चर्चा हो शब्द कम हैं
शुक्रिया आभार धन्यवाद उत्साह वर्धन के लिए
अनूप जी आपकी 'एक लाइन'चर्चा अच्छी लगी, और अंत में दी गई शिक्षा के लिए धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंएक्सीलेण्ट चिठ्ठाचर्चा!
जवाब देंहटाएंआप की वादा परस्ती के कायल हो गये जी, शाम को बोले तो शाम को चिठ्ठा चर्चा किए चाहे मन था य नहीं। आप की ब्लोग ऊर्जा के भी एक बार फ़िर से कायल हुए। अब लोग आप को सम्राट, बादशाह वगैरह न कहें तो क्या कहें।
जवाब देंहटाएं