प्रेमचंद
कल कलम के सिपाही प्रेमचंद का जन्मदिन था। शोभा महेन्द्रू जी ने प्रेमचन्द जी के बारे में जानकारी दी। सुशील कुमार छौक्कर ने प्रेमचंदजी से जुड़े दो रोचक किस्से पेश किये।
31 जुलाई को ही हिंदी के प्रख्यात आलोचक नामवर सिंह जी का जन्मदिन होता है। हम नामवरजी के दीर्घायु होने की कामना करते हैं।
कल ही प्रख्यात गायक मो.रफ़ी की पुण्यतिथि भी थी। इस अवसर पर युनुस खान ने रफ़ी जी से बातचीत का एक दुर्लभ पाडकास्ट पेश किया।
बालेन्दु दाधीच इसी साल मार्च में बिल गेट्स से मिले। उन्होंने अपनी मुलाकात के बहाने बिल गेट्स के बारे में लिखा:
उन्होंने दो अहम बातें कहीं। पहली यह कि तीस साल तक सॉफ्टवेयर की दुनिया में सबकुछ करने के बाद भी मुझे लगता है कि कितना कुछ करना बाकी है। दूसरे, उन्होंने गूगल की उभरती हुई चुनौती को विनम्रता से स्वीकार करते हुए छलकते हुए आत्मविश्वास के साथ कहा कि ‘लेकिन अभी माइक्रोसॉफ्ट की क्षमताओं का परीक्षण नहीं हुआ है। जो लोग हमें चुका हुआ करार दे रहे हैं, उन्हें हम अपनी क्षमताओं और तकनीक से आगे भी चौंका देने की क्षमता रखते हैं।‘ बाद में रेडमंड स्थित माइक्रोसॉफ्ट मुख्यालय में वास्तव में बहुत सी चौंकाने वाली तकनीकों को साक्षात् देखने और अनुभव करने के बाद महसूस हुआ कि माइक्रोसॉफ्ट और उसे संस्थापक को इतने वर्षों से जानते हुए भी हम कितना कम जानते हैं। दोनों के भीतर ऐसा बहुत कुछ है जो अभी बाहरी दुनिया में देखा जाना बाकी है।
कुश अपने तरह के एक खास ब्लागर हैं। अपने साथ काफ़ी पिलाते हुये उन्होंने कई ब्लागरों से परिचय कराया। पिछले दिनों नीरज गोस्वामी से मुलाकात करवायी। उनके ब्लाग का कलेवर नया-नया सा और आकर्षक हो गया। पता चला कि नीरज गोस्वामी अपनी बचपन की साइकिल की किस्तें अभी तक चुका रहे हैं:
साईकिल ना होती तो पता नहीं क्या होता...कालेज के अन्तिम
वर्ष की बात है अपनी पडोसन (अरुणा...अब तो आप पहचान ही गए होंगे) से उसकी नई की नई साईकिल मांग कर कालेज फ़िल्म देखने गया वहां नई साईकिल कोई चुरा ले गया...वापस मुहं लटका के घर आया तो पडोसन ने कहा कोई बात नहीं...मैंने कहा मैं इसकी भरपायी कैसे कर पाउँगा...??? उसने कुछ कहा नहीं....लेकिन बाद में मेरी पत्नी बन के घर आगयी...साइकिल की भरपायी करने जो अभी तक नहीं हो पायी है. हा हा हा.
लगता है इसीलिये दिल्ली सरकार ने साइकिल खरीदने के लिये अब तमाम तरह की जानकारी लेना जरूरी कर दिया है।
कुश ने मंहगाई पर चार लोकप्रिय ब्लागरों की लेखन शैली में अपनी बात कही। इन लोगों को कुश की सेवायें लेकर अपने कुछ लेख उनसे लिखवाने चाहिये।
कल ज्ञानजी को यह भय हुआ कि उनके पास कहने को कुछ बचेगा भी कि नहीं। कुछ लोगों ने उनसे कहा भी कि डर लगे तो गाना गा लेकिन वे गाने को तैयार ही नहीं हैं। कहते हैं कि वे कोई टोबा टेकसिंह हैं जो गाना गायें। बाद में पता चला कि ज्ञानजी डरे हैं ही नहीं वे तो भयभीत हैं। डरने के मुकाबले भयभीत होना उन्होंने क्यों पसंद किया? इसका कारण खोजने पर पता चला कि मानस पारायण सुनते हुये उन्होंने कहीं सुन लिया- भय बिनु होय न प्रीति। उन्होंने इस पर ’पलट अभियान्त्रिक’ (बोले तो रिवर्स इंजीनियरिंग) भिड़ाते हुये सोचा कि अगर भयभीत हुआ जाये तो प्रीति का हिसाब बन सकता है। और वे तड़ से भयभीत हो गये। उनके इरादे की झलक उनके लेखन से स्पष्ट है:
मैं अगर २५ साल का जवान होता तो यह न सोचता। उस समय शादी न हुई होती तो और अच्छा - रोमांस पर ठेलता। पर अब तो यदा-कदा लगता है कि कहीं हलचल की बैण्डविड्थ संकरी तो नहीं होती जा रही है।आज अभी तक ज्ञानजी की पोस्ट अभी तक नहीं आयी। लगता है वे अपने मकसद में कामयाब हुये और मंजिले मकसूद की तरफ़ बढ़ लिये।
बम
आगे कुछ कहें उसके पहले कीर्तिश भट्ट का बनाया यह कार्टून देख लीजिये- दिल्ली में पिछले दिनों सांसदों की बिक्री हुयी। उसी झपेटे में पंगेबाज ने सोचा कि शायद चेले भी काम आयें सो उन्होंने सुदामा को बुला लिया दिल्ली और उससे न जाने क्या करवा रहे हैं।
बालकिशन जी ने पता नहीं लोगों की प्रतिक्रिया को किस रूप में लिया और अपनी खोज पेश कर दी:
नहीं कोई नहीं खोज सकता अकेले उन्हें
तुम सबको हम सबके साथ मिलकर खोजना होगा
उन्ही चिन्हों को, हमारे अपने चिन्हों को,
हमारे अपनों के चिन्हों को,
हमारे आदर्शों को.
रचनाजी अपने दुख से उबरने की कोशिश करती हैं:
एक असामयिक मौत, कई जिन्दगियाँ निगल जाती है.
सपने टूट जाते हैं, आशाएँ पिघल जाती हैं..
अँधेरी रात का सन्देश दे, शाम सूरज ढल जाता है,
एक रोशनी भरा दिन हाथ से फिसल जाता है..
डा. अनुराग के पोस्ट शीर्षक विनोद कुमार शुक्ल की किताबों की तरह होते हैं( दीवार में खिड़की रहती है ) आज का उनका शीर्षक है हर परिंदा डाल पे सहमा हुआ के आसमां भी जात पूछकर रास्ता दे रहा | देखिये क्या कहते हैं वे:
मैंने ढेरो ऐसे लोगो को देखा है जिनकी शेल्फ बड़ी बड़ी किताबो से भरी है जो ढेरो ज्ञान इधर उधर बांटते है ,जिनकी व्यवहारिकता ओर वाक्पटुता के लोग कायल है ,जो समाज के बड़े खम्बो में से एक है पर जहाँ बिरादरी की बात आती है ,वे एक साधारहण आदमी हो जाते है ......
अब कुछ एक लाइना :
बंदरों के वोट :के लिये हलकान आलोक पुराणिक।
किस्सा -ए-होस्टल : किस्सा बी हास्टल कल आयेगा। डिबिया खरीद लें रखने के लिये।
किसी की मुस्कराहटों पर हो निसार .. : होंगे बस आप मुस्कराती रहें।
लोस एंजिलिस:शानदार शहर का परिचय जानदार ही होगा।
फ़ंस गया सुदामा: पंगेबाज के चुंगल में।
आंसू,गम,और मैं.... : सब एक ही पैकेज में।
कंट्रेक्ट को निरस्त करने की न्यायालय की शक्ति : तीसरे खंभे में है।
पंडित जी, तुसी ग्रेट हो...: सच बयानी के लिये शुक्रिया।
हिन्दी ब्लॉग जगत का नारीवाद:विष रस भरा कनक घट जैसे
मुझे इन सामाजिक जाल स्थलों से बचाओ : कम्प्यूटर बन्द करो बाहर निकल आओ।
मेरी ज़िन्दगी में भीड़ बहुत थी : फोटो तो अकेली की लगा रखी है।
याद आ गया द ग्रेट डिक्टेटर का वो सीन : बड़ी तगड़ी याददास्त है।
स्कूल जाने की इच्छा नहीं हो रही.. : ये रोज-रोज एक ही बहाना कम से कम बहाने तो नये होने चाहिये।
"मेरी पसंद
माइ री माइ कितबिया दे स्कूल में जायेके
माइ री माई खाना पकायेदे स्कूल में खायेके।
हम स्कूल गए और पढ़े...
क कबूतर पकड़ के लाया
ख खटिया पर बैठा है
ग गधे को कभी न छेड़ो
घ घड़ी को देखता है
ड. बेचारा पड़ा अकेला
आओ बच्चो खेलें खेला।।
आभा
आनन्द आ गया चर्चा पढ़ कर. ऐसी ही नियमितता बनाये रखें. इन्तजार रहता है.
जवाब देंहटाएंकविता तो सुनाये रहे हो पर जेकाहे भूल जाते हो कि प से पंगेबाज से पंगा मत लेना , अब लिये हो तो भुगतने को तैयार रहना :)
जवाब देंहटाएंआहा!! आज की चर्चा में तो हम भी शामिल है.. एक विनती भी है जहा आपने लिखा है सेवाए ली जानी चाहिए वहा पर सेवाए के आगे बोल्ड अक्षरो में 'सशुल्क' लिख देते तो.. ही ही ही समझ रहे है न आप..
जवाब देंहटाएंवैसे आज की चर्चा शानदार रही.. ख़ासकर ये पंक्तिया
किस्सा -ए-होस्टल : किस्सा बी हास्टल कल आयेगा। डिबिया खरीद लें रखने के लिये।
मेरी ज़िन्दगी में भीड़ बहुत थी : फोटो तो अकेली की लगा रखी है।
मेरी ज़िन्दगी में भीड़ बहुत थी : फोटो तो अकेली की लगा रखी है।
वैसे हम भी आ रहे है..
वाह जी वाह
जवाब देंहटाएंक्या जबरदस्त चिटठा चर्चा है.
सबसे बड़ी खासियत मुझे ये लगती है कि अगर किन्ही कारणों से दो चार दिनों ब्लाग पर आना न मुमकिन हो तो आने के बाद आपकी चिटठा चर्चा पढ़ लेने से अधिकांश जानकारी मिल ही जाती है.
नाचीज का जगह देने के लिए आभार.
मैंने तो कुश के पास अर्जी लगा भी दी है.
आज की चर्चा आपने पूरे मूड में की है :-)
जवाब देंहटाएंरोचक चर्चा :)
जवाब देंहटाएंसच पूछिए तो बस आपकी ये "लाइना" पढ़ना यहाँ खीच लाता है.......कुछ तो ऐसी है बस .......झकास.......
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा!
जवाब देंहटाएंबढिया है ,...कितना करे हे हे हे हे ......बाल किशन जी सही कह रहे है।
जवाब देंहटाएंचिच (चिठ्ठा चर्चा) बहुत चकाचक है!:)
जवाब देंहटाएंहिन्दी ब्लॉग जगत का नारीवाद:विष रस भरा कनक घट जैसे
जवाब देंहटाएंमुझे इन सामाजिक जाल स्थलों से बचाओ : कम्प्यूटर बन्द करो बाहर निकल आओ।
मेरी ज़िन्दगी में भीड़ बहुत थी : फोटो तो अकेली की लगा रखी
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हमेँ भी शामिल करने का शुक्रिया और ये ऊपर के सारे लिन्क पढकर आपके सेन्स ओफ ह्यूमर के फेन/ *FAN* :) हो गये हैँ
-लावण्या
चिठ्ठाजगत का ट्रेलर वास्तव में बड़ा कारगर है। इसमें अपना नाम देखकर मेरे जैसे नौ-सिखिए फूले नहीं समाते हैं। बस ऐसे ही नज़रे-इनायत करते रहें। हम तो आप के मुरीद हैं हीं।
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जवाब देंहटाएं*:o)
कोई समझा ? नहीं न..तो यह मेरा प्रतीकात्मक सेन्स ओफ ह्यूमर
है,प्रतीकात्मक कविता, कहानी,व्यंग,आलेख के बाद कुल ले दे कर
अब यही बचा है..सेन्स ओफ ह्यूमर की प्रतीकात्मिकता । यहाँ पर
केवल आप सब के संज्ञानार्थ प्रेषित किया जा रहा है । धन्यवाद !