बॉस को देखते ही वह बहुत व्यस्त हो जाता है। कभी फोन पर चीखता है। कभी जूनियर्स पर चिल्लाता है। कभी सिस्टम पर गुस्सा उतारता है। वह न्यूज चैनल का प्रोड्यूसर है। एक्टिव इस कदर है कि कई बार तो उसके लिए पूरा फ्लोर छोटा पड़ जाता है। जब वह भागता है तो लगता है कोई आसमान गिरने वाला है।अनिल पुसदकर टीवी संवाददाता के अंदाज को अपनी पोस्ट के शीर्षक में ही बयान कर देते हैं-चीख-चीख कर खबर बेचने वाले एँकर को देखो तो लगता है की फुटपाथ पर कोई साँडे का तेल बेच रहा हो.
रवीश कुमार की कविता बहुत कुछ कहती है:
दो लोग उठा कर रख देंगे मुझेआलोक नंदन मुंबई में हुये हमले को भारत पर नहीं बल्कि अमेरिका और ब्रिटेन पर हुआ हमला मानते हैं
स्ट्रेचर पर और अपडेट कर देंगे
मरने वालों की संख्या और सूची
भेजा जाऊंगा पोस्टमार्टम के लिए
कितनी लगीं गोलियां और कितने बजे
पता लगा लिया जाएगा ठीक ठीक
मैं रवीश कुमार,दिल्ली के एक मॉल में
घेर का मार दिया गया आतंकवादी हमले में
यह एक सफल हमला है, भारत पर नहीं बल्कि अमेरिका और ब्रिटेन पर। भारत तो सिर्फ रणभूमि है। रणभूमि के तौर पर इसका चयन काफी सोंच समझ कर किया जा रहा है। अभी कुछ देर पहले असम भी फिर एक विस्फोट की खबर मिली है,यह गिल्ली डंडा का खेल नहीं है तो और क्या है।
रचना बजाज सारी घटनाओं को दूसरी नजर से देखती हैं। मुंबई में हुई आतंकवादी कार्रवाई पर एक नन्ही बच्ची ( शायद ८- १० वर्ष की होगी) भी घटना स्थल पर आई और समझदारी भरी बाते कर रही थी….
वहीं दूसरी तरफ़ का सच यह भी है कि
* एक अन्य ११ वर्षीय बच्ची सविता कभी कभी अपनी नानी के साथ मेरे घर आती है..कल जब वो आयी तो मैने उससे मुम्बई की घटना के सिलसिले मे कुछ बाते पूछी…. उसे कुछ भी नही पता था— उसने ये सब कभी नही सुना था- मुख्यमन्त्री, प्रधानमन्त्री, कमान्डो…यहां तक कि उसने ताज महल का नाम भी नही सुना…. जबकी वो स्कूल जाती है और चौथी क मे पढती है…..उसकी मां को भी ये सब नही मालूम… वो दोनो दुनिया के बारे मे ज्यादा नही जानती लेकिन दुनिया उन्हे जानती है….. दुनिया भारत की अन्य विशेषताओ के साथ ही एक आंकडे के रूप मे इन्हे जानती है….
* एक प्रतिक्रिया कचरे के डिब्बे मे फ़ेकी गयी नवजात बालिका की भी है …
तंजीर अंसार अपनी बात कहते हैं:
पहले डरता नही था पर अब डरने लगा हूँ ,
रोज़ तिल तिल कर मरने लगा हूँ .
मुंबई हादसों पर नेताओं ने गैरजिम्मेदाराना बयान बड़ी मुस्तैदी से दिये। श्रीकान्त मिश्र को उनसे घिन आनी लगी! अरुण प्रकाश इसे कमीना पंथी की हद मानते हैं और प्रशांत प्रियदर्शी के विचार आप खुद लें। लिंक ये रहा। विवेक रस्तोगी सवाल पूछते हैं:
शर्मिन्दगी महसूस हो रही है... क्या हमें वास्तव में अच्युतानंदन जैसे नेताओं की ज़रूरत है... क्या हमने वास्तव में अच्युतानंदन जैसे नेता पाने के लिए लोकतंत्र की व्यवस्था के बीच वोट दिया था... क्या अच्युतानंदन जैसे लोगों के नेता बन जाने में हम कहीं भी दोषी नहीं हैं... क्यों अच्युतानंदन जैसे नेताओं को बर्दाश्त करते रहना हमारी मजबूरी है..
डा.अमर कुमार पूछते हैं और फ़िर बताते भी हैं- कौन हैं यह, जाकिर-उर- रहमान उर्फ़ चाचा?
मानोसी की एक गजल उनकी ही आवाज में आप महावीर शर्मा जी के ब्लाग पर सुन-पढ़ सकते हैं:
दुआ में मेरी कुछ यूँ असर हो
तेरे सिरहाने हर इक सहर हो
जहां के नाना झमेले सर हैं
कहाँ किसी की मुझे ख़बर हो
नितीश राज ने मुंबई दुर्घटना के समय हुई रिपोर्टिंग के किस्से बताये हैं। उनका भी मानना है कि आतंकवादी घटनाओं का सीधा प्रसारण नहीं किया जाना चाहिये जिसे उनके चैनल वालों ने बाद में मान लिया।
आतंकवाद के बहाने कौन-कौन चर्चा में आ गया दुबारा यह देखिये प्रशांत दुबे की पोस्ट् में।
बेजी का - कहना है : आतंकवाद को मिटाने के लिये आतंकवादी की मानसिकता समझना पहली सीढ़ी है।
उन्मुक्ति अपनी व्यथा कथा कहती हैं और परेशानियों से निपटने के अपने हौसले का इजहार भी!
नेताओं से तुलना किये जाने पर डाग ग्रुप सोसाइटी ने अपना तीखा विरोध दर्ज कराया है:
कुत्ता जिसका नमक खाता है, उसके प्रति आजीवन वफादार रहता है। वह ऐसे नेताओं से काफी ऊंचा है, जो सिफॆ स्वाथॆ और पुश्त दर पुश्त के लिए धन इकट्ठा करने के पीछे लगे रहते हैं। हम जैसे हैं, वैसे ही ठीक हैं। हम ऐसे नेताओं की घोर निंदा करते हैं, जो हमें हीन भावना से देखते हैं और हमारी तौहीन करते हैं।कबाड़खानें में अशोक पाण्डेय सुना रहे हैं इब्न-ए-इंशा साहब की एक नज़्म:
इंशाजी उठो अब कूच करो,पुलिस द्वारा कानून के दुरुपयोग के चलते उनकी मूल भावना की ऐसी कम तैसी करने के किस्से बयान करते हैं द्विवेदीजी:
इस शहर में जी का लगाना क्या
वहशी को सुकूं से क्या मतलब,
जोगी का नगर में ठिकाना क्या
वास्तव में हमारी नकारा पुलिस ने तलवार से सब्जी काटना शुरु कर दिया था। जब उन्हें अपने सामने किसी भी तरह से इकबालिया बयान दर्ज करने की छूट मिली तो इसे ही उन्हों ने अन्वेषण का पहला और आखिरी हथियार समझ लिया। जरा भी किसी को परेशान करने की नीयत होती तो उसे पोटा में बंद कर दिया जाता।शब्दों के सफ़र में आज अजित जी बता रहे हैं चम्पा, नीलोफ़र और नीलकमल के बारे में:
नील को अंग्रेजी में इंडिगो कहते हैं। इसका संबंध सहज रूप से इंडिया यानी भारत से ही है। इंडिगो बना है ग्रीक भाषा के इंडिकोन और इंडिकोस से जिसका अर्थ था नील का पौधा। यह इंडिया से ही बना। इंडिया ग्रीक भाषा के इंडस से बना है । दरअसल सिन्धु नद का ग्रीक उच्चारण ही इंडस है।ज्ञानजी आजकल अफ़वाहें फ़ैलाने में ज्यादा मन लगा रहे हैं। जो ताऊ खुद अपनी प्रोफ़ाइल में लिखते हैं कि शरीफ़ों को बिगाड़ना उनका काम है उनके लिये वे लिखते हैं:
सारे देसी हरयाणवी ह्यूमर के पीछे एक सन्जीदा इन्सान नजर आते हैं ये ताऊ। कहते हैं कि अपने पजामे में रहते हैं। पर मुझे लगता है कि न पजामे में, न लठ्ठ में, ये सज्जन दिल और दिमाग में रहते हैं।उधर ताऊ शेयर बाजार की कथा सुनाते हैं:
चिदंबरम साहब ने इसको इक्कीस बाईस हजार पर इसी लिए तो पहुंचाया था की रामदयाल कुम्हार ( जनता ) को चुनाव में सरकार बता सके की वो अब सबसे बड़ी अर्थ व्यवस्था है दुनिया की ! अब अगली बार हम इसे ब्रह्माण्ड की सबसे बड़ी अर्थ व्यवस्था बनाने जा रहे हैं और इसके लिए हम चाँद पर चंद्र यान भी भेज चुके हैं ! पर कहते हैं ना " लुन्गाडे यार किसके ? खाए पीये और खिसके !" धोखेबाज कहीं का ! सट्टाबाजार इसी लिए तो कहते हैं इसको !
एक लाइना
- वह न्यूज चैनल का प्रोड्यूसर है : इसीलिये भागता रहता है
- गोलियों से तेज चलते हैं विचार : वार करके निकल लेते हैं
- घेर कर मार दिये जाने के बाद: पहले बयान जारी किया जाता है, फ़िर पोस्टमार्ट्म इसके बाद अगली न्यूज
- पत्नी का अंतिम मिस कॉल:भारत वार जोन में तब्दील हो चुका है
- सात दिन सात पोस्ट!! : अभी तो एक ही हुई बाकी की कब आयेंगी?
- अब डरने लगा हूँ : डर लगने पर तो गाना गाना चाहिये
- नेता उवाच कमीनापंथी की भी हद है: नेता बने रहने के लिये अब इत्ता तो करना ही पड़ता है
- घिन आने लगी है तुमसे ....: रूमाल रखा करिये न नाक पर
- ब्लॉग पर traffic बढ़ाएं: जाम लगायें लेकिन दुर्घटना बचायें
- आतंकवाद के बहाने : सब अपनी बयानबाजी में जुटे हैं
- हम कायर डरपोक हैं साले : क्या बात कही है लाले
- फुंक चुकीं मोमबत्तियां : अब लाइट आन करो
- बताइये क्या करुँ? : कुछ काम करो, कुछ काम करो/जग में रहकर कुछ नाम करो
- करीना कपूर और सैफ की डे-टिंग कहानी : को हम ओढ़ें कि बिछायें?
- सबको पता था कि हमला होगा : लेकिन सब आराम से थे
- अदालत ने सरकार बर्खास्त की: थाईलैंड की अदालत भारत कब आयेगी?
- यह ताऊ कौन है? : ताऊ ने जमीन दी चांद और आपको यह पता ही नहीं कि ताऊ कौन है?
- वेलकम भूतनी पुत्र : आइये्, फ़ीता काट के शुरू हो जाइये
मेरी पंसद
मरना मुश्किल हैलेकिन उससे भी ज्यादा मुश्किल है
पल पल, घंटों तक, कई दिनों तक, महीनों तक
और शायद सालों तक जीवन और मौत के बीत झूलते रहना ।
गुलामी में जीना मुश्किल है
लेकिन उससे भी ज्यादा मुश्किल
पल, घंटों तक, कई दिनों तक, महीनों तक
और शायद सालों तक, आजा़द कहलाते हुए भी निरंतर गुलामी करना।
उन्मुक्त गगन में क्षितिज पाना मुश्किल है
लेकिन उससे भी ज्यादा मुश्किल है
हर पल, घंटों तक, कई दिनों तक, महीनों तक
और शायद सालों तक आनंदमयी उड़ान की सफ़ल योजनाएं बनाना।
आज़ादी की जिम्मेदारी सफलतापूर्वक संभालना ।
उन्मुक्ति
और अंत में
लिखते-लिखते क्लास जाने का समय हो गया। देखते-देखते नैनीताल में दस दिन हो गये। यहां आये थे तो सोचा था कि दस दिन कैसे कटेंगे। आज जाना है तो लग रहा है कहां गये दस दिन।बहुत कुछ लिखने-पढ़ने की सोच के आये थे। एक भी किताब खतम न हुई। मुंबई हादसों के चलते कुछ लिखने का मन न हुआ। चिट्ठाचर्चा बस करते रहे।
मुंबई हादसों में हिन्द युग्म से जुड़े रहे एक कवि-ब्लागर साथी भी हमारे बीच से चले गये। उनको हमारी विनम्र श्रद्धांजलि!
फ़िलहाल इतना ही। कल आपको शिवकुमार मिश्र जी चर्चा सुनायेंगे!
kaha gaye das din......wakt gujarte pata kab chalta hai....likhne ke liye u niklna bhi achcha hai.....
जवाब देंहटाएंरोचक समीक्षा, धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंहनुमान चालीसा हो गया है चिट्ठा चर्चा,सुबह की शुरआत इसी से हो रही है आज कल्।जो कुछ छूट जाता है आप बता देते हैं।
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंफ़ुरसतिया अनूप सर जी, नमस्कार ! " ज़ाकिर उर रहमान... " मेरे हाथ तो ऎवेंई लग गये, श्रेय मेरा नहीं है । आजकल नेट पर बौखलाया सा टहलता रहता हूँ, इसी कड़ी में प्रेम शुक्ल की यह रिपोर्ट
विस्फ़ोट पर हाथ लग गयी, मैंने सँवार कर परोस भर दिया ! यह मेहनत किसी और की है, क्यों मुझे पाप लगाते हो ? सादर धन्यवाद !
वाह, चिच में या तो आतंकोचित कथ्य दिख रहा है या ताऊ का आइकॉन!
जवाब देंहटाएंरोचक रही यह चर्चा
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा रही. आप की पसंद की कविता भी बढ़िया रही.
जवाब देंहटाएंकल मुझे चर्चा सुनाना है? सुनायेंगे.
आलोक नंदनजी का कथन कुछ हद तक सही हो सकता है कि आतंकियों का निशाना विदेशी हों या यहां के यहूदी [नारिमन हाउज़] पर मरे तो अपने ही लोग अधिक हैं और ‘रणभूमि’ का नुकसान हुआ सो अलग!
जवाब देंहटाएं>डो. अमर कुमार जी, इसीलिए तो एक कहावत है - मेहनत करे मुर्गे सा’ब और अंडे खाए मौलवी सा’ब :)
बहुत बढ़िया चर्चा अनूप भाई ! मगर यह ताऊ का फोटो यहाँ क्यों लगाया ???
जवाब देंहटाएंताऊ की फोटॊ इसलिये कि आज की चर्चा का विषय ताऊ की पोस्ट से है! इसके अलावा ज्ञानने ताऊ चर्चा करी है!
जवाब देंहटाएंRavish ji ki kavita aap ki charcha me dekhi... bahut khoob.
जवाब देंहटाएंआज तो खूब समय निकाल लिया, लगता हैअ नैनी झील से विदाई के पूर्व ही आप अपनी दुनिया में रमने लगे.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआज तो नु लाग रया सै की "टाईम मैगजीन" ( चिट्ठाचर्चा ) और फोर्च्यून मैगजीन ( मानसिक हलचल ) ने एक साथ ताऊ की फोटू फ्रंट पेज पर छाप दी सै ! घणा धन्यवाद आपको !
जवाब देंहटाएंऔर सभी स्नेही मित्रो और शुभचिंतको का इस सार्वजनिक मंच से शुक्रिया और आभार ! मैं आप सभी का तहेदिल से शुक्रगुजार हूँ !
इब राम राम !
बढ़िया चर्चा रही... कानपुर वापस जाकर लिखिए. वक्त तो ऐसे ही बीत जाता है और नैनीताल जैसी जगह हो तब तो पता नहीं ही चलेगा.
जवाब देंहटाएंवाह जी आज तो ताऊ ही छाए हुए है.. चर्चा का नया स्वरूप अब जगह बना रहा है..
जवाब देंहटाएंजमाये रहिये। ज्ञानजी बता रहे थे आफ दि रिकार्ड की ताऊ आप ही हैं।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंअब मौलवी की मज़बूरी तो समझा करो, चन्द्रमौलेश्वर जी ! अग़र मुर्गा अंडे खा पाता, तो मौलवी को यह ज़हमत क्यों करनी पड़्ती ? इन मुर्ग़ों की वज़ह से ही तो मौलवी साहब का पेट टनाटन है ! वह डकार भी लेते हैं, तो फ़तवा ही निकलता है !
एक सवाल अनूप सर से.. आप अपना लाइसेंसी फ़ुरसतिया क्या कानपुर मालखाने में ही ज़मा करा आये हैं ? ऎसे नाज़ुक घड़ी में आपका हथियार आपके पास होना चाहिये, सर !
अच्छी है चिट्ठा चर्चा । गागर में सागर ।
जवाब देंहटाएंरोचक रही चर्चा
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा हुई है। अब नैनीताल पर आपकी रपट का इंतजार है। इब राम राम।
जवाब देंहटाएंअच्छी है चिट्ठा चर्चा !!!!
जवाब देंहटाएंप्राइमरी का मास्टर