अगर आपको पता चले कि साहित्य का अगला नोबेल पुरस्कार आपके बगल वाले ब्लॉगर को मिलने वाला है तो आपकी क्या प्रतिक्रिया होगी ? आप शायद तुरंत कोई प्रतिक्रिया देने की स्थिति में न रहें क्योंकि आप तो शॉक्ड रह जाएंगे ना । लेकिन जब आपको होश आएगा तो क्या कहेंगे ? हम जानते हैं . आप प्रकट में तो यही कहेंगे कि चलिए अच्छा हुआ हमारे ब्लॉगजगत के किसी आदमी को नोबेल पुरस्कार मिला है । गर्व की बात है । और कदाचित उस ब्लॉगर को बधाई देने दौड पडें . लेकिन मन में यही सोचेंगे कि इसको यह पुरस्कार मिल कैसे गया ? देखने में तो लल्लू लगता है । और मैं सबसे बडा ब्लॉगर होने का दम भरता हूँ । अब रिश्तेदारों को क्या मुँह दिखाऊँगा । ऑफिस में कैसे व्यंग्यों का सामना करूँगा । इसने तो बुरा फँसा दिया । कुछ तो शायद निराशा में ऐसे कदम उठाने पर आमादा हो जाएं जिनका जिक्र हम एक सभ्य चर्चाकार होने के नाते यहाँ नहीं कर सकते ।
जी नहीं हमने कोई मजाक नहीं किया । ये कोई छोटे मोटे ब्लॉगर नहीं स्वयं रवि जी कहते हैं . आप रवि रतलामी से खुद ही निपट लें । कहते हैं :
" अगले वर्ष का साहित्य का नोबल पुरस्कार मेरे नाम पर होगा। अखबारों के शीर्षकों पर निगाहें जमाए रहिए और मुझे बधाई संदेश देने / स्वागत-अभिनंदन समारोहों-जलसों में निमंत्रित करने की तैयारियों में जुट जाइए। आमीन! "
देखा ! हमने कोई सनसनी तो नहीं फैलाई । पर अदालत नाम के ब्लॉग पर सनसनी फैलाने के लिए ब्लॉग को बन्द करने से सम्बन्धित शीर्षक दिया गया है । अंदर जाकर पता चलता है कि :
" आदरणीय द्विवेदी जी, 'अदालत' की कार्यवाही जारी रखेंगे। "
ठीक है ! जारी रखिए हमने बन्द करने को तो नहीं बोला था । आप बन्द करें या जारी रखें पर हमारा ध्यान चर्चा पर ही केन्द्रित रहेगा । आज धरती पर कोई भी हमें चर्चा के केन्द्र से नहीं हटा सकता । अच्छा सोचिए कोई पूछे कि धरती का केन्द्र कहाँ है तो बता पाएंगे आप ? दिमाग पर ज्यादा जोर न दें हमारे ताऊ ने पहले से ही बता दिया है :
" आपसी बहस चल ही रही थी कि अपना ताऊ हाथ में लट्ठ लिए आता दिखाई दिया चूँकि गांव में लोग ताऊ को ज्यादा ही ज्ञानी समझते थे और समझे भी क्यों नही, ताऊ के तर्कों के आगे अच्छों अच्छों की बोलती बंद हो जाती है | सो ताऊ के चौपाल पर पहुचते ही लोगों ने प्रश्न किया कि ताऊ धरती का बीच कहाँ है | ताऊ ठहरा हाजिर जबाब सो अपना लट्ठ वहीं रेत में गाड कर बोला " ये रहा धरती का बीच" किसी को कोई शक हो तो नाप कर देख लो |"
वैसे ताऊ कुछ भी कर सकते हैं । अब देखिए फुरसतिया ने कहा है कि बोरियत जो न कराए . तो ताऊ जब टल्ल लिखते लिखते बोर हुए तो कविता लिखने का मन किया . और जब खुद न लिख सके तो आउट सोर्सिंग का सहारा लिया . वह तो सीमा गुप्ता जी ने सस्ते में लिख दी । वरना हमसे लिखवाते तो पता नहीं कितनी टिप्पणियों के बदले लिखते ।
वैसे बोरियत से बचने का एक उपाय हमारे हाथ लग गया है । जब भी बोरियत हो अलग सा ब्लॉग पर चले जाइए । आज ये इंसानों की आस्था और श्वानों की धुलाई पर बोले हैं । नमूना देखें :
" पर जब श्वान पुत्र बार-बार जिद करने लगा तो मजबूर हो कर मां को कहना पड़ा कि बेटा ये हमारी बात नहीं सुनेंगें। पुत्र चकित हो बोला कि जब ये इंसान के बच्चे को ठीक कर सकते हैं तो मुझे क्यों नहीं।हार कर मां को कहना पड़ा, बेटा तुम्हारे पिता जी ने इसे इतनी बार धोया है कि अब तो मुझे यहाँ रहते हुए भी डर लगता है । "
हँसी मजाक छोडकर अब थोडा सीरियस हो जाएं । क्योंकि अब बात हाथ उठाने से बढते बढते अब तीसरे विश्व-युद्ध तक आ पहुँची है । घबराइए मत विश्व युद्ध आरम्भ नहीं हुआ है । लेकिन आरम्भ होने पर घबराए तो क्या घबराए ।फिर आप में और आम ब्लॉगर में अंतर ही क्या रह जाएगा . पहले ही घबराना ठीक है । ज्ञानदत्त जी के ब्लॉग पर ऐसी पोस्ट देखकर कुछ लोग तलवारें ले लेकर कूद पडे . कुछ कविताएं गाने लगे . हडबडाहट में अपनी नहीं बनी तो रामधारी सिंह 'दिनकर' की उठा लाए । देखिए अभिनव जी की टिप्पणी , हो सकता है आपको भी जोश आ जाए ।
" समर निंद्य है धर्मराज, पर, कहो, शान्ति वह क्या है,जो अनीति पर स्थित होकर भी बनी हुई सरला है?सुख-समृद्धि क विपुल कोष संचित कर कल, बल, छल से,किसी क्षुधित क ग्रास छीन, धन लूट किसी निर्बल से।सब समेट, प्रहरी बिठला कर कहती कुछ मत बोलो,शान्ति-सुधा बह रही, न इसमें गरल क्रान्ति का घोलो।हिलो-डुलो मत, हृदय-रक्त अपना मुझको पीने दो,अचल रहे साम्रज्य शान्ति का, जियो और जीने दो।सच है, सत्ता सिमट-सिमट जिनके हाथों में आयी,शान्तिभक्त वे साधु पुरुष क्यों चाहें कभी लड़ाई?सुख का सम्यक्-रूप विभाजन जहाँ नीति से, नयसेसंभव नहीं; अशान्ति दबी हो जहाँ खड्ग के भय से,जहाँ पालते हों अनीति-पद्धति को सत्ताधारी,जहाँ सुत्रधर हों समाज के अन्यायी, अविचारी;नीतियुक्त प्रस्ताव सन्धि के जहाँ न आदर पायें;जहाँ सत्य कहनेवालों के सीस उतारे जायें;जहाँ खड्ग-बल एकमात्र आधार बने शासन का;दबे क्रोध से भभक रहा हो हृदय जहाँ जन-जन का;सहते-सहते अनय जहाँ मर रहा मनुज का मन हो;समझ कापुरुष अपने को धिक्कार रहा जन-जन हो;अहंकार के साथ घृणा का जहाँ द्वन्द्व हो जारी;ऊपर शान्ति, तलातल में हो छिटक रही चिनगारी;आगामी विस्फोट काल के मुख पर दमक रहा हो;इंगित में अंगार विवश भावों के चमक रहा हो;पढ कर भी संकेत सजग हों किन्तु, न सत्ताधारी;दुर्मति और अनल में दें आहुतियाँ बारी-बारी;कभी नये शोषण से, कभी उपेक्षा, कभी दमन से,अपमानों से कभी, कभी शर-वेधक व्यंग्य-वचन से।दबे हुए आवेग वहाँ यदि उबल किसी दिन फूटें,संयम छोड़, काल बन मानव अन्यायी पर टूटें;कहो, कौन दायी होगा उस दारुण जगद्दहन का,अंहकार य घृणा? कौन दोषी होगा उस रण का? "
जब तीसरे विश्व-युद्ध की बात चली तो मुझे याद आया कि किसी विद्वान ने कहा था ," तीसरा विश्व-युद्ध किन हथियारों से लडा जाएगा , यह तो मैं नहीं जानता . किंतु चौथा विश्व-युद्ध लाठी और डण्डों से लडा जाएगा " अब ये मत पूछने लग जाना कि यह किसने कहा था . इतनी अंग्रेजी हमें नहीं आती . हमें इनीशियल एडवाण्टेज जो नहीं मिला था .
कोई भला आदमी नहीं चाहता होगा कि विश्व-युद्ध हो । पर फिर भी पंकज अवधिया जैसे योद्धा तो अपना दुश्मन ढूँढ ही लेंगे । देखिए कैसे अंध विश्वास से लड रहे हैं :
" मैने सियार सिंगी बेचने वालो को बहुत बार पकडा है। छत्तीसगढ मे जंगली इलाको से लोग अक्सर ऐसी तांत्रिक महत्व की चीजे ले आते है और किस्से गढकर जितने दाम मिल जाये उसी मे मोल-भाव करके बेच देते है। शहर के पढे-लिखे लोग उनके शिकार होते है। गाँव के लोग तो झट से असलियत जान जाते है। बडी गाडियो को निशाना बनाया जाता है। धन लाभ की बात जैसे ही कही जाती है शहर के पढे-लिखो को पता नही क्या हो जाता है। शार्ट-कट के चक्कर मे वे पैसे गँवा देते है। "
लवली कुमारी भी अंधविश्वास से अपने तरीके से लड रही हैं । वे साँपों के बारे में आज कुछ भ्रांतियाँ दूर करेंगी । चलिए उनकी क्लास में :
" कुछ भ्रातियाँ साँपों के बारेभ्रम : - सांप बीन की आवाज पर नाचतें हैं।सत्य :- नही ,सांप के बाहरी कान नही होते।इसलिए वे हवा में उत्पन्न कोई भी आवाज नही सुन सकते हैं।वे अपने आंतरिक कानो से धरती के कंपन से पैदा हुई आवाज को सुनते हैं।बीन की धुन पर हिलने डुलने से ऐसा लगता है की सांप नाच रहा है ॥लेकिन वह बीन के लंम्बे सिरे से चोट खाने के भय से उसपर कड़ी नजर रखता है और उसके गति के विपरीत जाकर बचने की कोशिस करता है।इससे हमें यह भ्रम हो जाता है की सांप बीन की धुन पर नाच रहा है। "
अभी पिछले दिनों कुछ ब्लोगरों ने खुलासा किया था कि उन्होंने स्कूल में खूब पिटाई खाई थी । पर उस समय प्राइमरी के मास्टर जैसे मास्साब नहीं रहे होंगे जो इसके विरुद्ध रहे हों । इनके विचार हैं :
" भय-दण्ड में गहरा अन्तर्सबंध है। भय आमतौर पर किसी अनिष्ट की संभावना को सहजतापूर्वक कह सुन नहीं सकता। इसकी वजह से बच्चे की सीखने की गति भी प्रभावित होती है। जिस तरह भय के उपस्थित होने पर बड़े भी असहाय हो जाते हैं उसी तरह बच्चे भय के सम्मुख असहाय हो जाते हैं और इस समय सीखने में एक तरह से असमर्थ होजाते हैं। बिना समझे बात स्वीकार कर लेने में आमतौर पर बच्चे दबाव हटते ही शिक्षक की बातों की अवहेलना शुरू कर देते हैं। "
वैसे शिक्षक सिर्फ स्कूल या कालेज में ही नहीं मिलते । आपको अपने आसपास भी बहुत मिल जाएंगे । ऐसे शिक्षक किसी निश्चित पाठ्यक्रम के अनुसार नहीं चलते । अब देखिए नीरज बता तो रहे थे घुमक्कडी के टिप्स और देने लगे गर्लफ्रैण्ड की परिभाषा , कहते हैं :
" दोस्तों में लड़कियां भी हो सकती हैं। अगर आप कहीं टूर पर जा रहे हैं, हर सदस्य, चाहे वो लड़का हो या लड़की, अपना खर्च ख़ुद उठाता हो, किसी दूसरे के भरोसे ना हो, तो मैं इस मण्डली को "दोस्त" कहूँगा। लेकिन अगर कोई लड़का किसी लड़की पर इम्प्रेशन ज़माने के लिए उसका भी खर्च उठाता हो, उसकी हाँ में हाँ मिलाता हो, किसी दूसरे की परवाह ना करता हो, तो मैं उस लड़की को उस लड़के की "गर्लफ्रेंड" कहता हूँ। "
अब शिक्षकों की बात चली है तो थोडी गणित की बात हो जाए । क्या आपने कभी सबसे बडी अभाज्य संख्या पर विचार किया है . नहीं न ? चलिए ले चलते हैं नटवर सिंह राठौड़ के पास । बताते हैं :
" कैलिफ़ोर्निया के गणितज्ञों ने एक ऐसी अभाज्य संख्या की खोज की हैजिसमें 13 लाख अंक हैं।अभाज्य संख्याएँ अपने अलावा केवल एक से ही विभाजित होती हैं।कैलिफ़ोर्निया यूनिवर्सिटी के दल (यूसीएलए) ने लॉस एंजेलेस में ये नया नंबर 75 कंप्यूटरों को जोड़कर और अपनी अप्रयुक्त शक्ति को काम में लाकर हासिल किया।ऐसा करके उन्होंने उस ज़बर्दस्त गणना को संपादित किया जो कि इस नए नंबर को हासिल करने और सत्यापित करने के लिए आवश्यक थी। "
अपने को इन बातों पर भरोसा नहीं होता । जब गिनतियाँ अनंत हैं तो भला कोई अभाज्य संख्या सबसे बडी कैसे हो सकती है ?
कविता प्रेमियों का स्वागत आज नीरज गोस्वामी हाथ में फूल लेकर कर रहे हैं । पास जाने पर इनके ठीक बराबर में स्मार्ट इण्डिय खडे हैं । पूछते हैं : क्या मतलब -कविता ? यहाँ तक पहुँच गए तो बहुत सारी कविताओं के लिंक मिलेंगे .
आप शायद सोच रहें हों कि हम आपको ज्ञान देने की कोशिश कर रहे हैं । ज्ञान देने वाले हम अकेले नहीं हैं । देखिए कितने लोग ज्ञान बाँटने पर उतारू हैं :
1) रवीन्द्र प्रभात : आलोचनाओं को सकारात्मक भाव से लेना चाहिए !2) राज भाटिया : पहले तोल फ़िर बोल ।3) शारदा अरोरा : शुरुआत में अन्त बताया नहीं करते4) आशीष खण्डेलवाल : ब्लॉग पर संगीत जोड़ने का सबसे आसान तरीका5) पंकज व्यास : हाथी के दांत खाने के अलग, दिखाने के अलग6) महेंद्र मिश्रा : अपनी ढपली अपना राग अलापना कभी कभी मंहगा साबित हो सकता है.7) सुरेश चन्द्र गुप्ता : जनता एक हो सकती है पर नेता नहीं8) विनय प्रजापति : जो लोग अच्छे होते हैं दिखते नहीं हैं
जाहिर है हर जगह हर तरह के लोग मिलते हैं तो आपकी तरफ भी कुछ ज्ञान बाँटने वाले लोग होंगे । वे सब अपना ज्ञान यथायोग्य यहाँ उडेल सकते हैं । कोई कुछ नहीं बोलेगा हमने कह दिया है . यहाँ ज्ञान की डिमाण्ड है :
1) पवन कुमार अरविन्द : कहाँ से आया इतना धन ?2) आदित्य : ये छडी किसलिए ?3) विकास सैनी : "खुशवंत को ठेस लगी?"4) लोकेश : क्या अदालत ब्लॉग बंद हो रहा है?5) वरुण जायसवाल : कैसे मिलकर बनायें एक समृद्ध और शक्तिशाली भारत ....??.!!!6) प्रभात गोपाल : भारतीय नेता कैसे देखते हैं ओबामा बनने का सपना8) सचिन : क्यों हैं अमेरिका भारत के साथ..??9) प्रशांत मलिक : कैसे लिखूँ मैं
जूताकाण्ड हुए वैसे तो काफी समय हो गया पर इसका नशा ब्लॉगरों के सिर से उतरता नहीं दिखता । जो ब्लॉग जगत में छाया हो उससे हम कैसे बच सकते हैं ? तो आइये देखते हैं कुछ जूतात्मक पोस्ट्स :
2) चौथा जूता - भाग 2
अब ब्लॉगिंग के अस्तित्व पर एक सवाल ! बताइए किसने पूछा होगा ? हाँ सही समझे रचना जी ने ही पूछा है :
"आप ब्लोगिंग क्यूँ करते हैं ? कोई मकसद , कोई जरुरत या केवल और केवल शुद्ध टाइम पास ?"
हालाँकि कुछ लोगों ने इसका जवाब भी दिया है . पर इतने लल्लू हम नहीं कि आप को वो जवाब यहाँ बता दें :)
चलते- चलते:
आप बिलागिंग क्यों करते हो ?अमाँ बता दो क्यों डरते हो ?करते केवल टाइम पास ?या फिर कोई मकसद खास ?हासिल इससे क्या होता है ?सिर्फ समय जाया होता है .क्या बोले शांती मिलती है ?निर्गुण या हिलती डुलती है ?अच्छा अब में समझ गया हूँ ?तुम क्या सोचे अभी नया हूँ ?भाई अपना घर मत तोडो !शांती से तुम मिलना छोडो !काँटों में विचरण करते हो !अमाँ बता दो क्यों डरते हो ?अब आज्ञा दीजिए अगले मंगल फिर मुलाकात होगी . आपका दिन तो मंगलमय है ही . आज मंगलवार जो है .
बहुत अच्छी चर्चा और कविता विवेक जी ! शुक्रिया !
जवाब देंहटाएंशानदार और दमदार चर्चा ! रवि रतलामी जी को मिलने वाले अगले वर्ष का साहित्य का नोबल पुरस्कार के लिए एडवांस में बधाई ! इसी कामना के साथ कि पुरष्कार रवि जी को ही मिले ! और रवि जो न मिले तो किसी हिन्दी ब्लोगर को जरुर मिले !
जवाब देंहटाएंआज तो कमाल के रंग भरे हैं आपने चर्चा मे ! आनन्द आया भाई !
जवाब देंहटाएंबहुत बधाई !
रामराम !
अरे कैसी शानदार चर्चा है? पता ही न चला कब उतरने का स्टेशन आ गया।
जवाब देंहटाएंaap ko charcha kaar kahun
जवाब देंहटाएंyaa kahun sheershak chor
kartey ho tum charcha achchi
nahin hua haen ham bore
वाह आनन्द आ गया इस चर्चा का। सारे लिंक्स पर जाने के लिए थोड़ा समय लेकर आता हूँ। सबसे पहले रचना जी को ही पढ़ना पड़ेगा। :)
जवाब देंहटाएंशानदार चर्चा !!!
जवाब देंहटाएंरवि रतलामी जी को मिलने वाले अगले वर्ष का साहित्य का नोबल पुरस्कार के लिए एडवांस में बधाई !
विवेक जी, काफी मेहनत से आपने चर्चा की... और अनोखे अन्दाज में प्रस्तुत किया.. बधाई.. और आभार
जवाब देंहटाएंरंजन
शानदार्।
जवाब देंहटाएंआपको अधिक टिप्पणियां मिल सकती है पर नोगेल? नहीं, कभी नहीं। रह गये न उल्लू के उल्लू, घूस देने का सलीका भी न आया तो कोई कैसे मदद करे?
जवाब देंहटाएं>भई, ताऊ तो ताऊ हैं, लठ हो या कील, ठोक दिया तो ध्ररती का सेंटर बन गया। वैसे, कैलिफिर्निया के ताऊ क्या कम हैं जो अभाज्य संख्याओं की संख्या बता दी। चैलेज करते हो! क्या आपके पास ७५ कम्प्य़ूटर है, भले ही आप कह लें मेरे पास मां है :)
>सत्यवचन कहा विनय प्रजापति ने कि जो लोग अच्छे होते हैं दिखते नहीं हैं। मैं भी नहीं दिखता ब्लागिंग जगत नें ...तो....?
भैया सुबह टिप्पणी वाला डिब्बा नही मिल पाया ख़ैर हम ब्लोगिंग क्यो करते है -- यूँ ही खामखा
जवाब देंहटाएंबढ़िया भाई विवेक जी,
जवाब देंहटाएंसभी पोस्टों की ऐसी तैसी मार दी. बस आपका यही अंदाज अच्छा लगता है. लगे रहिये.
@ धीरू सिंह जी , आजकल इण्टरनेट सेवा में जो व्यवधान आरहा है, हो सकता है ऐसा उसी कारण हुआ हो . हमें भी चर्चा को अंजाम तक पहुँचाते पहुँचाते जब सर्दी में पसीने आने लगे तो फुरसतिया को त्राहिमाम पुकारा . नीचे हमारी कविता के पास लगा हुआ फोटू उन्हीं की कारस्तानी है :)
जवाब देंहटाएंएक विनम्र आपत्ति।
जवाब देंहटाएं'क्या अदालत ब्लॉग बंद हो रहा है?' शीर्षक, सनसनी फैलाने के लिए नहीं दिया गया था।
सनसनी फैलानी होती तो लिखा जाता कि 'अदालत ब्लॉग पर सत्ता पलट, द्विवेदी जी ने कब्जा किया' या 'क्या अदालत ब्लॉग के लेखक आत्महत्या करने जा रहे हैं?' आदि-आदि
वह एक सीधा सादा सा सारांश था, लोगों की जिज्ञासायों का।
कथित सनसनी के बावज़ूद, आपने इसे स्थान दिया, धन्यवाद
मस्त चर्चा रही...पता हे नही चला कब ख़तम हो गया...
जवाब देंहटाएंआज तक यह नहीं समझ पाया, कि एकदम्मे भोर में उठकर आप लोग चर्चा कइसे कर लेते हैं!
जवाब देंहटाएंआज की चर्चा तो बड़ी काव्यात्मक रही.
बधाई.
मस्त चर्चा है। पढ़ लिया था सुबह ही, लेकिन उस समय मुझे भी टिप्पणी वाला बक्सा नहीं मिला था।
जवाब देंहटाएंएक विनम्र आपत्ति।
जवाब देंहटाएं'क्या अदालत ब्लॉग बंद हो रहा है?' शीर्षक, सनसनी फैलाने के लिए नहीं दिया गया था।
सनसनी फैलानी होती तो लिखा जाता कि 'अदालत ब्लॉग पर सत्ता पलट, द्विवेदी जी ने कब्जा किया' या 'क्या अदालत ब्लॉग के लेखक आत्महत्या करने जा रहे हैं?' आदि-आदि
वह एक सीधा सादा सा सारांश था, लोगों की जिज्ञासायों का।
कथित सनसनी के बावज़ूद, आपने इसे स्थान दिया, धन्यवाद
ब्लॉगिंग फॉर डमीज?! यह पुस्तक अगर ब्लॉगिंग बाई डमीज हो तो कितना मजा। भांति भांति के ठेलक स्थान पायें उसमें! :-)
जवाब देंहटाएंSundar manbhavan charcha, Bahut achchi lagi.Aabhaar.
जवाब देंहटाएंअद्भुत सुंदर चर्चा. इस चर्चा के लिए आपको साधुवाद.
जवाब देंहटाएंविवेक जी,
जवाब देंहटाएंएक राज की बात बताता हूं। "आनन्द" तभी आया जब "शांति" के साथ बैठ कर पढा।
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआइये मतांतर सुलझायें
जवाब देंहटाएंप्रश्न: 24 रिक्त स्थान की पूर्ति करें
श्री विवेक सिंह की आज की चर्चा अतिविवेक..... रही ( शील / हीन )
सर्वप्रथम सही उत्तर प्रेषित करने वाले बंधुओं एवं बांधवियों को
ताऊ हरियाणे वाले के तबेले से एक बेहतरीन भैंस इनाम !
शीघ्र उत्तर भेजें, गुत्थी बंद होने की समय सीमा है, रात्रि 11.59.55 PM !
सुन्दर। शानदार, जानदार। कुछेक लिंक छोड़कर सब पोस्टें पढ डाली!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा
जवाब देंहटाएं@dr amar
जवाब देंहटाएंअतिविवेक..... रही ( शील / हीन )
पूर्ण ???
बहुत ही शानदार चर्चा विवेक जी....भई वाह !
जवाब देंहटाएंइतनी मेहनत कर कैसे लेते है आप सब?
जवाब देंहटाएंअब तक केवल एक विवेकपूर्ण प्रविष्टि प्राप्त हुई है..
साथ ही प्रतिभागी रचनाजी ने महत्वपूर्ण तीसरा विकल्प सुझाया !
सो, आज का मानद पुरस्कार रचना जी के झोली में जाता है ..
जीतने का श्रेय मिलने के लिये बधाईयाँ !
उनको सूचित किया जाता है, कि वह ताऊ से सम्पर्क कर भैंस ले जायें !
उनके द्वारा स्वीकार न किये जाने की स्थिति में....
ताऊ की भैंस अपुन के चिट्ठाचर्चा पर ही स्थायी रूप से सुशोभित रहा करेगी !
pahli baar aapka blog visit kiya hai. lagta hai bas hafte mein yahi ek baar dekh loon, to kuch aur padhne ki jaroorat nahin bachegi..
जवाब देंहटाएंmaza aa gaya...sare ras bhare hain aapne he he
@ द्विवेदी जी , चढे रहिए अगले मंगल उतर जाइएगा .
जवाब देंहटाएं@ रचना जी , अब जो चाहें कहिए जो हो गया वो हो गया .
@ चन्द्रमौलेश्वर जी , ब्लॉग लिखें तो जानें .
@ लोकेश जी , आपको बुरा लगा हो तो हम माफी चाहते हैं . सब मजाक था .
@ अमित जी , आगे से बता दिया करेंगे . भाई अब खत्म है :)
@ कार्तिकेय जी & गौतम जी , फुरसतिया जो न कराएं :)
@ ज्ञान जी , विचार अच्छा है :)
@ अमर जी , शील और हीन बिना अति के भी हो सकते हैं जी :)
@ पंकज जी , पहली बार आने पर स्वागत है आते रहिए .
बाकी सबका धन्यवाद ! जिन्हें टिप्पणी बॉक्स न मिल सका उनके लिए खेद :)
mae anugrahit hui is puruskaar ko paakar ताऊ की भैंस अपुन के चिट्ठाचर्चा पर ही स्थायी रूप से सुशोभित रहा करेगी !
जवाब देंहटाएंyaehii sahii haen kyun भैंस kae aagey been yahii bajae to achcha haen dr amar
ज्ञान बाँटना बुरा नहीं पर कुछ लोग जमहाई भरते नहीं अघाते, बढ़िया वार्ता!
जवाब देंहटाएं---
चाँद, बादल और शाम
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